नीली अर्थव्यवस्था: सतत मत्स्य उद्योग के लिए
समग्र दृष्टिकोण
साक्षात्कार
भारत की नीली अर्थव्यवस्था की रूपरेखा यथास्थिति से विकास में परिवर्तन की नींव पर तैयार की गई है, जिसमें समुद्री संसाधनों का संरक्षण करते हुए समान वितरण के लिए धनार्जन की आवश्यकता शामिल है. मत्स्य संसाधन ब्लू इकॉनमी के परिदृश्य की प्राकृतिक पूंजी का प्रतिनिधित्व करते हैं और तटीय, द्वीप तथा अंतर्देशीय आबादी के लिए स्थायी धन और रोज़गार के संभावित स्रोत हैं. रोज़गार समाचार के लिए एस. रंगाबशियम के साथ बातचीत में राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड के मुख्य कार्यकारी, डॉ. सी. सुवर्णा, ने नीली अर्थव्यवस्था की वास्तविक क्षमता उजागर करने के लिए देश के दृष्टिकोण के अनुरूप भारतीय मत्स्य पालन क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी दी.
प्रश्न: नीली अर्थव्यवस्थों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण विकसित करने के सरकार के उपायों से मछली पालन क्षेत्र कैसे लाभान्वित होगा?
डॉ. सी. सुवर्णा : भारतीय मत्स्य उद्योग क्षेत्र हिमालय के स्वच्छ एवं निर्मल जल से लेकर विशाल हिंद महासागर तक संसाधनों के एक विशिष्ट और विविध समूह में स्थापित है. देश की मछली पालन जैव विविधता में भौतिक और जैविक घटकों के व्यापक क्षेत्र शामिल हैं जो करोड़ों लोगों की आजीविका का आधार हैं. मत्स्य संसाधन विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में स्थित है. बढ़ती आबादी और मछली प्रोटीन की बढ़ती मांग के साथ, जलीय संसाधनों के सतत विकास की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है. इस क्षेत्र की अत्यंत आवश्यक जरूरतें पूरी करने के लिए नई राष्ट्रीय मत्स्य नीति (एनएफपी) तैयार की जा रही है ताकि विकास का ऐसा मार्ग सुनिश्चित किया जा सके जो वर्तमान आवश्यकताएं पूरी करने के साथ ही भविष्य के लिए भी समान रूप से बेहतर संभावनाएं उजागर कर सके. एनएफपी 2020 का ढांचा बराबरी और समानता के प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है और इसमें जन केंद्रित और भागीदारी पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है. नीति के अंतर्गत लिंग संबंधी समानता और अंतर-पीढ़ीगत समानता बनाए रखने पर बल दिया गया है. यह नीति जिम्मेदारी पूर्ण और टिकाऊ तरीके से मछली पालन के विकास, दोहन, प्रबंधन और नियंत्रण तथा मछली पालन को आगे बढ़ाने के लिए एक कार्यनीतिक तरीका प्रदान करती है. यह नीति नीली अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कृषि, तटीय क्षेत्र विकास और पर्यावरण पर्यटन जैसे अन्य आर्थिक क्षेत्रों के साथ लाभकारी एकीकरण सुनिश्चित करेगी. केंद्र-राज्य और अंतरराज्यीय सहयोग, सामाजिक-आर्थिक उत्थान और मछुआरों तथा मछली किसानों की आर्थिक समृद्धि, विशेष रूप से पारंपरिक और छोटे पैमाने पर मछली पालन, जैसे विषय इस नीति के मूल में हैं. यह राष्ट्रीय आकांक्षाओं और राष्ट्र के सामने निर्धारित विकास लक्ष्यों को भी प्रतिबिंबित करती है.
प्रश्न: नीली अर्थव्यवस्था के विजन की समग्र योजना में राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) की क्या भूमिका है?
डॉ. सी. सुवर्णा : राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) का लक्ष्य मात्स्यिकी क्षेत्र - अंतर्देशीय और समुद्री, के अंतर्गत मछली पालन, मछली पकड़ने, प्रसंस्करण और विपणन की अप्रयुक्त क्षमता का दोहन करना और अनुसंधान एवं विकास के आधुनिक उपकरणों के उपयोग के साथ मत्स्यपालन क्षेत्र के समग्र विकास में तेजी लाना है. इस अधिदेश के साथ, बोर्ड ने पिंजड़े की खेती, घरेलू विपणन, सजावटी मत्स्य पालन, प्रौद्योगिकी उन्नयन, समुद्री शैवाल की खेती, आर्द्रभूमि विकास, गुणवत्ता बीज उत्पादन, प्रजातियों के विविधीकरण, जलीय संगरोधन केन्द्रों, जलीय जीव-जन्तु स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं, मात्स्यिकी क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता और नवाचार गतिविधियों के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया है. इसके अलावा, इसने मछुआरों, मछली किसानों और मत्स्य अधिकारियों के कौशल विकास के लिए विभिन्न प्रशिक्षण और विस्तार कार्यक्रमों को वित्त पोषित भी किया है.
प्रश्न: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के बारे में हमें कुछ जानकारी दें?
डॉ. सी. सुवर्णा : प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) 20050 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश पर शुरू की गई थी, जिसमें केन्द्र की हिस्सेदारी 9407 करोड़ रुपये, राज्यों की हिस्सेदारी 4880 करोड़ रुपये और आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में लाभार्थियों का योगदान 5763 करोड़ रुपये का है. इस योजना के तीन व्यापक केन्द्र बिन्दु हैं :
(I) मछली उत्पादन और उत्पादकता: इसका उद्देश्य मछली उत्पादन को 2018-19 के 13.75 एमएमटी से बढ़ाकर 2024-25 तक 22 एमएमटी तक पहुंचाना; जलीय कृषि उत्पादकता को वर्तमान राष्ट्रीय औसत 3 टन से बढ़ाकर 5 टन प्रति हेक्टेयर करना और घरेलू मछली खपत 9 किलोग्राम से बढ़ाकर 12 किलोग्राम प्रति व्यक्ति करना है.
(II)आर्थिक मूल्य संवर्धन : कृषि जीवीए (सकल मूल्य वर्धन) में मत्स्य क्षेत्र का योगदान 2018-19 के 7.28 प्रतिशत से 2024-25 तक लगभग 9 प्रतिशत तक बढ़ाना; निर्यात आय को 2018-19 के 46,589 करोड़ रुपये के स्तर से 2024-25 तक दोगुना करते हुए 1,00,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंचाना; मात्स्यिकी क्षेत्र में निजी निवेश और उद्यमिता के विकास को सुगम बनाना; और फसल परवर्ती नुकसान को 20-25 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत पर लाना.
(III) आय और रोज़गार सृजन में वृद्धि: मूल्य शृंखला के साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष रोज़गार के 55 लाख अवसर पैदा करना; और मछुआरों और मछली किसानों की आय को दोगुना करना.
प्रश्न: नीली अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों में से एक लाभकारी रोज़गार और उद्यमिता के अवसर पैदा करना है. मात्स्यिकी क्षेत्र इस उद्देश्य को कैसे प्राप्त करना चाहता है?
डॉ. सी. सुवर्णा: मत्स्यपालन क्षेत्र को आय और रोज़गार के अवसर पैदा करने वाले शक्तिशाली क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है क्योंकि यह कई सहायक उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित करता है. पीएमएमएसवाई के प्रमुख उद्देश्यों में मछुआरों और मछली किसानों की आय को दोगुना करना और रोज़गार के अवसर पैदा करना शामिल है. वित्तीय वर्ष 21 से वित्तीय वर्ष 25 के बीच लागू की जाने वाली इस योजना का लक्ष्य मात्स्यिकी और संबद्ध गतिविधियों में मछुआरों, मत्स्य किसानों, मछली श्रमिकों और मछली विक्रेताओं के लिए प्रत्यिक्ष रोज़गार के 15 लाख और परोक्ष रोज़गार के 45 लाख अतिरिक्त अवसर पैदा करना है.
बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा करने की क्षमता रखने वाली समुद्री कृषि, समुद्री शैवाल की खेती और सजावटी मत्स्य पालन जैसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा. इसके अलावा, मछली प्रसंस्करण में प्रौद्योगिकी विकास से नवाचार, उत्पादकता में वृद्धि, उत्पादों के शेल्फ जीवन में वृद्धि, खाद्य सुरक्षा में सुधार और प्रसंस्करण कार्यों के दौरान कचरे को कम करने में मिलेगी. इसके अलावा मछली, झींगा मछली, लोबस्टर, स्क्विड, कटलफिश, बाइवाल्व आदि पर आधारित निर्यात और घरेलू बाजार दोनों के लिए बड़ी संख्या में मूल्य संवर्धित और विविध उत्पादों की पहचान की गई है. गुणवत्ता में सुधार और प्रीमियम मूल्य आकर्षित करते हुए ब्रांडिंग, विपणन और उत्पाद विविधीकरण तथा मूल्य संवर्धित उत्पादों की हिस्सेदारी में वृद्धि, प्रसंस्करण सुविधाओं, मछली पकड़ने के बंदरगाहों और फिश लैंडिंग जैसे उपाय भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
पीएमएमएसवाई और मात्स्यिकी एवं जलकृषि अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ) के जरिए क्षेत्रीय से राष्ट्रीय स्तर तक मानव संसाधन नियोजित करके, मछली और झींगा उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए पहल, बुनियादी ढांचे के विकास, फसल प्राप्त करने, प्रसंस्करण और विपणन सुविधाएं, मात्स्यिकी उत्पादों के मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देना आदि उपायों से इस क्षेत्र के क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर विस्तार के प्रावधान किए गए हैं. मत्स्यपालन मूल्य शृंखला में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर सभी हितधारकों के लिए आद्योपान्त समर्थन प्रदान किया जाता है.
उद्यमिता विकास पर उचित जोर दिया जाता है और एनएफडीबी उद्यमियों को एकीकृत तरीके से मत्स्य पालन और जलीय कृषि संबंधी विभिन्न परियोजनाएं विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है. पर्याप्त बुनियादी ढांचा कायम करने के लिए फीड मिलों, आइस प्लांटों, लैंडिंग केंद्रों, बंदरगाह विकास, प्रसंस्करण केंद्रों, मछली तालाबों, हैचरीज़, मछली पालन इकाइयों आदि के निर्माण के प्रावधान किए गए हैं. जागरूकता पैदा करने और लक्षित लाभार्थियों के कौशल में सुधार के लिए क्षमता निर्माण के आवश्यकता-आधारित उपाय किए जा रहे हैं. सरकार फसल परवर्ती नुकसान को 20-25 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करने का लक्ष्य बना रही है.मछली की घरेलू मांग-आपूर्ति बढ़ाने के लिए मछली को स्वस्थ भोजन के रूप में बढ़ावा देने और मछली प्रोटीन अधिकता के प्रति उपभोक्ता जागरूकता पैदा करने जैसे उपाय किए जाते हैं.
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में फ्रोजन फिश की मांग पैदा करते हुए संरक्षित और संसाधित मछली की बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. मछली और मत्स्य उत्पादों के लिए उपयुक्त पैकेजिंग सामग्री के विकास को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके अलावा, मछली के निर्यात और उसकी घरेलू खपत बढ़ाने के लिए उपाय किए गए हैं, जिनमें, मछलियों के लिए भौगोलिक संकेतक की शुरुआत और फिश ब्रैंडिंग जैसे 'हिमालयन ट्राउट’, 'टूना’ आदि शामिल हैं.
प्रश्न: अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत प्रादेशिक जल से परे मछली पकड़ने की अनुमति किस हद तक है?
डॉक्टर सी. सुवर्णा: भारत सरकार ने भारतीय ईईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) में डीएसएफवी (डीप सी फिशिंग वेसल) का समुचित संचालन सुनिश्चित करने और मछली पकड़ने की संसाधन-विषयक पद्धतियां लागू करने के उद्देश्य से 01 नवंबर 2002 को दिशानिर्देशों का पहला सेट जारी किया. दिशा-निर्देशों में गहरे समुद्र (तट रेखा अर्थात् प्रादेशिक जल सीमा से 12 समुद्री मील से अधिक दूरी पर) में मछली पकड़ने और डीएसएफवी (20 मीटर की कुल लंबाई और उससे अधिक के मछली पकड़ने के जहाज) को भी परिभाषित किया गया है. देश की प्रादेशिक जल सीमा तट से 12 समुद्री मील तक फैली है; जबकि विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) तट से 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है.
प्रश्न: मछली पकड़ने में नवीनतम तकनीक और उपकरणों को बढ़ावा देने में एनएफडीबी की अद्यतन योजनाएं क्या हैं?
डॉक्टर सी. सुवर्णा: एनएफडीबी ने राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर (आरजीसीए), एमपीईडीए (समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) को नीलंकरई, चेन्नई में जलीय संगरोध सुविधा की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है, ताकि अन्य देशों से आयातित झींगा ब्रूड स्टॉक को बीज उत्पादन के लिए झींगा हैचरी में आपूर्ति किए जाने से पहले क्वारंटीन करने में मदद मिल सके. एनएफडीबी ने आईसीएआर मात्स्यिकी के तकनीकी मार्गदर्शन के तहत विभिन्न विविधीकृत प्रजातियों जैसे कोबिया, पोम्पानो, लॉबस्टर फैटनिंग, क्रैब फेटिंग, सी बेस, पर्ल स्पॉट, मुरेल, पंगेसियस, समुद्री शैवाल, सजावटी मत्स्य पालन, गिफ्ट (फार्म्ड तिलपिया) आदि को बढ़ावा दिया है. विभिन्न परियोजनाओं से संबद्ध केंद्रीय संस्थानों ने पिंजरा मछली पालन और रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) आदि के माध्यम से प्रौद्योगिकी संचरण कार्यक्रम संचालित किए हैं.
एनएफडीबी अपने नेशनल फ्रेशवाटर फिश ब्रूड बैंक (एनएफएफबीबी) के माध्यम से उचित पैकेज और प्रबंधन प्रोटोकॉल के साथ अनुसंधान संगठनों से प्राप्त अच्छी गुणवत्ता और / या आनुवंशिक रूप से बेहतर मछली ब्रूड-स्टॉक का रख-रखाव कर रहा है और इन आनुवंशिक रूप से बेहतर मछली प्रजातियों (जीआईएफएस) के ब्रूड-स्टॉक का संवर्धन कर रहा है ताकि इन प्रजनक बीजों (फ्राई / फिंगरलिंग) को मान्यताप्राप्त हैचरीज को ब्रूड स्टॉक के स्रोत के रूप में वितरित किया जा सके, जिससे वे उनका और संवर्धन कर सकें और प्रजनक बीज का उत्पादन करने और राज्यों में गुणवत्ता पूर्ण बीज की मांग पूरा करने के लिए किसानों को आपूर्ति कर सकें। एनएफडीबी ने एनबीएफजीआर (नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज) के माध्यम से राष्ट्रीय रोग निगरानी कार्यक्रम जैसी परियोजनाएं शुरू की हैं, जिनका प्राथमिक उद्देश्य जलीय जीव-जन्तुीओं और जन स्वास्थ्य से जुड़े रोग हस्तांतरण के जोखिम के आकलन और प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक रूप से सटीक, लागत प्रभावी जानकारी प्रदान करना है.
मछली पकड़ने के कार्य के आधुनिकीकरण के लिए मछली पकड़ने वाली नौकाओं में जैव शौचालय, सौर ऊर्जा की व्यवस्था और नावों, उपकरणों, यंत्रों, मछली पकड़ने वाली पुरानी नौकाओं को नई नावों के साथ बदलने, बर्फ रखने वाले बक्से वाली नौकाओं और आवश्यक गियर सहित बुनियादी ढांचे को प्रोत्साहित किया जाता है.
(साक्षात्कारकर्ता दिल्ली स्थित वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं).
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं