प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मन की बात
मूल पाठ के प्रमुख अंश
ओलंपिक्स, हमारे खिलाड़ियों को विश्व पटल पर तिरंगा लहराने का मौका देता है, देश के लिए कुछ कर गुजरने का मौका देता है। स्पोर्टस की दुनिया के इस ओलंपिक्स से अलग, कुछ दिन पहले मैथ्स की दुनिया में भी एक ओलंपिक हुआ इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ओलंपियाड. इस ओलंपियाड में भारत के विद्यार्थियों ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया है। इसमें हमारी टीम ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चार गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल जीता है। इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ओलंपियाड में 100 से ज्यादा देशों के युवा हिस्सा लेते हैं और Overall Tally में हमारी टीम शीर्ष पांच में आने में सफल रही है। देश का नाम रोशन करने वाले इन विद्यार्थियों के नाम हैं पुणे के आदित्य वेंकट गणेश, पुणे के ही सिद्धार्थ चोपरा, दिल्ली के अर्जुन गुप्ता, ग्रेटर नोएडा के कनव तलवार, मुंबई के रुशील माथुर और गुवाहाटी के आनंदो भादुरी।
पूर्वोत्तर भारत की प्रथम यूनेस्को विश्व विरासत साइट
असम के चराईदेउ मैदाम को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया जा रहा है। इस लिस्ट में यह भारत की 43वीं, लेकिन पूर्वोत्तर की पहली साइट होगी। आपके मन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि चराईदेउ मैदाम आखिर है क्या, और ये इतना खास क्यों है। चराईदेउ का मतलब है shining city on the hills, यानी पहाड़ी पर एक चमकता शहर। ये अहोम राजवंश की पहली राजधानी थी। अहोम राजवंश के लोग अपने पूर्वजों के शव और उनकी कीमती चीजों को पारंपरिक रूप से मैदाम में रखते थे। मैदाम, टीले नुमा एक ढांचा होता है, जो ऊपर मिट्टी से ढका होता है, और नीचे एक या उससे ज्यादा कमरे होते हैं। ये मैदाम, अहोम साम्राज्य के दिवंगत राजाओं और गणमान्य लोगों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का ये तरीका बहुत यूनिक है।
अहोम साम्राज्य के बारे में दूसरी जानकारियां आपको और हैरान करेंगी। 13वीं शताब्दी के शुरू होकर ये साम्राज्य 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला। इतने लंबे कालखंड तक एक साम्राज्य का बने रहना बहुत बड़ी बात है। शायद अहोम साम्राज्य के सिद्धांत और विश्वास इतने मजबूत थे, कि उसने इस राजवंश को इतने समय तक कायम रखा। मुझे याद है कि, इसी वर्ष 9 मार्च को मुझे अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक, महान अहोम योद्धा लसित बोरफुकन की सबसे ऊंची प्रतिमा के अनावरण का सौभाग्य मिला था। अब चराईदेउ मैदाम के वर्ल्ड हेरिटेज साइट बनने का मतलब होगा कि यहां पर और अधिक पर्यटक आएंगे। आप भी भविष्य के अपने ट्रेवल प्लान्स में इस साइट को जरूर शामिल करिएगा।
सार्वजनिक स्थानों में कला को प्रत्साहन
अपनी संस्कृति पर गौरव करते हुए ही कोई देश आगे बढ़ सकता है। भारत में भी इस तरह के बहुत सारे प्रयास हो रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयास है– प्रोजेक्ट PARI… PARI यानि पब्लिक आर्ट ऑफ इंडिया. Project PARI, पब्लिक आर्ट को लोकप्रिय बनाने के लिए उभरते कलाकारों को एक मंच पर लाने का बड़ा माध्यम बन रहा है। दिल्ली के भारत मंडपम में देश भर के अद्भुत आर्ट वर्क्स आपको देखने को मिल जाएंगे। दिल्ली में कुछ अंडरपास और फ्लाईओवर पर भी आप ऐसे खूबसूरत पब्लिक आर्ट देख सकते हैं। मैं कला और संस्कृति प्रेमियों से आग्रह करूंगा कि वे भी पब्लिक आर्ट पर और काम करें। ये हमें अपनी जड़ों पर गर्व करने की सुखद अनुभूति देगा।
टिकाऊ जीवन के लिए पारंपरिक शिल्प
‘मन की बात’ में, अब बात, ‘रंगों की’ - ऐसे रंगों की, जिन्होंने हरियाणा के रोहतक जिले की ढ़ाई-सौ से ज्यादा महिलाओं के जीवन में समृद्धि के रंग भर दिए हैं। हथकरघा उद्योग से जुड़ी ये महिलाएं पहले छोटी-छोटी दुकानें और छोटे-मोटे काम कर गुज़ारा करती थी। लेकिन हर किसी में आगे बढ़ने की इच्छा तो होती ही होती है। इसलिए इन्होंने ‘UNNATI सेल्फ हेल्प ग्रुप’ से जुड़ने का फैसला किया, और इस group से जुड़कर, उन्होंने बल्क प्रिंटिंग और रंगाई में ट्रेनिंग हासिल की। कपड़ों पर रंगों का जादू बिखेरने वाली ये महिलाएं आज लाखों रुपए कमा रही हैं। इनके बनाए बेड कवर, साड़ियाँ और दुपट्टों की बाजार में भारी मांग है।
खादी ग्रामोद्योग का कारोबार पहली बार डेढ़ लाख करोड़ रुपए के पार पहुँच गया है। सोचिए, डेढ़ लाख करोड़ रुपए !! और जानते हैं खादी की बिक्री कितनी बढ़ी है ? 400% (परसेंट)। खादी की, हैण्डलूम की, ये बढ़ती हुई बिक्री, बड़ी संख्या में रोजगार के नए अवसर भी बना रही है। इस इंडस्ट्री से सबसे ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं, तो सबसे ज्यादा फायदा भी, उन्हीं को हो रहा है। अगस्त का महीना आ ही गया है ये आजादी मिलने का महीना है, क्रांति का महीना है। इससे बढ़िया अवसर और क्या होगा - खादी खरीदने के लिए।
नशा मुक्ति के लिए ‘मानस’ पहल
सरकार ने एक विशेष केंद्र खोला है, जिसका नाम है – ‘मानस’. ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई में ये बहुत बड़ा कदम है। कुछ दिन पहले ही ‘मानस’ की हेल्पलाइन और पोर्टल लांच किया गया है। सरकार ने एक टोल फ्री नंबर ‘1933’ भी जारी किया है। ‘मानस’ के साथ साझा की गई हर जानकारी गोपनीय रखी जाती है. भारत को ‘ड्रग्स फ्री’ बनाने में जुटे सभी लोगों से, सभी परिवारों से, सभी संस्थाओं से मेरा आग्रह है कि MANAS हेल्पलाइन का भरपूर उपयोग करें.
वन्य जीव संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी
भारत में तो Tigers ‘बाघ’, हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है. हमारे देश में ऐसे कई गाँव है, जहां इंसान और बाघ के बीच कभी टकराव की स्थिति नहीं आती . लेकिन जहाँ ऐसी स्थिति आती है, वहाँ भी बाघों के संरक्षण के लिए अभूतपूर्व प्रयास हो रहे हैं। जन-भागीदारी का ऐसा ही एक प्रयास है “कुल्हाड़ी बंद पंचायत” I राजस्थान के रणथंभौर से शुरू हुआ “कुल्हाड़ी बंद पंचायत” अभियान बहुत दिलचस्प है। स्थानीय समुदायों ने स्वयं इस बात की शपथ ली है कि जंगल में कुल्हाड़ी के साथ नहीं जाएंगे और पेड़ नहीं काटेंगे। इस एक फैसले से यहाँ के जंगल, एक बार फिर से हरे-भरे हो रहे हैं, और बाघों के लिए बेहतर वातावरण तैयार हो रहा है।
महाराष्ट्र के स्थानीय समुदायों, विशेषकर गोंड और माना जनजाति के हमारे भाई-बहनों ने इको-टूरिज्म की ओर तेजी से कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने जंगल पर अपनी निर्भरता को कम किया है ताकि यहाँ बाघों की गतिविधियाँ बढ़ सके। ऐसे प्रयासों की वजह से ही भारत में बाघों की आबादी हर साल बढ़ रही है। आपको ये जानकर खुशी और गर्व का अनुभव होगा कि दुनियाभर में जितने बाघ हैं उनमें से 70 प्रतिशत बाघ हमारे देश में हैं।
पर्यावरणीय प्रबंधन और सामुदायिक प्रयास
बाघ बढ़ने के साथ-साथ हमारे देश में वन क्षेत्र भी तेजी से बढ़ रहा है। इसमें भी सामुदायिक प्रयासों से बड़ी सफलता मिल रही है। पिछले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में आपसे ‘एक पेड़ माँ के नाम’ कार्यक्रम की चर्चा की थी। मुझे खुशी है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी संख्या में लोग इस अभियान से जुड़ रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले स्वच्छता के लिए प्रसिद्ध, इंदौर में, एक शानदार कार्यक्रम हुआ। यहाँ ‘एक पेड़ माँ के नाम’ कार्यक्रम के दौरान एक ही दिन में 2 लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए। अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगाने के इस अभियान से आप भी जरूर जुड़ें और सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करें। इस अभियान से जुड़कर आपको, अपनी माँ, और धरती माँ, दोनों के लिए, कुछ स्पेशल कर पाने का एहसास होगा।
‘हर घर तिरंगा अभियान’ के साथ राष्ट्रीय गर्व का उत्सव
अब तो 15 अगस्त के साथ एक और अभियान जुड़ गया है, ‘हर घर तिरंगा अभियान’। पिछले कुछ वर्षों से तो पूरे देश में ‘हर घर तिरंगा अभियान’ के लिए सबका जोश हाई रहता है। गरीब हो, अमीर हो, छोटा घर हो, बड़ा घर हो, हर कोई तिरंगा लहराकर गर्व का अनुभव करता है। तिरंगे के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का क्रेज भी दिखता है। ‘हर घर तिरंगा अभियान’ - तिरंगे की शान में एक Unique Festival बन चुका है।
जन-भागीदारी का आमंत्रण
मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ के इस episode में आपसे जुड़कर बहुत अच्छा लगा। अगली बार फिर मिलेंगे, देश की नई उपलब्धियों के साथ, जनभागीदारी के नए प्रयासों के साथ, आप, ‘मन की बात’ के लिए अपने सुझाव जरूर भेजते रहें। देश के लिए कुछ न कुछ नया करने की ऊर्जा निरंतर बनाए रखे।