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विशेष लेख


Issue no 02, 08-14 April 2023

मन की बात मार्च 2023

 

 

 

मुझे इस बात की खुशी है कि मन की बातके सौवें (100वें) episode को लेकर देश के लोगों में बहुत उत्साह है। मुझे बहुत सारे सन्देश मिल रहे हैं, फोन रहे हैं। आज जब हम आज़ादी का अमृतकाल मना रहे हैं, नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ रहे हैं, तो सौवें (100वें) मन की बातको लेकर, आपके सुझावों, और विचारों को जानने के लिए मैं भी बहुत उत्सुक हूँ। मुझे, आपके ऐसे सुझावों का बेसब्री से इंतज़ार है। वैसे तो इंतज़ार हमेशा होता है लेकिन इस बार ज़रा इंतज़ार ज्यादा है। आपके ये सुझाव और विचार ही 30 अप्रैल को होने वाले सौवें (100वें) मन की बातको और यादगार बनाएँगे।

 अंगदान- जीवन का उपहार  

आधुनिक Medical Science के इस दौर में Organ Donation, किसी को जीवन देने का एक बहुत बड़ा माध्यम बन चुका है। संतोष की बात है कि आज देश में Organ Donation के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है। साल 2013 में, हमारे देश मेंOrgan Donation के 5 हजार से भी कम cases थे, लेकिन 2022 में, ये संख्या बढ़कर, 15 हजार से ज्यादा हो गई है। Organ Donation करने वाले व्यक्तियों ने, उनके परिवार ने, वाकई, बहुत पुण्य का काम किया है।

सुखबीर सिंह संधू जी और उनकी पत्नी सुप्रीत कौर जी ने, उनके परिवार ने, बहुत ही प्रेरणादायी फैसला लिया। ये फैसला था - उनकी उनतालीस (39) दिन की उम्र वाली बेटी अबादत कौर के अंगदान का जो कम समय में ही गुजर गई। मैं गुरु नानक साहब के पदचिन्हों पर चलने के लिए आप दोनों की सराहना करता हूं। 

 

झारखंड की रहने वाली स्नेहलता चौधरी जी भी ऐसी ही थी जिन्होंने ईश्वर बनकर दूसरों को जिंदगी दी। 63 वर्ष की स्नेहलता चौधरी जी, अपनी दोनों आखें अपना heart, kidney और liver, दान करके गईं। मैं उनके इस कार्य के लिए उनके पूरे परिवार को बधाई देता हूं।

 

 

39 दिन की अबाबत कौर हो या 63 वर्ष  की स्नेहलता चौधरी, इनके जैसे दानवीर, हमें, जीवन का महत्व समझाकर जाते हैं। हमारे देश में, आज, बड़ी संख्या में ऐसे जरूरतमंद हैं, जो स्वस्थ जीवन की आशा में किसी organ donate करने वाले का इंतज़ार कर रहे हैं। मुझे संतोष है कि अंगदान को आसान बनाने और प्रोत्साहित करने के लिए पूरे देश में एक जैसी policy पर भी काम हो रहा है। इस दिशा में राज्यों के domicile की शर्त को हटाने का निर्णय भी लिया गया है, यानी, अब देश के किसी भी राज्य में जाकर मरीज organ प्राप्त करने के लिए register करवा पाएगा। सरकार ने organ donation के लिए 65 वर्ष से कम आयु की आयु-सीमा को भी खत्म करने का फैसला लिया है। इन प्रयासों के बीच, मेरा देशवासियों से आग्रह है, कि organ donor, ज्यादा से ज्यादा संख्या में आगे आएं। आपका एक फैसला, कई लोगों की जिंदगी बचा सकता है, जिंदगी बना सकता है।

नारी शक्ति: भारत के सपनों को दे रही ऊर्जा

ये नवरात्र का समय है, शक्ति की उपासना का समय है। आज, भारत का जो सामर्थ्य नए सिरे से निखरकर सामने रहा है, उसमें बहुत बड़ी भूमिका हमारी नारी शक्ति की है। हाल-फिलहाल ऐसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने आये हैं। आपने सोशल मीडिया पर, एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव जी को जरुर देखा होगा। सुरेखा जी, एक और कीर्तिमान बनाते हुये वंदे भारत एक्सप्रेस की भी पहली महिला लोको पायलट बन गई हैं।  इसी महीनेproducer गुनीत मोंगा और Director कार्तिकी गोंज़ाल्विस उनकी Documentary Elephant Whisperersने Oscar जीतकर देश का नाम रौशन किया है| देश के लिए एक और उपलब्धि Bhabha Atomic Research Centre की Scientist, बहन ज्योतिर्मयी मोहंती जी ने भी हासिल की है। ज्योतिर्मयी जी को Chemistry और Chemical Engineering की field में IUPAC का विशेष award मिला है। इस वर्ष की शुरुआत में ही भारत की Under-19 महिला क्रिकेट टीम ने T-20 World cup जीतकर नया इतिहास रचा। अगर आप राजनीति की ओर देखेंगे, तो एक नई शरुआत नागालैंड में हुई है। नागालैंड में 75 वर्षों में पहली बार दो महिला विधायक जीतकर विधानसभा पहुंची है। इनमें से एक को नागालैंड सरकार में मंत्री भी बनाया गया है, यानि, राज्य के लोगों को पहली बार एक महिला मंत्री भी मिली हैं।

कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात, उन जांबांज बेटियों से भी हुई, जो, तुर्किए में विनाशकारी भूकंप के बाद वहां के लोगों की मदद के लिए गयी थीं। ये सभी NDRF के दस्ते में शामिल थी। उनके साहस और कुशलता की पूरी दुनिया में तारीफ़ हो रही है। आज, देश की बेटियाँ, हमारी तीनों सेनाओं में, अपने शौर्य का झंडा बुलंद कर रही हैं। Group Captain शालिजा धामी Combat Unit में Command Appointment पाने वाली पहली महिला वायुसेना अधिकारी बनी हैं। उनके पास करीब हजार घंटे का flying experience है। इसी तरह, भारतीय सेना की जांबाज captain शिवा चौहान सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी बनी हैं। सियाचिन में जहाँ पारा माइनस सिक्सटी (-60) डिग्री तक चला जाता है, वहां शिवा तीन महीनों के लिए तैनात रहेंगी।

साथियो, यह list इतनी लम्बी है कि यहाँ सबकी चर्चा करना भी मुश्किल है। ऐसी सभी महिलाएं, हमारी बेटियां, आज, भारत और भारत के सपनों को ऊर्जा दे रही हैं। नारीशक्ति की ये ऊर्जा ही विकसित भारत की प्राणवायु है।

सबका प्रयास, भारत के सोलर मिशन को बढ़ा रहा 

भारत के लोग तो सदियों से सूर्य से विशेष रूप से नाता रखते हैं। हमारे यहाँ सूर्य की शक्ति को लेकर जो वैज्ञानिक समझ रही है, सूर्य की उपासना की जो परंपराएँ रही हैं, वो अन्य जगहों पर, कम ही देखने को मिलती हैं। मुझे ख़ुशी है कि आज हर देशवासी सौर ऊर्जा का महत्व भी समझ रहा है, और clean energy में अपना योगदान भी देना चाहता है। सबका प्रयासकी यही spirit  आज भारत के Solar Mission को आगे बढ़ा रही है। महाराष्ट्र के पुणे में, ऐसे ही एक बेहतरीन प्रयास ने, मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा है। यहां MSR-Olive Housing Society के लोगों ने तय किया कि वे society में पीने के पानी, लिफ्ट और लाइट जैसे सामूहिक उपयोग की चीजें, अबsolar energy से ही चलाएंगे। इसके बाद इस society में सबने मिलकर Solar Panel लगवाए। आज इन Solar Panels से हर साल करीब 90 हजार किलोवाट Hour बिजली पैदा हो रही है। इससे हर महीने

लगभग 40,000 रूपये की बचत हो रही है। इस बचत का लाभ Society के सभी लोगों को हो रहा है। पुणे की तरह ही दमन-दीव में जो दीव है, जो एक अलग जिला है, वहाँ के लोगों ने भी, एक अद्भुत काम करके दिखाया है। दीव भारत का पहला ऐसा जिला बना है, जो, दिन के समय सभी जरूरतों के लिए शत्-प्रतिशत Clean Energy का इस्तेमाल कर रहा है। दीव की इस सफलता का मंत्र भी सबका प्रयास ही है। कभी यहाँ बिजली उत्पादन के लिए संसाधनों की चुनौती थी। लोगों ने इस चुनौती के समाधान के लिए Solar Energy को चुना। यहाँ बंजर जमीन और कई Buildings पर Solar Panels लगाए गए। इन Panels से, दीव में, दिन के समय, जितनी बिजली की जरुरत होती है, उससे ज्यादा बिजली पैदा हो रही है। इस Solar Project से, बिजली खरीद पर खर्च होने वाले करीब, 52 करोड़ रूपये भी बचे हैं। इससे पर्यावरण की भी बड़ी रक्षा हुई है।

 

सौराष्ट्र-तमिल संगमम: एक भारत श्रेष्ठ भारत की एक और अभिव्यक्ति

कुछ महीने पहले ऐसी ही एक परंपरा शुरू हुई जहां, काशी-तमिल संगमम के दौरान, काशी और तमिल क्षेत्र के बीच सदियों से चले रहे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को Celebrate किया गया। एक भारत-श्रेष्ठ भारतकी भावना हमारे देश को मजबूती देती है। हम जब एक-दूसरे के बारे में जानते हैं, सीखते हैं, तो, एकता की ये भावना और प्रगाढ़ होती है। Unity की इसी Spirit के साथ अगले महीने गुजरात के विभिन्न हिस्सों में सौराष्ट्र-तमिल संगममहोने जा रहा है। सौराष्ट्र-तमिल संगमम’ 17 से 30 अप्रैल तक चलेगा। दरअसल, सदियों पहले सौराष्ट्र के अनेकों लोग तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों में बस गए थे। ये लोग आज भी सौराष्ट्री तमिलके नाम से जाने जाते हैं। उनके खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक संस्कारों में आज भी कुछ-कुछ सौराष्ट्र की झलक मिल जाती है।

 

लासित बोरफुकन के जीवन पर निबंद लेखन ने बनाया गिनीज़ रिकॉर्ड    

मन की बातके श्रोताओं को, मैं, असम से जुड़ी हुई एक खबर के बारे में बताना चाहता हूँ। ये भी एक भारत-श्रेष्ठ भारतकी भावना को मजबूत करती है। आप सभी जानते हैं कि हम वीर लासित बोरफुकन जी की 400वीं जयंती मना रहे हैं। वीर लासित बोरफुकन ने अत्याचारी मुग़ल सल्तनत के हाथों से, गुवाहाटी को आज़ाद करवाया था। आज देश, इस महान योद्धा के अदम्य साहस से परिचित हो रहा है। कुछ दिन पहले लासित बोरफुकन के जीवन पर आधारित निबंध लेखन का एक अभियान चलाया गया था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसके लिए करीब 45 लाख लोगों ने निबंध भेजे। आपको, ये जानकर भी ख़ुशी होगी कि अब यह एक Guinness Record बन चुका है। और सबसे बड़ी बात है और जो ज्यादा प्रसन्नता की बात ये है, कि, वीर लासित बोरफुकन पर ये जो निबंध लिखे गए है उसमें करीब-करीब 23 अलग-अलग भाषाओँ में लिखा गया है और लोगों ने भेजा है। इनमें, असमिया भाषा के अलावा, हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, बोडो, नेपाली, संस्कृत, संथाली जैसी भाषाओँ में लोगों ने निबंध भेजे हैं। मैं इस प्रयास का हिस्सा बने सभी लोगों की हृदय से प्रशंसा करता हूँ।

कमल ककड़ी और लैवेंडर बदल रहे कश्मीर में खेती का स्वरूप

जब कश्मीर या श्रीनगर की बात होती है, तो सबसे पहले, हमारे सामने, उसकी वादियाँ और डल झील की तस्वीर आती है। हम में से हर कोई डल झील के नज़ारों का लुत्फ़ उठाना चाहता है, लेकिन, डल झील में एक और बात ख़ास है। डल झील, अपने स्वादिष्ट Lotus Stems - कमल के तनों या कमल ककड़ी, के लिये भी जानी जाती है। कमल के तनों को देश में अलग-अलग जगह, अलग-अलग नाम से, जानते हैं। कश्मीर में इन्हें नदरू कहते हैं। कश्मीर के नादरू की demand लगातार बढ़ रही है। इस demand को देखते हुए डल झील में नादरू की खेती करने वाले 250 किसानों ने एक FPO बनाया है। आज ये किसान अपने नदरू को विदेशों तक भेजने लगे हैं। अभी कुछ समय पहले ही इन किसानों ने दो खेप UAE भेजी हैं। ये सफलता कश्मीर का नाम तो कर ही रही है, साथ ही इससे, सैकड़ों किसानों की, आमदनी भी बढ़ी है।

कश्मीर के लोगों का कृषि से ही जुड़ा हुआ ऐसा ही एक और प्रयास इन दिनों अपनी कामयाबी की खुशबू फैला रहा है। दरअसल, जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में एक कस्बा है भदरवाह’ ! यहाँ के किसान, दशकों से मक्के की पारंपरिक खेती करते रहे थे, लेकिन, कुछ किसानों ने, कुछ अलग, करने की सोची। उन्होंनेfloriculture, यानी फूलों की खेती का रुख किया। आज, यहाँ के करीब 25 सौ किसान (ढाई हज़ार किसान) लैवेंडर (lavender) की खेती कर रहे हैं। इन्हें केंद्र सरकार के aroma mission से मदद भी मिली है। इस नई खेती ने किसानों की आमदनी में बड़ा इजाफ़ा किया है, और आज, लैवेंडर के साथ-साथ, इनकी सफलता की खुशबू भी, दूर-दूर तक फैल रही है। 

 

स्रोत: pmindia.gov.in