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विशेष लेख


Issue no 49, 4-10 March 2023

 

महिलाओं की भागीदारी के साथ एसटीईएम को मजबूत बनाना

 

देश आज केवल विज्ञान के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के बारे में नहीं सोचता है। बल्कि हमारा लक्ष्य है कि हम महिलाओं की भागीदारी से विज्ञान को सशक्त करें और विज्ञान तथा अनुसंधान को नई गति दें।” -प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भूमिका

 

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट 'द इक्वलिटी इक्वेशन: एडवांसिंग द पार्टिसिपेशन ऑफ वीमेन एंड गर्ल्स इन एसटीईएम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग एंड मैथमेटिक्स)' के अनुसार विश्‍वभर में  केवल 18% लड़कियां तृतीयक स्तर पर एसटीईएम  विषयों के  अध्ययन में प्रवेश करती हैं, जबकि लड़कों की हिस्‍सेदारी इन विषयों के अध्‍ययन में 35% हैं। यह रिपोर्ट विश्व स्तर पर एसटीईएम शिक्षा में लैंगिक अंतराल के पैटर्न का बेहतर ढंग से खुलासा करती है। वास्तव में, दुनिया भर में महिलाओं की भागीदारी शोधकर्ताओं के रूप में केवल 33%,  कृत्रिम बुद्धिमत्ता में काम करने वाले पेशेवरों में 22% और इंजीनियरिंग विद्यार्थियों में 28% है। यह स्थिति तब है जबकि  एसटीईएम कार्यबल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए बार-बार वैश्विक आह्वान किया जाता है।

परन्‍तु, भारत में परिदृश्य काफी बेहतर है, लगभग  एसटीईएम स्नातकों में 28% महिलाएं हैं। भारत की स्थिति संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा और यूके जैसे अन्य विकसित देशों के विपरीत है, जहाँ तृतीयक स्तर पर एसटीईएम का अध्ययन करने वाली महिलाएँ कम हैं-जो क्रमशः 34%, 31% और 38% हैं। उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) रिपोर्ट स्नातक,  स्‍नातकोत्‍तर और पीएचडी स्तर के पाठ्यक्रमों में नामांकन इंगित करती है, जिसके अनुसार, भारत में एसटीईएम पाठ्यक्रमों का चयन करने वाली महिलाओं की संख्या 2016-17  की 38,94,220 से बढ़कर 2019-20 में  40,94,785 हो गई।

 

महिलाओं के बीच विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल

भारत सरकार देश में महिलाओं और लड़कियों के बीच विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अनेक‍ उपाय कर रही है। सरकार यह समझती है कि देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है, और इन क्षेत्रों में उनकी भागीदारी और सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाए गए हैं।

सरकार ने महिलाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरी और गणित (एसटीईएम) विषयों में शिक्षा और प्रशिक्षण तक पहुंच प्रदान करने और उनके पेशेवर विकास और उन्नति का समर्थन करने के लिए कार्यक्रम और उपाय शुरू किए हैं।

इसके अतिरिक्त, सरकार  ने एसटीईएम विषयों में लैंगिक अंतर दूर करने के लिए नीतियां लागू की हैं और वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में महिलाओं के लिए अधिक समावेशी और सहायक वातावरण बनाने के लिए काम कर रही है।

इन प्रयासों का लक्ष्य एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना और अधिक लड़कियों को विज्ञान में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना है, जिससे देश की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं के समग्र विकास में योगदान हो।

1. विभिन्न लैंगिक भेदभाव दूर करने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 'विज्ञान और इंजीनियरिंग में महिलाएं-किरण (वाइस-किरण)' कार्यक्रम चलाया जा रहा है। वाइस-किरण के तहत 'महिला वैज्ञानिक कार्यक्रम (डब्‍ल्‍यूओएस)' महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों, विशेष रूप से जिनके कॅरियर में पहले कोई व्‍यवधान रहा हो, को अनुसंधान करने के लिए विभिन्न अवसर प्रदान करता है।

 

2. महिलाओं के लिए एसटीईएमएम (यानी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरी, गणित और चिकित्सा) विषयों में इंडो-यूएस फैलोशिप संयुक्त राज्य अमरीका में प्रमुख संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय सहयोगी अनुसंधान करने के लिए महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को प्रोत्साहित करती है।

 

3. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए महिला संस्थानों में 'कंसोलिडेशन ऑफ यूनिवर्सिटी रिसर्च थ्रू इनोवेशन एंड एक्सीलेंस (क्यूरी) प्रोग्राम' के तहत अनुसंधान के बुनियादी ढांचे के विकास और अत्याधुनिक अनुसंधान प्रयोगशालाओं के निर्माण के लिए भी सहायता प्रदान करता है।

 

4. डीएसटी ने कक्षा 9-12 की मेधावी छात्राओं के लिए एक नया कार्यक्रम 'विज्ञान ज्योति' भी शुरू किया है, ताकि उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी में शिक्षा और करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके, खासकर उन क्षेत्रों में जहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है।

 

5. 'जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (जीएटीआई-गति)' का उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी में लैंगिक समानता में सुधार के अंतिम लक्ष्य के साथ अधिक लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण और समावेशिता के लिए संस्थानों में परिवर्तन लाना है।

 

 6. डीएसटी के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड की स्‍कीम 'एसईआरबी-पावर (अन्वेषण अनुसंधान में महिलाओं के लिए अवसरों को बढ़ावा देना)' का उद्देश्य अनुसंधान गतिविधियों में महिला वैज्ञानिकों की कम भागीदारी का समाधान करना और विज्ञान एवं इंजीनियरी में लैंगिक असमानता को कम करना है।

 

 

7. जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए 'बायोटेक्नोलॉजी करियर एडवांसमेंट एंड री-ओरिएंटेशन प्रोग्राम (बायोकेयर)' भी लागू कर रहा है।  विभाग ने देश में जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में काम कर रही वरिष्ठ और युवा महिला वैज्ञानिकों के योगदान को सम्‍मानित करने के लिए जानकी अम्मल राष्ट्रीय महिला जैव वैज्ञानिक पुरस्कार भी स्थापित किया है।

 

8. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरल और पोस्ट-डॉक्टरल अनुसंधान के लिए फैलोशिप/असोसिएटशिप प्रदान किए जाने संबंधी पात्रता में महिला उम्मीदवारों को ऊपरी आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट दे रहा है।

 

9. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2018 से 'महिला वैज्ञानिक के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार' नामक एक विशेष पुरस्कार की शुरुआत की है जो हर वर्ष एक महिला वैज्ञानिक को प्रदान किया जा रहा है।

10. इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाएं (डब्‍ल्‍यूईएसटी-वेस्‍ट) - यह नया आई-स्‍टेम (भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और इंजीनियरी फैसिलिटी मैप) कार्यक्रम 5 सितंबर 2022 को भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया। वेस्‍ट कार्यक्रम एसटीईएम पृष्ठभूमि वाली महिलाओं की जरूरतों को पूरा करेगा  और उन्‍हें प्रौद्योगिकी एवं नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करने में सशक्त बनाएगा।

 

रूढि़यां तोड़ कर आगे आयीं : एसटीईएम में अग्रणी भारतीय महिलाओं में से कुछ इस प्रकार हैं:

कादम्बिनी (बसु) गांगुली (1861-1923): वह न केवल ब्रिटिश साम्राज्य की पहली महिला स्नातक थीं, बल्कि पश्चिमी चिकित्सा में प्रशिक्षित होने वाली दक्षिण एशिया की पहली महिला चिकित्सकों में से एक थीं। गांगुली 1884 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने वाली पहली महिला थीं, वे बाद में स्कॉटलैंड में प्रशिक्षित हुईं, और भारत में एक सफल चिकित्सा पद्धति स्थापित की। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला स्पीकर भी थीं।

 

नंदी गोपाल जोशी (1865-1887): वर्ष 1886 में, भारत की एक और महिला ने पश्चिमी चिकित्सा में डिग्री प्राप्त की। आनंदी बाई जोशी ने अमेरिका के फिलाडेल्फिया में महिला मेडिकल कॉलेज से स्नातक किया और इस तरह विदेश से चिकित्सा का अध्ययन करने वाली पहली भारतीय बनीं। वह 1883 में 19 साल की उम्र में पेन्सिलवेनिया के मेडिकल कॉलेज में दाखिन हुईं और 11 मार्च 1886 को डॉक्टर ऑफ मेडिसिन के रूप में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस 'आर्यन हिंदुओं के बीच प्रसूति' पर थी, जिसमें उन्होंने आयुर्वेदिक और अमरीकी चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों, दोनों के प्रभावों का इस्तेमाल किया था।

 

अन्ना मणि (1918-2001): भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की पूर्व उप महानिदेशक, अन्ना मणि एक भारतीय भौतिक विज्ञानी और मौसम विज्ञानी थीं। उन्होंने इंपीरियल कॉलेज लंदन में मौसम संबंधी उपकरणों का अध्ययन किया और 1948 में भारत लौटने के बाद, वे पुणे में मौसम विज्ञान विभाग में भर्ती हो गईं। उन्‍होंने अनुसंधान किया और सौर विकिरण, ओजोन और पवन ऊर्जा माप पर कई शोध आलेख प्रकाशित किए। उन्होंने 1980 में द हैंडबुक फॉर सोलर रेडिएशन डेटा फॉर इंडिया और 1981 में सोलर रेडिएशन ओवर इंडिया नामक दो पुस्तकें लिखीं और 1987 में के. आर. रामनाथन पदक जीता।

 

ई के जानकी अम्मल (1897-1984): डी.एससी. (1931, मिशिगन), भारतीय विज्ञान अकादमी की संस्थापक फेलो। वे एक प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री और पादप कोशिका विज्ञानी थीं, जिन्होंने आनुवंशिकी, विकास, वनस्पति भूगोल और नृवंशविज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अम्मल को 1935 में भारतीय विज्ञान अकादमी और 1957 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का फेलो चुना गया। मिशिगन विश्वविद्यालय ने 1956 में उन्‍हें एल.एल.डी. की मानद उपाधि प्रदान की।  भारत सरकार ने उन्हें 1957 में पद्म श्री से सम्मानित किया। भारत सरकार ने सन् 2000 में उनके नाम पर वर्गीकरण विज्ञान का राष्ट्रीय पुरस्कार स्थापित किया।

राजेश्वरी चटर्जी (1922-2010): वे भारत में माइक्रोवेव इंजीनियरिंग और एंटीना इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अग्रणी महिला वैज्ञानिक थीं। उन्होंने 1949 में मिशिगन यूनिवर्सिटी, यूएसए से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एमएस की डिग्री हासिल की। लगभग 60 साल पहले, वे भारतीय विज्ञान संस्थान में एकमात्र महिला फैकल्टी थीं। उनके पुरस्कारों में इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड रेडियो इंजीनियरिंग, यूके से सर्वश्रेष्ठ पेपर के लिए माउंटबेटन पुरस्कार, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स से सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र के लिए जे सी बोस मेमोरियल पुरस्कार शामिल हैं। वे इलेक्ट्रो-कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग, आईआईएससी, बेंगलुरु के प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुईं।

 

असीमा चटर्जी: पद्म भूषण से सम्‍मानित, वे किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय से डीएससी से सम्मानित होने वाली पहली महिला थीं। उनके द्वारा जीते गए कई पुरस्कारों में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, यूजीसी का सी वी रमन पुरस्कार, पीसी रे पुरस्कार, सिसिर के मित्र लेक्चरशिप और डॉ जी पी चटर्जी लेक्चरशिप शामिल हैं। वह भारतीय विज्ञान कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और राज्य सभा की सदस्य थीं। उनकी रुचि का क्षेत्र औषधीय रसायन के विशेष संदर्भ में प्राकृतिक उत्पाद थे। चटर्जी ने मार्सिलिया मिनुटा से मिरगी रोधी दवा, आयुष -56 और अल्स्टोनिया स्कोलॉरिस, स्वर्तिया चिराता, पिक्रोफिजा कुरोआ और सीसलपिन्ना क्रिस्टा से मलेरिया रोधी दवा का सफलतापूर्वक विकास किया। उनकी पेटेंट दवाओं का विपणन कई कंपनियों द्वारा किया गया है।

 

डॉ. इंदिरा हिंदुजा: वे पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने 6 अगस्त, 1986 को एक टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया। उन्होंने गैमेटे इंट्रा फैलोपियन ट्रांसफर (गिफ्ट) तकनीक का भी नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप 4 जनवरी 1988 को भारत के पहले गिफ्ट बेबी का जन्म हुआ। वे मुंबई स्थित भारतीय स्त्री रोग; प्रसूति एवं बांझपन विशेषज्ञ हैं। उन्हें रजोनिवृत्ति और समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता रोगियों के लिए एक ओसाइट्स दान तकनीक विकसित करने का श्रेय दिया जाता है, और 24 जनवरी 1991 को इस तकनीक का उपयोग करके देश का पहला बच्चा देने के लिए जाना जाता है।

मंजू शर्मा: पीएच.डी. (1965, लखनऊ), एफएनए एससी, एफटीडब्‍ल्‍यूएएस। वे 1995-96 के दौरान नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की अध्यक्ष थीं (और भारत में किसी भी विज्ञान अकादमी की एकमात्र महिला अध्यक्ष थीं)। उनके कई पुरस्कारों में पद्म भूषण, राष्ट्रीय वरिष्ठ महिला जैव-वैज्ञानिक पुरस्कार, एनएएसआई प्लेटिनम जुबली गोल्ड मेडल और नॉर्मन ई. बोरलॉग पुरस्कार शामिल हैं। वे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, नई दिल्ली, सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स, हैदराबाद, नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर, मानेसर और इंस्टीट्यूट ऑफ बायोरिसोर्स एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट, मणिपुर, जैसे कई नए संस्थानों की स्थापना के लिए जानी जाती हैं।

 

कल्पना चावला (17 मार्च, 1962-1 फरवरी, 2003): वे पहली भारतीय-अमरीकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष में पहली भारतीय महिला थीं। उन्होंने पहली बार 1997 में एक मिशन विशेषज्ञ और प्राथमिक रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में स्पेस शटल कोलंबिया में उड़ान भरी थी। नासा प्रमुख ने उन्हें "उत्‍कृष्‍ट अंतरिक्ष यात्री" कहा। 1 फरवरी, 2003 को, सात सदस्यीय चालक दल, जिसमें 41 वर्षीय चावला शामिल थीं, के साथ अमरीकी अंतरिक्ष यान कोलंबिया, फ्लोरिडा में केप कैनावेरल में उतरने से कुछ समय पहले मध्य टेक्सास में आग की लपटों में बिखर गया।

 

वनिता मुथय्या, रितु करिधल और स्वाति मोहन: भारत के इतिहास में पहली बार, एक अंतरिक्ष मिशन - चंद्रयान -2, चंद्रमा के लिए भारत के दूसरा मिशन का  नेतृत्व, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की दो महिला वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था। वनिता मुथय्या ने परियोजना निदेशक के रूप में देश के दूसरे चंद्र मिशन चंद्रयान -2 का नेतृत्व किया, वहीं रितु करिधल मिशन निदेशक थीं। भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति मोहन ने मंगल 2020 मिशन के मार्गदर्शन, नेविगेशन और नियंत्रण संचालन का नेतृत्व किया। वे कई भारतीय महिला वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और मिसाइल डेवलपर्स में से एक हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक छाप छोड़ रही हैं।

 

स्रोतः पीआईबी, विश्व बैंक, एआईएसएचई