रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

विशेष लेख


Issue no 46, 11-17 February 2023

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की

"मन की बात "

 

·         हर साल जनवरी का महीना काफी Eventful होता है। इस महीने, 14 जनवरी के आसपास उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक, देश-भर में त्योहारों की रौनक होती है। इसके बाद देश अपने गणतंत्र उत्सव भी मनाता है। इस बार भी गणतन्त्र दिवस समारोह में अनेक पहलुओं की काफी प्रशंसा हो रही है। परेड के दौरान कर्तव्य पथ का निर्माण करने वाले श्रमिकों ,झांकियों में भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को देखकर आनंद आया। इस परेड में पहली बार हिस्सा लेने वाली Women Camel Riders और CRPF की महिला टुकड़ी भी काफी सराहना हो रही है।

·         जमीनी स्तर पर अपने समर्पण और सेवा-भाव से उपलब्धि हासिल करने वालों को People’s Padma को लेकर भी कई लोगों ने अपनी भावनाएँ साझा की हैं। इस बार पद्म पुरस्कार से सम्मानित होने वालों में जनजातीय समुदाय और जनजातीय जीवन से जुड़े लोगों का अच्छा-खासा प्रतिनिधत्व रहा है। जो जनजातीय समाज, अपनी परम्पराओं को सहेजने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। जनजातीय भाषाओं पर काम करने वाले कई महानुभावों को पद्म पुरस्कार मिले हैं। इस वर्ष पद्म पुरस्कारों की गूँज उन इलाकों में भी सुनाई दे रही है, जो नक्सल प्रभावित हुआ करते थे। अपने प्रयासों से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गुमराह युवकों को सही राह दिखाने वालों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इसी प्रकार नॉर्थ-ईस्ट में अपनी संस्कृति के संरक्षण में लोगों को भी सम्मानित किया गया है। इस बार पद्म पुरस्कार पाने वालों में वो लोग हैं, जो, संतूर, बम्हुम, द्वितारा जैसे हमारे पारंपरिक वाद्ययंत्र की धुन बिखेरने में महारत रखते हैं। गुलाम मोहम्मद ज़ाज़, मोआ सु-पोंग, री-सिंहबोर कुरका-लांग, मुनि-वेंकटप्पा और मंगल कांति राय ऐसे कितने ही नाम हैं जिनकी चारों तरफ़ चर्चा हो रही है।, पद्म पुरस्कार पाने वाले अनेक लोग, हमारे बीच के वो साथी हैं, जिन्होंने, हमेशा देश को सर्वोपरि रखा, राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

·         कुछ हफ्ते पहले ही मुझे मिली इस book  में एक बहुत ही interesting Subject पर चर्चा की गयी है। इस book का नाम India - The Mother of Democracy है और इसमें कई बेहतरीन Essays हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हम भारतीयों को इस बात का गर्व भी है कि हमारा देश Mother of Democracy भी है। लोकतंत्र हमारी रगों में है, हमारी संस्कृति में है - सदियों से यह हमारे कामकाज का भी एक अभिन्न हिस्सा रहा है। स्वभाव से, हम एक Democratic Society हैं। डॉ० अम्बेडकर ने बौद्ध भिक्षु संघ की तुलना भारतीय संसद से की थी। उन्होंने उसे एक ऐसी संस्था बताया था, जहां Motions, Resolutions, Quorum (कोरम), Voting और वोटों की गिनती के लिए कई नियम थे। बाबासाहेब का मानना था कि भगवान बुद्ध को इसकी प्रेरणा उस समय की राजनीतिक व्यवस्थाओं से मिली होगी। तमिलनाडु में एक छोटा, लेकिन चर्चित गाँव है उतिरमेरुर। यहाँ ग्यारह सौ-बारह सौ साल पहले का एक शिलालेख दुनिया भर को अचंभित करता है। वारंगल के काकतीय वंश के राजाओं की गणतांत्रिक परम्पराएं भी बहुत प्रसिद्ध थी। भक्ति आन्दोलन ने, पश्चिमी भारत में, लोकतंत्र की संस्कृति को आगे बढ़ाया। Book में सिख पंथ की लोकतान्त्रिक भावना पर भी एक लेख को शामिल किया गया है जो गुरु नानक देव जी के सर्वसम्मति से लिए गए निर्णयों पर प्रकाश डालता है। मध्य भारत की उरांव और मुंडा जनजातियों में community driven और consensus driven decision पर भी इस किताब में अच्छी जानकारी है। Mother of Democracy के रूप में, हमें, निरंतर इस विषय का गहन चिंतन भी करना चाहिए, चर्चा भी करना चाहिए और दुनिया को अवगत भी कराना चाहिए। इससे देश में लोकतंत्र की भावना और प्रगाढ़ होगी।

·         योग दिवस और हमारे विभिन्न तरह के मोटे अनाजों - Millets में क्या common है तो आप सोचेंगे ये भी क्या तुलना हुई ? अगर मैं कहूँ कि दोनों में काफी कुछ common है तो आप हैरान हो जाएंगे। दरअसल संयुक्त राष्ट्र ने International Yoga Day और International Year of Millets, दोनों का ही निर्णय भारत के प्रस्ताव के बाद लिया है। दूसरी बात ये कि योग भी स्वास्थ्य से जुड़ा है और millets भी सेहत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तीसरी बात और महत्वपूर्ण है दोनों ही अभियानो में जन-भागीदारी की वजह से क्रांति रही है। जिस तरह लोगों ने व्यापक स्तर पर सक्रिय भागीदारी करके योग और fitness को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है उसी तरह millets को भी लोग बड़े पैमाने पर अपना रहे हैं। लोग अब millets को अपने खानपान का हिस्सा बना रहे हैं।

·         एक तरफ वो छोटे किसान बहुत उत्साहित हैं जो पारंपरिक रूप से millets का उत्पादन करते थे। वो इस बात से बहुत खुश हैं कि दुनिया अब millets का महत्व समझने लगी है। दूसरी तरफ, FPO और entrepreneurs ने millets को बाजार तक पहुँचाने और उसे लोगों तक उपलब्ध कराने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। आपने entrepreneur शब्द सुना होगा, लेकिन, क्या आपने Milletpreneurs सुना है क्या ? ओडिशा की Milletpreneurs, आजकल खूब सुर्ख़ियों में हैं। आदिवासी जिले सुंदरगढ़ की करीब डेढ़ हजार महिलाओं का Self Help Group, Odisha Millets Mission से जुड़ा हुआ है। यहाँ महिलाएं millets से cookies, रसगुल्ला, गुलाब जामुन और केक तक बना रही हैं। बाजार में इनकी खूब demand होने से महिलाओं की आमदनी भी बढ़ रही है।

·         हिंदुस्तान के कोने-कोने में G-20 की summits लगातार चल रही है और मुझे खुशी है कि देश के हर कोने में, जहां भी G-20 की summit हो रही है, millets से बने पौष्टिक, और स्वादिष्ट व्यंजन उसमें शामिल होते हैं। यहाँ बाजार से बनी खिचड़ी, पोहा, खीर और रोटी के साथ ही रागी से बने पायसम, पूड़ी और डोसा जैसे व्यंजन भी परोसे जाते हैं।  दुनिया भर में Indian Missions भी इनकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि देश का ये प्रयास और दुनिया में बढ़ने वाली मिलेट्स (Millets) की डिमांड (demand), हमारे छोटे किसानों को कितनी ताकत देने वाली है। मुझे ये देखकर भी अच्छा लगता है कि आज जितने तरह की नई-नई चीज़ें मिलेट्स (Millets) से बनने लगी हैं, वो युवा पीढ़ी को भी उतनी ही पसंद रही है। International Year of Millets की ऐसी शानदार शुरुआत के लिए और उसको लगातार आगे बढाने के लिए मैं मन की बातके श्रोताओं को भी बधाई देता हूं।

·         गोवा में हुआ ये इवेंट (Event) है - Purple Fest (पर्पल फेस्टइस फेस्ट को 6 से 8 जनवरी तक पणजी में आयोजित किया गया। दिव्यांगजनों के कल्याण को लेकर यह अपने-आप में एक अनूठा प्रयास था। Purple Fest (पर्पल फेस्टकितना बड़ा मौका था, इसका अंदाजा आप सभी इस बात से लगा सकते हैं, कि 50 हजार से भी ज्यादा हमारे भाई-बहन इसमें शामिल हुए। यहां आये लोग इस बात को लेकर रोमांचित थे कि वो अब मीरामार बीचघूमने का भरपूर आनंद उठा सकते हैं। दरअसल, ‘मीरामार बीचहमारे दिव्यांग भाई-बहनों के लिए गोवा के Accessible Beaches में से एक बन गया है। यहां पर Cricket Tournament, Table Tennis Tournament, Marathon Competition के साथ ही एक डीफ-ब्लाइंड कन्वेंशन भी आयोजित किया गया। Purple Fest की एक ख़ास बात इसमें देश के private sector की भागीदारी भी रही। उनकी ओर से ऐसे products को showcase किया गया, जो, Divyang Friendly हैं। Accessible India के हमारे Vision को साकार करने में इस प्रकार के अभियान बहुत ही कारगर साबित होंगे|

·         बेंगलुरु का Indian Institute of Science, यानी IISc एक शानदार मिसाल पेश कर रहा है। साल 2022 में इस संस्थान के नाम कुल 145 patents रहे हैं। इसका मतलब है हर पांच दिन में दो patents. ये रिकॉर्ड अपने आप में अद्भुत है। इस सफलता के लिए मैं IISc की टीम को भी बधाई देना चाहता हूं। साथियो, आज Patent Filing में भारत की ranking 7वीं और trademarks में 5वीं है। सिर्फ patents की बात करें, तो पिछले पांच वर्षों में इसमें करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। Global Innovation Index में भी, भारत की ranking  में, जबरदस्त सुधार हुआ है और अब वो 40वें पर पहुंची है, जबकि 2015 में, भारत Global Innovation Index में 80 नंबर के भी पीछे था। पिछले 11 वर्षों में पहली बार Domestic Patent Filing की संख्या Foreign Filing से अधिक देखी गई है। ये भारत के बढ़ते हुए वैज्ञानिक सामर्थ्य को भी दिखाता है।

·         संयुक्त राष्ट्र की एक Report में बताया गया था कि हर साल 50 मिलियन टन E-Waste फेंका जा रहा है। इस E-Waste से करीब 17 प्रकार के Precious Metal निकाले जा सकते हैं। करीब 500 E-Waste Recyclers इस क्षेत्र से जुड़े हैं और बहुत सारे नए उद्यमियों को भी इससे जोड़ा जा रहा हैबेंगलुरु की E-Parisaraa ऐसे ही एक प्रयास में जुटी है। इसने Printed Circuit Boards की कीमती धातुओं को अलग करके की स्वदेशी Technology विकसित की है। इसी तरह मुंबई में काम कर रही Ecoreco (इको-रीको)ने Mobile App से E-Waste को Collect करने का System तैयार किया है। उत्तराखंड के रुड़की की Attero (एटेरो) Recycling ने तो इस क्षेत्र में दुनियाभर में कई Patents हासिल किए हैं।भोपाल में Mobile App और Website ‘कबाड़ीवालाके जरिए टनों E-Waste एकत्रित किया जा रहा है। E-Waste के निपटारे से सुरक्षित उपयोगी तरीकों के बारे में लोगों को जागरूक करते रहना होगा। E-Waste के क्षेत्र में काम करने वाले बताते हैं कि अभी हर साल सिर्फ 15-17 प्रतिशत E-Waste को ही Recycle किया जा रहा है।

·         भारत ने अपने wetlands के लिए जो काम किया है, वो जानकर आपको भी बहुत अच्छा लगेगा। हमारे देश में अब Ramsar Sites की कुल संख्या 75 हो गयी है, जबकि, 2014 के पहले देश में सिर्फ 26 Ramsar Sites थी। इसके लिए स्थानीय समुदाय बधाई के पात्र हैं, जिन्होनें इस Biodiversity को संजोकर रखा है। यह प्रकृति के साथ सद्भावपूर्वक रहने की हमारी सदियों पुरानी संस्कृति और परंपरा का भी सम्मान है। भारत के ये Wetlands हमारे प्राकृतिक सामर्थ्य का भी उदाहरण हैं। भारत में Wetlands का ये विस्तार उन लोगों की वजह से संभव हो पा रहा है, जो Ramsar Sites के आसपास रहते हैं

·         इस बार हमारे देश में, खासकर उत्तर भारत में, खूब कड़ाके की सर्दी पड़ी। इस सर्दी में लोगों ने पहाड़ों पर बर्फबारी का मजा भी खूब लिया। जम्मू-कश्मीर से कुछ ऐसी तस्वीरें आईं जिन्होंने पूरे देश का मन मोह लिया। Social Media पर तो पूरी दुनिया के लोग इन तस्वीरों को पसंद कर रहे हैं। बर्फबारी की वजह से हमारी कश्मीर घाटी हर साल की तरह इस बार भी बहुत खूबसूरत हो गई है. कश्मीरी युवा बर्फ के बीच Cricket को और भी अद्भुत बना देते हैं। इसके जरिए कश्मीर में ऐसे युवा खिलाड़ियों की तलाश भी होती है, जो आगे चलकर टीम इंडिया के तौर पर खेलेंगे।

·         गणतंत्र को मजबूत करने के हमारे प्रयास निरंतर चलते रहने चाहिए। गणतंत्र मजबूत होता है जन-भागीदारी से’, ‘सबका प्रयास से’, ‘देश के प्रति अपने-अपने कर्तव्यों को निभाने से’, और मुझे संतोष है, कि, हमारा मन की बात’, ऐसे कर्तव्यनिष्ठ सेनानियों की बुलंद आवाज है। अगली बार फिर से मुलाकात होगी ऐसे कर्तव्यनिष्ठ लोगों की दिलचस्प और प्रेरक गाथाओं के साथ।

 

-          पसूका