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विशेष लेख


अंक संख्या 38,17-23 दिसम्बर ,2022

पीएम-डिवाइन योजना : पूर्वोत्‍तर में नई सुबह का अभ्‍युदय

बी.एस. पुरकायस्थ

जहां पीएम-डिवाइन योजना के अंतर्गत परियोजनाओं की प्रारंभिक सूची के लिए 1,500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है,वहीं इस योजना में वर्ष 2022-23 से 2025-26 तक चार साल की अवधि के लिए 6,600 करोड़ रुपये की राशि का परिव्यय होगा।

भारत के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र (एनईआर) में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा को मिलाकर आठ राज्‍य शामिल हैं। इस क्षेत्र की जनसंख्या 45 मिलियन से अधिक है, जो भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 3.76% है। भारत के जल संसाधनों के एक-तिहाई से अधिक और पनबिजली क्षमता के लगभग 40%भाग, विशाल उपजाऊ क्षेत्र, खनिज भंडार और बड़े पैमाने पर अप्रयुक्त मानव पूंजी के लिए उत्‍तरदायी होने के बावजूद यह क्षेत्र बुनियादी ढांचे के विकास, औद्योगिकीकरण या रोजगार की दृष्टि से देश के बाकी हिस्सों से पिछड़ गया है। इस अल्प-विकास का कारण निवेश की कमी, भौगोलिक अलगाव, दुर्गम भूभाग, प्राकृतिक संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग होने के साथ-साथ इसका उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों का इतिहास हैं। यह तथ्य इन रुकावटों को और भी विकट बना देता है कि पूर्वोत्‍तर, जिसमें देश का लगभग 7.98% क्षेत्र शामिल है, पांच देशों - चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान और नेपाल  से  घिरा और 5483 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा से इससे सटी हुई है तथाशेष भारत से यह 27 किलोमीटर लंबे संकरे गलियारे यानी चिकन-नेक कॉरिडोर द्वारा जुड़ा है। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र का विकास भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शुमार रहा है और इसे सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में इस क्षेत्र के विकास के लिए 'पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री की विकास पहल' (पीएम-डिवाइन) योजना की शुरूआत की है। पहली बार वर्ष 2022-23के केंद्रीय बजट में घोषित इस योजना का उद्देश्य आठ राज्यों के आर्थिक और सामाजिक विकास में तेजी लाना है, जिसमें पीएम गति शक्ति की भावना से ढांचागत परियोजनाओं पर और पूर्वोत्‍तर की अनुभूत आवश्‍यकताओं के आधार पर सामाजिक विकास परियोजनाओं पर विशेष जोर दिया गया है। पीएम-डिवाइन योजना बुनियादी ढांचे (विशेष रूप से सड़क संपर्क), स्वास्थ्य देखभाल, कृषि और आजीविका से जुड़ी परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराकर विभिन्न क्षेत्रों में विकास संबंधी खामियों को दूर कर युवाओं और महिलाओं के लिए आजीविका गतिविधियों को सक्षम बनाएगी। इसकी बदौलत क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

 

पीएम -डिवाइन योजना: पूर्वोत्‍तर भारत में विकास को गति देना

पीएम-डिवाइन योजना पूर्वोत्तरक्षेत्र के विकास के लिए अतिरिक्त संसाधनों को सुनिश्चित करती है, क्योंकि यह मौजूदा केंद्रीय या राज्य योजनाओं का विकल्प नहीं होगी। नई योजना,100% केंद्रीय वित्त पोषण के साथ केंद्रीय क्षेत्र की योजना है और यह पूर्वोत्तर परिषद या केंद्रीय मंत्रालयों/एजेंसियों के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जाएगी। यद्यपि केंद्रीय मंत्रालय भी अपनी महत्‍वाकांक्षी परियोजनाएं प्रस्तुत कर सकते हैं, लेकिन प्राथमिकता राज्यों द्वारा प्रस्तुत परियोजनाओं को ही दी जाएगी। वर्ष 2022-23 के बजट भाषण के अनुसार, इसके लिए 1500 करोड़ रुपये की राशि का प्रारंभिक आवंटन किया गया है; और परियोजनाओं की आरंभिक सूची नीचे तालिका-1 में दी गई है।

तालिका-1पीएम-डिवाइन के तहत परियोजनाओं की प्रारंभिक सूची

क्रम सं.

परियोजना का नाम

कुल संभावित लागत (करोड़ रुपए में)

1

पूर्वोत्‍तर भारतगुवाहाटी में बाल चिकित्सा और वयस्क हेमेटोलिम्फॉइड कैंसर के प्रबंधन के लिए समर्पित सेवाओं (बहु-राज्य) की स्थापना

129

2

नेक्टर आजीविका सुधार परियोजना (बहु-राज्य)

67

3

पूर्वोत्तर भारत में वैज्ञानिक जैविक कृषि को बढ़ावा देना(बहु-राज्य)

45

4

पश्चिमी हिस्से पर आइजोल बाई-पास का निर्माण

500

5

पश्चिम सिक्किम में पेलिंग से सांगा-चोएलिंग के लिए पैसेंजर रोपवे सिस्टम के लिए अंतर-वित्‍त पोषण

64

6

दक्षिण सिक्किम में ढापर से भालेधुंगा तक पर्यावरण के अनुकूल रोपवे (केबल कार) के लिए अंतर-वित्‍त पोषण

58

7

मिजोरम राज्य के विभिन्न जिलों में विभिन्न स्थानों पर बांस लिंक रोड के निर्माण के लिए पायलट परियोजना

100

8

अन्य (पहचान होना बाकी)

537

 

कुल

1,500

स्रोत : पीआईबी

पीएम-डिवाइन की प्रारंभिक परियोजनाओं के फोकस वाले क्षेत्र:

परिवहन और कनेक्टिविटी:

इस योजना में परिवहन परियोजनाओं पर मुख्‍य रूप से ध्‍यान केंद्रित किया गया है, जो पूर्वोत्‍तर भारत के विकास के लिए आवश्यक हैं। इसके तहत 1500 करोड़ रुपये की राशि का बड़ा हिस्सा राजमार्गों और रोपवे प्रणालियों के निर्माण के लिए आवंटित किया गया है। यह बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और असम के कुछ हिस्सों में पर्वतीय इलाके शामिल हैं जहां कनेक्टिविटी, विकास के मार्ग की प्रमुख रुकावट रही है। रेलवे नेटवर्क काफी हद तक असम और त्रिपुरा तक ही सीमित है, अन्य राज्यों से संपर्क या तो नदारद हैं या मुट्ठी भर शहरों तक सीमित हैं। इस प्रकार लोगों की आवाजाही और माल ढुलाई के लिए सड़क संपर्क अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइजोल बाईपास और बांस लिंक सड़कों जैसी मिजोरम आधारित परियोजनाओं से संकेत मिलता है कि इस पहल का सबसे बड़ा लाभार्थी मिजोरम होगा,उसके बाद सिक्किम में दो रोपवे सिस्टम हैं जो दक्षिण और पश्चिम सिक्किम में बेहतर कनेक्टिविटी का वादा करते हैं। आइज़ोल बाईपास से इस पर्वतीय राजधानी शहर में यातायात और भीड़-भाड़ में कमी आने की संभावना है। मिजोरम के प्रमुख वन संसाधन-बांस की ढुलाई के लिए बांस लिंक सड़कों के निर्माण से राज्य के दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों के बांस उत्पादकों को देश के बाकी हिस्सों के साथ बेहतर तरीके से जोड़ने में मदद मिलेगीऔर आगे चलकर आमदनी में वृद्धि होगी।

स्वास्थ्य देखभाल:

डॉ. बी. बरूआ कैंसर संस्थान (बीबीसीआई), गुवाहाटी में बाल चिकित्सा और वयस्क हेमेटोलिम्फॉइड कैंसर के प्रबंधन के लिए समर्पित सेवाओं की स्थापना की घोषणा बेहद स्वागत योग्य कदम है। इस पहल से इस क्षेत्र में कैंसर की देखभाल को बड़े पैमाने पर प्रोत्‍साहन मिलने की उम्मीद है, क्योंकि पिछले 11 वर्षों में, 3,855 बाल और वयस्क हेमेटोलिम्फॉइड कैंसर के रोगी इलाज के लिए बीबीसीआई पहुंचे थे। भारतीय आयुर्विज्ञान  अनुसंधान परिषद(आईसीएमआर) की जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री से पता चलता है कि भारत में कैंसर के सबसे ज्यादा मामले पूर्वोत्तर क्षेत्र में हैं। हर साल कैंसर के मामलों का राष्ट्रीय औसत प्रति लाख की आबादी पर 90-120 मामले होता है, जबकि पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में यह औसत प्रति लाख की आबादी पर 220-270 मामले जितना अधिक रहता है। आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में हर साल 45,000 से अधिक नए कैंसर रोगियों का पता लगाया जाता है, और इनमें 95% रोगी सिक्किम से, 58% रोगी नागालैंड से, 16%रोगी मणिपुर से, 13% रोगी मेघालय से कैंसर के इलाज के लिए पूर्वोत्‍तर क्षेत्र से बाहर जाते हैं। इसके अलावा, बाल चिकित्सा और वयस्क हेमेटोलिम्फॉइड (रक्त कैंसर) जैसे कुछ कैंसर, इलाज योग्य कैंसर की श्रेणी में आते हैं और बेहतर  इलाज होने पर ये रोगी लंबा और उपयोगी जीवन बिता सकते हैं। डॉ. बी. बरुआ कैंसर संस्थान में समर्पित बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजी ब्लॉक स्थापित होते ही, सालाना इस समूह के रोगों के लगभग 1,000 रोगियों का उपचार किया जा सकता है, जिससे रोगी के खर्च में काफी कमी आएगी और पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लोगों को अत्यधिक लाभ होगा।

आजीविका:

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय उत्तर पूर्वी प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं प्रसार केन्द्र (नेक्‍टर), इस क्षेत्र में ग्रामीण लोगों के कौशल को बढ़ाने और स्थायी आजीविका और बेहतर आय सुनिश्चित करने के लिए अनेक कार्यक्रमों पर काम कर रहा है। विभिन्न प्रौद्योगिकियों की जानकारी और उनके उपयोगी अनुप्रयोगों के बारे में स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए राज्य विशिष्ट टीडीसी (प्रौद्योगिकी प्रदर्शन केंद्र) स्थापित किए गए हैं। बांस क्षेत्र के प्रोत्‍साहन, मूल्यवर्धन और बाजार से उसका संपर्क  स्थापित करने के लिए बांस एवं बेंत विकास संस्थान (बीसीडीआई), अगरतला, त्रिपुरा के सहयोग से एक बांस आधारित टीडीसी की स्थापना की गई है। पूर्वोत्तर क्षेत्र और देश के अन्य हिस्सों के प्रतिभागियों के प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए नेक्‍टर-बीसीडीआई इनक्यूबेशन कम इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेशन सेंटर (आईआईटीडीसी) नामक एक संयुक्त केंद्र भी बीसीडीआई परिसर, अगरतला में स्थापित किया गया है। नेक्‍टर ने मणिपुर में 300 से अधिक कमजोर महिलाओं को कौशल और उद्यमिता के विकास के लिए सहायता प्रदान की है। इस पहल के अंतर्गत, नेक्टर ने मणिपुरी हथकरघा उत्‍पाद फैबइंडिया को बेचने में इन महिलाओं की मदद करने के लिए कंट्रोल आर्म्स फाउंडेशन ऑफ इंडिया और मणिपुर गन सर्वाइवर्स नेटवर्क तथा क्रॉफ्ट कंपनी रंगसूत्र के साथ मिलकर कार्य किया है। अन्य सफल पहलों में नागालैंड में शहद उत्पादन, असम में दीपोर बील दलदली क्षेत्र में मछली पकड़ने वाले समुदाय द्वारा वॉटर हाइसिंथ से पर्यावरण के अनुकूल योग मैट का उत्पादन और अशारीकंडी, धुबरी, असम में पारंपरिक टेराकोटा और मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय में सुधार और टिकाऊपन शामिल हैं। इसने इम्फ़ाल-पूर्व मणिपुर में प्राचीन विरासत कला 'चरेई तबा पॉटरी' (कॉइल पॉटरी) को संरक्षित करने में मदद की है और सांस्कृतिक वस्‍तुओं में व्यापार को मजबूत कर टिकाऊ आजीविका की पेशकश की है। हाल ही में नेक्टर ने दक्षिण सिक्किम के यांगांग गांव में पहली बार केसर की सफल खेती का मार्गदर्शन किया। अब इसका विस्तार तवांग, अरुणाचल प्रदेश और बारापानी, मेघालय तक किया जा रहा है। अतिरिक्त धनराशि के साथ पीएम-डिवाइन के माध्‍यम से आठ राज्यों में नेक्टर के काम की मान्यता से क्षेत्र में कई और संभावित आजीविका परियोजनाओं की पहचान करने में मदद मिलने की उम्मीद है।

जैविक खेती:

भारत के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र (एनईआर) में जैविक खेती को प्रोत्‍साहन देने की अपार क्षमता मौजूद है। रसायनों का सीमित उपयोग और पारंपरिक तरीकों सेखेती करने वाले किसान इस क्षेत्र को देश के जैविक खेती के हॉटस्‍पॉट  के रूप में विकसित करने में सहायता करते हैं। पवर्तीय क्षेत्र, उपजाऊ मैदान, कृषि और वन जैव विविधता, आर्द्रभूमि, और अच्छी वर्षा- फल, सब्जियां, मसाले, रोपण फसलें, औषधीय और सुगंधित पौधों आदि जैसे विभिन्न बागवानी फसल समूहों को उगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में लगभग 18 मिलियन हेक्टेयर भूमि जैविक खेती के लिए उपयुक्त है।असम में चाय, जोहा चावल और नींबू; सिक्किम में अदरक, बड़ी इलायची, सिक्किम मैंडरिन, हल्दी, आर्किड, स्थानीय मिर्च, सुगंधित चावल, मशरूम, बेबी कॉर्न, इलायची और अदरक; मणिपुर में तामेंगलोंग संतरा, कच्चा नींबू, काला चावल, अनन्‍नास, मिजोरम में अनन्‍नास, अदरक, लोबिया और धान, मेघालय में हल्दी, संतरा,पैशन फ्रूट और त्रिपुरा में अनन्‍नास सहित विभिन्न प्रकार की जैविक फसलें यहां पहले से ही उगाए जाती हैं। जनवरी 2017 में, प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने सिक्किम को भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य घोषित किया और मिजोरम ने उसका अनुसरण किया है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के जैविक कृषि उत्पादों की बड़े पैमाने पर निर्यात की क्षमता का उपयोग करने के लिए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने हाल ही में गुवाहाटी में प्राकृतिक, जैविक और भौगोलिक संकेतक (जीआई) कृषि उत्पादों की निर्यात क्षमता पर एक सम्मेलन का आयोजन किया। इस क्षेत्र में पिछले छह वर्षों में कृषि उत्पादों के निर्यात में 85.34% की वृद्धि देखी गई, जो वर्ष2016-17 में 2.52 मिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष2021-22 में 17.2 मिलियन डॉलर हो गया। प्रमुख निर्यात गंतव्य बांग्लादेश, भूटान, पश्चिम एशिया, ब्रिटेन और यूरोप रहे हैं। मिशन ऑर्गेनिक वेल्‍यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्‍ट रीजन पहले से ही आठों पूर्वोत्तर राज्यों को प्रमाणित जैविक उत्पाद विकसित करने के लिए एक संरचित मूल्य श्रृंखला मोड में किसानों को अंतिम-उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए प्रोत्साहन दे रहा है। योजना के तहत, लगभग 100 किसान-उत्पादक संगठनों की स्‍थापना के माध्यम से पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के 30000-50000  किसानों को सशक्त बनाया जाएगा। पीएम-डिवाइन के अंतर्गत वैज्ञानिक जैविक खेती को बढ़ावा देने पर दिए जा रहे बल के साथ-साथ  केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की विभिन्न इकाइयों की ओर से संचालित की जा रही पहलों से इस क्षेत्र में जैविक खेती को और भी बढ़ावा मिलेगा।

पीएम-डिवाइन योजना के अंतर्गत वित्‍तीय परिव्‍यय :

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अक्टूबर 2022 मेंवर्ष 2022-23 से  2025-26 तक 15वें वित्त आयोग की अवधि के शेष चार वर्षों के लिए पीएम-डिवाइन योजना को मंजूरी दी।पीएम-डिवाइन योजना में वर्ष 2022-23 से 2025-26 तक चार साल की अवधि में6,600 करोड़ रुपये का परिव्यय होगा। पीएम-डिवाइन परियोजनाओं को वर्ष 2025-26 तक पूरा करने का प्रयास किया जाएगा, ताकि इस वर्ष के बाद कोई प्रतिबद्ध देनदारियां न हों। इसका तात्पर्य मुख्य रूप से वर्ष 2022-23 और 2023-24 में योजना के तहत प्रतिबंधों की फ्रंट-लोडिंग से है। जबकि वर्ष 2024-25 और 2025-26 के दौरान व्यय किया जाना जारी रहेगा, फोकस मुख्‍य रूप से स्वीकृत पीएम-डिवाइन परियोजनाओं को पूरा करने पर रहेगा।

पीएम-डिवाइन के तहत स्वीकृत परियोजनाओं का उचित संचालन और रखरखाव सुनिश्चित करने के उपाय किए जाएंगे, ताकि वे टिकाऊ हों। निर्माण के दौरान समय और लागत में वृद्धि के जोखिम को कम करने के लिए, परियोजनाओं को यथासंभव सीमा तक इंजीनियरिंग-खरीद-निर्माण (ईपीसी) के आधार परकार्यान्वित किया जाएगा। पीएम-डिवाइन योजना बुनियादी ढांचे के निर्माणउद्योगोंसामाजिक विकास परियोजनाओं को सहयोग देगी और युवाओं व महिलाओं के लिए आजीविका सृजित करेगीजिससे रोजगार के अवसरों का सृजन होगा,जहां लगभग 8%अखिल भारतीय बेरोजगारी दर के मुकाबले औसत बेरोजगारी दर 9.1% है। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में निजी उद्योगों के अभाव को देखते हुए अधिकांश वयस्क या तो सरकारी नौकरियों की तलाश करते हैं या रोजगार की तलाश में देश के अन्य हिस्सों में चले जाते हैं।

पीएम-डिवाइन केउद्देश्य:

 (ए) पीएम गतिशक्ति की भावना में सम्मिलित रूप से बुनियादी ढांचे के लिए वित्‍त पोषण करना;

 (बी) एनईआर की अनुभूत आवश्‍यकताओं के आधार पर सामाजिक विकास परियोजनाओं में सहायता देना ;

(सी) युवाओं और महिलाओं के लिए आजीविका संबंधी गतिविधियों को सक्षम करना;

 (डी) विभिन्न क्षेत्रों में विकास संबंधी खामियों को दूर करना ।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए,पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय की अन्य योजनाएं हैं, लेकिन उन परियोजनाओं का औसत आकार लगभग 12 करोड़ रुपये ही है। पीएम-डिवाइन योजना बुनियादी ढांचे और सामाजिक विकास परियोजनाओं को सहायता प्रदान करेगी जो आकार में बड़ी हो सकती हैं और अलग-अलग परियोजनाओं के बजाय शुरू से अंत तक विकास समाधान भी प्रदान करेगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि पीएम-डिवाइन के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय या किसी अन्य मंत्रालय/विभाग की अन्य योजनाओं के साथ परियोजना सहायता का दोहराव नहीं हो।

हालांकि पीएम-डिवाइन के तहत वर्ष 2022-23 के लिए स्वीकृत की जाने वाली कुछ परियोजनाएं बजट घोषणा का हिस्सा हैंआम जनता के लिए पर्याप्त सामाजिक-आर्थिक प्रभाव या निरंतर आजीविका के अवसर वाली परियोजनाएं (अर्थात सभी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में बुनियादी सुविधाएंसरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में व्यापक सुविधाएं आदि) पर भविष्य में विचार किया जा सकता है।पीएम-डिवाइन की घोषणा का औचित्य यह है कि बुनियादी न्यूनतम सेवाओं (बीएमएस) के संबंध में पूर्वोत्तर राज्यों के पैरामीटर राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे हैं और नीति आयोग,  यूएनडीपी और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा तैयार बीईआर जिला निरंतर विकास उद्देश्य (एसडीजी) सूचकांक 2021-22 के अनुसार विकास में गंभीर अंतर हैं। इन बीएमएस कमियों और विकास की खामियों को दूर करने के लिए नई योजनापीएम-डिवाइन की घोषणा की गई थी। 

पीएम-डिवाइन योजना के प्रबंधन के लिए संस्थागत व्यवस्था:

हर साल वित्त मंत्रालय द्वारा पीएम-डिवाइन योजना के लिए आवंटन के बारे मेंपूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय को सूचित किया जाएगा । पीएम-डिवाइन  योजना के अंतर्गत शुरू की जाने वाली परियोजनाओं को केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों या अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित किया जा सकता है।इस योजना को केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों या पूर्वोत्‍तर परिषद/राज्य सरकारों द्वारा परियोजना-वार चिन्हित कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा।पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है।समिति को पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा सेवाएं प्रदान की जाएंगी। यह परियोजना प्रस्तावों के उपयुक्त एजेंसी द्वारा कार्यान्वयन के लिए उनकी जांच, मूल्यांकन और अनुशंसा करेगी।समिति पीएम-डिवाइन योजना के तहत आवंटित धन का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए स्वीकृत परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी भी करेगी।

अधिकार प्राप्त समिति के कार्य हैं:

i. पीएम-डिवाइन योजना के तहत प्रस्तावित परियोजनाओं/योजनाओं का व्यवहार्यता और ठोस सामाजिक-आर्थिक प्रभाव के संदर्भ में केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों और पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के राज्यों द्वारा आकलन करना।

ii.भारत सरकार और राज्य सरकारों के केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों संबंधित के प्रतिनिधियों के साथ परियोजनाओं की सूची पर चर्चा करना; और पहचान की गईपरियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए उपयुक्त सिफारिशें करना।

 iii. पहचान की गई परियोजनाओं तथा वास्‍तविक और वित्तीय उपलब्धियों के लिए कार्यान्वयन समय सीमा की सिफारिश करना।

iv. समय-समय पर फील्‍ड निरीक्षण के माध्यम से निगरानी और मूल्यांकन के प्रभावी साधनों की सिफारिश करना और उपयुक्त तीसरे पक्ष की निगरानी की भी सिफारिश करना।

v. पीएम-डिवाइन के तहत शुरू की गई परियोजनाओं के संचालन और रखरखाव (ओ एंड एम) के लिए एक उपयुक्त तंत्र का सुझाव देना।

vi. परियोजना कार्यान्वयन की बाधाओं को दूर करने के लिए नीतिगत परिवर्तनों का सुझाव देना।

परियोजनाओं की पहचान और निरुपण :

केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों और एनईआर राज्यों द्वारा पीएम-डिवाइन योजना के तहत वित्तपोषित की जाने वाली परियोजनाओं को प्रस्‍तुत किए जाने के लिए कुछ प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत हैं:

i. पीएम-डिवाइन योजना के तहत स्वीकृत की जाने वाली किसी एक योजना, हस्तक्षेप या परियोजना में अधिकतम और न्यूनतम राशि क्रमशः 500 करोड़ रुपये और 20 करोड़ रुपये होगी।

ii. प्रत्येक स्थान-विशिष्ट परियोजना को एक के रूप में गिना जाएगा; और परियोजना का आकारबढ़ाने के लिए कई परियोजनाओं को एक में जोड़ना स्वीकार्य नहीं होगा।

iiiपीएम-डिवाइन योजना के तहत वित्तपोषित की जाने वाली परियोजनाओं के लिए पूर्वोत्तर राज्य संकल्पना पत्रों/नोट्स के साथ प्रस्तावों की एक वार्षिक सूची प्रस्तुत करेंगे। केंद्रीय मंत्रालय/विभाग या एनईसी, शिलांग भी पीएम-डिवाइन योजना के तहत वित्त पोषण के लिए इसी तरह की परियोजनाओं का प्रस्ताव दे सकते हैं।

iv. नीति आयोग और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय ने यूएनडीपी के सहयोग से एनईआर जिला एसडीजी (सतत विकास लक्ष्‍य) सूचकांक (बेसलाइन रिपोर्ट 2021-22) तैयार किया है, जो अन्य बातों के साथ-साथ क्षेत्र में जिला स्तर पर एसडीजी खामिलयों को इंगित करता है। यह रिपोर्ट (और इसके अद्यतन अंश) पीएम-डिवाइन के तहत परियोजना के निर्धारण और निरुपण के लिए उत्‍तरोत्‍तर रूप से उपयोग की जाएगी। प्रस्तावित परियोजनाओं के संकल्पना पत्र/नोट्स में पहचान की गईएसडीजी खामियों के संदर्भ में परियोजना का औचित्य भी सदैव शामिल होगा।

v.पीएम-डिवाइन  के उद्देश्यों में से एक पीएम गतिशक्ति की भावना से बुनियादी ढांचे का वित्तपोषण  करना है। पीएम-डिवाइन के तहत इस तरह की निधियों का लाभ उठाने के लिए, पूर्वोत्‍तरक्षेत्र के राज्यों या केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों को पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्‍टर प्‍लान (एनएमपी) के बारे में आवश्यक डेटा लेयर का अद्यतनीकरण सुनिश्चित करना होगा, जिसमें भूमि राजस्व मानचित्र, राज्य लॉजिस्टिक्‍स नीति का निरुपण और प्रशासनिक संरचनाओं अर्थात सचिवों का अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएस), नेटवर्क योजना समूह और तकनीकी सहायता इकाईका निर्माण शामिल है।

(बॉक्स के रूप में उपयोग के लिए)

एनईआर तथ्य

(i) देश की जनसंख्या का 3.78% - (2011 की जनगणना के अनुसार 45 मिलियन)

(ii) जनसंख्या घनत्व 175 प्रति वर्ग कि.मी., अरुणाचल प्रदेश में 17 से असम में 398 तक की भिन्‍नता है

(iii) अनुसूचित जाति की आबादी 6.62% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 27.7%; मिजोरम (94.43%) नागालैंड (86.48%) और मेघालय (86.15%) में अनुसूचित जनजाति की आबादी 85% से अधिक है

(iv) देश के क्षेत्रफल का 7.98%

(v) औसत साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत 73%के मुकाबले 78.5%

(vi) औसत बेरोजगारी दर 9.1%

(vii) 5,483 कि.मी. अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं

(viii) सड़क की कुल लंबाई5,26,915किमी,राष्‍ट्रीय राजमार्ग13,129 किमी और राज्‍य राजमार्ग14,024 किमी

(ix) रेल मार्ग की लंबाई 2669.52 कि.मी

(x) देश के चाय उत्पादन का 52.68% की हिस्सेदारी

(xi) देश के रेशम उत्पादन में 22.46% की हिस्सेदारी

(xii) लगभग 500 के डब्‍ल्‍यूएच प्रति व्यक्ति औसत बिजली खपत; बिजली की औसत वार्षिक संस्थापित क्षमता लगभग 4700 मेगावाट।

(xiii) 591 करोड़ का संचयी एफडीआई प्रवाह

(xiv) 1,11,042रुपये प्रति व्यक्ति औसत एनएसडीपी।

संदर्भ: पत्र सूचना कार्यालय, पूर्वोत्‍तर परिषद, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, उत्तर पूर्वी प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं प्रसार केन्द्र (नेक्‍टर)

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और उनसे ideainks2020@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है