सुंदरवन क्षेत्र में मनरेगा कार्यक्रम से आजीविका में सुधार
डॉ. प्रोसेनजित मजूमदार
सुंदरवन विभिन्न आकृतियों और आकारों के द्वीपों का सुंदर मोजेक है, जो उष्णकटिबंघीय वनों से आच्छादित बेजोड़ पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं। इसके आस-पास जल सरणियों की अंतहीन श्रृंखला है जो खारे पानी की तेज धारा से निरंतर धुलता रहता है। इसका नाम इस क्षेत्र में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के मैंग्रोव वृक्ष, सुंदरी से बना है। सुंदरवन में खारे पानी के मगरमच्छ, किंग कोबरा, जंगली सुअर, चित्तीदार हिरण, बंदर, और राजसी रॉयल बंगाल टाइगर के साथ पक्षियों की विभिन्न किस्में पाई जाती हैं। इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक घोषित किया गया है। वर्तमान में इस क्षेत्र में संपत्ति का प्रबंधन और वन विभाग के नियमित कर्मचारियों द्वारा सतत निगरानी की जा रही है। प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य जैव विविधता, सौंदर्य मूल्यों और अखंडता बनाए रखने के लिए संपत्ति का प्रबंधन करना है। जंगल के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों में कई वन कार्यालय और शिविर स्थित हैं। परन्तु , हाल के दिनों में, अवैज्ञानिक मानवीय हस्तक्षेपों के कारण इस जंगल का पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है। वन संसाधन जैसे शहद, मोम आदि स्थानीय लोगों द्वारा एकत्र किया जा रहे हैं जिसकी उच्च गुणवत्ता और स्वाद के कारण बाजार में भारी मांग है। स्थायी आधार पर संपत्ति की पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने और सुविधा प्रदान करने के लिए सूक्ष्म संतुलन की आवश्यकता है। यह स्थल ज्वारीय जलमार्गों, मडफ्लैट्स और नमक-सहिष्णु मैंग्रोव वनों के छोटे द्वीपों के एक जटिल नेटवर्क द्वारा प्रतिच्छेदित है, और यह सतत पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। बाघ आसानी से इन द्वीपों को पार कर जाते हैं और इस क्षेत्र में मानव-बाघ संघर्ष आम हैं। परंतु, जंगल के चारों ओर नायलॉन की बाड़ बाघों को गाँवों पर आक्रमण करने से रोकती है। लेकिन हाल ही में वन विभाग को कर्मचारियों, बुनियादी ढांचे और धन की कमी के कारण गांवों में जंगली आवारा पशुओं को नियंत्रित करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
मैंग्रोव वनों के तेजी से हो रहे नुकसान को उलटने और इस अमूल्य पारिस्थितिकी तंत्र के सतत उपयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ वन रक्षक और बुनियादी ढांचे की कमी के अंतर को भरने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कार्यक्रम लागू किया जा रहा है। इसका लक्ष्य अकुशल मैनुअल श्रमिकों की आजीविका और सुरक्षा बढ़ाने के लिए प्रत्येक ग्रामीण परिवार को वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत दिहाड़ी रोजगार प्रदान करना है। इस योजना के तहत, मनरेगा से संबंधित अधिकांश कार्य संपत्ति के निर्माण से संबंधित होते हैं, जो रोजगार के अवसरों को बेहतर बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और बढ़ाने में मदद करते हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मनरेगा योजना का अधिकांश भाग वन क्षेत्र में समन्वित किया गया है जो स्थानीय लोगों और वन विभाग दोनों के लिए लाभदायक है।
वनों में कार्य स्थितियां बेहद कठिन होती हैं। मनरेगा योजना को बंगाल की खाड़ी के करीब बोनी कैंप में लागू करके वन अधिकारियों की कई समस्याओं का समाधान किया गया है। श्री मानस कुमार घोष, अतिरिक्त मंडल वन अधिकारी, दक्षिण 24 परगना जिला, पश्चिम बंगाल और अन्य वन अधिकारियों ने सुंदरबन क्षेत्र के बोनी कैंप का निर्माण किया और कैंप में तैनात वन कर्मचारियों की अनेक समस्याओं का समाधान किया और क्षेत्र के सौंदर्यीकरण में सहायता की।
प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री बुधदेब गुहा ने शिविर का नाम 'बोनी कैंप' रखा। शिविर रोजगार के अवसर प्रदान करके सुंदरबन के वन क्षेत्र में और उसके आसपास रहने वाले बेहद कमजोर लोगों को सामाजिक सुरक्षा और आजीविका सुरक्षा प्रदान करता है। स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं और इसलिए उनकी रक्षा करने में रुचि रखते हैं। कैंप स्थल के सौंदर्यीकरण के लिए मनरेगा योजना के तहत स्थानीय लोगों को श्रमिक के रूप में शामिल करने के अलावा, कई अन्य परिणाम भी सामने आए हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:
वन कार्मिकों के बिना संपत्ति का निर्माण: अधिकांश समय वन रक्षक गश्त में व्यस्त रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके लिए शिविर स्थल विकसित करना बहुत मुश्किल होता है। स्थानीय समुदाय और वन विभाग के संयुक्त प्रयासों से मनरेगा के अभिसरण के तहत सुंदरबन के बोनी कैंपसाइट में संपत्ति बनाई गई है, जिसने क्षेत्र के आसपास के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन में योगदान दिया है। शिविर में बेहतर रख-रखाव के साथ एक सुंदर पार्क, छोटे से तालाब पर कृत्रिम पुल और वन उद्यान हैं जो मनरेगा योजना के समन्वय के माध्यम से स्थानीय लोगों को शामिल करके शिविर के अंदर विकसित किए गए थे। इन संपत्तियों ने कैंपसाइट के सौंदर्यीकरण में योगदान दिया। मनरेगा योजनान्तर्गत वन क्षेत्र के अन्दर एवं बाहर मीठे पानी के तालाबों का निर्माण किया गया तथा स्थानीय लोगों द्वारा वृक्षारोपण किया गया। मीठे पानी का उपयोग जंगली जानवरों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है। अवैध शिकार को रोकने और जंगली जानवरों को गांवों में प्रवेश करने से रोकने के लिए स्थानीय लोग बाड़ लगाने के काम में शामिल होते हैं।
कृषि उत्पाद: शिविर स्थल के अंदर तैनात वन रक्षक और वन कर्मचारियों को सब्जियां प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनकी साइट के पास कोई बाजार नहीं है। शिविर स्थल के अंदर की भूमि का उपयोग वन रक्षकों की मदद से स्थानीय लोगों द्वारा सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है और बाद में इन सब्जियों का उपयोग वन रक्षकों द्वारा रोजमर्रा के जीवन में किया जाता है। मनरेगा योजना के अंतर्गत काम करने वाले स्थानीय लोग भी उस समय इनका उपयोग करते हैं, जब वे वनों में संपत्तियों का निर्माण करने और शिविर स्थल का विकास करने के लिए अस्थायी रूप से वनों में रहते हैं। वन उद्यान इन लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहे हैं।
सामाजिक अलगाव: जंगल के कैंपसाइट के अंदर केवल 6-8 लोग काम कर रहे हैं। लंबे समय तक अंदर रहने, परिवार के साथ संवाद न करने और बहुत खराब मोबाइल नेटवर्क के कारण वे सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं, जिससे विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है। वे शारीरिक रूप से अपने परिवार के सदस्यों से अलग हो जाते हैं और सुदूर वन क्षेत्र में रहते हैं जो अकेलेपन या आत्मसम्मान के अभाव के कारण होता है। समय के साथ, कोई व्यक्ति सामाजिक चिंता, अवसाद या अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से ग्रस्त हो सकता है। मनरेगा योजना के तहत अस्थायी रूप से रह रहे लोग शिविर के अंदर वन अधिकारियों को सामाजिक कौशल बनाने और एक दूसरे से जुड़ने में मदद कर सकते हैं जिससे वन अधिकारियों को अकेलेपन के प्रभाव से उबरने में मदद मिलती है।
वन प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी: वन कर्मचारियों की लगातार कमी के कारण वन विभाग के लिए वनों की रक्षा करना कठिन हो जाता है। वनों की प्रभावी सुरक्षा के लिए स्थानीय सहायता की अत्यधिक आवश्यकता है। कोई भी समुदाय हमेशा जंगली जानवरों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कैंपसाइट में उनके प्रवास के दौरान, वनीकरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। समुदाय की मदद से वन संसाधनों का प्रभावी अनुरक्षण और संरक्षण होता है और कई वन प्रजातियों के संरक्षण के लिए कार्रवाई होती है। वन रक्षक/वन विभाग और स्थानीय लोगों के बीच संबंध विकसित करना आपसी विश्वास के आधार पर संभव हो पाता है और यह तब विकसित होता है जब लोग मनरेगा के माध्यम से शिविर क्षेत्र के भीतर श्रम गतिविधियों में भाग लेते हैं। मनरेगा योजना के माध्यम से शिकारियों से वन सुरक्षा की समस्या का समाधान किया गया है। वे जंगल को आग से बचाने के लिए निगरानी भी रखते हैं। कैंपसाइट में रहने के दौरान, स्थानीय लोगों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए वन रक्षकों के काम का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे हिंसा की घटनाओं की संख्या में कमी लाने में मदद मिलती है।
स्थानीय लोगों और वन रक्षकों के बीच संघर्ष कम करना: अनेक स्थानीय लोग यह सोचते हैं कि जंगली जानवर और जंगल वन विभाग की संपत्ति हैं जो स्थानीय लोगों और वन रक्षकों के बीच संघर्ष को जन्म देते हैं जो उन्हें वन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूर करते हैं। आज किसी भी वन रक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती स्थानीय लोगों से खुद को बचाने की है। सुंदरबन में वन उत्पाद का दोहन स्थानीय लोगों सहित सभी के लिए प्रतिबंधित है। लेकिन, स्थानीय लोग अपने भोजन, आवास और आजीविका के लिए वन उत्पादों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना इन क्षेत्रों से स्थानीय लोगों को रोकना व्यावहारिक रूप से कठिन है। जंगल में मनरेगा के माध्यम से स्थानीय लोगों की भागीदारी से आर्थिक संतुलन में मदद मिलती है। अधिक महिलाओं को मनरेगा योजना के तहत कैंपसाइट विकसित करने में नियोजित किया गया, जिससे दोनों पक्षों को न केवल स्थानीय समुदाय से आर्थिक लाभ प्राप्त करने में मदद मिलती है बल्कि ग्रामीणों और वन रक्षकों के बीच सामाजिक सौहार्द भी बढ़ता है।
गश्त के दौरान वन रक्षकों को भोजन की आपूर्ति करते ग्रामीण: कभी-कभी गश्त के दौरान या तो उनके पास खाना बनाने का समय नहीं होता या पकाने के लिए कच्चा माल नहीं होता। कैंपसाइट के अंदर विकासात्मक गतिविधियों के दौरान, वन रक्षक स्थानीय गाँव के लोगों के साथ एक सामंजस्यपूर्ण संबंध विकसित करते हैं जो मनरेगा योजना के तहत श्रमिक के रूप में लगे हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुछ स्थानीय लोग जब वे अपने गाँव में होते हैं, तो गश्त के दौरान वनरक्षकों की मदद करते हैं और कभी-कभी उन्हें भोजन प्रदान करते हैं।
यह अच्छी बात है कि स्थानीय लोगों के लिए आमदनी के वैकल्पिक अवसर प्रदान किए गए हैं जिनसे उन्हें बेहतर और अधिक प्रगतिशील जीवन शैली अपनाने में मदद मिलती है। इस प्रकार, बोनी शिविर में मनरेगा योजना को सफलतापूर्वक लागू करने के बाद, इसे सुंदरबन के अन्य शिविरों जैसे 'कलश' और 'चुलकटी' में लागू करने के लिए समान अवधारणा का इस्तेमाल की किया जा रहा है, जो सुंदरबन, पश्चिम बंगाल के अंतिम द्वीपों में स्थित हैं।
(लेखक दिव्यांग्जनो के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं और वर्तमान में अली यावर जुंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग डिसएबिलिटीज, दिव्यांग्जन सशक्तिकरण विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, कोलकाता, में समाज कल्याण अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। उनसे pmajumdar2590@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)