पीएम-कुसुम: भारत के ऊर्जा परिदृश्य को बदलने का प्रयास
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' के 94वें संस्करण में मोढेरा का उल्लेख किया जो देश का पहला सौर गांव बन गया है। मोढेरा सोलर विलेज के अधिकांश घरों में सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन शुरू हो गया है। उन्होंने इस बारे में भी विस्तार से बात की कि कैसे जलवायु परिवर्तन ग्रह को प्रभावित कर रहा है और कैसे सौर ऊर्जा घटते संसाधनों की दुनिया में एक उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक अपनी संस्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 40% हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से जुटाने की प्रतिबद्धता पूरी करने के लिए विभिन्न नीतिगत उपाय किए हैं। भारत ने पेरिस जलवायु समझौते 2015 में यह प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। टिकाऊ स्रोतों से बिजली पैदा करने की आवश्यकता ने देश को अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करने के लिए सौर ऊर्जा पर तेजी से भरोसा करने के लिए प्रेरित किया है। इसलिए, किसानों को ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करने और उनकी आय बढ़ाने, कृषि क्षेत्र को डीजल मुक्त करने और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए, भारत सरकार ने फरवरी 2019 में पीएम-कुसुम (प्रधान मंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) को मंजूरी दी।
पीएम कुसुम योजना में तीन घटक शामिल हैं:
घटक क: 2 मेगावाट तक क्षमता के छोटे सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के माध्यम से 10,000 मेगावाट सौर क्षमता का पैदा करना।
घटक ख: सौर ऊर्जा संचालित 20 लाख कृषि पंपों की स्थापना।
घटक ग: मौजूदा ग्रिड से जुड़े 15 लाख कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से संचालित करना।
पीएम-कुसुम योजना 35 लाख से अधिक किसानों को उनके कृषि पंपों के लिए सौर ऊर्जा से स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है। इस योजना में प्रत्यक्ष रोजगार सृजन क्षमता भी है।
सौर ऊर्जा घटक क :
सौर ऊर्जा घटक ए: विकेंद्रीकृत ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र
इस घटक में पृथक किसानों / किसानों के समूह / सहकारी समितियों / पंचायतों / किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) / जल उपयोगकर्ता संघों (डब्ल्यूयूए) द्वारा बंजर/परती भूमि पर 500 किलोवाट से 2 मेगावाट क्षमता तक के अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली संयंत्रों (आरईपीपी) की स्थापना का प्रावधान है। इन बिजली संयंत्रों को खेती योग्य भूमि पर खंभो पर भी स्थापित किया जा सकता है जहां फसलें सौर पैनलों के नीचे भी उगाई जा सकती हैं। सब-ट्रांसमिशन लाइनों की उच्च लागत से बचने और ट्रांसमिशन घाटे को कम करने के लिए सब-स्टेशनों के पांच किमी के दायरे में अक्षय ऊर्जा बिजली परियोजना स्थापित की जाएगी। यह योजना ग्रामीण जमींदारों के लिए 25 वर्षों के लिए आय का एक स्थिर और निरंतर स्रोत खोलती है।
केंद्र सरकार इस घटक के तहत बिजली वितरण कंपनियों को संयंत्र के वाणिज्यिक संचालन की तारीख से पांच साल की अवधि के लिए उत्पादित बिजली खरीदने के वास्ते 40 पैसे/केडब्ल्यूएच या 6.60 लाख रुपये/मेगावाट/वर्ष, जो भी कम हो, की सहायता प्रदान करती है।
कृषि क्षेत्र को डीजल मुक्त करना
घटक- खः एकल सौर कृषि पंप लगाना
इस घटक के अंतर्गत प्रत्येक किसान अपने मौजूदा डीजल पंपों के स्थान पर सौर पंप लगा सकते हैं। इससे न केवल सिंचाई की लागत कम होगी बल्कि प्रदूषण में भी कमी आयेगी। किसान को 7.5 एचपी (विस्तारित योजना काल के दौरान 15 एचपी) क्षमता तक के एकल सौर कृषि पंप लगाने के लिये सहायता दी जायेगी। इस संघटक के तहत यूनिवर्सल सोलर पंप कंट्रोलर (यूएसपीसी) लगाने की अनुमति है। यूएसपीसी से किसान सौर ऊर्जा का अन्य कार्यों जैसे चारा कटाई मशीन, फ्लोर मिल, कोल्ड स्टोरेज, ड्रायर, बैटरी चार्जर के लिये भी उपयोग कर सकते हैं। इस संघटक का उददेश्य बिना ग्रिड वाले क्षेत्रों में, जहां सिंचाई के लिये विद्युत ऊर्जा का कोई स्रोत नहीं है, 20 लाख किसानों को लाभा पंहुचाना है। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और उनके जीवन यापन की परिस्थितियों में भी सुधार होगा।
योजना के तहत एकल सौर पंप की न्यूनतम निर्धारित लागत के 30 प्रतिशत तक की केंद्रीय वित्तीय सहायता दी जायेगी। राज्य सरकार 30 प्रतिशत की सबसिडी देगी और शेष 40 प्रतिशत राशि किसान द्वारा उपलब्ध करायी जायेगी। हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप में सौर पंप के निर्धारित लागत के 50 प्रतिशत तक की केंद्रीय वित्तीय सहायता दी जायेगी।
कृषि फीडरों का सौर ऊर्जाकरण
कृषि फीडरों के सौर ऊर्जाकरण को पीएम- कुसुम योजना के संघटक- ग के अंतर्गत शामिल किया गया है। इसके तहत ग्रिड से जुड़े कृषि पंप वाले किसानो को अपने पंप के सौर ऊर्जाकरण के लिये सहायता दी जायेगी। किसान सिंचाई संबंधी जरूरतों के लिये सृजित सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकेंगे। भारत सरकार कृषि फीडरों को सौर ऊर्जा सक्षम बनाने के लिये 30 प्रतिशत सबसिडी देगी। इससे पूंजी लागत और ऊर्जा लागत में बचत होगी। किसानों को अपने राज्य द्वारा तय प्रभार पर दिन के समय सिंचाई के लिये निःशुल्क और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति मिलेगी।
डिस्कॉम्स (बिजली वितरण कंपनियां) किसानों को निर्धारित न्यूनतम उपभोग से कम बिजली उपभोग पर प्रोत्साहन देंगी। इस तरह की गयी बिजली की बचत किसानों द्वारा उपलब्ध करायी गयी अतिरिक्त बिजली मानी जायेगी और इसके लिये डिस्कॉम्स पूर्व निर्धारित दर पर किसानों को भुगतान करेंगी।
अनुमानित परिणाम
पीएम – कुसुम योजना से निम्नलिखित सुधार/परिष्कार होंगेः
दिन के समय सिंचाई के लिये विश्वसनीय बिजली आपूर्तिः किसानों को सिंचाई के लिये सामान्य तौर पर रात में बिजली मिलती है। इससे न केवल उन्हें भारी असुविधा होती है बल्कि पानी की बरबादी भी होती है क्योंकि एक बार स्विच ऑन होने के बाद पंप चलता छूट जाता है। पीएम कुसुम के अंतर्गत सिंचाई के लिये सौर पैनल उपलब्ध कराने से किसानो को दिन के समय ही विश्वसनीय रूप से बिजली मिलेगी जिससे सिंचाई का काम उनके लिये आसान हो जायेगा तथा पानी और बिजली की बरबादी भी रुकेगी।
कृषि क्षेत्र को डीजल मुक्त बनानाः किसान डीजल पंपों के स्थान पर बिजली पंप लगाये जाने की मांग करते रहे हैं क्योंकि डीजल पंपों का उपयोग मंहगा पड़ता है। डीजल पंप के स्थान पर सौर पंप और पैनल लगाने से किसानों को सिंचाई के लिये सस्ती और अधिक विश्वसनीय बिजली मिलेगी और डीजल पर होने वाला खर्च बचेगा।
किसानों की आय बढ़ानाः पीएम- कुसुम योजना के अंतर्गत अधिक लागत की डीजल पंप व्यवस्था को कम खर्चीले सौर उर्जा पंप से बदलने और अतिरिक्त सौर ऊर्जा डिस्कॉम्स को पूर्व निर्धारित दर पर बेचने की व्यवस्था से किसानों की आय भी बेहतर होगी।
जलवायु परिवर्तन की रोकथामः भारत में स्थापित कृषि पंपों की कुल डीजल खपत 5.52 अरब लीटर प्रतिवर्ष है, 1 करो़ड़ 54 लाख टन के बराबर कार्बन डायक्साइड उत्सर्जन के साथ। पूरी तरह लागू हो जाने के बाद पीएम-कुसुम से प्रतिवर्ष 3 करोड़ 20 लाख टन कार्बन डायक्साईड के बराबर कार्बन उत्सर्जन में कमी आयेगी।
घरेलू सौर उपकरण विनिर्माण को बढावाः भारत का लक्ष्य 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का है। हांलाकि घरेलू स्तर पर सौर ऊर्जा उत्पादन की हमारी क्षमता सीमित है और हम इस क्षेत्र में संबंधित उपकरणों के आयात पर निर्भर हैं। पीएम-कुसुम के अंतर्गत घरेलू स्तर पर विनिर्मित सौर सेल और मॉड्यूल लगाना अनिवार्य है। इससे घरेलू स्तर पर विनिर्मित सौर सेल और मॉड्यूल से 20.8 गीगावाट की मांग सृजित होगी और सौर उपकरणों के विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
आयात बिल में कमीः पीएम –कुसुम से वार्षिक डीजल उपभोग में कमी आयेगी जिससे पैट्रोलियम उत्पादों के आयात का बिल कम होगा। इसके अलावा घरेलू सौर उपकरण विनिर्माण से भी आयात बिल में कमी आयेगी।
स्रोतः पीएम-कुसुम, एमएनआरई, पीआईबी
अनीशा बैनर्जी और अनुजा भारद्वाजन द्वारा संकलित