भारतीय वायु सेना
गौरवशाली 90 वर्ष
भारतीय वायुसेना की स्थापना 8 अक्टूबर को हुई थी और इसी अवसर की याद में यह दिन भारतीय वायुसेना दिवस के रूप में मनाया जाता है। आधिकारिक तौर पर1932 में स्थापित भारतीय वायुसेना इस वर्ष अपनी गौरवशाली सेवाओं के 90 वर्ष पूर्ण कर रही है। आज यह अत्यधिक तकनीकी और विशिष्ट लड़ाकू बल से लैस दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना है, जो शत्रु के हमलों से हमारे वायु क्षेत्र की हिफाजत करतीहै।
आरंभ
आईएएफ भारतीय सशस्त्र बलों की वायु शक्ति है; यह भारतीय वायु क्षेत्र की रक्षा और सुरक्षा करती है और युद्ध के दौरान युद्धक विमानों से कार्रवाइयों का संचालन करती है। यह भारतीय सशस्त्र बलों की सबसे नवोदित शाखा है। ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा इसकी स्थापना 1932 में रॉयल (ब्रिटिश) एयर फोर्स के सहायक बल के रूप में की गई थी।
1 अप्रैल, 1933 को वायु सेना की पहली स्क्वाड्रन- नंबर 1 स्क्वाड्रन को चार वेस्टलैंड वापिती IIए थलसेना बाइप्लेन और पांच भारतीय पायलटों के साथ कमीशन किया गया। सम्राट जॉर्ज VI ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वायु सेना द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के लिए 1945 में उसे‘रॉयल’उपसर्ग से सम्मानित किया। 1950 में भारत के गणतंत्र बनने तक यह रॉयल इंडियन एयर फोर्स ही कहलाती रही और इसके बाद, रॉयल उपसर्ग हटा कर इसका नाम बदलकर भारतीय वायु सेना कर दिया गया।
विस्तार और आधुनिकीकरण
1953 में, पालम (दिल्ली) में स्क्वाड्रन को नए सिरे से लैस करने के लिए 54दो सीट वाले रात्रि लड़ाकू विमान प्राप्त किए गएऔर इस प्रकार भारतीय वायुसेना को पहली बार पर रात्रि-अंतर्रोधनयानी नाइट-इंटरसेप्ट क्षमता प्रदान की गई। वायु सेना के संस्थापक सदस्यों में से एक-एयर मार्शल सुब्रतो मुखर्जी ने 1 अप्रैल, 1954 कोप्रथम भारतीय वायु सेना प्रमुख के रूप में पदभार ग्रहण किया।
सरकार ने लड़ाकू विमान खरीद के गैर-पारंपरिक और वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी और तदनुसार वर्ष1953-57 की अवधि के दौरान बड़े विस्तार की योजनाएं बनाई गईं। वर्ष 1955-71 वह दौर था, जब भारतीय वायु सेना ने जेट विमान के अधिग्रहण के साथ एक नए युग में प्रवेश किया। इस अवधि में दो भारत-पाकिस्तान युद्ध भी हुए, दोनों ही युद्धों में भारतीय वायु सेना ने वायु क्षेत्र में पाकिस्तानी प्रयासों को निष्फल कर दिया। भारतीय वायु सेनाने समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के साथ-साथ चीन भारत संघर्ष में भी योगदान दिया।
भारतीय वायुसेना में विस्तार और आधुनिकीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम खासतौर पर वर्ष 1957 में हुआ जब सही अर्थों में लैस करने संबंधी प्रमुख कार्यक्रम की शुरुआत हुई और इससे वायुसेना पूरी तरह से विश्व स्तर पर पहुंची। 110 दसॉमिस्टेयर IVA युद्धक विमानों की डिलीवरी शुरू हुई, जिसकी बदौलत इसकी सेवाएं पहली बार पराध्वनिक (ट्रांसोनिक) उड़ान के दायरे में शामिल हो गईं। इसके अलावा हॉकर हंटर्स और इंग्लिश इलेक्ट्रिक कैनबरा दोनों ने आईएएफ इन्वेंट्री में अपनी जगह बनानी शुरु कर दी। साठ के दशक के शुरूआती वर्षों में भारतीय वायु सेना में नई किस्म के कई अन्य वायुयान शामिल हो गए जिनमें सबसे रोचक संभवतः हल्के लड़ाकू वायुयान फॉलैंड नैट का शामिल किया जाना था। अपनी हैरतअंगेज तेज गति के साथ-साथ नैट की लागत असाधारण रूप से बहुत कम थी।
भारतीय वायुसेना की एयरलिफ्ट क्षमता की असली परीक्षा अक्टूबर 1962 में भारत-चीन सीमा पर युद्ध छिड़ने पर हुई। इस संघर्ष के दौरान भारतीय वायुसेना द्वारा कई उल्लेखनीय कार्य किए गए, जिनमें काराकोरम हिमालय पर्वत श्रेणी में समुद्र तल से 17,000 फुट (5180 मीटर) ऊपर स्थित हवाई पट्टी से सी-119जी वायुयानों का परिचालन और एएमएक्स-13 हल्के टैंकों वाले दो सैन्यदलों को एएन-12बी वायुयानों द्वारा हवाई मार्ग से ले जाकर चुशुल, लद्दाख में समुद्र तल से 15,000 फुट (4570मी.) ऊपर स्थित छोटी सी हवाई पट्टी पर उतारने का कार्य शामिल था।
आगे का सफर
अगस्त 1962 में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया, जिसने आने वाले दशकों में भारतीय वायु सेना के स्वरूप और ताकत में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। भारतीय वायु सेना के लिए पहली बार लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की आपूर्ति के लिए भारत सरकार ने सोवियत संघ के साथ प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। सोवियत संघ से 12 मिग -21 लड़ाकू विमानों की खरीद की गई, जो भारतीय वायुसेना के गैर-पश्चिमी मूल के पहले लड़ाकू विमान थे। इसके अलावा भारत में लड़ाकू विमानों के लिए निर्माण सुविधाओं की स्थापना में सोवियत संघ की तकनीकी सहायता ली गई और उसके बाद सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों एसए -2 (द्विन)की खरीद की गई। भारतीय वायुसेना के नए सिरे से उपस्करों से सज्जित करने और उसका विस्तार करने के साथ-साथ अब परिचालन संबंधी बुनियादी ढांचे में बड़े बदलाव लाने पर भी कार्य किया जा रहा था। भारत-चीन संघर्ष से पहले, भारतीय वायुसेना की तैयारी केवल पश्चिम से होने वाले हमले से रक्षा प्रदान करने तक सीमित थी, लेकिन समस्त उत्तरी और पूर्वी सीमा की असुरक्षा बढ़ने के कारण परिचालन संबंधी बुनियादी ढांचे पर नए सिरे से गहन विचार किए जाने की आवश्यकता उत्पन्न हुई ।
अब तक यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि भारत जैसे विशाल देश के लिए पूरी तरह से फंक्शनल कमानें अव्यवहार्य थीं और संभावित खतरों से निपटने के लिए ऑपरेशनल कमानों को भविष्य में क्षेत्रीय आधार पर तैयार करना पड़ेगा। इस प्रकार परिचालन नियंत्रण के उद्देश्य से अंततः समस्त भारतीय भूभाग को तीन भागों- पश्चिमी, मध्य और पूर्वी वायु कमान में विभाजित किया गया। हालांकि प्रशिक्षण और अनुरक्षण का स्तर समान रखने के लिए प्रशिक्षण और अनुरक्षण कमानों को फंक्शनल बनाए रखा गया।
70 के दशक के मध्य तक, भारतीय वायु सेना को स्पष्ट रूप से तत्काल पुन: उपस्करों से लैसे करने संबंधी निर्णयों और विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने की जरूरत थी, जो उनके परिवर्णी शब्दों - डीप पेनेट्रेशन स्ट्राइक एयरक्राफ्ट (डीपीएसए), टैक्टिकल एयर स्ट्राइक एयरक्रफ्ट (टीएएसए), एमईटीएसी और एचईटीएसी से ज्यादा जाना जाता है,पर विचार किया गया और अंतत: उन्हें सुलभ कराया गया।
अगले दो दशकों में भारतीय वायु सेना ने अपने विमानों और उपस्करों को बड़े पैमाने पर अद्यतन किया। बड़े पैमाने पर चलाए गए आधुनिकीकरण कार्यक्रम ने पुरानी पीढ़ी के और अप्रचलित उपस्करों को नए प्रकार के विमानों और हथियार प्रणालियों से बदल दिया। इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, भारतीय वायु सेना बीस से अधिक नए प्रकार के विमानों को व्यवहार में लाई। डकोटा और पैकेट्स विमानों की जगह लेने के लिए जगुआर और मिग के अनेक रूपांतरणों को प्रस्तुत किया गया।मिग एक नवोन्मेषी विमान है, जिसे अस्सी के दशक में भारतीय बेड़े में पेश किया गया। इन वर्षों में विमानों के कम से कम बीस नए प्रकारों और उप-प्रकारों ने भारतीय वायुसेना में प्रवेश किया, जिसने भारतीय वायुसेना को दुनिया के सबसे बेहतरीन हथियारों से लैस कर दिया।इसी अवधि में भारतीय वायु सेना के कर्मियों ने कई विश्व रिकॉर्ड भी बनाए। स्क्वाड्रन लीडर मक्कड़ और फ्लाइट लेफ्टिनेंट आरटीएस चिन्ना ने लद्दाख में 5,050 मीटर की ऊंचाई से अपने एमआई-17 हेलीकॉप्टर से बमबारी करके विश्व रिकॉर्ड बनाया। स्क्वाड्रन लीडर संजय थापर दक्षिणी ध्रुव पर पैरा जंप करने वाले पहले भारतीय बने। नए परिदृश्यों की तलाश करते हुए स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा भारत-सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत बाह्य अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने।
भारतीय वायु सेना का वर्तमान स्वरूप
शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए महिलाओं को वायु सेना में शामिल किए जाने के साथ ही बीसवीं सदी का अंतिम दशक भारतीय वायु सेना की संरचना में एक अभूतपूर्व परिवर्तन का साक्षी बना। इसी दौर में वायु सेना ने अब तक के कुछ बेहद खतरनाक अभियानों को भी अंजाम दिया। 1999 में, भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन सफेद सागर चलाया, जो दुनिया में किसी भी वायु सेना द्वारा किया गया सबसे विलक्षण हवाई अभियान था।
2016 में फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी, फ्लाइंग ऑफिसर भावना कंठ और फ्लाइंग ऑफिसर मोहना सिंह को प्रेसिडेंट कमिशन प्रदान किए जाने के साथ ही भारत ने दुनिया के कुछ ऐसे चुनिंदा देशों के समूह में शामिल होकर इतिहास रच दिया, जिनकी वायु सेना में महिला फाइटर पायलट हैं। 2020 में, राफेल लड़ाकू विमान को औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया।
भारतीय वायुसेना आज एक आधुनिक, प्रौद्योगिकी-गहन बल है। यह बहु-भूमिकाओं में सक्षम बल का रूप ले चुकी है। बीते वर्षों में, यह ट्रांसओशनिक पहुंच के साथ एक सामरिक बल बन चुकी है। भारतीय वायुसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है। प्रभावी कमान और नियंत्रण के लिए, भारतीय वायुसेना की सात कमान हैं, जिनके तहत देश भर के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न स्टेशन और इकाइयाँ हैं।
भारतीय वायु सेना का ध्येय वाक्य
(गर्व के साथ आकाश को छूना)
भारतीय वायुसेना का ध्येय वाक्य महाभारत के युद्ध के दौरान कुरूक्षेत्र की रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश- गीता के11वें अध्याय से लिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को अपना विराट रूप दिखा रहे हैं और भगवान का विराट रूप गर्व के साथ आकाश को छू रहा है, जिससे अर्जुन के मन में भय उत्पन्न हो रहा है और वह आत्म संयम खो रहे हैं। इसी तरह, भारतीय वायुसेना राष्ट्र की रक्षा में वांतरिक्ष शक्ति का प्रयोग करते हुए शत्रुओं का दमन करने का लक्ष्य करती है
नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो।।
( 'हे भगवान, आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त एवं फैलाए हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्तःकरण वाला मैं धीरज औरशांति नहीं पाता हूं।)
भारतीय वायुसेना का प्राथमिक उद्देश्य सेना और नौसेना के साथ ताल-मेल कायम करते हुए राष्ट्र और उसके वायु क्षेत्र की हवाई खतरों से रक्षा करना है। उसका दूसरा उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं और आंतरिक अशांति के दौरान नागरिक शक्ति की सहायता करना है। भारतीय वायुसेना युद्ध के मैदान में भारतीय थल सेना के जवानों को हवाई सहायता प्रदान करती है और रणनीतिक और सामरिक एयरलिफ्ट क्षमता भी प्रदान करती है। भारतीय वायुसेना,भारतीय थल सेना के लिए रणनीतिक एयर लिफ्ट या सेकेंडरी एयरलिफ्ट भी प्रदान करती है। भारतीय वायुसेना,भारतीय सशस्त्र बलों की अन्य दो शाखाओं, अंतरिक्ष विभाग और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ मिलकर एकीकृत अंतरिक्ष सेल का संचालन करती है। उसकी अन्य जिम्मेदारियों में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान नागरिकों का बचाव, अस्थिरता या अन्य समस्याओं की स्थिति में विदेशों में मौजूद भारतीय नागरिकों को निकालना शामिल है।
संकलन: अनुजा भारद्वाजन और अनीशा बेनर्जी
स्रोत: भारतीय वायु सेना/पीआईबी/एनआईओएस