प्रधानमंत्री के मन की बात
(28 अगस्त 2022)
· अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता दिवस के इस विशेष अवसर पर हमने देश की सामूहिक शक्ति के दर्शन किए हैं। एक चेतना की अनुभूति हुई है। इतना बड़ा देश, इतनी विविधताएं, लेकिन जब बात तिरंगा फहराने की आई, तो हर कोई, एक ही भावना में बहता दिखाई दिया। तिरंगे के गौरव के प्रथम प्रहरी बनकर, लोग, खुद आगे आए। हमने स्वच्छता अभियान और वैक्सीनेशन अभियान में भी देश की spirit को देखा था। हमारे सैनिकों ने ऊँची-ऊँची पहाड़ की चोटियों पर, देश की सीमाओं पर, और बीच समंदर में तिरंगा फहराया।
· साथियो, अमृत महोत्सव के ये रंग, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि, दुनिया के दूसरे देशों में भी देखने को मिले। बोत्स्वाना में वहाँ के रहने वाले स्थानीय singers ने भारत की आज़ादी के 75 साल मनाने के लिए देशभक्ति के 75 गीत गाए। इसमें और भी खास बात ये है, कि ये 75 गीत हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, बांग्ला, असमिया, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ा और संस्कृत जैसी भाषाओँ में गाये गए। इसी तरह, नामीबिया में भारत-नामीबिया के सांस्कृतिक-पारंपरिक संबंधों पर विशेष स्टैम्प जारी किया है।
· अभी कुछ दिन पहले, मुझे, भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। वहाँ उन्होंने ‘स्वराज’ दूरदर्शन के serial का screening रखा था। मुझे, उसके premiere पर जाने का मौका मिला। ये आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले अनसुने नायक-नायिकाओं के प्रयासों से देश की युवा-पीढ़ी को परिचित कराने की एक बेहतरीन पहल है। दूरदर्शन पर, हर रविवार रात 9 बजे, इसका प्रसारण होता है। और मुझे बताया गया कि 75 सप्ताह तक चलने वाला है। मेरा आग्रह है कि आप समय निकालकर इसे खुद भी देखेँ और अपने घर के बच्चों को भी जरुर दिखाएं।
· आजादी का अमृत महोत्सव अगले साल यानी अगस्त 2023 तक चलेगा। देश के लिए, स्वतंत्रता सेनानियों के लिए, जो लेखन-आयोजन आदि हम कर रहे थे, हमें उन्हें और आगे बढ़ाना है। ऋग्वेद में कहा गया है:-ओमान-मापो मानुषी: अमृक्तम् धात तोकाय तनयाय शं यो:। यूयं हिष्ठा भिषजो मातृतमा विश्वस्य स्थातु: जगतो जनित्री: अर्थात् - हे जल, आप मानवता के परम मित्र हैं। आप, जीवनदायिनी हैं, आप से ही अन्न उत्पन्न होता है, और आप से ही हमारी संतानों का हित होता है। आप, हमें सुरक्षा प्रदान करने वाले हैं और सभी बुराइयों से दूर रखते हैं। आप, सबसे उत्तम औषधि हैं, और आप ही, इस ब्रह्मांड के पालनहार हैं। हमारी संस्कृति में हजारों वर्ष पहले जल और जल संरक्षण का महत्व समझाया गया है। जब ये ज्ञान, हम, आज के सन्दर्भ में देखते हैं, तो रोमांचित हो उठते हैं, लेकिन, जब इसी ज्ञान को देश, अपने सामर्थ्य के रूप में स्वीकारता है तो उनकी ताकत अनेक गुना बढ़ जाती है। आपको याद होगा, ‘मन की बात’ में ही चार महीने पहले मैंने अमृत सरोवर की बात की थी। उसके बाद अलग-अलग जिलों में स्थानीय प्रशासन जुटा, स्वयं सेवी संस्थाएं जुटीं और स्थानीय लोग जुटे - देखते ही देखते, अमृत सरोवर का निर्माण एक जन-आंदोलन बन गया है। जब देश के लिए कुछ करने की भावना हो, अपने कर्तव्यों का एहसास हो, आने वाली पीढ़ीयों की चिंता हो, तो सामर्थ्य भी जुड़ता है, और संकल्प, नेक बन जाता है।
· मुझे तेलंगाना के वारंगल के एक शानदार प्रयास की जानकारी मिली है। यहाँ एक नई ग्राम पंचायत का गठन हुआ है जिसका नाम है ‘मंग्त्या-वाल्या थांडा’। यह गाँव Forest Area के करीब है। यहाँ के गाँव के पास ही एक ऐसा स्थान था जहाँ मानसून के दौरान काफी पानी इकट्ठा हो जाता था। गाँव वालों की पहल पर अब इस स्थान को अमृत सरोवर अभियान के तहत विकसित किया जा रहा है। इस बार मानसून के दौरान हुई बारिश में ये सरोवर पानी से लबालब भर गया है। मध्य प्रदेश के मंडला में मोचा ग्राम पंचायत में बने अमृत सरोवर के बारे में भी आपको बताना चाहता हूँ। ये अमृत सरोवर कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के पास बना है और इससे इस इलाके की सुन्दरता को और बढ़ा दिया है। उत्तर प्रदेश के ललितपुर में, नवनिर्मित शहीद भगत सिंह अमृत सरोवर भी लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है। अमृत सरोवर का ये अभियान कर्नाटका में भी जोरों पर चल रहा है। यहाँ के बागलकोट जिले के ‘बिल्केरूर’ गाँव में लोगों ने बहुत सुंदर अमृत सरोवर बनाया है। दरअसल इस क्षेत्र में, पहाड़ से निकले पानी की वजह से लोगों को बहुत मुश्किल होती थी, किसानों और उनकी फसलों को भी नुकसान पहुँचता था। अमृत सरोवर बनाने के लिए गाँव के लोग, सारा पानी channelize करके एक तरफ ले आए।
· अमृत सरोवर अभियान हमारी आज की अनेक समस्याओं का समाधान तो करता ही है, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उतना ही आवश्यक है। इस अभियान के तहत, कई जगहों पर, पुराने जलाशयों का भी कायाकल्प किया जा रहा है। अमृत सरोवर का उपयोग, पशुओं की प्यास बुझाने के साथ ही, खेती-किसानी के लिए भी, हो रहा है। इन तालाबों की वजह से आस-पास के क्षेत्रों का Ground Water Table बढ़ा है। वहीँ इनके चारों ओर हरियाली भी बढ़ रही है। इतना ही नहीं, कई जगह लोग अमृत सरोवर में मछली पालन की तैयारियों में भी जुटे हैं। मेरा, आप सभी से और खास कर मेरे युवा साथियों से आग्रह है कि आप अमृत सरोवर अभियान में बढ़-चढ़कर के हिस्सा लें और जल संचय और जलसंरक्षण के इन प्रयासों को पूरी की पूरी ताकत दें, उसको आगे बढ़ायें।
· असम के बोंगाई गाँव में एक दिलचस्प परियोजना चलाई जा रही है – Project सम्पूर्णा। इस project का मकसद है कुपोषण के खिलाफ लड़ाई और इस लड़ाई का तरीका भी बहुत unique है। इसके तहत, किसी आंगनबाड़ी केंद्र के एक स्वस्थ बच्चे की माँ, एक कुपोषित बच्चे की माँ से हर सप्ताह मिलती है और पोषण से संबंधित सारी जानकारियों पर चर्चा करती है। यानी, एक माँ, दूसरी माँ की मित्र बन, उसकी मदद करती है, उसे सीख देती है। इस project की मदद से, इस क्षेत्र में, एक साल में, 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों में कुपोषण दूर हुआ है।
· हम हर साल 1 से 30 सितम्बर के बीच पोषण माह मनाते हैं। कुपोषण के खिलाफ पूरे देश में अनेक Creative और Diverse Efforts किए जा रहे हैं। Technology का बेहतर इस्तेमाल और जन-भागीदारी भी, पोषण अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा बना है। देश में लाखों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को mobile devices देने से लेकर आंगनबाड़ी सेवाओं की पहुँच को Monitor करने के लिए Poshan Tracker भी launch किया गया है। सभी Aspirational Districts और North East के राज्यों में 14 से 18 साल की बेटियों को भी, पोषण अभियान के दायरे में लाया गया है। कुपोषण की समस्या का निराकरण इन कदमों तक ही सीमित नहीं है - इस लड़ाई में, दूसरी कई और पहल की भी अहम भूमिका है। उदाहरण के तौर पर, जल जीवन मिशन को ही लें, तो भारत को कुपोषणमुक्त कराने में इस मिशन का भी बहुत बड़ा असर होने वाला है। कुपोषण की चुनौतियों से निपटने में, सामाजिक जागरूकता से जुड़े प्रयास, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मैं आप सभी से आग्रह करूँगा, कि आप, आने वाले पोषण माह में, कुपोषण या Malnutrition को, दूर करने के प्रयासों में, हिस्सा जरुर लें।
· क्या कुपोषण दूर करने में गीत-संगीत और भजन का भी इस्तेमाल हो सकता है? मध्य प्रदेश के दतिया जिले में “मेरा बच्चा अभियान”! इस “मेरा बच्चा अभियान” में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया। इसके तहत, जिले में भजन-कीर्तन आयोजित हुए, जिसमें पोषण गुरु कहलाने वाले शिक्षकों को बुलाया गया। एक मटका कार्यक्रम भी हुआ, इसमें महिलाएँ, आंगनबाड़ी केंद्र के लिए मुट्ठी भर अनाज लेकर आती हैं और इसी अनाज से शनिवार को ‘बालभोज’ का आयोजन होता है। इससे आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने के साथ ही कुपोषण भी कम हुआ है।
· कुपोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक unique अभियान झारखंड में भी चल रहा है। झारखंड के गिरिडीह में सांप-सीढ़ी का एक game तैयार किया गया है। खेल-खेल में बच्चे, अच्छी और ख़राब आदतों के बारे में सीखते हैं।
· United Nations ने एक प्रस्ताव पारित कर वर्ष 2023 (दो हजार तेईस) को International Year of Millets घोषित किया है। आपको ये जानकर भी बहुत ख़ुशी होगी कि भारत के इस प्रस्ताव को 70 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला था। आज, दुनिया भर में, इसी मोटे अनाज का, Millets का, Craze बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ समय से भारत में कोई भी जब विदेशी मेहमान आते हैं, राष्ट्राध्यक्ष भारत आते हैं तो मेरी कोशिश रहती है कि भोजन में भारत के Millets यानी हमारे मोटे अनाज से बनी हुई Dishes बनवाऊं और अनुभव यह आया है, इन महानुभावों को, यह Dishes, बहुत पसंद आती है, और हमारे मोटे अनाज के संबंध में, Millets के संबंध में, काफ़ी कुछ जानकारियाँ एकत्र करने का वो प्रयास भी करते हैं। हमारी संस्कृति की ही तरह, Millets में भी, बहुत विविधताएँ पाई जाती हैं। ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी, कुट्टू, ये सब Millets ही तो हैं। भारत, विश्व में, Millets का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए इस पहल को सफ़ल बनाने की बड़ी ज़िम्मेदारी भी हम भारत-वासियों के कंधे पर ही है। हम सबको मिलकर इसे जन-आंदोलन बनाना है, और देश के लोगों में Millets के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी है।
· आप तो भली भांति जानते हैं, Millets, किसानों के लिए भी फायदेमंद हैं और वो भी खास करके छोटे किसानों को। दरअसल, बहुत ही कम समय में फसल तैयार हो जाती है, और इसमें, ज्यादा पानी की आवश्यकता भी नहीं होती है। हमारे छोटे किसानों के लिए तो Millets विशेष रूप से लाभकारी है। Millets के भूसे को बेहतरीन चारा भी माना जाता है।
· आजकल, युवा-पीढ़ी, Healthy Living और Eating को लेकर बहुत Focussed है। इस हिसाब से भी देखेँ तो, Millets में, भरपूर Protein, Fibre और Minerals मौजूद होते हैं। कई लोग तो इसे, Super food भी बोलते हैं। Millets से एक नहीं, अनेक लाभ हैं। Obesity को कम करने के साथ ही Diabetes, Hypertension और Heart related diseases के खतरे को भी कम करते हैं। इसके साथ ही ये पेट और लीवर की बीमारियों से बचाव में भी मददगार हैं।
· इससे जुड़ी Research और Innovation पर Focus करने के साथ ही FPOs को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि, उत्पादन बढ़ाया जा सके। मेरा, अपने किसान भाई-बहनों से, यही आग्रह है कि, Millets, यानी मोटे अनाज को, अधिक-से-अधिक अपनाएं और इसका फायदा उठाएं।
· आज कई ऐसे Start-Ups उभर रहे हैं, जो Millets पर काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ Millet Cookies बना रहे हैं, तो कुछ, Millet Pan Cakes और डोसा भी बना रहे हैं। वहीँ कुछ ऐसे हैं, जो, Millet Energy Bars, और Millet Breakfast तैयार कर रहे हैं। मैं इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोगों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ। त्योहारों के इस मौसम में हम लोग अधिकतर पकवानों में भी Millets का उपयोग करते हैं। आप अपने घरों में बने ऐसे पकवानों की तस्वीरे Social Media पर जरुर share करें, ताकि लोगों के बीच Millets को लेकर जागरूकता बढ़ाने में मदद मिले।
· अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में जोरसिंग गाँव में इसी महीने, स्वतन्त्रता दिवस के दिन से 4G internet की सेवाएँ शुरू हो गई हैं। जैसे, पहले कभी गाँव में बिजली पहुँचने पर लोग खुश होते थे, अब, नए भारत में वैसी ही खुशी, 4G पहुँचने पर होती है। अरुणाचल और नार्थ ईस्ट के दूर-सुदूर इलाकों में 4G के तौर पर एक नया सूर्योदय हुआ है, Internet Connectivity एक नया सवेरा लेकर आई है। जो सुविधाएं कभी सिर्फ बड़े शहरों में होती थी, वो Digital India ने गाँव–गाँव में पहुंचा दी हैं। इस वजह से देश में नए Digital Entrepreneur पैदा हो रहे हैं।
· राजस्थान के अजमेर जिले के सेठा सिंह रावत जी ‘दर्जी ऑनलाइन’ ‘E-store’ चलाते हैं। आज Digital India की ताकत से सेठा सिंह जी का काम इतना बढ़ चुका है, कि अब उन्हें पूरे देश से order मिलते हैं। सैकड़ों महिलाओं को उन्होंने अपने यहाँ रोजगार दे रखा है। Digital India ने यूपी के उन्नाव में रहने वाले ओम प्रकाश सिंह जी को भी Digital Entrepreneur बना दिया है। उन्होंने अपने गांव में एक हजार से ज्यादा Broadband connection स्थापित किए हैं। ओम प्रकाश जी ने अपने Common Service Centre के आसपास, निशुल्क Wifi zone का भी निर्माण किया है, जिससे, जरूरतमंद लोगों की बहुत मदद हो रही है। Common Service Centre की तरह ही Government E- market place यानी GEM portal पर भी ऐसी कितनी success stories देखने को मिल रही हैं।
· पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। पहाड़ों की जीवनशैली और संस्कृति से हमें पहला पाठ तो यही मिलता है कि हम परिस्थितियों के दबाव में ना आएं तो आसानी से उन पर विजय भी प्राप्त कर सकते हैं, और दूसरा, हम कैसे स्थानीय संसाधनों से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। जिस पहली सीख का जिक्र मैंने किया, उसका एक सुन्दर चित्र इन दिनों स्पीती क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। स्पीती एक जनजातीय क्षेत्र है। यहाँ, इन दिनों, मटर तोड़ने का काम चलता है। गाँव की महिलाएं इकट्ठा होकर, एक साथ मिलकर, एक-दूसरे के खेतों से मटर तोड़ती हैं। इस काम के साथ-साथ महिलाएं स्थानीय गीत ‘छपरा माझी छपरा’ ये भी गाती हैं। यानी यहाँ आपसी सहयोग भी लोक-परंपरा का एक हिस्सा है। स्पीती में स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग का भी बेहतरीन उदाहरण मिलता है। स्पीती में किसान जो गाय पालते हैं, उनके गोबर को सुखाकर बोरियों में भर लेते हैं। जब सर्दियाँ आती हैं, तो इन बोरियों को गाय के रहने की जगह में, जिसे यहाँ खूड़ कहते हैं, उसमें बिछा दिया जाता है। बर्फबारी के बीच, ये बोरियाँ, गायों को, ठंड से सुरक्षा देती हैं। सर्दियाँ जाने के बाद, यही गोबर, खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए तो ये क्षेत्र, इन दिनों, प्राकृतिक खेती के लिए भी एक प्रेरणा बन रहा है।
· इसी तरह के कई सराहनीय प्रयास, हमारे, एक और पहाड़ी राज्य, उत्तराखंड में भी देखने को मिल रहे हैं। उत्तराखंड में कई प्रकार के औषधि और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। जो हमारे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। उन्हीं में से एक फल है – बेडू। इसे, हिमालयन फिग के नाम से भी जाना जाता है। इस फल में, खनिज और विटामिन भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। लोग, फल के रूप में तो इसका सेवन करते ही हैं, साथ ही कई बीमारियों के इलाज में भी इसका उपयोग होता है। इस फल की इन्हीं खूबियों को देखते हुए अब बेडू के जूस, इससे बने जैम, चटनी, अचार और इन्हें सुखाकर तैयार किए गए ड्राई फ्रूट को बाजार में उतारा गया है। इससे किसानों को आय का नया स्त्रोत तो मिला ही है, साथ ही बेडू के औषधीय गुणों का फायदा दूर-दूर तक पहुँचने लगा है।
श्रोत: पत्र सूचना कार्यालय