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विशेष लेख


अंक संख्या -08, 21-27 मई ,2022

इंडिया@75

कृषि क्षेत्र में भारत की उल्लेखनीय यात्रा

 

देविका चावला

भारत इस वर्ष अपनी आजादी के 75 साल पूरे कर रहा है. इससे संबंधित समारोहों का सिलसिला पिछले साल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आजादी का अमृत महोत्सव अभियान के साथ शुरू हुआ. इस अभियान के माध्यम से, विभिन्न विषयों और कार्यक्षेत्रों में पिछले साढ़े सात दशकों में देश की प्रगति और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला जा रहा है ताकि युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय सफलताओं के आधार पर आगे बढ़ने और 2047 में भारत द्वारा अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ मनाने के समय तक, उनका और विस्तार करने के लिए प्रेरित किया जा सके.इस संदर्भ में, कृषि क्षेत्र (जिसे अक्सर 'भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़कहा जाता है), ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में समावेशी एवं स्थाीयी ढंग से सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान दिया है. भारतीय अर्थव्यवस्था में, एक क्षेत्र के रूप में, स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही खेती का योगदान प्रमुख एवं महत्वपूर्ण रहा है. 1947 में 70 प्रतिशत गरीब आबादी वाले देश से लेकर आज गरीबी दर घटकर लगभग 6 प्रतिशत  रह जाने तक, भारत की खुशहाली की यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं है. इस सफलता (और कई अन्य सामाजिक-आर्थिक उपलब्धियों) को संभव बनाने में  जीवंत और विकासशील क्षेत्र के रूप में खेती की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

 

1960 के दशक की 'हरित क्रांतिऔर उसे उसके बाद के युग में भारतीय कृषि के रूपांतरण की भूमिका और प्रभाव सर्वविदित है और उसका पर्याप्त अध्ययन किया गया है. परन्तु, जो कम ज्ञात है, वह यह है कि इस क्षेत्र में हाल के सुधारों ने किस तरह इन विशाल उपलब्धियों में योगदान किया है और वे एक ऐसे राष्ट्र के सतत विकास को बढ़ावा दे रहे हैं जो स्वतंत्रता प्राप्ति  के समय के अपने आकार (जनसांख्यिकीय और आर्थिक) से कई गुना बड़ा है.भारत के तीव्र शहरीकरण के बावजूद, कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनी हुई है, जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है. इसका अर्थ है कि यह क्षेत्र आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए प्रमुख रोज़गार (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) प्रदाता है. यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत के बढ़ते आर्थिक आधार के कारण, यह क्षेत्र तेजी से विकसित और विविधतापूर्ण हो गया है - जिसने कुछ ही दशकों में भारत को एक खाद्य आयातक से खाद्य निर्यातक के रूप में बदल दिया है, जबकि ग्रामीण रोज़गार का एक बड़ा हिस्सा कृषि से इतर गतिविधियों में स्थानांतरित हो रहा है.

 

शहरी केंद्रों में श्रमिकों के प्रवास की मुख्य वजह कृषि उत्पादकता में कमी और  तत्संबंधी गतिविधियों से आमदनी में कठिनाइयां हैं जो उन्हें शहरों और निश्चित रूप से बेहतर पारिश्रमिक वाले रोज़गार की ओर ले जाती हैं. परन्तु, हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन के दबाव और खतरों को देखते हुए, इस बारे में वैश्विक स्तर पर व्यापक सहमति रही है कि प्राकृतिक संसाधनों की वहनीयता या स्थिरता हर क्षेत्र में, विशेष रूप से कृषि में नीति-निर्माण का केंद्रीय स्तंभ बन गयी है. यही वजह है कि खेती को एक टिकाऊ गतिविधि बनाने के लिए यह परम आवश्यक है कि वह जलवायु अनुकूल प्रणालियों के प्रतिकूल हो, किसानों के लिए स्थिर आजीविका प्रदान करे और साथ ही ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान विकास को बढ़ावा दे. ऐसा करने के लिए कृषि क्षेत्र में उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता होगी, ताकि इसे लोगों की आजीविका के लिए, किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह आकर्षक बनाया जा सके.यही कारण है कि 2014 में कार्यभार संभालने के बाद से, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने केवल एक युवा और तेजी से बढ़ते राष्ट्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए, बल्कि एक सतत, हरित अर्थव्यवस्था के लिए कृषि को आकर्षक बनाने के वास्ते इस क्षेत्र के आधुनिकीकरण  को प्राथमिकता दी. प्रारंभिक वर्षों के उल्लेखनीय कार्यक्रमों और उपायों में जन धन योजना के तहत प्रत्येक भारतीय परिवार को बैंक खाते प्रदान करना, (किसानों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना), मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी), पीएम- फसल बीमा योजना, किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाले उर्वरक प्रदान करने के लिए यूरिया की नीम-कोटिंग और प्रधानमंत्री-कृषि सिंचाई योजना (बेहतर सिंचाई सुविधा के लिए) जैसी पहल शामिल हैं. ये सभी प्रारंभिक कार्यक्रम और अन्य योजनाएं कृषि क्षेत्र की मूलभूत चिंताओं को दूर करने से संबद्ध थीं, जबकि नए दौर के कार्यक्रम कृषि क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्सोहित करने, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने और उच्च उत्पादकता तथा स्थोयी खेती पद्धतियों के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने से संबद्ध हैं. इन कार्यक्रमों में -नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार), सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए), जैविक खेती की पहल, पीएम किसान (हर महीने सभी किसानों को वित्तीय लाभ के रूप में 2000 रुपये का प्रत्यक्ष अंतरण), एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) शामिल हैं. इसके अलावा सटीक खेती, फसल प्रबंधन और एग्रीटेक जैसी उभरती हुई खेती प्रौद्योगिकियों के माध्यम से स्मार्ट खेती को बढ़ावा भी दिया जा रहा है.चावल, गेहूं, चीनी और समुद्री उत्पादों में अब तक के सबसे अधिक निर्यात के साथ भारत का कृषि निर्यात 50 अरब अमरीकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है. इसी के साथ, भारत स्टेपल फूड अर्थात् प्रमुख खाद्य सामग्री, विशेष रूप से गेहूं के एक भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर रहा है, जो रूस-यूक्रेन संकट से बाधित आपूर्ति अंतर को पूरा करने में सक्षम है. कृषि-निर्यात में स्वस्थ विकास स्वागतयोग्य है, परन्तु भारत यदि अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है और कृषि निर्यात के केंद्र के रूप में उभरना चाहता है तो उसे मजबूत उद्योग-अकादमिक सहयोग की भी आवश्यकता है. इस सहयोग को बेहतर अनुसंधान और विकास एवं नवाचार द्वारा और गहरा करना होगा ताकि एक ऐसे क्षेत्र में  विविधीकरण और प्रतिस्पर्धात्मकता लायी जा सके, जो परिवर्तन की दहलीज पर है. इस दिशा में, कृषि क्षेत्र के लिए इस वर्ष की बजट घोषणाएं, जैसे मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी क्षेत्रों के लिए उच्च बजटीय आवंटन, तिलहन के बारे में राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन शहद मिशन (एनबीएचएम) और प्राकृतिक, शून्य-बजट आधारित और रसायन मुक्ति खेती आदि, केवल भारतीय कृषि उत्पादों में विविधता लाने, बल्कि उनकी गुणवत्ता बढ़ाने और कृषक समुदायों के लिए बेहतर आय के अवसर प्रदान करने में मील का पत्थर शामिल होंगे.

 

इस आलेख में 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारतीय कृषि की यात्रा और इस क्षेत्र में हुई तीव्र प्रगति की समीक्षा करने का प्रयास किया गया है, जिसके फलस्वरूप बेहतर सामाजिक और आर्थिक विकास संकेत सामने आए. फिर भी, कृषि क्षेत्र को, गतिशील राष्ट्र की उच्च विकास और कौशल दर के साथ समन्वय के लिए संघर्ष करना पड़ा है. नतीजतन, हाल के वर्षों ने कृषि को अर्थव्यवस्था का एक आकर्षक, प्रतिस्पर्धी क्षेत्र बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है. यह कई स्तरों पर उपायों के माध्यम से किया गया है, जिनमें मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए कृषि प्रथाओं में प्रौद्योगिकी और नवाचार को शामिल करना, हरित और स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना, बागवानी, खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशनों के माध्यम से क्षेत्र में विविधता लाना और महत्वाकांक्षी कृषि निर्यात के माध्यम से क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देना शामिल है. इन सभी सुधारों से केवल उपभोक्ता और किसान को लाभ होगा, बल्कि एक सिलसिलेवार प्रभाव भी पैदा होगा और स्टार्टअप उद्यमियों और नवप्रवर्तकों सहित लाखों युवा भारतीयों के लिए कृषि को एक आकर्षक रोज़गार लक्ष्य बनाया जा सकेगा, साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी कृषि पद्धतियां दीर्घावधि के लिए जलवायु के अनुकूल और टिकाऊ हों.

(लेखिका इन्वेस्ट इंडिया के स्ट्रैटेजिक इन्वेस्टमेंट रिसर्च यूनिट में असिस्टेंट मैनेजर हैं. उनसे  devika.chawla@investindia.org.in पर संपर्क किया जा सकता है).

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.