भारत में डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र
अब तक की यात्रा और आगे की राह
राजीब कुमार सेन, श्रेष्ठा हजरा,
वैष्णवी अय्यर
डिजिटल स्वास्थ्य शब्द, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ''ई हैल्थ के साथ-साथ 'बिग डेटा’ जीनोमिक्स और कृत्रिम आसूचना (एआई) में अत्याधुनिक कंप्यूटिंग साइंस जैसे उभरते क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक व्यापक शब्द’के रूप में परिभाषित किया है- का आशय मुख्यत: स्वास्थ्य सेवाओं और प्रौद्योगिकी के बीच संपर्क से उभरने वाले अनुप्रयोगों से है. डिजिटल स्वास्थ्य को आमतौर पर 'एक सांस्कृतिक रूपांतरण के रूप में वर्णित किया जाता है कि किस प्रकार देख-रेख करने वालों और रोगियों, दोनों को डिजिटल और वस्तुपरक आंकड़े उपलब्ध कराने वाली नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियां, साझा निर्णय लेने और देख-रेख के लोकतंत्रीकरण सहित समान चिकित्सक-रोगी संबंधों का मार्ग प्रशस्त करती हैं.’ डिजिटल स्वास्थ्य या ई-हैल्थ की धारणा सूचना संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटी) के सामर्थ्य को स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सामने लाते हुए उसे अत्याधुनिक संसाधनों से बेहतर ढंग से सुज्जित करती है, ताकि कुशल प्रबंधन और सर्वोत्तम निदान तथा सबसे बढ़कर रोगी की बेहतर देखभाल सुनिश्चित की जा सके. डिजिटल स्वास्थ्य के नवोन्मेषी निष्कर्षों में चिकित्सक-रोगी संपर्क से लेकर अनुसंधान और अस्पताल के प्रबंधन तक अनेक क्षेत्र शामिल हैं. डिजिटल स्वास्थ्य पहल ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाई है, उसके फलस्वरूप समुदाय सभी व्यवहार्य साधनों के जरिए स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के प्रयासों के करीब पहुंच गए हैं.
डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र: उभरती आवश्यकता और उसके प्रमाणित लाभ
वैश्विक आबादी के त्वरित गति से हो रहे प्रसार ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और रोगियों के बीच की खाई को पाटना और ज्यादा मुश्किल बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच कायम करने की लागत बढ़ गई है. साथ ही, जीवन शैली अथवा गैर-संचारी रोगों में वृद्धि, बुजुर्गों की आबादी बढ़ने तथा धनाढ्य उच्च वर्ग में सेहत को लेकर बढ़ती जागरूकता स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में वृद्धि के कुछ प्रमुख कारक हैं. बढ़ती मांग को पूरा करने की दिशा में मानव संसाधनों के अभाव और अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं ने मौजूदा स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के बेहतर विकल्प विकसित करने का दबाव बढ़ा दिया है. स्वास्थ्य सेवाओं का अधिक कुशलता से लाभ उठाने के लिए प्रौद्योगिकी में निवेश किया जाना बहुत आवश्यक है. परंपरागत रूप से, स्वास्थ्य सेवा पद्धतियां स्वास्थ्य सेवा से जुड़े व्यवसायियों की विशेषज्ञता के स्तर के आधार पर रोगों के निदान, उपचार और रोकथाम तक ही सीमित रही है. स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में प्रौद्योगिकियों के आगमन ने स्वास्थ्य सेवा प्रदायगी को आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित की जा सकने वाली अचूक प्रक्रिया बना दिया है, जो किसी भी समय किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवा व्यवसायी के हस्तक्षेप की आवश्यकता को अपरिहार्य नहीं बनाती. डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी के उद्भव ने दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवा प्रदायगी को मजबूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
विश्व में निगरानी उपकरणों, टेली कंसल्टेशन पद्धतियों, ई-फार्मेसियों आदि के रूप में बाजार में स्वास्थ्य सेवा प्रौद्योगिकी उत्पादों की उपलब्धता में तेजी से वृद्धि देखी गयी है. रोबोटिक्स, कृत्रिम आसूचना (एआई) ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को फार्मास्यूटिकल्स और स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकृत करने के निरंतर प्रयास किए गए हैं. हाल ही में इन क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को भी प्रोत्साहन दिया गया है. स्वास्थ्य सेवा प्रदायगी के पारंपरिक क्रम में व्यापक कंप्यूटिंग तकनीकों का समावेश आपूर्ति में खामियों को दूर करने का प्रयास है. डिजिटल स्वास्थ्य क्रांति द्वारा प्रदत्त नवोन्मेषी समाधान लोगों के लिए वरदान हैं और इन्होंने दुनियाभर के लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने और उसका संरक्षण करने के लक्ष्य के साथ संभावित अवसरों के माध्यम से सेवाओं तक उनकी पहुंच को व्यापक बनाते हुए स्वास्थ्य के बेहतर मानकों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान की है.डिजिटल स्वास्थ्य के अंतर्गत योग सिखाने वाले ऐप से लेकर हृदय गति मापने वाले रिस्टबैंड और चिकित्सकों को तलाशने और परामर्श के लिए समय निर्धारित करने जैसी विस्तृत रेंज शामिल है. डिजिटल स्वास्थ्य के सबसे उल्लेखनीय अनुप्रयोगों में टेलीमेडिसिन, पॉइंट-ऑफ-केयर डायग्नो-स्टिक्स, एम-हेल्थ, मेडिकल वर्चुअल असिस्टेंट, सेल्फ-मॉनिटरिंग हेल्थकेयर डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स (ईएचआर), हेल्थकेयर में बिग डेटा और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में ई-फार्मेसी और ई-लर्निंग और कई अन्य का उपयोग शामिल हैं.
इन अनुप्रयोगों को विकसित करने के लिए उपयोग में लाई गई अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), बिग डेटा, कृत्रिम आसूचना (एआई), ब्लॉक चेन, चैटबॉट्स और वर्चुअल रियलिटी और कई अन्य शामिल हैं. इनमें से प्रत्येक विशेषता को इंटरलिंक किए जाने से डिजिटल स्वास्थ्य में सेवा प्रदायगी का दायरा और बढ़ गया है. उदाहरण के लिए, जहां एक ओर आईओटी इनहेलर और ऑडियोमीटर जैसे उपकरणों के लिए महत्वपूर्ण है और ऐसे मामलों में गलत निदान की आशंका को कम करता है, वहीं दूसरी ओर बिग डेटा जोखिम के कारकों और रोगियों पर दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों का पता लगाने में मदद करने के अलावा आवश्यकता के मुताबिक उपचार करने के लिए व्यापक स्तर पर विश्लेषण की अनुमति देता है. एआई और ब्लॉकचैन स्वास्थ्य व्यवसायियों को उपचार में समझदारी से निर्णय लेने में सक्षम और प्रशासन को अधिक प्रभावी बनाता है. चैटबॉट्स त्वरित संचार के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय उपकरणों में से एक हैं. वर्चुअल रियलिटी का उपयोग अधिकाशंत: मनोवैज्ञानिक विकारों के मामले में रोगी के पुनर्वास और उपचार तक ही सीमित है, हालांकि इसने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.रोगियों और चिकित्सकों के बीच संवाद का डिजिटल चैनल स्थापित हो जाने से रोगियों की रियल टाइम मॉनिटरिंग सुनिश्चित करना और उनकी प्रगति पर नजर रखना बहुत आसान हो गया है. गाइड बुक्स, प्रचलित सर्वोत्तम पद्धतियों, सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर लोकप्रियता के जरिए डिजिटल क्रांति ने स्वास्थ्य क्षेत्र में रोगियों को अधिक जानकारी प्रदान की है, जिससे वे अपने स्वास्थ्य के संबंध में बेहतर निर्णय ले सकते हैं और स्वयं के स्वास्थ्य का प्रबंधन करने में समर्थ हैं. इसने रोग से निपटने के स्वास्थ्य व्यवसायियों के तरीके को बदल दिया है. प्रौद्योगिकी अक्सर किसी रोग के सही उपचार की पहचान करने और उसका प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाने में अधिक उपयोगी होती है. इतना ही नहीं, पोर्टल प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाताओं और सेवा प्राप्त करने वालों-दोनों को लाभान्वित करती है. मेडिकल रिकॉर्ड और ऑनलाइन सपर्क के जरिए जहां एक ओर यह रोगी को अपने स्वास्थ्य के बारे में अधिक जिम्मेदार होने में समर्थ बनाता है, तो वहीं दूसरी ओर चिकित्सकीय व्यवसायी किसी रोगी के स्वास्थ्य की पिछली स्थिति के बारे में बेहतर धारणा बनाने में समर्थ होता है. पिछला दशक डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यापक सुधार का साक्षी बना है. स्मार्टफोन के बढ़ते प्रचलन और 'ऐप्स’ के सर्वव्यापी उपयोग के प्रबल होने के साथ ही अकेले हेल्थ केयर ऐप के लिए 4 बिलियन से अधिक डाउनलोड दर्ज किए गए हैं और ये स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. मोबाइल ऐप-आधारित स्वास्थ्य सेवाओं में एंड्रॉयड और आईओएस पर 60,000 से अधिक ऐसे स्वास्थ्य सेवा -संबंधी ऐप शामिल हैं. इंटरनेट-सक्षम स्मार्टफोन का उपयोग करने वाली आबादी का हिस्सा हर गुजरते दिन के साथ बढ़ते जाने के मद्देनजर भारत में डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह एक आशाजनक परिदृश्य प्रतीत होता है.
भारत की स्थिति क्या है?
बहुत से अन्य देशों की तरह, भारत भी 'डिजिटल स्वास्थ्य’ क्रांति के संबंध में शीर्ष पर रहा है. भारत सरकार ने 2015 में अपना प्रमुख कार्यक्रम 'डिजिटल इंडिया अभियान’ शुरू किया, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने में सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल किया जाना शामिल था. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में एक डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र की परिकल्पना की गई, जो एक नोडल कार्यान्वयन प्राधिकरण के माध्यम से सभी हितधारकों की जरूरतों को पूरा करती है और दक्षता, पारदर्शिता और नागरिकों के अनुभवों में सुधार लाती है. अत: 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्टैक के आधार पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अक्टूबर 2019 में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य ब्लूप्रिंट तैयार किया. मूलभूत रूप से विज़न और सिद्धांतों युक्त इस ब्लूप्रिंट को एक बहुस्तरीय ढांचे के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जो डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना, डेटा हब, बिल्डिंग ब्लॉक्स, इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड मानकों, विनियमों और इसके कार्यान्वयन के लिए एक संस्थागत ढांचे से संबंधित परतों से घिरा हुआ है. प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2020 को इस प्रारूप को राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) के रूप में लागू करने की घोषणा की. वर्तमान में, यह प्रयास आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) के रूप में विकसित हुआ है.एबीडीएम 2025 तक, एक संघबद्ध स्वास्थ्य सूचना संरचना, स्वास्थ्य सूचना आदान-प्रदान और एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य सूचना नेटवर्क स्थापित करने के लिए प्रयासरत है, जो स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सुरक्षित और सूचनाओं के आदान-प्रदान और उनके उपयोग में सक्षम (यानी इंटरऑपरेबल) बनाएगा, जिससे वह सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य संस्थानों में गुमनाम स्वास्थ्य रिकॉर्ड तक सुगमता से पहुंच कायम करने और पोर्टेबिलिटी में समर्थ हो सकेगी. एबीडीएम पांच प्रमुख संघटकों पर आधारित है - हेल्थ आईडी, स्वास्थ्य सुविधा पंजीयन (हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री), स्वास्थ्य सेवा व्यवसायी पंजीयन (यानी हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स रजिस्ट्री), स्वास्थ्य रिकॉर्ड (हेल्थ रिकॉर्ड्स) और कंसेंट मैनेजर. इस पारिस्थितिकी तंत्र की अन्य संस्थाओं में एबीडीएम सैंडबॉक्स, स्वास्थ्य सूचना प्रदाता, स्वास्थ्य सूचना उपयोगकर्ता, स्वास्थ्य भंडार प्रदाता और स्वास्थ्य लॉकर शामिल हैं. सरकार के प्रयासों के साथ-साथ, धारण करने योग्य प्रौद्योगिकियों, टेलीमेडिसिन, एआई, वर्चुअल रिएलिटी, जीनोमिक्स आदि में नवाचारों के माध्यम से देश के स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य को बेहतर बनाने में स्वतंत्र इकाइयों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता के लिए वेल्यू-बेस्ड केयर की प्रदायगी में बदलाव लाने के लिए सुधार किए हैं. आसूचना समाधानों को अपनाने से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और रोगियों के बीच परम्परागत रूप से मौजूद बाधाओं के कारण उपजी असमानताओं को दूर करने में मदद मिलेगी, इनसे केवल सेवा की उपलब्धता की स्थिति में ही सुधार नहीं होगा, अपितु रोगी को संतुष्टि प्रदान करने के लिए, विशेषकर अस्पताल में देख-रेख के संबंध में यहां तक कि भारत के टियर II और टियर III शहरों में भी सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि होगी. यूं तो पिछले एक दशक से डिजिटल स्वास्थ्य के संबंध में बुनियादी कार्य किया जा रहा था और इसके हस्तक्षेपों की बदौलत ही अन्य के साथ-साथ मातृ स्वास्थ्य, निवारण कार्यक्रमों (यानी ससैशन प्रोग्राम) और मानसिक स्वास्थ्य में वांछनीय परिणामों की प्राप्ति सुगम हो सकी, लेकिन इसके अनुप्रयोग की क्षमता, पहुंच और कार्यक्षमता कोविड-19 महामारी के समय प्रदर्शित हुई. इसका सबसे महत्वपूर्ण परिणाम कोविड टीकाकरण कार्यक्रम के संचालन हेतु कोविन डैशबोर्ड रोल-आउट के माध्यम से सरकार द्वारा कोविड-19 के प्रबंधन और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में सहायता के लिए आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप के दौरान देखा गया. ये कदम मूलभूत रूप से, व्यापक पैमाने पर राष्ट्रव्यापी डिजिटल मिशन कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए परीक्षण स्थल साबित हुए हैं. विशेष रूप से, जीवन को सुखमय बनाने वाले उपकरणों और डिजिटल सेवाओं से हटकर महत्वपूर्ण चिकित्सा और आपातकालीन सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है. अब शहरी धनी वर्ग ही लक्षित आबादी नहीं है, बल्कि उसके दायरे में सारी आबादी आ चुकी है.
भारत में डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र को लागू करने की चुनौतियां
एनडीएचएम 'सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में सहायता देने वाले एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के सृजन की परिकल्पना करता है.’ इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आंतरिक और प्रासंगिक दोनों कारकों को ध्यान में रखने वाली एक सुदृढ़ क्षमता निर्माण प्रणाली की आवश्यकता है, जिसके अभाव में यह अभ्यास- स्वीकृति, उपयोगिता और डेटा एकत्रीकरण के मामले में निष्फल हो जाएगा. हाल के अध्ययन एक समान रूप से इस दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं कि मजबूत संचालन डिजिटल स्वास्थ्य की सफलता की कुंजी है. हालांकि, भारत में समग्र डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए डिजिटल संचालन को स्वास्थ्य सेवा के विभिन्न स्तरों पर सावधानीपूर्वक आवश्यकता के अनुरूप ढाले जाने की जरूरत है. सीमित इंटरऑपरेबिलिटी, मानकों का अनुपालन न करने और डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क के अभाव, प्रशिक्षित कार्यबल की अनुपस्थिति के कारण एकांगी रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म का संचालन करना हानिकारक है, और इसलिए, सर्वोत्तम डेटा गवर्नेंस तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता होगी. निजी जानकारी का दुरुपयोग रोकने के लिए एक विशिष्ट स्वास्थ्य डेटा संरक्षण कानून या दिशा-निर्देशों का होना आवश्यक है. स्वास्थ्य संबंधी मामलों में जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन की जिम्मेदारी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों की है. हालांकि ज्यादातर मामलों में, नीतिगत निर्देश केंद्रीय रूप से निर्देशित होते हैं, लेकिन व्यवस्था का संघीय ढांचा राज्यों को केंद्रीय स्वास्थ्य दृष्टिकोण से अलग होने का अधिकार देता है, जिससे पूरे देश में नियोजन में अनिश्चितता उत्पन्न होती है. आम चुनौतियों की पहचान करते हुए और इस संबंध में व्यापक समाधान पेश करते हुए एक योजना विकसित की जा सकती है, जिसे राज्यों द्वारा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप और उपयुक्त तरीके से लागू किया जा सकता है.कार्यान्वयन की सबसे बड़ी चुनौती मानव संसाधनों का समय पर क्षमता निर्माण सुनिश्चित करना है, जो भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को काफी अर्से से चिंतित कर रही है, जिससे नेतृत्व और प्रबंधन क्षमता बाधित होती है. इन कमियों को दूर करने के लिए केंद्र और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को मिल-जुल कर प्रयास करने होंगे.भारत की जनसांख्यिकीय और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए, डिजिटल अनुप्रयोगों की उपयोगिता को उपयोगकर्ता के दृष्टिकोण से समझना तथा इस प्रकार त्रुटिहीन अनुभव प्रदान करने के लिए भारत के मौजूदा पोर्टलों को एकीकृत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसके लिए इंटरफेस डिजाइनरों, प्रशासकों, अंतिम उपयोगकर्ताओं के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है, इस प्रकार डिज़ाइन करते समय सह-डिजाइन दृष्टिकोण अपनाया जाता है. रोगियों के अत्यधिक भार और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की ओर से उचित भागीदारी का अभाव भी स्वास्थ्य डेटा एकत्रीकरण की कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं.समय के साथ स्मार्ट फोन की पहुंच की दर में जहां वृद्धि हुई है, ऐसे में इस बात का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भौगोलिक स्थानों, विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काफी अंतर है. इसलिए, कम डिजिटल साक्षरता और भारतीय आबादी के बीच विशाल डिजिटल भेद कुछ ऐसी बाधाएं हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है.
भविष्य के अवसर
कार्यान्वयन की दिशा में आने वाली चुनौतियों के बावजूद, तकनीकी क्रांति ने भारत की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है. निकट भविष्य में रोगी की बेहतर देखभाल के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में सुधार लाने के लिए डिजिटल स्वास्थ्य में अपार संभावनाएं निहित हैं. महामारी का दौर बीत जाने के पश्चात, जब दुनिया ठीक होने की जद्दोजहद में है, ऐसे में विशेषकर उस समय, जब 'निवारक’ देखभाल की बात हो, तो डिजिटल उपकरणों के प्रति सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों की नए सिरे से पड़ताल किया जाना आवश्यक है. ऐसे उपकरण और नवाचार, जो उपयोग में आसान और किफायती हों, भविष्य में पहुंच, सामर्थ्य और गुणवत्तापूर्ण सेवाएं सुनिश्चित करने पर अधिक ध्यान देते हुए विशेष रूप से महिलाओं, हाशिए पर मौजूद और कमजोर वर्गों के लिए उन उत्पादों की सबसे ज्यादा मांग होने की संभावना है.इंडिया हेल्थ की एक नवीनतम रिपोर्ट के आधार पर, टेलीमेडिसिन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में परामर्श के समय में 10 से 15 मिनट तक कमी ला सकती है. इससे डॉक्टरों का उपयुक्त उपयोग सुनिश्चित होता है और क्लिनिक या अस्पताल जाने की आवश्यकता भी नहीं रहती, इस वजह से स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने पर किए जाने वाले खर्च में भी कमी आएगी. नैदानिक परिणामों को बेहतर बनाने में एआई की बड़ी भूमिका है, क्योंकि इससे स्वास्थ्य डेटा अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है और विश्लेषण तकनीकों में सुधार होता है. स्मार्ट हेल्थ मॉनिटर में वास्तविक समय में व्यक्तिगत महत्वपूर्ण संकेतों और परीक्षण के परिणामों को एकत्र करने की क्षमता होती है, जो तेजी से निदान करने, प्रारंभिक अवस्था में समय पर और उचित उपचार करने, निदान के लिए यात्रा और प्रतीक्षा समय को समाप्त करने में सहायता कर सकता है. यह डॉक्टरों की काम करने की क्षमता भी बढ़ाता है और रोगियों को बेहतर सहायता और फीडबैक का आश्वासन देता है. मोबाइल आधारित स्वास्थ्य ऐप्स में रोगी के साथ संलग्नता बढ़ाकर, स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान कर और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से विशेषज्ञपूर्ण मार्गदर्शन उपलब्ध करा कर गंभीर रोगों की रोकथाम करने की अपार संभावनाएं हैं.
भारत में, डिजिटल स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में व्यवहार्य समाधानों की जरूरत की पृष्ठभूमि में, स्टार्ट-अप्स अंतत: जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बन रहे हैं. 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में 4,892 स्टार्टअप्स हैं, जो किसी रोग विशेष, क्षेत्र, भूगोल, उत्पाद, सेवा या व्यवसाय मॉडल से बढ़कर हैं. डिजिटल स्टार्ट-अप्स ने भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में नई प्रौद्योगिकियां प्रस्तुत की हैं. विशेष रूप से गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के संबंध में, डिजिटल प्लेटफॉर्म ने पुराने रोगी समूह को साथ लेने का आवश्यक ढांचा प्रदान किया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्लेटफॉर्म ने गैर-नैदानिक डेटा को ग्रहण करने में सक्षम बनाया है, जो एनसीडी की रोकथाम का अभिन्न अंग है. परंपरागत रूप से, अधिकांश स्टार्ट-अप आंतरिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करने, स्वास्थ्य रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण आदि जैसे प्रशासनिक समाधान प्रदान करने की दिशा में प्रयासरत हैं. जहां एक ओर अधिकांश स्टार्ट-अप आम तौर पर महानगरों की जरूरतों को पूरा करते हैं, वहीं, इंटरनेट के प्रसार के साथ-साथ कनेक्टिविटी में सुधार होने से शहरी-ग्रामीण अंतर धीरे-धीरे कम हो रहा है. बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाते हुए सेवाएं प्रदान करने के संबंध में गहन नैदानिक फोकस में सुधार की गुंजाइश मौजूद है. व्यवसायिक दृष्टि से एक ऐसी विविधतापूर्ण टीम, जिसमें चिकित्सा व्यवसायी और उत्पाद इंजीनियर शामिल हों, इसका संभावित उपाय हो सकती है.डिजिटल जीवन के विकास में सोशल मीडिया भी प्रमुख प्रेरक रहा है. विशेष सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म न केवल स्वास्थ्य से संबंधित समान समस्याओं वाले रोगियों को जोड़ने और सूचनाओं के आदान-प्रदान में मदद करेंगे, बल्कि उस प्लेटफॉर्म द्वारा एकत्र किए गए डेटा का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं और उपकरणों को बेहतर बनाने में किया जा सकता है, जो अंतत: लोगों के जीवन को बेहतर बनाता है.
एबीडीएम देश में डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने और इस तरह स्वास्थ्य क्षेत्र में नवोन्मेष को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत आवश्यक रणनीति है, जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी को एक साथ लाता है. अब तक के प्रयासों ने समान स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने और इस तरह स्वास्थ्य निष्कर्षों में सुधार लाने के लिए भारत में एक सशक्त डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का सही दिशा में मार्ग प्रशस्त किया है. आशाओं से भरपूर भविष्य हमें अपना साक्षी बनाने की राह देख रहा है।
(राजीब कुमार सेन नीति आयोग में वरिष्ठ सलाहकार हैं. श्रेष्ठा हजरा और वैष्णवी अय्यर यंग प्रोफेशनल्स, नीति आयोग हैं.)
व्यक्त विचार लेखकों की निजी राय है.