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विशेष लेख


अंक संख्या 05, 30 अप्रैल -06 मई 2022

मई दिवस का इतिहास

 

उमेश चतुर्वेदी

एक मई की तारीख पूरी दुनिया में मई दिवस या अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में स्थापित हो चुकी है. दुनियाभर में इस तारीख को कामगार उत्साहपूर्वक मनाते हैं. जहां काम करने की शर्तें ठीक हैं, वहां के कामगार इस तारीख को त्योहार की तरह मनाते हैं, जहां काम की शर्तें या वेतन-आदि पर विवाद होता है, वहां के कामगार इस तारीख पर एक तरह से नये संघर्ष की रूपरेखा ही तय करते हैं.वैसे बहुत कम लोगों को यह पता है कि कामगारों के दिन के रूप में 'मई दिवस की शुरुआत नहीं हुई. यह ठीक है कि अमरीका के शिकागो में एक मई 1886 को मजदूरों के प्रदर्शन पर हुई पुलिस गोलीबारी और उसमें कई मजदूरों की मौत के बाद वहां हर साल एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाने लगा. दरअसल एक मई 1886 को पूरे अमरीका के कामगारों ने अपने काम के वक्त को आठ घंटे करने की मांग को लेकर हड़ताल की थी. इसी दौरान शिकागो के हेमा मार्केट में मजदूरों के प्रदर्शन के ही दौरान एक बम विस्फोट हुआ. तब अमरीकी पुलिस ने आरोप लगाया था कि मजदूरों की ओर से यह बमबारी हुई है. इसके बाद पुलिस ने मजदूरों के प्रदर्शन पर गोली चला दी. जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई. हालांकि यह हकीकत का छोटा हिस्सा है. असलियत में अमरीका में श्रमिक दिवस इसके पहले भी मनाया जाता रहा था. अठारहवीं सदी में जब यूरोप और अमरीका में औद्योगिक क्रांति हुई तो उसके बाद वहां मजदूरों की मांग बढ़ी. लेकिन उनके काम के घंटे और छुट्टियां तक तय नहीं थीं. इसकी वजह से जगह-जगह आंदोलन चल रहे थे. इसी बीच 1770 का दशक आया और अमरीका में आजादी के लिए संघर्ष छिड़ गया. इसमें मजदूरों ने भी हिस्सा लिया. लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया. लिहाजा अमरीका में संघर्ष जारी रहा. इसी बीच 1860 में अमरीका में गृहयुद्ध भी छिड़ गया जिसमें मजदूरों ने भी हिस्सा लिया.

 

अमरीका में जैसे-जैसे औद्योगिक क्रांति अपना पैर फैलाती रही, वैसे-वैसे वहां मजदूर संगठन बनते रहे. अमरीका में अठारहवीं सदी के आखिरी दिनों से लेकर उन्नीसवीं सदी के शुरुआत में मजदूर संगठनों का अस्तित्व सामने आने लगा था. अठारहवीं सदी के आखिरी वर्षों में फिलाडेल्फिया में जूता बनाने वाले कामगारों का संगठन बना. इन्हीं दिनों बाल्टीमोर में कपड़े सीने वाले लोगों का संगठन सामने आया. प्रिंटरों के यहां कार्यरत कामगारों का संगठन 1792 में गठित हुआ. इसी तरह अमरीका में बढ़ई लोगों का संगठन 1796 में बना तो जहाजों के लिए काम करने वाले लोगों ने न्यूयॉर्क में 1803 में अपनी यूनियन बनाई. इसके साथ ही काम की शर्तों को बेहतर करने के लिए लगातार हड़तालें होती रहीं. उन्नीसवीं सदी के शुरुआती तीन-चार दशकों में अमरीका में ज्यादातर वर्गों के मजदूरों के संगठन बन गए थे. विशेषकर 1833 से 37  के बीच कई संगठन बने, जिनमें बुनकरों, बुक बाइन्डरों, दर्जियों, जूते बनाने वालों, फैक्ट्री में काम करने वालों तथा महिला कामगारों के संगठन प्रमुख रहे. 1830-40 का दशक अमरीका के मजदूर संगठनों के लिए गठन के लिहाज से स्वर्ण काल कहा जा सकता है. इन्हीं दिनों फिलाडेल्फिया, बोस्टन, न्यूयॉर्क, बाल्टीमोर आदि में भी स्थानीय स्तर पर मजदूर संगठन बने. इनमें आपस में तालमेल भी होने लगा था. 1836 में तोसिटी इंटर ट्रेड यूनियन एसोसिएशन काम करने लगीं थी. प्राप्त इतिहास के मुताबिक, तब तक अमरीका में 13 ऐसी एसोसिएशनें थीं, जिन्हें सिटी ट्रेड यूनियनों की एसोसिएशन कहा जा सकता था. इन्हीं में से एक जनरल ट्रेड यूनियन ऑफ न्यूयॉर्क भी थी, जिसका गठन 1833 में हुआ था. जिसके पास अपना कोष ही नहीं था, बल्कि वह अपना अखबार भी निकालती थी. अमरीका में इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर संगठनों का एसोसिएशन भी बनाया गया. 1834 में गठित नेशनल ट्रेड्स यूनियन ऐसा ही एसोसिएशन रहा. काम के घंटे घटाने के आंदोलन में इसकी बड़ी भूमिका रही.

 

हड़ताल तोड़ने के लिए आज भी प्रबंधन पर हथकंडे अपनाने के आरोप लगते हैं. हकीकत में हड़ताल तोड़ने का हथकंडा भी उतना ही पुराना है, जितना मजदूर संघों का इतिहास. अमरीका में जब भी हड़ताल होती थी, उसे तोड़ने की कोशिशें भी शुरू हो जातीं. हड़तालों को तोड़ने के लिए हथकंडे अपनाए जाते. तब संगठित मजदूरों ने हड़ताल तोड़ने वालों के खिलाफ पूरे अमरीका में अभियान चलाया. इसके बाद अमरीका में हड़ताल तोड़ने को घोर अपराध माना जाने लगा. उन दिनों अगर हड़ताल तोड़ने में कोई मजदूर शामिल होता तो उसे यूनियन से निकाल दिया जाता था. इसके बाद ही पूरी दुनिया में हड़ताल तोड़ने को गलत नजरिए से देखे जाने की धारणा बनी.इन्हीं दिनों इंग्लैंड में मजदूर संगठन बन गए थे. उन्नीसवीं सदी आते-आते ये मजबूत बनकर उभरने लगे थे. ब्रिटेन में न्यू इंग्लैंड के वर्किंग मेन्स एसोसिएशन ने ही सबसे पहले 1832 में काम के घंटे घटाकर 10 घंटे किए जाने की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ा. जैसे-जैसे अमरीका में आजादी की जंग जोर पकड़ती गई, उसमें आम जनता के साथ मजदूर संगठन भी हिस्सा लेते रहे. इसकी वजह से वर्षों तक अमरीकी आजादी के दिन चार जुलाई को मजदूर दिवस के तौर पर भी मनाया जाता रहा. अमरीकी आजादी की लड़ाई में मजदूरों की हिस्सेदारी के चलते 1835 तक अमरीका के कई इलाकों में मजदूरों ने काम के 10 घंटे प्रतिदिन का अधिकार प्राप्त कर लिया था. 1835 में ही फिलाडेल्फिया में मजदूर यूनियनों ने बड़ी हड़ताल की थी. इसकी वजह से काम के घंटे घटाकर दस घंटे करने की मांग स्वीकार की गई. इस सफलता के बाद पूरा अमरीका इस मांग के समर्थन में उमड़ पड़ा. रोजाना काम के 10 घंटे करने को लेकर अमरीका में पहला कानून 1847 में हैंपशायर में बना. इसके अगले साल पेन्सिल्वेनिया में यह कानून बना. 1860 के दशक के शुरुआत तक तकरीबन पूरे अमरीका में 10 घंटे काम कानून लागू हो गया.

 

मजदूरों के अधिकारों को मौजूदा स्थिति तक पहुंचाने में मजदूर संगठनों के राजनीतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण रही. वैसे इनका प्रचार और प्रसार यूरोप में ज्यादा हुआ. लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से मजदूरों की पहली राजनीतिक पार्टी सन् 1828 में फिलाडेल्फिया में बनी. वैसे ब्रिटेन की लेबर पार्टी मजदूरों की ही पार्टी है. ऐसी तमाम पार्टियां यूरोप के कई देशों में हैं. बहरहाल अमरीका में 1828 से 1834 के बीच 60 से ज्यादा शहरों में मजदूर संगठनों ने अपनी राजनीतिक पार्टियों का गठन किया. इसके बाद मजदूरों के काम के घंटे समेत कई मांगों को तार्किक बनाने की शुरुआत हुई.

 

जिसमें धीरे-धीरे सफलता मिलने लगी. इसे लेकर चार जुलाई की बजाय सितम्बर के किसी दिन को मजदूर दिवस मनाया जाने लगा. उस समय तक अमरीका में दो बड़े ट्रेड यूनियन संगठन खड़े हो चुके थे, नाइट्स ऑफ लेबर और दूसरा अमरीकन फेडरेशन ऑफ लेबर. इसके पहले इसका नाम फेडरेशन ऑफ आर्गनाइज्ड ट्रेडर्स एण्ड लेबर यूनियन्स ऑफ दी यूएस एण्ड कनाडा था. बहरहाल 18 मई 1882 में सेन्ट्रल लेबर यूनियन ऑफ न्यूयॉर्क की बैठक में पीटर मैग्वार ने मजदूर उत्सव मनाने का प्रस्ताव रखा. इसके लिए उन्होंने सितम्बर के पहले सोमवार का दिन सुझाया. इसके बाद उस साल पांच दिसंबर को तीस हजार से अधिक मजदूरों ने न्यूयॉर्क में रैली निकाली. इसी रैली में आठ घंटे के काम की मांग रखी गई. तब नारा दिया गया था, '8 घंटे काम के, 8 घंटे आराम के, और 8 घंटे हमारी मर्जी पर. इस नारे को 1883 में भी दोहराया गया. 1884 में न्यूयार्क सेंट्रल लेबर यूनियन ने मजदूर दिवस परेड के लिए सितम्बर माह के पहले सोमवार का दिन तय किया. जो सितम्बर की पहली तारीख को पड़ रहा था. इसी तरह 7 सितम्बर 1883 को पहली बार पूरे अमरीका में मजदूर अवकाश दिवस मनाया गया. इसके बाद तय हुआ कि मजदूरों की 8 घंटे प्रतिदिन काम की मांग से एकता जाहिर करने के लिए पहली मई को मजदूर दिवस मनाया जाए. इसके तहत एक मई 1886 को पहली बार मई दिवस मनाने की तैयारी हुई और देशव्यापी हड़ताल रखी गई. जिसकी प्रमुख मांग काम के घंटे घटाकर आठ घंटे करना रही. इसी आयोजन में शिकागो के हेमा मार्केट में बम फटा और पुलिस ने गोलियां चलाई. वैसे 1885 और 1886 में राष्ट्रव्यापी संघर्ष के लिए राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों ने सितंबर की तारीख तय की. लेकिन व्यापारिक कार्य और मौसम आदि के चलते उसे मई कर दिया गया.

जहां तक भारत में मजदूर दिवस मनाने की बात है तो यहां पहली बड़ी हड़ताल अप्रैल-मई 1862 में हावड़ा में हुई थी. तब करीब 1200 कामगारों ने हावड़ा रेलवे स्टेशन पर काम बन्द कर दिया था. इस हड़ताल के पीछे भी काम के घंटों को घटाकर 8 घंटे रोजाना करने की मांग थी. साफ है कि भारत में ऐसी मांग अमरीका में हुई ऐतिहासिक मई दिवस की हड़ताल के 24 वर्ष पहले हुई. भारत में पहली बार मई दिवस 1923 में चेन्नई, तब के मद्रास में मनाया गया. जिसकी अगुआई सिंगारवेलु चेट्टियार ने की, जो तब प्रभावशाली ट्रेड यूनियन नेता थे. सिंगारवेलु ने अप्रैल 1923 में भारत में मई दिवस मनाने का सुझाव दिया. क्योंकि तब तक दुनियाभर में ऐसा होने लगा था. सिंगारवेलु का सुझाव था कि सारे देश में इस मौके पर बैठकें होनी चाहिए. इसके तहत मद्रास में 15 जून 1923 को दो जनसभाएं हुईं और जुलूस निकाले गए. पहली सभा हाईकोर्ट 'बीच पर तथा दूसरी ट्रिप्लिकेन 'बीच पर हुई. मास्को से छपने वाले तत्कालीन अखबार वैनगार्ड ने इसे भारत का पहला मई दिवस समारोह बताया है. इसके बाद अगले साल से लगातार एक मई को ही यह दिवस मनाया जाने लगा. राष्ट्रीय स्तर पर इसे एक मई 1928 से मनाया जाने लगा.

(लेखक प्रसार भारती में कंसल्टेंट हैं)

(uchaturvedi@gmail.com)