जलियांवाला बाग हत्याकांड
पहले और उसके बाद
13 अप्रैल, मानव इतिहास के सबसे भयावह प्रकरणों में से एक और भारत में ब्रिटिश शासन के सबसे काले अध्याय - जलियांवाला बाग हत्याकांड की वर्षगांठ का द्योतक है. जलियांवाला त्रासदी ने इतिहास की शृंखला और ब्रिटिश शासन की दासता उखाड़ फेंकने के लिए भारत के संघर्ष का स्वरूप ही बदल दिया. इसने अगले 28 वर्षों तक भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्पित स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा के सबसे बड़े स्रोत के रूप में कार्य किया, अंतत: जब भारत ने विदेशी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की.जलियांवाला बाग हमें इस बात का स्मरण कराता है कि हमने कितनी मुश्किल से अपनी आज़ादी हासिल की और यह कितनी मूल्यवान है. 13 अप्रैल औपनिवेशिक क्रूरता और तर्कहीन क्रोध पर प्रतिबिंब का एक मार्मिक क्षण है और उन निर्दोष भारतीयों की याद दिलाता है जिन्होंने 1919 में बैसाखी के दिन अपनी जान गंवाई थी.
अप्रैल 1919 का नरसंहार कोई अकेली घटना नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसी घटना थी जिसकी पृष्ठभूमि में कई कारक जुड़े थे. यह समझने के लिए कि 13 अप्रैल, 1919 को क्या हुआ था, हमें इससे पहले की घटनाओं पर एक नज़र डालनी होगी.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने यह मान लिया था कि प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद स्वशासन प्रदान कर दिया जाएगा, लेकिन शाही नौकरशाही की अन्य योजनाएं थीं. रॉलेट एक्ट (काला कानून) 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया था, जिसमें सरकार को बिना किसी मुकदमे के देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार या कैद करने के लिए अधिकृत किया गया था. इससे देशव्यापी अशांति फैल गई.रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की. 7 अप्रैल, 1919 को उन्होंने 'सत्याग्रही’ नामक एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें रॉलेट एक्ट का विरोध करने के तरीकों का वर्णन किया गया था. ब्रिटिश अधिकारियों ने गांधीजी और सत्याग्रह में भाग लेने वाले अन्य नेताओं के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई को लेकर परस्पर चर्चा की.
किसी भी अन्य प्रांत की तुलना में पंजाब में आंदोलन अधिक व्यापक और गहन था. यहां पर अधिक जोश, उग्र भावनाएं, भीड़ का बड़ा जमावड़ा देखने को मिलता था, और यह सब उपद्रवी प्रदर्शनों, अधिकारियों के लिए चेतावनी तथा बार-बार होने वाली झड़पों के तौर पर उभरकर आया. 1907 के कृषि संकट के बाद से एक तरह से पंजाब में अशांति की छवि बन गई थी. तब से स्थितियां बहुत खराब हो गई थीं. प्रांत गहरी निराशा की भावना में डूबा था और गांधीजी के आह्वान ने लोगों में नया जोश भरने का काम किया. गांधीजी को पंजाब में प्रवेश करने से रोकने और आदेशों की अवहेलना करने पर उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए गए थे.
पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओ डायर (1912-1919) ने सुझाव दिया कि गांधीजी को बर्मा निर्वासित कर दिया जाए, लेकिन उनके साथी अधिकारियों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे जनता भड़क सकती है. डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल, दो प्रमुख नेताओं ने अमृतसर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया. 9 अप्रैल, 1919 को रामनवमी मनाई जा रही थी, जब ओ डायर ने उपायुक्त श्री इरविंग को डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया. 10 अप्रैल, 1919 को, उग्र प्रदर्शनकारियों ने अपने दो नेताओं की रिहाई की मांग के लिए उपायुक्त के आवास पर मार्च किया, जहां उन पर बिना किसी उकसावे के गोली चला दी गई. कई लोग घायल और मारे गए थे.
कत्लेआम
जनता 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी मनाने के लिए जलियांवाला बाग में एकत्र हुई थी. हालांकि, ब्रिटिश दृष्टिकोण, जैसा कि भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेजों से देखा जाता है, यह दर्शाता है कि यह एक राजनीतिक सभा थी. जनरल डायर द्वारा गैरकानूनी सभा पर रोक लगाने के आदेशों के बावजूद, लोग बाग में एकत्र हुए, जहां दो प्रस्तावों पर चर्चा की जानी थी, एक में 10 अप्रैल को गोलीबारी की निंदा और दूसरा अधिकारियों से अपने नेताओं की रिहाई के अनुरोध के बारे में था.जब यह खबर उसके पास पहुंची, तो जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ बाग की ओर चल पड़ा. उसने बाग में प्रवेश किया, अपने सैनिकों को तैनात किया और उन्हें बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. लोग बाहर निकलने के लिए दौड़े लेकिन डायर ने अपने सैनिकों को गोली चलाने का निर्देश दिया.
10-15 मिनट तक फायरिंग चलती रही. 1,650 राउंड फायरिंग हुई. गोला बारूद खत्म होने के बाद ही फायरिंग बंद हुई. जनरल डायर और मिस्टर इरविंग द्वारा दी गई मृतकों की कुल अनुमानित संख्या 291 थी. हालांकि, मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता वाली एक समिति सहित अन्य रिपोर्टों में मृतकों की संख्या 500 से अधिक बताई गई.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद
नरसंहार के दो दिन बाद, पांच जिलों - लाहौर, अमृतसर, गुजरांवाला, गुजरात और लायलपुर में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था. मार्शल लॉ की घोषणा क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति के कोर्ट-मार्शल से तत्काल ट्रायल के लिए निर्देश देने के वास्ते वायसराय को सशक्त बनाने के लिए की गई थी. जैसे ही नरसंहार की खबर पूरे देश में फैली, रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की पदवी त्याग दी.अमृतसर में नरसंहार के बाद कर्फ्यू आदेश लागू कर दिया गया जो दो महीने तक लागू रहा. मार्शल लॉ के तहत कई लोगों पर मुकदमा चलाया गया, कई को मौत की सजा दी गई, अन्य को आजीवन कारावास और भिन्न-भिन्न कारावास सजा दी गई. लाहौर में 10 अप्रैल को तीन बार और 17 अप्रैल को एक बार फिर जुलूस निकाला गया. 16 तारीख को, लाहौर के तीन सम्मानित नेताओं- रामभजदत्त चौधरी, हरकिशन लाल और दुनी चंद को डिप्टी कमिश्नर के घर आमंत्रित किया गया, वहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और निर्वासित कर दिया गया.
15 अप्रैल से 29 मई, 1919 तक मार्शल लॉ शासन अत्याचारपूर्ण व्यवहार की एक भयावह कहानी थी - परिवहन कमान, जरूरतमंदों को भोजन के मुफ्त वितरण पर रोक, छोटी अदालतों द्वारा दोषसिद्धि, कारावास, दंड, सार्वजनिक पिटाई, छात्रों का मई की तपती गर्मी के बीच दोपहर के समय एक दिन में मीलों तक का मार्च.गुजरांवाला में, एक बोर्डिंग हाउस पर बम फेंके गए, गांवों और शहर में 'नैतिक प्रभाव’ पैदा करने के लिए मशीनगनों को दागा गया. अंधाधुंध गिरफ्तारियां की गईं और लोगों को अपमानित किया गया, कोड़े मारे गए और कई तरह के आक्रोश का सामना करना पड़ा. कई अन्य स्थानों पर भी ऐसी भीषण कहानी दोहराई गई.
हंटर कमीशन
नरसंहार की जांच के लिए 14 अक्टूबर 1919 को उपद्रव जांच समिति का गठन किया गया था. बाद में इसे हंटर आयोग के नाम से जाना जाने लगा. हंटर आयोग को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के औचित्य, या अन्यथा, पर अपने फैसले की घोषणा करने का निर्देश दिया गया था. अमृतसर में अशांति के दौरान प्रशासन में शामिल सभी ब्रिटिश अधिकारियों से जनरल डायर और मिस्टर इरविंग सहित पूछताछ की गई.नरसंहार के दिन जनरल डायर के कार्यों को सर माइकल ओ’डायर से त्वरित स्वीकृति मिली, जिन्होंने तुरंत उन्हें तार भेजा था: 'आपकी कार्रवाई सही है, लेफ्टिनेंट-गवर्नर ने मंजूरी प्रदान की’ डयर और डायर दोनों को विभिन्न समाचार पत्रों से जबरदस्त आलोचना का सामना करना पड़ा जिन्होंने क्रूर नरसंहार को अपने खाते में जोड़ा था.जनरल डायर ने हंटर कमेटी के सामने जो सबूत पेश किए, वह उनके द्वारा किए गए क्रूर कृत्य के स्वीकारोक्ति के रूप में थे. समिति ने नरसंहार को ब्रिटिश प्रशासन के सबसे काले कारनामों में से एक के रूप में इंगित किया. 1920 में हंटर आयोग ने डायर की उसके कार्यों के लिए निंदा की. कमांडर-इन-चीफ ने जनरल डायर को अपनी नियुक्ति से इस्तीफा देने का निर्देश दिया.
ओ’डायर की हत्या
13 मार्च, 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह ने माइकल ओ’डायर की हत्या कर दी, जिन्होंने डायर की कार्रवाई को मंजूरी दी थी और माना जाता था कि वह नरसंहार का मुख्य योजनाकार था. ओ’डायर को उधम सिंह ने वेस्टमिंस्टर स्थल के बाहर गोली मार दी थी. उधम सिंह उस नरसंहार वाले दिन अमृतसर में थे, और कहा जाता है कि उन्होंने खुद को गोली मारकर घायल कर लिया था. जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने ओ’डायर को मार डाला. इसका बदला लेने के लिए उधम सिंह को फांसी दे दी गई. जलियांवाला बाग स्वतंत्रता के लिए भारत के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. यह भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन शब्द के सही अर्थों में एक जन आंदोलन बन गया. विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संप्रदायों से संबंधित बड़ी संख्या में समूहों ने ब्रिटिश शासन से भारत की मुक्ति के लिए अपना संघर्ष शुरू कर दिया.
जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक
जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम, 1951 में अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को मारे गए या घायल हुए लोगों की स्मृति बनाए रखने और उनका सम्मान करने के लिए एक राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण और प्रबंधन का प्रावधान किया गया.इस स्थल पर, जलियांवाला बाग स्मारक उन 2,000 भारतीयों को श्रद्धांजलि देता है जो 13 अप्रैल, 1919 को एक शांतिपूर्ण जनसभा में भाग लेते हुए मारे गए या घायल हो गए थे, जिन्हें अंधाधुंध गोलियां मारी गई थीं. इस भीषण नरसंहार की कहानी स्थल पर शहीदों की गैलरी में बताई गई है. यह संघर्ष और बलिदान के प्रतीक के रूप में खड़ा है और युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाता रहता है. स्मारक के कुएं के साथ गोली के निशान वाली दीवार का एक हिस्सा अभी भी दिखाई दे रहा है, जिसमें कुछ लोग बचने के लिए कूद पड़े थे. मार्च 2019 में, याद-ए-जलियां संग्रहालय का उद्घाटन किया गया था, जिसमें नरसंहार का एक प्रामाणिक विवरण प्रदर्शित किया गया था.
हाल ही में परिसर में कई विकास पहल की गई हैं. पंजाब की स्थानीय स्थापत्य शैली के अनुरूप विस्तृत विरासत बहाली कार्य किए गए हैं. शहीदी कुएं की मरम्मत की गई है और एक नए सिरे से परिभाषित सुपर संरचना के साथ बहाल किया गया है. बाग का दिल, ज्वाला स्मारक की मरम्मत और बहाली की गई है, जलाशय को एक लिली तालाब के रूप में फिर से जीवंत किया गया है, और मार्ग को बेहतर आवागमन के लिए चौड़ा बना दिया गया है.अनुपयोगी और कम उपयोग वाली इमारतों के नवीनीकरण और उनके पुन: उपयोग हेतु चार संग्रहालय दीर्घाएं बनाई गई हैं. दीर्घाएं उस अवधि के दौरान पंजाब में हुई घटनाओं के ऐतिहासिक मूल्य को प्रदर्शित करती हैं, जिसमें प्रोजेक्शन मैपिंग और 3 डी प्रस्तुतिकरण के साथ-साथ कला और मूर्तिकला के नमूनों सहित ऑडियो-विजुअल तकनीक का मिश्रण होता है. 13 अप्रैल, 1919 को हुई घटनाओं को प्रदर्शित करने के लिए एक साउंड एंड लाइट शो की स्थापना की गई है.
कई नई और आधुनिक सुविधाओं को जोड़ा गया है, जिसमें उपयुक्त संकेतों के साथ आंदोलन के पुन:परिभाषित पथ, महत्वपूर्ण स्थानों पर रोशनी, वृक्षारोपण के साथ भूदृश्य निर्माण और हार्डस्केपिंग, और पूरे बगीचे में ऑडियो नोड्स की स्थापना शामिल है. साथ ही साल्वेशन ग्राउंड, अमर ज्योत और फ्लैग मास्ट की स्थापना के लिए नए क्षेत्र विकसित किए गए हैं.
1951 के अधिनियम में 2019 में संशोधन किया गया था ताकि ट्रस्ट के स्थायी सदस्य के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष से संबंधित खंड को हटाकर जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक चलाने वाले ट्रस्ट को ग़ैर राजनीतिक बनाया जा सके. विधेयक में लोकसभा में मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता को शामिल करने के लिए भी संशोधन किया गया अथवा जहां कहीं विपक्ष का ऐसा कोई नेता नहीं है, सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्ट के सदस्य के रूप में शामिल किया गया है.
जलियांवाला बाग ऐप
जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक समर्पित मोबाइल ऐप 2019 में लॉन्च किया गया था. ऐप जलियांवाला बाग की एक चित्र गैलरी की मेजबानी करता है और इसमें इस स्थान के इतिहास के बारे में विवरण दिया गया है.जैसा कि भारत के उपराष्ट्रपति ने नरसंहार की 2019 में 100वीं बरसी पर सही ही कहा था, आज भी हर भारतीय के दिलों में दर्द और वेदना मौजूद है. उन्होंने कहा, 'इतिहास केवल घटनाओं का इतिहास नहीं होता है. यह हमें दिखाता है कि विकृत मन किस गहराई तक उतर सकता है और हमें अतीत से सीखने के लिए सावधान करता है. यह हमें यह भी बताता है कि बुराई की शक्ति क्षणिक होती है.’
ईएन टीम द्वारा संकलित
स्रोत: PIB/indianculture.gov.in/