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विशेष लेख


अंक संख्या 03,16-22 अप्रैल 2022

हरित ऊर्जा की ओर

भारत का परिवर्तन

 

 

जलवायु परिवर्तन विश्व अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरे का द्योतक है. भारत के समक्ष अन्य प्रभावों के साथ-साथ अत्यधिक गर्मी, मीठे पानी की आपूर्ति में कमी, मिट्टी सूखने, अधिक तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात, मानसून की स्थिति तथा समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के कारण और भी बड़ी चुनौतियां हैं. इससे निपटने के लिए ऊर्जा प्रणालियों में व्यापक अथवा संपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता होगी जो हमारी अर्थव्यवस्थाओं को रेखांकित करती है.एक गर्म ग्रह के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए स्वच्छ और सस्ते ऊर्जा संसाधनों की आवश्यकता के साथ बढ़ती ऊर्जा जरूरतों का संगम दुनियाभर में तेजी से अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के विकास को सक्षम कर रहा है. पिछले दो दशकों में भारत की ऊर्जा प्रणाली में काफी बदलाव आया है. अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास उच्च स्तर के नीतिगत समर्थन को दर्शाते हैं. इस संदर्भ में, भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है क्योंकि यह दुनिया की सबसे बड़ी विद्युत प्रणालियों में से एक के लिए आधार तैयार करता है.ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों को अपनाने के बारे में दुनिया भर में बहुत कुछ कहा जाता है. बयानबाजी और असल कार्रवाई के बीच की खाई को पाटने के लिए, भारत सरकार मौजूदा ऊर्जा प्रणालियों को डीकार्बोनाइज करने के लिए कई पहल कर रही है, जिससे समग्र रूप से कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सके.

 

डीकार्बोनाइजेशन क्या है?

कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने 'डीकार्बोनाइजेशनको 'एक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वातावरण में छोड़ी जाने वाली कार्बन गैसों, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, उदाहरणार्थ जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण उत्पन्न गैसों की रोकथाम या इसे कम करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है. डीकार्बोनाइजेशन केवल विद्युत क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, यह अर्थव्यवस्था को और अधिक डीकार्बोनाइज़ करने का एक लंबा मार्ग तय करता है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उद्योग जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करते हैं और इस तरह कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी करते हैं.डीकार्बोनाइजेशन महत्वपूर्ण है क्योंकि जब उद्योग जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं तो वे बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव होता है. यद्यपि जब उद्योग स्वच्छ ईंधन की ओर रुख करते हैं, तो वातावरण में जारी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को काफी कम किया जा सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को धीमा करने में भी मदद करेगा.दुनिया के लिए और भारत के लिए प्रस्तावित कई व्यापक डीकार्बोनाइजेशन मार्गों में परिवहन, भवनों और उद्योग का विद्युतीकरण उन क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज करने का प्रमुख समाधान है.

 

भारत कैसे डीकार्बोनाइजेशन की ओर बढ़ रहा है?

 

सीओपी21 (2015) में, अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसीज) के हिस्से के रूप में, भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से अपनी स्थापित विद्युत क्षमता का 40 प्रतिशत हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. देश ने नवंबर 2021 में ही इस लक्ष्य को हासिल कर लिया. 30 नवम्बर 2021 को देश की स्थापित अक्षय ऊर्जा (आरई) क्षमता 150.54 गीगावॉट (सौर : 48.55 गीगावॉट, पवन : 40.03 गीगावॉट, लघु जल विद्युत : 4.83, जैव-ऊर्जा : 10.62, बृहत हाइड्रो : 46.51 गीगावॉट) है, जबकि इसकी परमाणु ऊर्जा आधारित स्थापित विद्युत क्षमता 6.78 गीगावॉट है. इससे कुल गैर-जीवाश्म आधारित स्थापित ऊर्जा क्षमता 157.32 गीगावॉट तक हो जाती है जो कि 392.01 गीगावॉट की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 40.1 प्रतिशत है. सीओपी26 (2021) में माननीय प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुरूप, सरकार वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावॉट स्थापित विद्युत क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है.

प्रमुख कार्यक्रम और योजनाएं

 

1. प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) : ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करने के लिए, कृषि क्षेत्र की डीजल पर निर्भरता समाप्त करने और सौर ऊर्जा का उत्पादन करके किसानों के लिए अतिरिक्त आय पैदा करने के लिए, सरकार ने किसानों के लिए पीएम-कुसुम योजना शुरू की है. इस योजना के तीन घटक हैं:

·         घटक : 10,000 मेगावाट विकेन्द्रीकृत ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 2 मेगावाट तक है.

·         घटक : 20 लाख एकल सौर ऊर्जा संचालित कृषि पंपों की स्थापना

·         घटक : ग्रिड से जुड़े मौजूदा 15 लाख कृषि पंपों को सौर ऊर्जा की सुविधा प्रदान करना

इस योजना का लक्ष्य 34,000 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्तीय सहायता के साथ 30.8 गीगावाट सौर क्षमता को जोड़ना है.

 

2. उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना : अप्रैल 2021 में, सरकार ने 4,500 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ पीएलआई योजना 'उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल पर राष्ट्रीय कार्यक्रमकी शुरुआत की. भारत में सेल, वेफर्स, इनगॉट्स और पॉलीसिलिकॉन जैसे उच्च  श्रेणी वर्टिकल घटकों सहित उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के निर्माण को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए इसकी शुरुआत की गई, जिससे सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) क्षेत्र में आयात निर्भरता को कम किया जा सके.

 

3. सौर पार्क योजना : बड़े पैमाने पर ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं की सुविधा के लिए, 'सौर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकासकी एक योजना लागू की जा रही है. सौर पार्क सभी वैधानिक मंजूरी के साथ-साथ भूमि, बिजली निकासी सुविधाओं, सड़क संपर्क, पानी की सुविधा, आदि जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे की सुविधा के तहत एक प्लग एंड प्ले मॉडल के साथ सौर ऊर्जा डेवलपर्स प्रदान करते हैं.

 

4. रूफ टॉप सोलर प्रोग्राम फेज-II : रूफ टॉप सोलर प्रोग्राम फेज-II सोलर रूफटॉप सिस्टम के त्वरित परिनियोजन के लिए भी कार्यान्वयन के अधीन है. इस योजना के तहत आवासीय क्षेत्र को 4 गीगावाट तक की सौर रूफटॉप क्षमता की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और वितरण कंपनियों को पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धिशील उपलब्धि के लिए प्रोत्साहित करने का प्रावधान है. आवासीय क्षेत्र के लिए, घरेलू रूप से निर्मित सौर सेल और मॉड्यूल का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है. इस योजना के भारत की सौर सेल और मॉड्यूल निर्माण क्षमता जोड़ने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने की उम्मीद है.

 

5. केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (सीपीएसयू) योजना : यह योजना घरेलू सेल और मॉड्यूल के साथ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा 12 गीगावाट ग्रिड से जुड़ी सौर पीवी विद्युत परियोजनाओं की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करती है. इस योजना के तहत व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण सहायता प्रदान की जाती है. सौर क्षमता जोड़ने के अलावा, यह योजना घरेलू रूप से निर्मित सौर सेल/मॉड्यूल की मांग भी पैदा करेगी और इस प्रकार घरेलू विनिर्माण में मदद करेगी.

 

6. अटल ज्योति योजना (अजय) : नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने सौर स्ट्रीट लाइट लगाकर अंधेरे क्षेत्रों को रोशन करने के लिए इस योजना की शुरुआत की. एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) एमएनआरई की ऑफ-ग्रिड और विकेंद्रीकृत सौर अनुप्रयोग योजना के तहत इस उप-योजना को लागू कर रही है. इसका उद्देश्य ग्रामीण, अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों को सौर एलईडी स्ट्रीट लाइट से रोशन करना है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार 50 प्रतिशत से कम ग्रिड कनेक्टिविटी के संपर्क में हैं.

 

7. हरित ऊर्जा गलियारा : अक्षय ऊर्जा निकासी की सुविधा के लिए और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए ग्रिड को फिर से आकार देने के वास्ते, ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (जीईसी) परियोजनाएं शुरू की गई हैं. योजना का पहला घटक, 3,200 सर्किट किलोमीटर (सीकेएम) ट्रांसमिशन लाइनों और 17,000 एमवीए क्षमता सब-स्टेशनों की लक्ष्य क्षमता के साथ अंतर-राज्य जीईसी, मार्च 2020 में पूरा किया गया था. दूसरा घटक, इंट्रा-स्टेट जीईसी लक्ष्य क्षमता के साथ 9,700 सीकेएम ट्रांसमिशन लाइन और 22,600 एमवीए क्षमता के सब-स्टेशन के जून 2022 तक पूरा होने की उम्मीद है.

 

8. एमएनआरई द्वारा कई जैव-ऊर्जा योजनाएं भी कार्यान्वित की जा रही हैं जैसे कि शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों/अवशेषों से ऊर्जा पर कार्यक्रम, चीनी मिलों और अन्य उद्योगों में बायोमास आधारित सह उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए योजना, बायोगैस पावर (ऑफ- ग्रिड) उत्पादन और थर्मल अनुप्रयोग कार्यक्रम (बीपीजीटीपी), और नया राष्ट्रीय बायोगैस और जैविक खाद कार्यक्रम (एनएनबीओएमपी).

राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन

भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन (एनएचएम) के शुभारंभ की घोषणा की और भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने का लक्ष्य बताया.हाइड्रोजन, बिजली की तरह, एक ऊर्जा वाहक है जिसका किसी अन्य पदार्थ से उत्पादन किया जाना चाहिए. पानी, जीवाश्म ईंधन, या बायोमास सहित विभिन्न स्रोतों से हाइड्रोजन का उत्पादन अलग-अलग किया जा सकता है और ऊर्जा या ईंधन के स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है. हाइड्रोजन में वजन के हिसाब से किसी भी सामान्य ईंधन की ऊर्जा सामग्री सबसे अधिक होती है (गैसोलीन से लगभग तीन गुना अधिक), लेकिन इसमें मात्रा के हिसाब से ऊर्जा की मात्रा सबसे कम होती है (गैसोलीन से लगभग चार गुना कम).

 

मिशन अन्य बातों के साथ-साथ पेट्रोलियम रिफाइनिंग और उर्वरक उत्पादन, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी निर्माण के लिए समर्थन, अनुसंधान और विकास गतिविधियों, और एक सक्षम नीति और नियामक ढांचे जैसे क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग पैदा करने के लिए एक रूपरेखा का प्रस्ताव करता है. इसका उद्देश्य मूल्य शृंखला में हाइड्रोजन और ईंधन सेल प्रौद्योगिकी के निर्माण के लिए भारत को वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करना है.

मिशन के तहत परिकल्पित प्रमुख गतिविधियों में वॉल्यूम और बुनियादी ढांचे का निर्माण; परिवहन और उद्योग सहित आला अनुप्रयोगों में प्रदर्शन; लक्ष्य-उन्मुख अनुसंधान एवं विकास; सुविधाजनक नीति समर्थन; और हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों के लिए मानकों और विनियमों के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार करना शामिल है. मिशन का उद्देश्य सरकार को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने और भारत को हरित हाइड्रोजन हब बनाने में सहायता करना है. इससे 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने और अक्षय ऊर्जा क्षमता के संबंधित विकास में मदद मिलेगी.

 

हाइड्रोजन और अमोनिया को ईंधन का भविष्य माना जाता है और आने वाले वर्षों में जीवाश्म ईंधन को बदलने की परिकल्पना की गई है. राष्ट्र की पर्यावरणीय रूप से स्थायी ऊर्जा सुरक्षा की प्रमुख आवश्यकताओं में से एक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली का उपयोग करके इन ईंधनों का उत्पादन करना है. इसे ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के नाम से जाना जाता है. ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया में संक्रमण उत्सर्जन में कमी के लिए प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है. इस संबंध में, संबंधित हितधारकों द्वारा अनुपालन और कार्यान्वयन के लिए विद्युत मंत्रालय ने एक ग्रीन हाइड्रोजन नीति तैयार की है.

माननीय प्रधान मंत्री का लक्ष्य 2047 तक भारत को एक ऊर्जा स्वतंत्र राष्ट्र में परिवर्तित है जहां ग्रीन हाइड्रोजन पेट्रोलियम/जीवाश्म आधारित उत्पादों के वैकल्पिक ईंधन के रूप में सक्रिय भूमिका निभाएगा.

नीतियां और पहलें

·         30 जून, 2025 तक चालू होने वाली परियोजनाओं के लिए सौर और पवन ऊर्जा की अंतर-राज्यीय बिक्री के लिए अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएसटीएस) शुल्क में छूट.

 

·         विद्युत प्रणालियों को कार्बन मुक्त करने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्यों के मद्देनज़र और ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने तथा हमारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए वर्ष 2021-22 तक समान रूप से लागू दीर्घकालिक अक्षय क्रय दायित्व विकास प्रक्षेपवक्र जुलाई 2016 में अधिसूचित किया गया था. इसके अलावा, जनवरी 2021 में विद्युत मंत्रालय ने गैर-सौर नवीकरणीय क्रय दायित्व (आरपीओ) के भीतर जलविद्युत क्रय दायित्व (एचपीओ) को शामिल किया और 2029-30 तक एचपीओ सहित 2019-20 से 2021-22 तक दीर्घकालिक अद्यतन आरपीओ प्रक्षेपवक्र अधिसूचित किया.

 

 

·         विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 63 के तहत सौर और पवन ऊर्जा की खरीद के लिए प्रतिस्पर्धी निविदा दिशानिर्देश अधिसूचित किए गए हैं. ये दिशानिर्देश खरीद प्रक्रिया के मानकीकरण और एकरूपता और विभिन्न हितधारकों के बीच जोखिम-साझाकरण ढांचा प्रदान करते हैं, जिससे निवेश को बढ़ावा मिलता है, बैंक योग्यता में वृद्धि होती है और परियोजनाओं के लिए लाभप्रदता में सुधार होता है. दिशानिर्देश खरीद प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता की सुविधा भी प्रदान करते हैं जिसके परिणामस्वरूप पिछले कुछ वर्षों में सौर और पवन ऊर्जा की कीमतों में भारी गिरावट आई है.

 

·         अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत माननीय प्रधान मंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा 2015 में पेरिस, फ्रांस में की गई थी. आईएसए भारत में मुख्यालय रखने वाला पहला अंतरराष्ट्रीय अंतर सरकारी संगठन है. इसका उद्देश्य अपने सदस्य देशों में ऊर्जा पहुंच कायम करने, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देने के साधन के रूप में सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तैनाती में वृद्धि करना है.

·         वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (ओएसओडब्ल्यू-ओजी) : वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड (ओएसओडब्ल्यूओजी) पहल का विचार माननीय प्रधान मंत्री ने अक्टूबर 2018 अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की पहली सभा में रखा था. यूनाइटेड किंगडम और भारत ने ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव और ओएसओडब्ल्यूओजी पहल की ताकतों को संयोजित करने और नवंबर 2021 में सीओपी26 शिखर सम्मेलन में जीजीआई ओएसओडब्ल्यूओजी को संयुक्त रूप से लॉन्च करने पर सहमति व्यक्त की. इसमें विश्व, देशों और क्षेत्रों के बीच समय क्षेत्रों, मौसमों, संसाधनों और कीमतों के अंतर का लाभ उठाते हुए सौर ऊर्जा को साझा करने के लिए अंतर-क्षेत्रीय ऊर्जा ग्रिड के निर्माण और स्केलिंग की संकल्पना है. ओएसओडब्ल्यूओजी ऊर्जा उत्पादन को डीकार्बोनाइज करने में भी मदद करेगा, जो आज वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है. ओएसओडब्ल्यू्ओजी का उद्देश्य ऊर्जा भंडारण की उच्च लागत के मुद्दे को हल करना भी है.

 

भारत अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों और प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधानों की मौजूदगी के कारण हरित हाइड्रोजन उत्पादन की व्यापक क्षमता रखता है. हाइड्रोजन ईंधन का बड़े पैमाने पर उपयोग भारत की भू-राजनीतिक ऊंचाई को विस्तारित करने और ऊर्जा सुरक्षा के लिए समर्थन में सहायक हो सकता है.

संकलन : अनीशा बनर्जी और अनुजा भारद्वाजन

स्रोत-पत्र सूचना कार्यालय/ आईएसए