प्रधानमंत्री स्वनिधि
नैनो उद्यमियों का सशक्तिकरण
शालिनी पांडे
स्ट्रीट वेंडर नैनो-उद्यमी हैं और शहर के जीवन का अभिन्न अंग हैं. पहुंच में आसानी और वस्तुओं एवं सेवाओं की अपेक्षाकृत कम कीमतें, उन्हें शहरवासियों, खासकर मध्यम और निम्न वर्ग के शहरी परिवारों के बीच, लोकप्रिय बनाती हैं. भारत में जनसांख्यिकीय लाभ और औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार की कमी को देखते हुए, अनेक लोग आजीविका के लिए अनौपचारिक क्षेत्र की ओर रुख करते हैं. अधिसंख्य शहरी गरीबों के लिए, व्यवसाय शुरू करने में आसानी के कारण सड़कों पर विक्रय की ओर एक स्वाभाविक झुकाव है. ये स्ट्रीट वेंडर शहरी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे न केवल अपने लिए रोज़गार पैदा करते हैं और शहरी नागरिकों के लिए जीवन को आसान बनाते हैं, बल्कि कई व्यवसायों और उद्यमों के लिए वस्तुओं और सेवाओं की मांग को विकसित करने में भी योगदान करते हैं. वे आपूर्ति शृंखला के लिए एक मूल्यवान कड़ी हैं.यह स्पष्ट है कि रेहड़ी-पटरी विक्रेता असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के सबसे अधिक दिखाई देने वाले स्वरोज़गार समूह का गठन करते हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देशभर में रेहड़ी-पटरी वालों की पर्याप्त उपस्थिति के बावजूद, हमारे शहर अभी तक उन्हें शहरी ताने-बाने के हिस्से के रूप में स्वीकार करने और उनके व्यवसायों के लिए जगह प्रदान करने को तैयार नहीं हैं. शहरी भारत का एक महत्वपूर्ण घटक होने के बावजूद, उन्हें शहर में अवैध, और व्यवस्था को बाधित करने वाला माना जाता है. सार्वजनिक स्थान से लगातार इनकार और उनके काम और अर्थव्यवस्था में योगदान की मान्यता से अनौपचारिकता की स्थिति बनी रहती है. 2014 के ऐतिहासिक पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 के अधिनियमन के साथ यह परिदृश्य धीमी गति से बदल रहा है.
पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014
इस कानून में आजीविका अधिकारों की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और शहरी पथ-विक्रय के नियमन के लिए किए जाने वाले प्रमुख उपायों की रूपरेखा तैयार की गई है. अधिनियम ने गली विक्रेताओं सहित सभी हितधारकों के लिए एक प्रतिभागितापूर्ण मंच के रूप में टाउन वेंडिंग कमेटी (टीवीसी) की कल्पना की, इस प्रकार उन्हें शहर स्तर पर निर्णय लेने वाली संस्था में पहली बार भाग लेने का अधिकार दिया गया. टीवीसी सभी स्ट्रीट वेंडरों की पहचान के लिए उनके शहरों में सर्वेक्षण करने के प्रति जिम्मेदार है, और बाद में सर्टिफिकेट ऑफ वेंडिंग (सीओवी) जारी करती है, और इसके अतिरिक्त उन्हें, निर्दिष्ट वेंडिंग जोन में जगह आवंटित करती है. सर्टिफिकेट ऑफ वेंडिंग एक दस्तावेज है जो विक्रेता के व्यवसाय को मान्यता और कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, और पुलिस और नागरिक निकायों जैसे अधिकारियों द्वारा अनावश्यक पूछताछ और कार्रवाई को रोकने में मदद करता है. हालांकि इस अधिनियम ने रेहड़ी-पटरी वालों की बुनियादी चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया, लेकिन वास्तव में इसका कार्यान्वयन कमजोर रहा क्योंकि कई राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम द्वारा अपेक्षित योजना और नियमों को अधिसूचित करने में विफल रहे, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश रेहड़ी-पटरी वालों को अपनी आजीविका कमाने के लिए दैनिक आधार पर लगातार उत्पीड़न और संघर्ष का सामना करना पड़ा.
कोविड-19 और आजीविका संकट
उन तमाम संघर्षों, चुनौतियों और उत्पीड़न के बावजूद, हमारे शहरी क्षेत्रों में रेहड़ी-पटरी वाले काम करते रहे. हर दिन समस्याओं के एक नए सेट के साथ संघर्ष था, लेकिन, उन्होंने जिसकी कल्पना नहीं की थी वह एक अभूतपूर्व महामारी और परिणामस्वरूप राष्ट्रीय तालाबंदी थी. दुनियाभर में, कोविड-19 ने आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर दिया. बाद के लॉकडाउन से हर कोई बुरी तरह प्रभावित हुआ. जीवित रहने के लिए दैनिक आय पर निर्भर होने के कारण, अनौपचारिक क्षेत्र को सबसे अधिक मार झेलनी पड़ी. पथ विक्रेता व्यवसाय जनता की निर्बाध आवाजाही पर बहुत अधिक निर्भर है. कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन ने इस संभावना को गंभीर रूप से सीमित कर दिया और रेहड़ी-पटरी वालों के जीवन और आजीविका के अवसरों को प्रभावित किया. विक्रेताओं के पास अपने खराब होने वाले सामान को बेचने या खराब न होने वाले सामान को सुरक्षित भंडार में रखने के लिए पर्याप्त समय नहीं था. उनमें से कई अपूरणीय क्षति से पीड़ित थे और उनके पास कोई बचत राशि नहीं थी और कोई बैक-अप योजना नहीं थी. बड़े शहरी क्षेत्रों में अस्तित्व बनाए रखने में असमर्थ, अनेक पथ विक्रेताओं ने अपने गृह कस्बों और गांवों में लौटने का विकल्पम चुना.जैसे ही लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी, रेहड़ी-पटरी वालों में मायूसी छा गई क्योंकि उनके पास अपने व्यवसाय के पुनर्निर्माण के लिए सामान खरीदने के वास्ते कोई पूंजी नहीं थी. आमतौर पर रेहड़ी-पटरी विक्रेता परिवार के सदस्यों, साहूकारों और थोक विक्रेताओं के कर्ज पर निर्भर होते हैं, लेकिन ब्याज की दरें इतनी अधिक होती हैं कि यह कर्ज का जाल बन जाता है. रेहड़ी-पटरी वालों के लिए बैंकों से ऋण प्राप्त करना कठिन था क्योंकि सीओवी की अनुपस्थिति में उनके व्यवसाय को मान्यता नहीं दी गई थी, और उनके पास आवश्यक संपार्श्विक नहीं थे.यह तात्कालिक आवश्यकता पूरी करने के लिए भारत सरकार ने पथ विक्रेताओं की मदद करने, उन्हें अपनी आजीविका फिर से शुरू करने और उन्हें फिर से स्वावलंबी बनाने के प्रयास में, आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्म निर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना शुरू करने का निर्णय लिया.
प्रधान मंत्री स्वनिधि : पथ विक्रेताओं को मुख्यधारा में लाना
1. आवासन और शहरी मामले मंत्रालय ने स्ट्रीट वेंडर्स को कोविड-19 महामारी के दौरान प्रतिकूल रूप से प्रभावित व्यवसाय फिर से शुरू करने के लिए संपार्शि्वक राशि मुक्त कार्यशील पूंजी ऋण की सुविधा देने के उद्देश्य से 01 जून, 2020 को प्रधान मंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्म-निर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना शुरू की. योजना में निम्नलिखित विशेषताएं हैं:
2. एक वर्ष की कार्यावधि के लिए 10,000 रुपये तक के संपार्श्विक मुक्त कार्यशील पूंजी ऋण, और पूर्ववर्ती वर्ष के ऋण की अदायगी पर दूसरे तथा तीसरे वर्ष के लिए क्रमश: 20,000/- और 50,000 रुपये के संवर्धित ऋण की सुविधा.
3. 7 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सब्सिडी के माध्यम से नियमित पुनर्भुगतान को प्रोत्साहित करना; और ऋण की शीघ्र चुकौती पर कोई प्रभार नहीं.
4. प्रति वर्ष 1,200 रुपये तक के कैश बैक के माध्यम से डिजिटल लेनदेन को प्रोत्साहन.
यह योजना शहरी क्षेत्रों में सभी रेहड़ी पटरी वालों के लिए लागू की गई है, जिनमें आसपास की बस्तियों/ परिनगरीय क्षेत्रों/ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) की भौगोलिक सीमा के भीतर विक्रय करने वाले पथ विक्रेता भी शामिल हैं.
वित्तीय समावेशन के लिए झंझट मुक्त प्रक्रियाएं
पीएम स्वनिधि के प्रयोग से पहले, यह बहुत स्पष्ट था कि उधार देने वाली संस्थाएं अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में उन लोगों को ऋण देने से हिचकिचाती थीं क्योंकि उनके व्यवसायों को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी जाती थी, और उन्हें उच्च ऋण जोखिम माना जाता था. इसके अलावा, उधार देने की प्रक्रिया अक्सर ऐसे आवेदकों के प्रतिकूल होती है.
पीएम स्वनिधि योजना ने एलओआर (लैटर ऑफ रिक्मेंडेशन) को परिभाषित और अनुमति देकर मंजूरी की समस्या का समाधान किया. चुकौती न करने की स्थिति में उधार लिए गए ऋण के एक हिस्से की गारंटी देकर ऋण जोखिम का समाधान किया गया. यह योजना न केवल अनुसूचित बैंकों के माध्यम से, बल्कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी), लघु वित्त बैंकों (एसएफबी), सहकारी बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी), सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) सहित वित्तीय संस्थानों की पूरी शृंखला, और यहां तक कि स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बैंक के माध्यम से भी लागू की गई है.स्ट्रीट वेंडरों के लिए बैंकिंग प्रक्रियाओं की समस्या और स्वयं ऋण देने वाले संस्थानों (एलआई) द्वारा बड़ी संख्या में आवेदनों के निपटान की समस्या के समाधान के लिए, पूरी तरह से आईटी-आधारित प्रणाली विकसित की गई. पीएम स्वनिधि के लिए एक समर्पित पोर्टल बनाया गया है, जिससे सभी ऋणदाता (एलआई) और सभी शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) जुड़े हुए हैं, और एक ऑनलाइन ऋण आवेदन प्रपत्र भी बनाया गया. स्ट्रीट वेंडर एलआई या यूएलबी के कर्मचारियों द्वारा सक्रिय रूप से समर्थित, ऑनलाइन ऋण आवेदन भर सकते हैं और जमा कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को और आसान बनाने के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन भी विकसित किया गया है. व्यापक यूआईडीएआई डेटाबेस के साथ एकीकरण के माध्यम से केवाईसी प्रक्रियाएं भी ऑनलाइन (ई-केवाईसी) की जाती हैन केवल आवेदन, बल्कि ऋण स्वीकृति और संवितरण की पूरी प्रक्रिया भी ऑनलाइन है. इस कवायद की अपार सफलता केवल 18 महीनों में प्राप्त 45 लाख आवेदनों के माध्यम से दिखाई देती है. इनमें से अब तक करीब 33 लाख कर्ज मंजूर किए जा चुके हैं. जिस आसानी और गति के साथ ये विक्रेता औपचारिक ऋण प्रणाली और औपचारिक अर्थव्यवस्था से एकीकृत किए गए हैं, वह उल्लेखनीय है.
विक्रेताओं को सतत वित्तीय सहायता प्रदान करना
स्ट्रीट वेंडर परंपरागत रूप से अपने परिवारों, दोस्तों, साहूकारों और ऋण के लिए ऐसे ही अन्य अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर रहे हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मात्र एक ऋण के साथ स्ट्रीट वेंडर अपनी सभी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं और उन्हें अपने व्यवसाय का विस्तार करने और अन्य जरूरतों के लिए कार्यशील पूंजी ऋण के कई दौर की आवश्यकता हो सकती है. बार-बार ऋण की इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, प्रधान मंत्री स्वनिधि योजना ने उन पथ विक्रेताओं को उच्च ऋण राशि स्वीकृत करने का प्रावधान किया है, जिन्होंने पहले ऋण का जल्दी या समय पर पुनर्भुगतान कर दिया हो. कोई विक्रेता, जिसने 10,000 रुपये का लाभ उठाया है और एक अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड दिखाया है, वह अपने दूसरे ऋण के रूप में 20,000 रुपये की राशि के लिए पात्र होगा, और आगे दूसरे ऋण के पुनर्भुगतान पर, 50,000 रुपये के तीसरे ऋण के लिए पात्र होगा. इस योजना को एक स्थायी वित्तीय मॉडल प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो न केवल महामारी के दौरान, बल्कि सड़क विक्रेताओं की भविष्य की जरूरतें भी पूरी करेगी.
बेहतर ऋण चुकौती प्रथाओं को बढ़ावा देना
अनौपचारिक क्षेत्र को ऋण प्रदान करने में ऋणदाताओं के सामने आने वाली सबसे बड़ी आशंकाओं में से एक है ऋण चुकता न किए जाने का डर. इस मोर्चे पर रेहड़ी-पटरी वालों को कर्ज नहीं दिए जाने के कारण वे गरीबी में और नीचे धकेल दिए जाते हैं.पीएम स्वनिधि योजना स्ट्रीट वेंडर्स को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज राशि का 7 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करती है ताकि उनकी चिंता का समाधान किया जा सके. ईएमआई का समय पर पुनर्भुगतान कर दिए जाने के बाद, सब्सिडी राशि सीधे लाभार्थियों के खाते में स्थानांतरित कर दी जाएगी. योजना का यह डिजाइन विक्रेताओं को समय पर भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करता है, और रेहड़ी-पटरी वालों में अच्छी चुकौती की आदत पैदा करता है.
डिजिटल अर्थव्यवस्था में स्ट्रीट वेंडर्स का एकीकरण
रेहड़ी-पटरी वालों को डिजिटल लेन-देन करने और प्राप्त करने में सुविधा इस योजना की एक प्रमुख विशेषता है. स्वनिधि ऋणों के वितरण के समय, प्रत्येक स्ट्रीट वेंडर को क्यूआर कोड प्रदान किया जाता है और प्रशिक्षित किया जाता है. 25 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर अब डिजिटल भुगतान का उपयोग करने में सक्षम हैं. ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म में पूरी तरह से बदलाव रातों-रात नहीं हो सकता, लेकिन इसके बीज बो दिए गए हैं. यह जानकर खुशी हुई कि पीएम स्वनिधि लाभार्थियों ने करोड़ों डिजिटल लेनदेन किए हैं.पीएम स्वनिधि का उद्देश्य विक्रेताओं को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल करना है, अत: यह उन्हें डिजिटल भुगतान के उपकरण से परिचित कराने के लिए एक आदर्श इंटरफ़ेस भी है. डिजिटल रूप से भुगतान करने और प्राप्त करने के लिए विक्रेताओं को सशक्त बनाने से सार्वजनिक स्थानों पर डिजिटल भुगतान की संभावना भी बढ़ जाती है, धीरे-धीरे भौतिक मुद्रा पर निर्भरता दूर हो जाती है. यह सरकार के 'डिजिटल इंडिया’ के विजन के अनुरूप भी है, जिसका इरादा डिजिटल रूप से सशक्त भारत का निर्माण करना है. डिजिटल भुगतान का उपयोग लेन-देन का एक रिकार्ड भी रखता है, जो स्ट्रीट वेंडर के क्रेडिट इतिहास को स्थापित करने में मदद कर सकता है, जिससे आगे की वित्तीय संभावनाएं खुल सकती हैं.
स्ट्रीट फूड विक्रेताओं के लिए ग्राहक आधार का विस्तार
स्ट्रीट वेंडर लगातार मांग में बदलाव को समायोजित करने के लिए अनुकूलित होते हैं, और मौसम के साथ अपने व्यवसाय को बदलते हैं. स्ट्रीट फूड संस्कृति भारतीय शहरों का एक अभिन्न अंग है. लॉकडाउन के चलते खरीदारी की आदतों में बदलाव आया है. अधिक लोग ऑनलाइन ऑर्डर करने में आसानी महसूस करते हैं और अपने घर पर सामान मंगवाना पसंद करते हैं. लोग बाहर के खाने से परहेज करते थे, और अपने घरों में आराम और सुरक्षा के लिए खाना ऑर्डर करना पसंद करते थे. इसे महसूस करते हुए, स्विगी और ज़ोमैटो जैसी खाद्य-वितरण कंपनियों के साथ साझेदारी में पीएम स्वनिधि के तहत एक नई पहल शुरू की गई, ताकि स्ट्रीट फूड विक्रेताओं को अपने ग्राहक आधार का विस्तार करने के लिए एक मंच प्रदान किया जा सके. मेनू को डिजीटल किया जाता है और विक्रेताओं के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा प्रशिक्षण और लाइसेंस प्रदान किया जाता है, और उन्हें मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. वर्तमान में, ऐसे हजारों स्ट्रीट फूड विक्रेता इन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर शामिल हो गए हैं और अपने व्यवसाय को सफलतापूर्वक बढ़ा रहे हैं.
प्रधानमंत्री स्वनिधि : आसान ऋण से कहीं अधिक
पीएम स्वनिधि को केवल नकदी जुटाने के रूप में डिज़ाइन नहीं किया गया था ताकि सड़क विक्रेताओं को अपने व्यवसाय फिर से शुरू करने के लिए तत्काल आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाया जा सके. यह योजना स्ट्रीट वेंडर्स को अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा मानती है और उन्हें औपचारिक रूप देने की आवश्यकता को पहचानती है, और उन्हें फलने-फूलने में मदद करने के लिए सहायक वातावरण का निर्माण करती है. ऋण के अलावा, योजना में इसे संभव बनाने के लिए कई समानांतर पहल की गई हैं. पीएम स्वनिधि योजना को केवल रेहड़ी-पटरी वालों को ऋण देने के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे रेहड़ी-पटरी वालों और उनके परिवारों तक उनके समग्र विकास और सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए एक साधन के रूप में भी देखा जाना चाहिए.इस योजना के माध्यम से सरकार इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है. यह एक अग्रणी पहल है और कई स्तरों पर स्ट्रीट वेंडिंग इकोसिस्टम को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की दिशा में सरकार का एक सफल प्रयास है. कुछ प्रमुख प्रभाव नीचे दिए गए हैं:-
(i) इस योजना ने स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम, 2014 के तहत योजना और नियमों की अधिसूचना के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों पर दबाव डाला. पथ विक्रेता (जीविका का संरक्षण और पथ विक्रय का विनियमन) अधिनियम, 2014 रेहड़ी-पटरी वालों की सुरक्षा और उन्हें सशक्त बनाने के लिए रूपरेखा तैयार करता है, लेकिन वास्तव में, इसका कार्यान्वयन राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा अधिनियम के तहत नियमों और योजनाओं को अधिसूचित किए बिना खोखला रहा. कोविड-19 के मद्देनजर जरूरत के लिए तैयार की गई पीएम स्वनिधि अब एक मांग वाली योजना बन गई है. इस स्कीम का लाभ केवल उन राज्यों के पथ विक्रेता उठा सकते हैं, जिन्होंने स्ट्रीट वेंडर अधिनियम, 2014 के तहत नियमों और योजना को अधिसूचित किया है. इस स्थिति के परिणामस्वरूप, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस आवश्यकता को पूरा किया है. पीएम स्वनिधि ऋण के लिए पात्र होने के अलावा, देश भर में स्ट्रीट वेंडर अब स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के सभी प्रावधानों के तहत सुरक्षित हैं.
(ii) स्ट्रीट वेंडरों की समावेशिता सुनिश्चित करना : स्ट्रीट वेंडर्स वर्षों से शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) से स्थान और मान्यता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 2014 का स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट शहर में रेहड़ी-पटरी वालों की पहचान करने और उन्हें वेंडिंग सर्टिफिकेट जारी करने के लिए सर्वेक्षण करने का प्रावधान करता है. परन्तु, कई राज्य इस योजना को अधिसूचित करने में विफल रहे हैं, यह निराशाजनक है कि कई यूएलबी ने अब तक रेहड़ी-पटरी वालों का पहचान सर्वेक्षण भी नहीं किया है. संभवत: इस अनौपचारिक क्षेत्र की जिम्मेदारी लेने और उन्हें मान्यता, स्थान, व्यवसाय करने में आसानी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की अनिच्छा के कारण शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) सर्वेक्षण करने में अनिच्छुक रहे हैं. शहरी स्थानीय निकायों से सहयोग की कमी को देखते हुए, स्ट्रीट वेंडर्स की मान्यता के लिए टॉप-डाउन दृष्टिकोण को खत्म करना और एक मांग-आधारित मॉडल विकसित करना आवश्यक हो गया. पीएम स्वनिधि योजना के तहत, ऋण की आवश्यकता वाले स्ट्रीट वेंडर अब, यूएलबी से सीधे संपर्क कर सकते हैं. यह योजना सुनिश्चित करती है कि पिछले सर्वेक्षणों में शामिल न हो पाए स्ट्रीट वेंडर सहित, यूएलबी द्वारा मान्यता की कमी के कारण ऐसे किसी विक्रेता का अनुरोध अस्वीकार नहीं किया जा सकता, जो यूएलबी की भौगोलिक सीमाओं के भीतर आते हैं या जो आसपास की बस्तियों/ परिनगरीय क्षेत्रों/ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित हैं.
(iii) अनुशंसा पत्र (एलओआर) अवधारणा : सभी छूटे हुए विक्रेताओं को योजना का लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से, सिफारिश पत्र (एलओआर) की अवधारणा को योजना में शामिल किया गया है. यह पत्र विक्रेताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए विक्रय प्रमाण को सत्यापित करने के बाद यूएलबी / टाउन वेंडिंग कमेटी (टीवीसी) द्वारा जारी किया जाता है. इस पहल की एक विशिष्टता उन दस्तावेज और साक्ष्यों की शृंखला है, जिनका उपयोग किसी स्ट्रीट वेंडर द्वारा अपनी पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकता है, जो इसे स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम, 2014 में निर्धारित सर्वेक्षण की सीमाओं से परे ले जाती है. पीएम स्वनिधि योजना इन विकल्प का विस्तार करती है. ऐसे दस्तावेजों में शामिल हैं:
क). कई राज्यों ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान रेहड़ी-पटरी वालों सहित शहरी गरीबों को लाभ वितरण के लिए सूचियां तैयार की थीं. इन सूचियों में शामिल स्ट्रीट वेंडर्स को सीधे पीएम स्वनिधि योजना का लाभ उठाने का पात्र समझा गया है.
ख). विक्रेता, सड़क विक्रेता संघों में सदस्यता का प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं. वास्तव में, इस प्रावधान के माध्यम से, ऐसे संगठनों के लिए विक्रेताओं की संबद्धता को पहली बार औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है.
ग) पिछले ऋण आवेदनों से उत्पन्न कागजी कार्रवाई जो विक्रेता के पेशे का उल्लेख करती है, का भी उपयोग किया जा सकता है.
घ) विक्रेता विक्रय गतिविधियों के लिए भुगतान किए गए दंड से संबंधित चालान का भी उपयोग कर सकता है. वित्तीय नुकसान के साथ-साथ शारीरिक बेदखली के दोहरे अपमान को दर्शाने वाले अत्याचार के प्रतीक इन चालानों को अब उनके सशक्तिकरण के लिए उपकरणों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
ङ) जाहिर है, किसी संभावित लाभार्थी ने कागज के इन टुकड़ों को सुरक्षित नहीं रखा होगा. इससे निपटने के लिए, एक समाधान के रूप में मांग-आधारित जांच की पेशकश की जाती है, जहां विक्रेता अनुरोध कर सकते हैं और यूएलबी उनके दावे को सत्यापित करने के लिए जांच कर सकता है.
इन सभी नए विकल्पों के साथ, पीएम स्वनिधि ने सड़क विक्रेताओं की पहचान करने और इस योजना तक उनकी पहुंच को सक्षम करने के व्यावहारिक रूप से सभी तरीकों को कवर किया है. एलओआर अवधारणा की सफलता का आकलन इस तथ्य से किया जा सकता है कि पीएम स्वनिधि के कार्यान्वयन के केवल 18 महीनों में, एलओआर के लिए 31 लाख* से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं और 29 लाख* से अधिक एलओआर स्वीकृत किए गए हैं और ये स्ट्रीट वेंडर पीएम स्वनिधि के तहत ऋण के लिए आवेदन करने के पात्र बन गए हैं. यह देखते हुए कि 45 लाख से अधिक ऋण आवेदन प्राप्त हुए हैं, हम कह सकते हैं कि एलओआर की पहल के बिना, बड़ी संख्या में सड़क विक्रेता इस योजना के माध्यम से दिए गए ऋणों के जरिए अपनी आजीविका के पुनर्निर्माण के अवसर से वंचित रह जाते.
बिल्डिंग सेफ्टी नेट : स्वनिधि से समृद्धि
अनौपचारिक श्रमिकों के रूप में स्ट्रीट वेंडरों की औपचारिक सामाजिक सुरक्षा उपायों तक पहुंच नहीं है. वे स्व-नियोजित निर्धन के रूप में अत्यधिक कमजोर आबादी का हिस्सा हैं. वास्तव में, वे अक्सर बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए उधार का सहारा लेते हैं. जब बीमारी या दुर्घटना जैसी आपात स्थिति होती है, तो वे ट्रेड यूनियनों या साहूकारों जैसे स्रोतों तक पहुंच जाते हैं, और गंभीर ऋण में समाप्त हो सकते हैं. यह शहरी गरीबों और अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों के लिए सरकार द्वारा तैयार की गई कई कल्याणकारी योजनाओं के अस्तित्व के बावजूद है, क्योंकि वास्तव में इन लाभार्थियों की पहचान करने और उन तक पहुंचने में अक्सर अंतराल होते हैं.स्ट्रीट वेंडर्स के समग्र उत्थान के लिए पीएम स्वनिधि की अवधारणा की गई थी, और लाभार्थियों की सामाजिक-आर्थिक जरूरतों जैसे कि स्वास्थ्य देखभाल, बीमा लाभ, मातृत्व लाभ आदि तक पहुंच के महत्व को समझा गया था. इसे ध्यान में रखते हुए, 'स्वनिधि से समृद्धि’ को योजना के एक अतिरिक्त घटक के रूप में देखा गया था. स्वनिधि से समृद्धि पहल को लाभार्थियों के परिवारों के लिए एक सुरक्षा जाल बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है ताकि उन्हें अपनी अन्य जरूरतों के लिए अनौपचारिक उधार पर निर्भर न रहना पड़े. इसका उद्देश्य लाभार्थियों और उनके परिवारों को भारत सरकार की मौजूदा सामाजिक-आर्थिक कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ना, उनके समग्र विकास और सामाजिक-आर्थिक उत्थान को लक्षित करना है. इसके लिए पांच अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा प्रस्तावित आठ योजनाओं की पहचान की गई है. ये योजनाएं हैं पीएम जीवन ज्योति योजना, पीएम सुरक्षा बीमा योजना, जन धन योजना, वन नेशन वन राशन कार्ड, पीएम श्रम योगी मानधन योजना, बीओसीडब्ल्यू के तहत पंजीकरण, जननी सुरक्षा योजना, पीएम मातृ वंदना योजना.
स्ट्रीट वेंडर्स जिन्हें पीएम स्वनिधि ऋण प्राप्त हुआ है, और उनके परिवार के सदस्यों का सर्वेक्षण विशेष रूप से विकसित आईटी टूल के साथ यूएलबी अधिकारियों द्वारा किया जाता है. आवास और संपत्ति, प्रवास, शिक्षा और कौशल, आय, आकांक्षाओं आदि के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है. इस जानकारी के आधार पर, आईटी टूल स्वचालित रूप से कल्याण योजना पात्रता की पहचान करता है. पात्र विक्रेताओं और परिवारों को हर महीने आयोजित होने वाले शहर स्तर के शिविरों में आमंत्रित किया जाता है, जहां विभिन्न संबंधित मंत्रालयों के पदाधिकारी इकट्ठा होते हैं और इन कल्याणकारी योजनाओं के आवेदन और मंजूरी को सक्षम करते हैं. यह वास्तव में, स्ट्रीट वेंडर्स और उनके परिवारों के लिए इन योजनाओं के लाभों तक पहुंचने के लिए सिंगल-विंडो सिस्टम है.अब तक, 25 लाख* पीएम स्वनिधि लाभार्थियों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए सामाजिक आर्थिक प्रोफाइलिंग पूरी की जा चुकी है और 125 शहरों में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के 21.5 लाख से अधिक लाभ उन्हें प्रदान किए गए हैं. इस अनूठी पहल का जल्द ही सभी शहरों में विस्तार किया जा रहा है.इस घटक की उपलब्धियां दोगनी हैं : रेहड़ी-पटरी वालों का एक सामाजिक-आर्थिक डेटाबेस विकसित किया जाता है, और कल्याणकारी योजनाओं का अभिसरण किया जाता है; यह अपनी तरह का अनूठा प्रयास और उपलब्धियां दोनों है.
पीएम स्वनिधि स्ट्रीट वेंडरों की चिंताओं और कल्याण को समग्र रूप से लक्षित करने वाली अपनी तरह की पहली योजना है. यह योजना ने केवल उनकी आजीविका को फिर से शुरू करने के लिए सहायता प्रदान करने के लिए महामारी से उभरने वाली तत्काल आवश्यकता को पूरा कर रही है, बल्कि उनके निरंतर विकास और समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विभिन्न संबंधित पहलों के साथ एक पैकेज भी प्रदान कर रही है. इस योजना ने रेहड़ी-पटरी वालों के लिए समावेशी विकास प्रदान करने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है. यह सही समय है कि हमारे शहर हमारी अर्थव्यवस्था और दैनिक जीवन में रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं के उचित महत्व को पहचानने के लिए अपने प्रयासों को तेज करें, और साथ ही साथ इन विक्रेताओं को शहरों में स्थान प्रदान करने में मौजूदा चुनौतियों का समाधान करते हुए योजना और संबंधित पहलों के कार्यान्वयन में तेजी लाएं. इस तरह का सक्रिय दृष्टिकोण हमारे शहरों में शहरी गरीबों के लिए आजीविका के विभिन्न अवसर खोल सकता है और शहरी गरीबी की जटिलताओं को संभालने का एक तरीका हो सकता है.
लेखक आवासन और शहरी मामले मंत्रालय, भारत सरकार, में निदेशक हैं. उनसे pshaleenee.p@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है. (व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)