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विशेष लेख


अंक संख्या 50, 12-18 मार्च 2022

हिंद महासागर क्षेत्र में सामुद्रिक कूटनीति: भारत का दांव

बीस फरवरी 2022 को, भारत और फ्रांस ने पर्यावरण एवं तटीय और समुद्री जैव विविधता का सम्मान करते हुए सामुद्रिक अर्थव्यवस्था को अपने-अपने समाज की प्रगति का संचालक बनाने के लिए सामुद्रिक अर्थव्यवस्था और महासागर प्रशासन पर एक रोडमैप अपनाया. दोनों देशों का लक्ष्य वैज्ञानिक ज्ञान और महासागर संरक्षण में योगदान करना और यह सुनिश्चित करना है कि महासागर विश्व के साझा स्थल, स्वतंत्रता और कानून के शासन पर आधारित व्यापारिक स्थल बने रहें. यह घटना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण  है क्योंकि भारत को हिंद महासागर में फ्रांस के विशेष आर्थिक क्षेत्र  (ईईजेड) तक पहुंच प्राप्त होगी, जिसकी समुद्र की कुल सतह में 10 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है.

भारत और हिंद महासागर के तटवर्ती देश संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना एजेंडा जोर-शोर से आगे बढ़ा रहे हैं, समुद्री संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए समुद्री क्षेत्र में कानून के शासन की मांग कर रहे हैं, जो चीन की अत्यधिक रणनीतिक महत्वाकांक्षा का शिकार हो रहे हैं. चीन के अत्यधिक आक्रामक दृष्टिकोण का सबसे हालिया उदाहरण प्रशांत राष्ट्र किरिबाती द्वारा वाणिज्यिक मछली पकड़ने के लिए दुनिया के सबसे बड़े समुद्री भंडार, फीनिक्स द्वीप संरक्षित क्षेत्र को खोलना था. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने  टूना मछली पकड़ने के लाइसेंस में देश के राजस्व में 200 मिलियन डॉलर की वृद्धि का अनुमान लगाकर किरिबाती सरकार पर परोक्ष रूप से दबाव डालकर उसे संरक्षित समुद्री क्षेत्र खोलने के लिए मजबूर किया.

हिंद महासागर के अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में  टूना की ओवरफिशिंग (यानी अत्यधिक मछली पकड़ना) के बाद चीन प्रशांत क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों को बढ़ाना चाहता है- जहां विभिन्न  प्रजातियों की मछली पकड़ने को विनियमित नहीं किया गया है, जिससे इस क्षेत्र में मछली की मात्रा में भारी कमी आयी है. भारतीय नौसेना के गुरुग्राम स्थित इनफोर्मेशन फ्यूजन सेंटर-इंडियन ओशन रीजन (आईएफसी-आईओआर) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में हिंद महासागर क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में अवैध, अनियमित, अप्रमाणित मछली पकड़ने की कुल 592 घटनाएं हुईं.

चीन द्वारा मछली पकड़ने और वाणिज्यिक जहाजों की बढ़ती आवाजाही - जो दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन की संप्रभुता स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं - भारतीय नौसेना के प्रभुत्व वाले हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय देशों के लिए गंभीर सुरक्षा खतरे पैदा कर रहे हैं. इसके अलावा, चीन के समुद्री बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के दोहरे उपयोग ने भारत सहित तटीय देशों के बीच कई चिंताएं पैदा की हैं, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्र की सुरक्षा गतिशीलता को बदलना है.

उपर्युक्त पृष्ठभूमि के विपरीत, भारत ने एसएजीएआर-सागर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन रीजन-अर्थात् क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) मिशन द्वारा समर्थित अपनी सामुद्रिक अर्थव्यवस्था कूटनीतिक पहल तेज कर दी है, जिसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में शुरू किया था. उसी वर्ष, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) ने मॉरीशस में प्रथम आईओआरए मंत्रिस्तरीय ब्लू इकोनॉमी सम्मेलन की मेजबानी की थी, जिसका विषय था- 'आईओआरए क्षेत्र में सतत विकास के लिए ब्लू इकोनॉमी सहयोग को बढ़ाना.’ समूह ने विकास के लिए प्राथमिकता वाले चार क्षेत्रों की पहचान की थी : मत्स्य पालन और जलीय कृषि; अक्षय महासागर ऊर्जा; बंदरगाह और नौवहन, और सागर तल खोज और खनिज.

रोज़गार समाचार के साथ बातचीत में  ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली,  में  अध्ययन विभाग में निदेशक और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख, प्रोफेसर हर्ष वी. पंत का कहना है : 'मुझे लगता है कि सागर मिशन भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पहल है क्योंकि जब भारत इस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास की बात करता है , तो वह स्वयं को हिंद महासागर क्षेत्र के एक बड़े संदर्भ में रखने की कोशिश कर रहा है और यह संदेश दे रहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका केवल भारत की मदद के लिए है, बल्कि क्षेत्रीय भागीदारों को सुरक्षा और अधिक समृद्धि प्राप्त करने में मदद करने के लिए है.’

प्रोफेसर पंत का मानना है कि सागर मिशन ने अब तक कुछ प्रगति की है, लेकिन वैश्विक राजनीति में परिवर्तनशीलता और विशेष रूप से  इसे देखते हुए कि  हिंद महासागर क्षेत्र के देश, किस तरह से इस क्षेत्र में भूमिका निभाने वाली बड़ी शक्तियों के साथ प्रतिस्पेर्धी हैं,  प्रगति बहुत अधिक होनी चाहिए थी.फिर भी, आसियान, आईओआरए जैसे संगठनों के माध्यम से समुद्री पड़ोसियों के बीच गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों में शामिल होने की भारत की उत्सुकता और उसकी और इसकी एक्ट ईस्ट नीति उसे प्रतिस्पर्धियों के खिलाफ थोड़ी गुंजाइश प्रदान करती है.

इस बीच, भारत क्षमता और कार्य निष्पादन संबंधी कुछ सीमाओं से जूझ रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार इस स्थिति का लाभ उठाकर चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में विकासशील बुनियादी ढांचे में अपनी पहुंच का विस्तार किया है. प्रोफेसर पंत का निष्कर्ष है कि 'क्षमता और निष्पादन में सीमाएं भारत के लिए बड़ी बाधाएं हैं. क्षेत्र के छोटे देश, अक्सर शिकायत करते हैं कि भारत उनकी चिंताओं पर ध्यान नहीं देता है और समय पर परियोजनाएं पूरी नहीं करता है. चीन जिस तरह से इस क्षेत्र में आर्थिक शक्ति प्रदर्शित करता है, उसकी तुलना में, भारत अक्सर ऐसा करने में असमर्थ होता है. इसका एक कारण, निश्चित रूप से, भारत और चीन के बीच क्षमता का अंतर है. चीन के पास आर्थिक संसाधनों का एक बड़ा भंडार है जिसका वह उपयोग कर सकता है जबकि भारत को कुछ दबावों के तहत काम करना पड़ता है. इन दबाओं के भीतर  भारत की क्षमता विभिन्न बाधाओं से प्रभावित हुई है. भारत ने इसमें  सुधार की कोशिश की है, जैसा कि उसने हाल के वर्षों में प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाने और परियोजनाओं को समय पर पूरा करने पर अधिक ध्यान देने के रूप में प्रयास किए हैं. इस तरह के प्रयास अंतत: इस क्षेत्र में भारत की धारणा को बदल सकते हैं. यह बहुत मुश्किल नहीं होगा क्योंकि चीनी परियोजनाएं कर्ज-भारित हैं (जैसा कि चीन देशों के बीच कर्ज का बोझ बनाता है). हिंद महासागर के देशों से लेकर अफ्रीका तक के सभी उदाहरणों के साथ, मुझे लगता है कि देश चीन से संपर्क करने में सतर्क रहेंगे और भारत को इससे फायदा होगा,’.

(व्यक्त विचार निजी हैं).