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विशेष लेख


Issue no 36, 04 -10 December 2021

समुद्र के संरक्षकों को सलाम

भारतीय नौसेना दिवस पर विशेष (4 दिसंबर)

 

भारत की एक समृद्ध समुद्री विरासत रही है, और समुद्री गतिविधियों का प्राचीनतम संदर्भ ऋग्वेद में मिलता है. भारतीय पौराणिक कथाओं में महासागर, सागर और नदियों से संबंधित कई प्रसंग हैं. समुद्री परंपराओं का अस्तित्व स्थापित करने के लिए भारतीय साहित्य, कला, मूर्तियों, चित्रकला और पुरातत्व से बहुत सारे साक्ष्य प्राप्त हुए हैं. देश के समुद्री इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि प्राचीन काल से लेकर 13वीं शताब्दी तक हिंद महासागर पर भारतीय उपमहाद्वीप का वर्चस्व था. इस वर्ष हम 1971 के युद्ध में भारत की ऐतिहासिक जीत की 50 वीं वर्षगांठ स्वर्णिम विजय वर्ष के रूप में मना रहे हैं. आइए, भारतीय नौसेना के बारे में और अधिक जानें.

 

भारतीय नौसेना दिवस: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

21 अक्टूबर 1944 को तत्कालीन रॉयल इंडियन नेवी ने पहली बार नेवी डे मनाया. नौसेना दिवस मनाने का लक्ष्य नौसेना के बारे में  पहुंच का विस्तार करना और जागरूकता बढ़ाना है. इससे संबंधित कार्यक्रमों में विभिन्न बंदरगाह शहरों में परेड और अंतर्देशीय केंद्रों पर सार्वजनिक सभाएं आयोजित करना शामिल था. इस पहल को बड़ी सफलता मिली और इसके प्रति जनता में उत्साह पैदा हुआ. इस सफलता से प्रेरित होकर, रॉयल इंडियन नेवी ने हर साल बड़े पैमाने पर इसी तरह के समारोह आयोजित करने का फैसला किया. नौसेना दिवस को ऐसे समय स्थानांतरित करने का भी निर्णय लिया गया जब मौसम अधिक सुहावना हो. तद्नुसार, 1945 में नौसेना दिवस 1 दिसंबर को बॉम्बे और कराची में मनाया गया.

 

भारत विभाजन के साथ, स्वतंत्रता के बाद, रॉयल इंडियन नेवी विभाजित हो गई और इसकी भारतीय शाखा को रॉयल इंडियन नेवी और पाकिस्तानी शाखा को रॉयल पाकिस्तान नेवी का नाम दिया गया. 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र बनने के साथ, उपसर्ग 'रॉयल को हटा दिया गया, और बल का नामकरण भारतीय नौसेना के रूप में किया गया. 26 जनवरी 1950 को, भारतीय नौसेना के प्रतीक के लिए रॉयल इंडियन नेवी के क्रेस्ट के क्राउन को अशोक लायन मोटिफ से बदल दिया गया. भगवान वरुण (वेदों में वर्णित समुद्र देवता) का आह्वान करते हुए, भारतीय नौसेना ने आदर्श वाक्य अपनाया: 'सम नो वरुण:, जिसका अर्थ है: 'हमारे लिए शुभ हो हे वरुण!. साथ ही, भारतीय नौसेना की कलगी में 'सत्यमेव जयते का शिलालेख राष्ट्र के प्रतीक के नीचे रखा गया था.

 

1972 तक, भारत ने 15 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया. जिस सप्ताह में यह तिथि पड़ी उसे नौसेना सप्ताह के रूप में मनाया गया. मई 1972 में, वरिष्ठ नौसेना अधिकारियों के सम्मेलन ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में सफल नौसैनिक कार्रवाइयों को उत्सव के रूप में मनाने के लिए 04 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाने का फैसला किया और 1 से 07 दिसंबर तक नौसेना सप्ताह मनाया.

 

1971 का युद्ध

भारत और भारतीय नौसेना के इतिहास में 4 दिसंबर का बहुत महत्व है क्योंकि यह भारत के लिए एक निर्णायक जीत का प्रतीक है जब 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में ऑपरेशन ट्राइडेंट के दौरान भारतीय नौसेना की नौकाओं ने जहाजों, तेल प्रतिष्ठानों और कराची में पाकिस्तान के तट रक्षा प्रतिष्ठान पर अपनी मिसाइलों को सफलता पूर्वक दागा था. 1971 के ऑपरेशन के दौरान, भारतीय नौसेना ने युद्ध रसद और महत्वपूर्ण उपकरण ले जाने वाले कई पाकिस्तानी जहाजों को डूबो दिया था. आईएनएस विक्रांत के डेक से लड़ाकू विमानों ने चटगांव और खुलना में दुश्मन के बंदरगाहों और हवाई क्षेत्र पर हमला किया और जहाजों, रक्षा सुविधाओं और प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया. कराची में मिसाइल हमले और विक्रांत के हवाई हमलों, दोनों के कारण पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना की हार हुई.

 

ऑपरेशन ट्राइडेंट: इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना के जहाजों किल्टन, कच्छल, निपत, निर्घट और वीर द्वारा 04/05 दिसंबर 1971 की रात को कराची बंदरगाह पर किया गया पहला मिसाइल हमला शामिल था. आजादी के बाद पहले मिसाइल बोट ऑपरेशन के दौरान, भारतीय नौसेना ने पीएनएस खैबर (एक पाकिस्तानी विध्वंसक), पीएनएस मुहाफिज (एक तटीय माइनस्वीपर), और व्यापारी पोत एमवी-वीनस चैलेंजर को नष्ट कर दिया था और डुबो दिया था. यह ऑपरेशन भी पटुता और रणनीतिक सोच में एक मील का पत्थर था क्योंकि भारतीय नौसेना ने अपने विमान वाहक आईएनएस विक्रांत का इस्तेमाल इन छोटी मिसाइल नौकाओं को पाकिस्तानी बंदरगाहों के करीब लाने के लिए किया था. इस रणनीति ने बंदरगाहों को नौकाओं की मिसाइल सीमा के भीतर ला दिया, जो उस वक्त तक अकल्पनीय था.

 

ऑपरेशन पायथन: भारतीय नौसेना के जहाजों त्रिशूल, तलवार, और विनाश ने 08/09 दिसंबर 1971 को कराची में केमारी तेल क्षेत्र पर दूसरा मिसाइल हमला किया. भारतीय नौसेना ने हमले के दौरान तेल टैंकों में आग लगा दी, दो व्यापारी जहाजों (हार्मटन और गल्फ स्टार) को डुबो दिया, और पाकिस्तानी नौसेना के टैंकर पीएनएस डेका को नष्ट कर दिया. हमले के साथ, भारतीय नौसेना ने कराची जाने वाले मार्गों पर समुद्री प्रभुत्व हासिल कर लिया था.

ऑपरेशन बीवर: इस महत्वपूर्ण संयुक्त-जल स्थली ऑपरेशन में, नौसेना टास्क फोर्स ने बंगाल की खाड़ी में पूर्ण नाकाबंदी की और पूर्वी सेना कमान तेजी से पूर्वी पाकिस्तान (04-08 दिसंबर 1971) में एक चतुर आकलन के बाद आगे बढ़ी कि पाकिस्तानी सेना, गिरफ्तारी से बचने के लिए, कॉक्स बाजार के माध्यम से दक्षिण की ओर बर्मा में भागने का प्रयास करेगी. तद्नुसार, 15 दिसंबर 1971 को कॉक्स बाजार में दो भारतीय लैंडिंग शिप टैंक (एलएसटी), आईएनएस घड़ियाल और गुलदार द्वारा एक जल स्थली लैंडिंग आयोजित की गई थी. एलएसटी में सवार 'रोमियो फोर्स दल में 1/3 गोरखा राइफल्स, 11 बिहार की 02 कंपनियां, 881 लाइट बैटरी, एक एम्बुलेंस प्लाटून और एक एएससी टुकड़ी शामिल थी. एलएसटी कॉक्स बाजार के पास रेजू क्रीक में 'रोमियो फोर्स के एक हिस्से पर उतरे. बाद में इन बलों ने युद्ध के दौरान सामरिक लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्वी पाकिस्तान से दक्षिणी मार्गों को बंद कर दिया. भारतीय सशस्त्र बलों की कार्रवाई से बंगलादेश का एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय हुआ.

 

नौसेना क्या करती है?

अभियानों की एक विशाल शृंखला  है, जिसमें राष्ट्र के नौसैनिक बल शामिल हो सकते हैं. इसमें एक छोर पर उच्च-तीव्रता वाले युद्ध से लेकर दूसरे छोर पर मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान शामिल हैं. संचालन की इस व्यापक निरंतरता को अलग-अलग भूमिकाओं में रखा जा सकता है, जिसमें प्रत्येक अभियान के संचालन के लिए एक विशिष्ट दृष्टिकोण की आवश्यंकता होती है. भारतीय नौसेना की चार प्रमुख भूमिकाएं हैं: सैन्य, राजनयिक, कांस्टेबलरी और हितकारी. 

 

भारतीय नौसेना की सैन्य भूमिका का उद्देश्य किसी भी ऐसी घुसपैठ या कृत्य का प्रतिरोध/निवारण करना है, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो. शत्रुता की स्थिति में नौसेना विरोधी को करारी हार देने में सक्षम है. क्षेत्र विशेष के पुलिस बल के रूप में भारतीय नौसेना की भूमिका का एक प्रमुख उद्देश्य तटीय और अपतटीय सुरक्षा सुनिश्चित करना और तटरक्षक और अन्य केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के साथ मिलकर समुद्री डकैती रोधी उपायों को लागू करना है. आईओआर यानी हिन्द महासागर परिधीय देशों के संघ के अंतर्गत भारतीय नौसेना सक्रिय रूप से  मित्र देशों की नौसेनाओं की क्षमता निर्माण और क्षमता वृद्धि के लिए काम कर रही है. इस दिशा में, भारत विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) निगरानी के लिए जहाजों और विमानों सहित हार्डवेयर और प्लेटफॉर्म प्रदान करता रहा है. भारतीय नौसेना मित्र राष्ट्रों के समुद्री बुनियादी ढांचे के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है. यह कई विदेशी अभियानों और समुद्री अभ्यासों में भी शामिल होती है. इसके अलावा, भारतीय नौसेना (आईएन) अपनी बहुआयामी क्षमताओं और क्षेत्र में सक्रिय उपस्थिति के कारण हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री गतिविधियों में नेतृत्व की भूमिका निभा रही है. भारत के समुद्री पड़ोस का वातावरण अस्थिरता, भू-राजनीतिक और जातीय दोष, बढ़ती सैन्य क्षमताओं और सुरक्षा चुनौतियों की एक विस्तृत शृंखला के साथ गतिशील है. ये भारत के लिए समुद्र में और समुद्र से पारंपरिक और उप-पारंपरिक खतरों का एक संयोजन है. इन खतरों और चुनौतियों के लिए भारतीय नौसेना को लड़ाकू अभियानों के पूरे स्पेक्ट्रम में प्रभावी बने रहने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए लगातार खुद को नया आकार देने की आवश्यकता है. इसकी भूमिका को 'बिनाइन या 'हितकारी  इसलिए कहा गया है क्योंकि खोज और बचाव, आयुध निपटान जैसे कार्यों के निष्पादन में हिंसा की कोई भूमिका नहीं है, और न ही बल लागू करने की क्षमता इन कार्यों को करने के लिए आवश्यक शर्त है.

 

कोविड-19 के दौरान योगदान

भारतीय नौसेना ने विदेशों में भारतीय नागरिकों को वापस लाने के राष्ट्रीय प्रयास के एक भाग के रूप में ऑपरेशन 'समुद्र सेतु, जिसका अर्थ है 'सी ब्रिज शुरू किया. ऑपरेशन मई 2020 में ष्टह्रङ्कढ्ढष्ठ-19 महामारी के दौरान विदेशों में भारतीय नागरिकों को वापस लाने के राष्ट्रीय प्रयास के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था. इस साल के शुरु में दूसरे चरण में महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई में योगदान के लिए, भारतीय नौसेना ने 'ऑपरेशन समुद्र सेतु II’ शुरू किया. विभिन्न देशों से तरल चिकित्सा ऑक्सीजन से भरे क्रायोजेनिक कंटेनरों और संबंधित चिकित्सा उपकरणों के परिवहन के लिए भारतीय नौसेना के सात जहाजों को तैनात किया गया था.

 

(संकलन: अनीशा बनर्जी और अनुजा भारद्वाजन)

स्रोत: भारतीय नौसेना/पसूका