लोगों का, लोगों द्वारा, लोगों के लिए
संविधान दिवस
२6 नवंबर को 'संविधान दिवस है. वर्ष 2015 से, यह दिन हर वर्ष भारत के संविधान को अंगीकृत करने तथा नागरिकों के बीच संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है.
भारतीय संविधान, दुनिया में किसी भी संप्रभु राष्ट्र का सबसे लंबा संविधान है जो देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को ध्यान में रखते हुए मार्गदर्शन और शासन करने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है. इसके मुख्य अंगों में - कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों को परिभाषित करने, उनकी जिम्मेदारियों का सीमांकन करने और परस्पर संबंधों को नियंत्रित करने के बारे में व्यवस्थाएं शामिल हैं. यह अन्य बातों के साथ-साथ शासन के बुनियादी ढांचे और सरकार तथा लोगों के बीच संबंधों को निर्धारित करता है. संविधान कड़ी मेहनत के बाद 2 साल 11 महीने 18 दिन में पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ.
संविधान की रचना
भारत का संविधान 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के तहत गठित एक संविधान सभा ने तैयार किया था. इसके सदस्य कैबिनेट मिशन द्वारा अनुशंसित योजना के अनुरूप प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव के जरिए चुने गए. निम्नानुसार इसकी व्यवस्था की गई थी:-
(i) 292 सदस्य प्रांतीय विधानसभाओं के माध्यम से चुने गए
(ii) 93 सदस्यों ने भारतीय रियासतों का प्रतिनिधित्व किया
(iii) 4 सदस्यों ने मुख्य आयुक्त प्रांतों का प्रतिनिधित्व किया.
इस प्रकार विधानसभा की कुल सदस्यता 389 होनी थी. हालांकि, 3 जून, 1947 की माउंटबेटन योजना के तहत विभाजन के परिणामस्वरूप, पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा की स्थापना की गई और कुछ प्रांतों के प्रतिनिधि सदस्य नहीं रहे. परिणामस्वरूप, सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई.
संविधान सभा की बैठक पहली बार 9 दिसंबर, 1946 को नई दिल्ली में संविधान हॉल में हुई, जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के रूप में जाना जाता है, और डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा, सभा के सबसे पुराने सदस्य, को अनंतिम अध्यक्ष के रूप में चुना गया. 11 दिसंबर 1946 को विधानसभा ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अपना स्थायी अध्यक्ष चुना.
29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने संविधान के निर्माण के लिए, डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति सहित, 13 समितियों का गठन किया, जो देश का मार्गदर्शन और शासन करने के लिए एक व्यापक और गतिशील ढांचा प्रदान करें. इन समितियों के प्रतिवेदन के आधार पर सात सदस्यीय प्रारूप समिति ने संविधान का मसौदा तैयार किया.
इस अवधि के दौरान, कुल 165 दिनों में 11 सत्र आयोजित किए गए. इनमें से 114 दिन संविधान के मसौदे पर विचार करने में व्यतीत हुए. संविधान के मसौदे पर विचार करते हुए, सभा ने कुल 7,635 में से 2,473 संशोधनों को पेश किया, चर्चा की और उनका निपटारा किया.
भारत का संविधान 26 नवंबर, 1949 को अंगीकृत किया गया था और माननीय सदस्यों ने 24 जनवरी, 1950 को इस पर अपने हस्ताक्षर किए. संविधान पर वास्तव में कुल मिलाकर 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए. भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ. उस दिन, असेंबली का अस्तित्व समाप्त हो गया, 1952 में एक नई संसद का गठन होने तक इसे भारत की अनंतिम संसद में परिवर्तित कर दिया गया.
मौलिक अधिकार और कर्तव्य
भारत के लोग संविधान के परम संरक्षक हैं. उनमें ही संप्रभुता निहित है और उन्हीं के नाम पर संविधान अंगीकृत किया गया. संविधान नागरिक को सशक्त बनाता है, लेकिन नागरिक भी संविधान का सम्मान करके, उसकी अनुपालना करके, उसकी रक्षा करके, और शब्दों तथा कर्मों से इसे और अधिक सार्थक बनाने के लिए दृढ़ता से सशक्त बनाते हैं.
संविधान स्वतंत्रता की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने तथा प्रत्येक नागरिक को एक सभ्य जीवन स्तर के आश्वासन की अनिवार्यता प्रदान करता है. यह जाति, पंथ, समुदाय या लिंग के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों की भलाई को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता का निर्माण करता है. भारतीय संविधान का भाग III भारतीय नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है. जबकि ये मौलिक अधिकार सार्वभौमिक हैं, संविधान कुछ अपवादों और प्रतिबंधों का भी प्रावधान करता है.
जब संविधान को अपनाया गया था, तब नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं थे. सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 1976 में 42वें संशोधन के जरिए नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया. समिति ने सुझाव दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है कि व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते समय अपने कर्तव्यों की अनदेखी न करे.
42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से नागरिकों के लिए दस मौलिक कर्तव्यों की एक संहिता जोड़ी गई. मौलिक कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में कार्य करना है, जबकि संविधान ने उन्हें विशेष रूप से कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, इसके लिए नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के कुछ बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है क्योंकि अधिकार और कर्तव्य का परस्पर संबंध है. मौलिक कर्तव्यों का समावेश हमारे संविधान को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 29(1) के अनुरूप और अन्य देशों के कई आधुनिक संविधानों के प्रावधानों के अनुरूप लेकर आया.
मौलिक कर्तव्यों को अनिवार्य रूप से भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्मों और प्रथाओं से लिया गया है. अनिवार्य रूप से ये ऐसे कर्तव्य थे जो भारतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग के तौर पर कार्यों का संहिताकरण हैं. मूल रूप से दस मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया था. बाद में 86वें संविधान संशोधन के आधार पर वर्ष 2002 में 11वां कर्तव्य जोड़ा गया.
संविधान में संशोधन
संविधान की एक विशेषता ये है कि यह न तो कठोर है और न ही लचीला है. भारत ने 'मौलिक कानून के सिद्धांत के संयोजन को अपनाया, जो यूनाइटेड किंगडम के 'संसदीय संप्रभुता के सिद्धांत के साथ अमेरिका के लिखित संविधान को रेखांकित करता है. भारत का संविधान उसमें निर्धारित प्रक्रिया के तहत संसद को विशेष शक्ति प्रदान करता है. भारत के संविधान में संशोधनों की तीन श्रेणियों का प्रावधान है. सबसे पहले, वे जो संसद द्वारा साधारण बहुमत से स्वीकृत हो सकते हैं जैसे कि किसी सामान्य कानून को पारित करने के लिए आवश्यक होता है. दूसरे, वे संशोधन जो संसद द्वारा निर्धारित 'विशेष बहुमत द्वारा स्वीेकृत किए जा सकते हैं; और तीसरा, जिन्हें ऐसे 'विशेष बहुमत के अलावा, कम से कम आधे राज्य विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है. अंतिम दो श्रेणियां अनुच्छेद 368 द्वारा शासित होती हैं, जो संविधान में विशिष्ट प्रावधान है, और ये संविधान के संशोधन की शक्ति और प्रक्रिया से संबंधित है.
लोकतंत्र में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी के साथ कोई अन्याय न हो, संविधान का आधुनिकीकरण और स्थिति के अनुसार इसमें संशोधन करना आवश्यक है. इन कारकों ने हमारे संविधान को एक बंद और स्थिर नियम पुस्तिका के बजाय एक जीवंत दस्तावेज बना दिया है. भारतीय संविधान को आधुनिक बनाने की दिशा में हमारे संविधान में 10 मई 1951 को पहली बार संशोधन किया गया जिसमें देश की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी आबादी के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए.
संविधान के मूल पाठ में 22 भागों और आठ अनुसूचियों में 395 अनुच्छेद थे. 105 संशोधनों के कारण अनुच्छेदों की संख्या बढ़कर 470 हो गई है. कुछ महत्वपूर्ण संशोधन इस प्रकार हैं:
24वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1971
इस संशोधन के अनुसार, ''संसद अपनी संवैधानिक शक्ति का प्रयोग करते हुए इस अनुच्छेद में निर्धारित प्रक्रिया (अनुच्छेद 368) के अनुरूप संविधान में किसी भी प्रावधान को जोड़ने, बदलने या निरस्त करने के लिए संशोधन कर सकती है.
42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976
इस संशोधन में प्रस्तावना में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा गया ताकि स्पष्ट रूप से ''संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के स्थान पर ''संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य शब्दों का उच्चारण किया जा सके और ''राष्ट्र की एकता को ''राष्ट्र की एकता और अखंडता के साथ प्रतिस्थापित किया जा सके. इसने नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को निर्दिष्ट करने और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से निपटने के लिए, चाहे वह व्यक्तियों या संघों द्वारा हो, विशेष प्रावधान करने का भी प्रस्ताव रखा.
44वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1978
चूंकि संपत्ति के अधिकार ने समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने और धन के समान वितरण के रास्ते में बहुत सारी समस्याएं पैदा कीं, इस संशोधन के तहत, अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रह गया. हालांकि, इसे इस प्रावधान के साथ कानूनी अधिकार के रूप में स्पष्ट मान्यता दी जाएगी कि कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा.
61वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1988
इस संशोधन ने भारत में मतदान की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया.
73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
इस संशोधन में संविधान में पंचायतों से संबंधित एक नया भाग जोड़ने का प्रस्ताव है ताकि अन्य बातों के साथ-साथ ग्राम सभा या गाँवों के समूह; गांव और अन्य स्तरों पर पंचायतों का गठन; ग्राम और मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों की सभी सीटों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव, यदि कोई हो; प्रत्येक स्तर पर पंचायतों की सदस्यता और पंचायतों में अध्यक्षों के पद के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण; और महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की जा सके.
86वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2002
अनुच्छेद 21 के नीचे एक नया अनुच्छेद 12ए जोड़ा गया जिसके तहत 6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया गया. अनुच्छेद में कहा गया है:-
'राज्य छह से चौदह वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को, कानून में यथा निर्धारित तरीके से, जो भी राज्य तय करे, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा. 'अनुच्छेद 51 के अधीन एक नया मूलभूत कर्त्तव्य जोड़ा गया- भारत के प्रत्येक नागरिक, जो कि माता-पिता अथवा संरक्षक है, का यह कर्त्तव्य होगा कि वह छह और चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चों अथवा आश्रित को शिक्षा प्रदान करने का अवसर प्रदान करे.
101वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2017
इस संशोधन ने अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान आपूर्ति पर लगाए जाने वाले माल और सेवा कर के लिए प्रावधान किया, जिसे भारत सरकार द्वारा एकत्र किया जाएगा और माल और सेवा कर परिषद की सिफारिशों पर विधि अनुरूप संसद द्वारा प्रदान किए गए तौर तरीके से संघ और राज्यों के बीच विभाजित किया जाएगा.
103वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 इस संशोधन के तहत, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के किसी भी नागरिक के उन्नति के लिए, निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में उनके प्रवेश से संबंधित, चाहे वह राज्य द्वारा सहायता प्राप्त हो या गैर-सहायता प्राप्त हो, 10 प्रतिशत आरक्षण के माध्यम से वि
शेष प्रावधान किया गया.
(संकलन: अनीशा बनर्जी और अनुजा भारद्वाजन)
स्रोत- लोकसभा / डीईएसएल / एनआईओएस/ एनसीईआरटी