एकता में शक्ति और समृद्धि है
फॉर अ युनाइटेड इंडिया स्पीचेज ऑफ सरदार पटेल (1947-1950) पुस्तक से
'हमने स्वराज हासिल कर लिया है और हमें अभी स्वराज का फल प्राप्त करना है. भारत अब मुक्ति और स्वतंत्र है परंतु अब भी भारत स्वतंत्रता का फल भोगने की स्थिति में नहीं है.
'मुझे विश्वास है कि अगले पांच वर्षों में संघ का पूरा चेहरा बदल जाएगा. देश को समृद्ध बनाने के लिए आप सभी को अपने मतभेदों को भुलाकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए. किसी आंदोलन या अपकार के लिए अब और जगह नहीं है, बल्कि केवल कड़ी मेहनत के लिए है.
'हिंसा को छोड़ देना चाहिए. एकता में शक्ति और समृद्धि है. आज उड़ीसा के लोग शासकों को लेकर आक्रोशित हैं. लेकिन शासक कौन हैं? शासक तभी हो सकते थे जब लोग उन्हें ऐसे ही पहचान लें. शासकों को समय के साथ चलना चाहिए. उन्हें कुओं में मेंढक बनना बंद कर देना चाहिए. ये लोकतंत्र के दिन हैं. शासकों को जनता पर भरोसा करना चाहिए.
'हिंसा का पूर्ण उन्मूलन होना चाहिए, क्योंकि किसी भी असामाजिक तत्वों से निपटने के लिए कानून और व्यवस्था की ताकतें मौजूद हैं. देश को समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए आप सभी को कड़ी मेहनत करनी चाहिए. आपको अस्पृश्यता का उन्मूलन और विभिन्न सम्प्रदायों के बीच एकता को बढ़ावा देकर महात्मा गांधी के नेतृत्व का अनुसरण करना चाहिए.
(सरकार को उड़ीसा और पड़ौसी राज्यों में गड़बड़ी होने की सूचना मिलने के बाद 28 अक्टूबर, 1947 को कटक में संबोधन)
'हालांकि, यह सभी के लिए स्पष्ट होना चाहिए कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थान केवल वहां पर, जहां यूनिट, जिसमें इन्हें लागू किया जाता है, पर्याप्त स्वायत्तता के साथ अस्तित्व में हैं, तभी वे कुशलता से कार्य कर सकते हैं. जहां, अपने आकार के छोटे होने के कारण, इसकी स्थिति से अलगाव, पड़ौसी स्वायत्त क्षेत्र के साथ अविभाज्य संपर्क, चाहे वह एक प्रांत हो या एक बड़ा राज्य, व्यावहारिक रूप से रोज़मर्रा की जिंदगी के सभी आर्थिक मामलों में, इसकी आर्थिक क्षमता खोलने के लिए संसाधनों की अपर्याप्ता, इसके लोगों का पिछड़ापन और स्व-निहित प्रशासन को चलाने में असमर्थता, एक राज्य सरकार की एक आधुनिक प्रणाली को वहन करने में असमर्थ है, लोकतंत्रीकरण और एकीकरण दोनों स्पष्ट रूप से और त्रुटिरहित इंगित किए गए हैं.Ó 'आज की दुनिया में जहां दूरियां तेजी से घट रही हैं और जनता को धीरे-धीरे नवीनतम प्रशासनिक सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है, ऐसे उपायों की शुरुआत एक दिन के लिए भी स्थगित करना असंभव है जो लोगों को यह महसूस कराएंगे कि उनकी प्रगति भी है, वे कम से कम अपने पड़ोसी क्षेत्रों की तर्ज पर आगे बढ़ रहे हैं. देरी अनिवार्य रूप से असंतोष की ओर ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप अधर्म होता है; बल का प्रयोग कुछ समय के लिए सुधार के लिए लोकप्रिय कदम को रोक सकता है लेकिन यह इसे पूरी तरह से समाप्त करने में कभी भी सफल नहीं हो सकता है. वास्तव में, पिछले दो दिनों के दौरान जिन राज्यों के साथ मुझे चर्चा करनी थी, उनमें से कई में लोगों को बड़े स्तर पर अशांति पहले से ही जकड़ चुकी थी; दूसरों में तूफान की गड़गड़ाहट सुनी जा रही थी. ऐसी परिस्थितियों में, सावधानीपूर्वक और चिंतित विचार के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस प्रकार के छोटे राज्यों के लिए, जिन परिस्थितियों का मैंने ऊपर वर्णन किया है, उनके लिए एकीकरण और लोकतंत्रीकरण का कोई विकल्प नहीं था.
(पटेल द्वारा 16 दिसंबर, 1947 को जारी किया गया बयान, जिसमें उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्यों के शासकों के साथ हुए समझौते की पृष्ठभूमि और नीति की व्याख्या की गई है)
'यदि सरकार को भारत में आम आदमी की स्थिति में सुधार के लिए अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाना है, आंतरिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव नितांत आवश्यक है. अशांत स्थितियां आपके अपने हितों के लिए हानिकारक हैं. लड़ाई का काम सरकार पर छोड़ दो और हम भारत के असली दुश्मन से लड़ेंगे.
'हमने विदेशी वर्चस्व के खिलाफ लड़ाई लड़ी है क्योंकि हम अपने देश से गरीबी मिटाना चाहते थे और यहां के लोगों का जीवन जीने लायक बनाना चाहते थे. यदि भारतीय गरीब बने रहें और राष्ट्रीय सरकार के आने से कोई अंतर महसूस न हो तो हमारा स्वतंत्रता प्राप्त करने का क्या फायदा? असली काम पूरा नहीं हुआ है. वास्तव में इसे अभी शुरू करना है.
(29 दिसंबर, 1947 को दिल्ली प्रांत और पूर्वी पंजाब के आसपास के जिलों के ग्रामीणों की एक सभा को दिल्ली में संबोधित करते हुए)
'आज हम एक ऐतिहासिक अवसर पर इकट्ठे हुए हैं. भारत के इतिहास का एक नया अध्याय हमारे सामने खुल रहा है. हमारे पास खुद को बधाई देने का कारण है कि हम सभी ऐसे शुभ आयोजन में भाग ले रहे हैं; हमारे पास इस पर गर्व करने का अवसर भी है. लेकिन इस गौरव और इस उत्सव के साथ-साथ हमें अपने कर्तव्यों और दायित्वों से बेपरवाह नहीं होना चाहिए. हमें अपने दिलों को साफ करना चाहिए और अपने मन को शुद्ध करना चाहिए और अपने आपसे, नए संघ और अपने देश द्वारा शुद्ध कर्म करने का संकल्प लेना चाहिए. हमें कोई बुराई नहीं रखनी चाहिए, हमें प्रतिबिंबित करना चाहिए कि हम कौन हैं, हमें क्या विरासत में मिला है और हमने क्या हासिल किया है. भारत के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि सदियों से भारत गुलामी में डूबा हुआ था. भारत को उस सदियों पुरानी व्याधि से मुक्त करने के लिए कितना संघर्ष, कितना बलिदान, कितनी कड़वाहट और कितना दु:ख झेलना पड़ा, जिसने उसकी राष्ट्रीयता के मूल तत्वों को निगल लिया था. एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया है, वास्तव में एक महान क्रांति आई है. जितना बड़ा परिवर्तन होगा, क्रांति जितनी व्यापक होगी, देश को उतने ही अधिक कष्ट झेलने होंगे. हमारे पास पहले से ही परेशानियां और उथल-पुथल अपने हिस्से से अधिक हैं. हम भाग्यशाली हैं कि उनमें से बहुत से लोग बच गए, लेकिन कई परेशानियां अभी भी दूर किया जाना बाकी है. यदि हम लड़खड़ाते हैं या असफल होते हैं, तो हम अपने आप को शाश्वत लज्जा और अपमान में डाल देंगे.
'मैं चाहता हूं कि आपको स्थिति की पूरी गंभीरता का एहसास हो और विरासत तथा वंशागत में मिली स्थिति के आलोक में विचार करें. क्या एक या दो साल पहले किसी ने सपना देखा था कि भारत का एक तिहाई हिस्सा इस तरह से एकीकृत हो जाएगा? सदियों के बाद इतिहास में यह पहली बार है कि भारत अपने आप को इस शब्द के वास्तविक अर्थों में एक एकीकृत संपूर्ण कह सकता है. लेकिन हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि हम चाहे जो भी गलतियां करें, हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिसकी गणना भारत को अतीत की गुलामी में वापस भेजने के लिए की जाए. इसलिए भारत के वीर सपूतों का यह कर्तव्य है कि वे देखें कि प्रगति की घड़ियां पीछे नहीं हैं, बल्कि आगे बढ़ती हैं. हमें यह भी समझना चाहिए कि अगर हमें राष्ट्रों के समूह में अपना उचित स्थान लेना है तो यह हमें पूछने नहीं आएगा, बल्कि हमें इसके लिए हर संभव प्रयास करना होगा.
'देश को आजादी मिले लगभग एक साल हो गया है. किसी भी देश ने अपने जन्म के पहले वर्ष में इतना कष्ट नहीं झेला जितना भारत ने झेला है. पूर्वी पंजाब राज्य और पटियाला का देश की नई परिस्थितियों में एक रणनीतिक स्थिति पर कब्जा है. इस क्षेत्र के शासकों और लोगों की जिम्मेदारी संघ के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में अधिक है. यह जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है यदि हम यह मानते हैं कि हमारा एक पड़ौसी है जिसके साथ हमारे संबंध मित्रता, विश्वास और भरासे के नहीं हैं. इन परिस्थितियों में सीमावर्ती लोगों की जिम्मेदारी अधिक होती है और इसलिए हमारी एकता का कर्तव्य अधिक भारी होता है. मेरी कोई दुर्भावना नहीं है और न ही मैं किसी को ठेस पहुंचाना चाहता हूं. मेरी एक ही इच्छा है कि भारत की अच्छी तरह से रक्षा की जाए और प्रत्येक भारतीय को यह देखना चाहिए कि बाहरी और आंतरिक दोनों तरह की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था में कोई खामियां या कमजोर कड़ियां नहीं हैं. इसे हासिल करने के मेरे प्रयासों में शासकों ने मेरी बहुत मदद की है. अब यह लोगों पर है कि वे मेरी ओर मदद के लिए हाथ बढ़ाएं. समय सारभूत है. हमें तेजी से आगे बढ़ना है और जब तक हम ऐसा नहीं करते, हमारे पास खोने के लिए एक बड़ा हिस्सा है.
'केवल अपनी इच्छा से शासन करना आसान है: सहमति से और संयुक्त रूप से शासन करना एक कठिन कार्य है. यही कारण है कि हम सभी को जमीन पर सावधानी से चलना चाहिए... स्वराज में अनुभव से सीखना शामिल है. यह लौकिक रूप से महंगा है लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लागत अधिक न हो और गंभीर गलतियों को रोका जाए. संदिग्ध ज्ञान के प्रयोगों और निर्णयों में सिर झुकाना बुद्धिमानी या व्यावहारिक राजनीति नहीं है. स्थिति ऐसी है कि सभी को संभलकर चलना चाहिए. गलतियां कहीं अन्यत्र सहन की जा सकती हैं जहां प्रशासन एक समान कुंजी पर स्थापित है, लेकिन जहाँ नींव अच्छी तरह से और ठीक से नहीं रखी गई है, उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
(पटियाला के ऐतिहासिक दरबार हॉल में 15 जुलाई 1948 को पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन)
(पुस्तक बिक्री के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन उपलब्ध है. पी-बुक ३४० रुपये में प्रकाशन विभाग के विक्रय काउंटर से खरीदी जा सकती है और इसके देशभर के अधिकृत एजेंट तथा प्रकाशन विभाग की वेबसाइट www.publications division.nic.in से भी खरीदी जा सकती है. ई-बुक मूल्य १०० रुपये है.)