रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

विशेष लेख


Issue no 27, 02-08 October 2021

गांधीजी के स्वच्छ भारत की परिकल्पना

 

गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के उपरांत शुरू के दो वर्षों के दौरान भारत के कोने-कोने की यात्रा करते हुए यह महसूस किया कि स्वच्छता और सामाजिक शुचिता बनाए रखना एक व्यापक और शायद दुर्गम समस्या थी. यह केवल ज्ञान की कमी नहीं थी बल्कि मानसिकता भी थी, जिसने लोगों को स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण समस्या की तरफ ध्यान देने से रोका. गांधीजी समझते थे कि अन्याय के खिलाफ प्रदर्शन और संघर्ष को विरोध करने वाले व्यक्तियों और समुदाय के आत्म-सुधार के साथ जोड़ा जाना चाहिए.

शैक्षिक संस्थानों और सम्मेलनों में

गांधीजी ने पहले ही देश में स्वच्छता की समस्या के बारे में गहरी समझ और अंतर्दृष्टि विकसित कर ली थी. मद्रास में सोशल वर्क लीग की बैठक में उन्होंने संकेत दिया कि शिक्षा, स्कूली उम्र से ही अच्छी स्वच्छता की कुंजी होगी. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जब उन्हें एक शैक्षणिक संस्थान को संबोधित करने का पहला अवसर मिला, तो उन्होंने स्कूल और उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में स्वच्छता को शामिल करने की आवश्यकता को इंगित किया.

गुरुकुल कांगड़ी की वर्षगांठ के अवसर पर 20 मार्च, 1916 को उन्होंने कहा था,

'स्वच्छता और साफ-सफाई के नियमों की जानकारी के साथ-साथ बच्चों के पालन-पोषण की कला भी गुरुकुल के लड़कों के लिए शिक्षा [या प्रशिक्षण] का एक आवश्यक हिस्सा होना चाहिए. आयोजन में वांछित स्वच्छता व्यवस्था बहुत कुछ पीछे छूट गई. मक्खियों के प्लेग ने अपनी ही कहानी कह दी. इन अदम्य स्वच्छता निरीक्षकों ने हमें लगातार चेतावनी दी कि स्वच्छता के मामले में हमारे साथ सब कुछ ठीक नहीं है. उन्होंने स्पष्ट रूप से सुझाव दिया कि हमारे भोजन और मलमूत्र के अवशेषों को ठीक से दफनाने की आवश्यकता है. मुझे यह बहुत अफ़सोस की बात लग रही थी कि वार्षिक आगंतुकों को स्वच्छता पर व्यावहारिक पाठ देने का एक सुनहरा अवसर चूक रहा था.

गांधीजी ने 24 मार्च, 1917 को गुरुकुल कांगड़ी की गृह पत्रिका सतधर्म प्रचारक में एक लेख 'हमारी शिक्षा प्रणाली का योगदान दिया, जहां उन्होंने विशेष रूप से स्वस्थ शरीर को अच्छी शिक्षा लेने के लिए एक आवश्यक शर्त बताया था और इसीलिए बचपन से ही स्वास्थ्य और स्वच्छता के सिद्धांत को लेकर शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता बताई थी.

अक्टूबर 1917 में ब्रोच (अब भडू्च) में दूसरे गुजरात शैक्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उनके लिए यह देश में शिक्षा की स्थिति पर एक गंभीर धब्बा था कि शिक्षित डॉक्टर प्लेग जैसी बीमारी को मिटाने में सक्षम नहीं थे. सैकड़ों घरों के अपने दौरे में, उन्हें स्वच्छता के बारे में ज्ञान होने का कोई सबूत नहीं मिला. उन्होंने एक रोचक टिप्पणी की थी.

'यदि हमारे चिकित्सक कम उम्र में ही इलाज सीखना शुरू कर देते, तो वे इतना खराब प्रदर्शन नहीं करते जितना वे करते हैं. यह उस व्यवस्था का विनाशकारी परिणाम है, जिसके तहत हम शिक्षित हुए हैं. दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में लोग प्लेग को खत्म करने में कामयाब रहे हैं. यहां ऐसा लगता है कि इसने अपना घर बना लिया है और हजारों भारतीय असमय मौत के मुंह में चले गए. यदि इसे गरीबी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो अब भी इसका उत्तर शिक्षा विभाग को ही देना होगा कि 60 साल की शिक्षा के बाद भी भारत में गरीबी क्यों है.

नवंबर 1917 में गांधीजी ने भागलपुर में बिहार छात्र सम्मेलन को संबोधित किया. वह छात्रों को स्वच्छता और साफ-सफाई के बारे में बताने का अवसर कैसे गंवा सकते थे! उन्होंने देश सेवा के संदर्भ में प्रेस में तृतीय श्रेणी रेल यात्रा पर अपने पत्र का उल्लेख किया.

उन्होंने छात्रों को उचित व्यवहार और ट्रेन में साथी यात्रियों को शिक्षित करने की सलाह दी:

'हम अपने डिब्बे में अन्य यात्रियों को उनके स्थान को गंदा करने से होने वाले नुकसान के बारे में समझा सकते हैं. ज्यादातर यात्री छात्रों का सम्मान करते हैं और उनकी बात सुनते हैं. फिर उन्हें स्वच्छता के नियमों को जनता को समझाने के इन बेहतरीन अवसरों से नहीं चूकना चाहिए. स्टेशनों पर बिकने वाले खाने-पीने के सामान गंदे हैं. यह छात्रों का कर्तव्य है, जब वे चीजों को गंदा पाते हैं, तो यातायात प्रबंधक का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित करना है, भले ही वह जवाब दें या नहीं.

शहर और गांव

बनारस के संबोधन में, गांधीजी ने अधिकांश भारतीय शहरों के विभाजन का उल्लेख किया: छावनी और असली शहर. छावनी क्षेत्र का उपयोग ब्रिटिश और अन्य सरकारी अधिकारियों के घरों के रूप में किया जाता था और कुछ अमीर लोग भी वहां हो सकते हैं. असली शहर में, जो स्पष्ट रूप से छावनी से पुराना था, आम तौर पर हैमलेट (मोहल्ला) आधारित आसान पहुंच वाली बस्तियों के साथ एक बदबूदार मांद होती थी, जो मौजूदा स्वच्छता कानूनों और नागरिक परंपराओं का दुरुपयोग करती थी. मोहल्ले की गली से गुजरते समय ऊपर की इमारत से थूके जाने का अनुभव करना एक सामान्य सी बात होगी.

बनारस से गांधीजी मिशनरी सम्मेलन में भाग लेने के लिए मद्रास (अब चेन्नै) गए. स्वदेश पर सार्वजनिक भाषण में ग्राम स्वच्छता का उनका यह पहला उल्लेख था. स्थानीय भाषा बनाम अंग्रेजी में शिक्षण पर चर्चा के संदर्भ में, उन्होंने स्वच्छता के संबंध में निम्नलिखित बिंदु रखे:

'यदि शिक्षा की सभी शाखाओं में स्थानीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा दी गई होती, तो मैं यह कहने का साहस करता हूं कि वह आश्चर्यजनक रूप से समृद्ध हुई होती. गांव की सफाई आदि का प्रश्न तो बहुत पहले ही सुलझ गया होता.

उन्होंने मद्रास सोशल सर्विस लीग में भी अपनी बात रखी. मुख्य बातों में से एक शहर में स्वच्छता और साफ-सफ़ाई को लेकर थी. गांधीजी के भाषण के पाठ से कोई पाठक यह समझ सकता है कि बैठक की अध्यक्षता करने वाली महिला गांधीजी को बैठक से पहले पास के एक इलाके में ले गई, जहां लीग ने स्वच्छता और सफाई के क्षेत्र में कुछ उपयोगी काम किया था. उन्होंने अपने भाषण में इसका उल्लेख किया और कहा कि अध्यक्ष महिला उन्हें परिया गांव ले गई थीं और लीग का काम शुरू होने से पहले इसकी स्थिति का वर्णन किया था. लीग के काम के बाद इसकी स्थिति को देखते हुए, गांधीजी ने इसे प्रशंसा के योग्य पाया. उन्होंने अपने भाषण में कहा,

'गांव को देखने के बाद, मैं यह कहने का साहस करता हूं कि यह स्वच्छता और व्यवस्था का एक मॉडल है और यह मद्रास के कुछ सबसे व्यस्त और सबसे मध्यवर्ती भागों की तुलना में बहुत साफ है. निस्संदेह लीग की ओर से समाज सेवा का यह एक विश्वसनीय कार्य है; और यदि लीग मद्रास के अंदरूनी भागों में उसी तरह का काम कर सकती है, कुछ चीजें जो मैंने मद्रास में देखी हैं, जब मैं अगली बार इस महान शहर की यात्रा करूंगा तो उनकी अनुपस्थिति से स्पष्ट होंगी (वाह-वाह). ये चीजें हमें घूरती हैं और इन्हें ठीक किया जाना है. जब हमारे परिया भाई तर्क और अनुनय के लिए उत्तरदायी हैं, तो क्या हम कहेंगे कि तथाकथित उच्च वर्ग तर्क और अनुनय के लिए समान रूप से उत्तरदायी नहीं हैं और स्वच्छता के कानूनों के लिए उत्तरदायी नहीं हैं जो कि शहरी जीवन जीने के लिए अनिवार्य हैं?

गांधीजी के लिए ऐसा अनुभव पूर्वानुभव रहा होगा. दक्षिण अफ्रीका के शहरों में भारतीयों के खिलाफ ब्रिटिश और यूरोपीय नागरिकों का जो प्रमुख विवाद था, वह वास्तविक था परंतु अवसरों पर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया था. भारतीय समुदायों के साथ वर्षों तक काम करते हुए, गांधीजी ने अंतर्दृष्टि विकसित की थी. इसलिए, उन्होंने मद्रास सोशल सर्विस लीग के कामकाज पर अपने विचार साझा किए. काशी विश्वनाथ मंदिर की यात्रा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मंदिर के अपने अनुभव और काशी की सड़कों पर गंदगी को साझा किया. वह अभयारण्य में उसी गंदगी को देखकर घबरा गये थे (हो सकता है कि उन्होंने इसे गर्भगृह के लिए इस्तेमाल किया हो). उन्होंने कहा, 'काशी विश्वनाथ के बारे में जो सच है वह हमारे पवित्र मंदिरों के अधिकांश मामलों में सच है. यहां समाज सेवा लीग के लिए एक समस्या है. यह सरकार या नगर पालिका के लिए कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. तुम तुरंत स्कूलों में जाने लगते हो, तुम मंदिरों को अकेला छोड़ देते हो. इससे पहले कि हम इस काम के लिए खुद को फिट करें, हमें शिक्षा प्रणाली में क्रांति लानी चाहिए. हम आज एक झूठी स्थिति में हैं और मैं वादा करता हूं कि हमारे सामने हुई इस महान त्रासदी के लिए अगली पीढ़ी का श्राप हमें भुगतना होगा. यह रुचि और निवारण का मामला है. कार्य कठिन हो सकता है, लेकिन यह इसका इनाम पर्याप्त होगा.

गांधीजी ने गांवों, शहरों, पवित्र स्थानों, नदी के किनारे, रेलवे, जहाजों आदि में अधिकांश स्थानों पर गंदगी, धूल और मलिनता देखी. उन्होंने प्रशासकों, प्रबंधकों और देखभाल करने वालों की ओर से हुई लापरवाही और गैर-ज़िम्मेदारी पाई. दूसरी ओर, बड़े पैमाने पर लोग भी अज्ञानी, अभिमानी और रवैये में गैर-जिम्मेदार और गंदी तथा मलिनता की आदतों से भरे थे. उन्होंने सभी संभावित बैठकों और सम्मेलनों में स्वच्छता और साफ-सफाई के विषय को उठाया और इसे अपने राजनीतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत एजेंडे का हिस्सा बना लिया. दक्षिण अफ्रीका में, उन्होंने आंशिक रूप से अस्वच्छता के आरोप को स्वीकार किया, लेकिन बड़े संयम के साथ. भारत में वापसी पर न केवल उनकी हैरानी जारी रही, बल्कि वह भी बहुत बढ़ गई क्योंकि उनका हर जगह गंदगी से सामना हुआ. इसलिए उन्होंने स्वच्छता को रचनात्मक कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण घटक बनाते हुए इसे प्रमुखता प्रदान की.

(प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित, प्रोफे. सुदर्शन अयंगेर द्वारा लिखित पुस्तक 'इन दि फुटस्टैप्स ऑफ महात्मा.......गांधी एंड सेनिटेशन, के कुछ अंश. यह पुस्तक publicationsdivision.nic.in से ऑनलाइन ञ्च रु.100 के भुगतान पर क्रय की जा सकती है.)

चित्र स्रोत: gandhi.gov.in/Mahatma Gandhi: A Life Through Lenses