राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय
गांधीजी की विरासत का संरक्षण और प्रचार-प्रसार
गांधी जयंती के अवसर पर, रोज़गार समाचार के इस अंक में नज़र डालते हैं- नई दिल्ली के राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में महात्मा गांधी से संबंधित संसाधनों को कैसे संरक्षित, संसाधित, प्रचारित और साझा किया जाता है. संग्रहालय के निदेशक, श्री ए. अन्नामलाई ने, एस. रंगाबशियम को दिए साक्षात्कार में संग्रहालय के ध्येय और कार्यों के बारे में बताया.
राष्ट्रपिता के जीवन और समय को भारतीयों ने बड़े प्यार से संजोया है. आने वाली पीढ़ियां, महात्मा गांधी की इस विरासत को संजोकर रख सकें इसमें राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की क्या भूमिका है?
राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में गांधीजी के महान जीवन की विरासत को संरक्षित किया गया है. यह एक ऐसे व्यक्ति को उचित श्रद्धांजलि है जिसने अपना इतिहास सावधानीपूर्वक दर्ज किया. उन्होंने कभी इतिहास का अनुसरण नहीं किया बल्कि इसे रचा, इसलिए इस महान विभूति के जीवन से संबंधित संग्रहालय का होना आवश्यक है. गांधीजी की निशानियों, तस्वीरों, कलात्मक अभिव्यक्ति को संजोकर राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय को आगंतुकों के लिए कलात्मक रूप से सजाया गया है. इनका प्रदर्शन प्रवेश गैलरी से शुरू करके चरखा गैलरी, फोटोग्राफी गैलरी, स्मारक गैलरी, शहादत गैलरी और आर्ट गैलरी में किया गया है. संग्रहालय में एक विशाल पुस्तकालय, एक दृश्य-श्रव्य अनुभाग और एक फोटोग्राफी अनुभाग है जहां आगंतुक गांधीजी के भाषणों को पढ़ सकते हैं, सुन सकते हैं और इमेज गैलरी के माध्यम से ब्राउज कर सकते हैं.
व्यक्तिगत या शोध उद्देश्यों के लिए इनकी प्रतियां प्राप्त की जा सकती हैं क्योंकि संग्रहालय में एक पूर्ण मुद्रण कक्ष भी है.
संग्रहालय की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में बताएं?
इस संग्रहालय की स्थापना 30 जनवरी, 1948 की शाम को महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद शुरू हो गई थी. उनकी व्यक्तिगत निशानियों, पांडुलिपियों, पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा दस्तावेजों की खोज, संग्रह और संरक्षण तभी से आरंभ कर दिया गया था. गांधीजी के जीवन, दर्शन और कार्यों के बारे में फोटोग्राफिक, ऑडियो-विजुअल और अन्य सामग्री, जो इस संग्रहालय में रखी जा सकती थी, मुंबई में बिना किसी आडंबर के धीरे -धीरे संग्रहित की गई थी. बाद में यह काम दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया और 1951 की शुरुआत में गांधीजी पर एक संग्रहालय का केंद्र कोटा हाउस से सटी सरकारी झोपड़ियों में स्थापित किया गया था. बाद में 1957 के मध्य में, इसे 5, मानसिंह रोड पर सुरम्य पुरानी हवेली में स्थानांतरित कर दिया गया था.
इसे अंतत: 1959 में अपने वर्तमान नए और स्थायी स्थल में लाया गया, जो नई दिल्ली में सबसे उपयुक्त स्थल महात्मा गांधी की समाधि - राजघाट, के सामने है. इस दो मंजिला संग्रहालय का औपचारिक रूप से उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 30 जनवरी, 1961 को किया था.
राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में किस प्रकार का खजाना उपलब्ध है?
राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय और पुस्तकालय का पुस्तकालय प्रभाग गांधीवादी साहित्य पर मुख्य स्रोत सामग्री का प्रदाता होने के नाते एक महत्वपूर्ण खंड है. यह संदर्भ पुस्तकालय सभी के लिए खुला है और पाठकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. पुस्तकालय में 45,000 से अधिक पुस्तकें हैं और इनमें से कुछ अत्यंत दुर्लभ और प्रथम संस्करण की पुस्तकें हैं. संग्रह को दो खंडों में विभाजित किया गया है, अर्थात् गांधीवादी और सामान्य. गांधीवादी खंड में, गांधीजी के मौलिक लेखन कार्य और प्रतिष्ठित लोगों द्वारा उन पर लिखी पुस्तकें हैं. इसके अलावा, यहां अहिंसा, सत्याग्रह, खादी, ग्रामीण पुनर्निर्माण और जाति तथा अस्पृश्यता उन्मूलन जैसे गांधीजी से संबंधित विषयों पर पुस्तकें हैं. प्रख्यात समकालीनों की आत्मकथाओं के अलावा उनकी कृतियां भी यहां रखी गई हैं. गांधीजी के बारे में और उनके द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं में लिखी गईं महत्वपूर्ण पुस्तकें भी यहां रखी गई हैं.
गांधी पत्रों में उनके द्वारा लिखे और प्राप्त सभी मूल पत्र, उनके संघर्ष से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज आदि शामिल हैं. संदर्भ के लिए 138 खंड उपलब्ध हैं. सामान्य खंड में हमारे पास गांधीजी के अलावा अन्य विषयों पर पुस्तकें हैं, जो सामान्य प्रकृति की हैं. यहां प्रतिष्ठित लोगों की जीवनियां/आत्मकथाएं, उनके कार्य और कृषि, पत्रकारिता, साहित्य, धर्म, दर्शन, शिक्षा, इतिहास, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र जैसे विषयों पर पुस्तकें हैं.
पुस्तकालय के संग्रह में दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के दौरान गांधीजी की समाचार पत्रों की कतरनें, इंडियन ओपीनियन, हरिजन, हरिजन सेवक, नवजीवन (हिंदी और गुजराती), भारतीय समीक्षा, आधुनिक समीक्षा और कई महत्वपूर्ण गंभीर पत्रिकाएं हैं. पुस्तकालय महत्वपूर्ण समाचार पत्र और पत्रिकाएं भी मंगवाता है. पाठकों के लिए फोटो कॉपी सेवा भी उपलब्ध है. संग्रह में दुर्लभ पुस्तकों को संरक्षित करने के प्रयासों के अंतर्गत डिजिटीकरण की एक सतत् प्रक्रिया के अंतर्गतं, लगभग 800 पुस्तकों का डिजिटीकरण किया गया है और पाठक उन्हें पुस्तकालय के भीतर एक्सेस कर सकते हैं.
राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में महात्मा गांधी, कस्तूरबा और स्वतंत्रता आंदोलन के अन्य नेताओं के साथ जुड़ी मूल निशानियों, तस्वीरों, ऑडियो-विजुअल सामग्री, प्रदर्शनियों, कलाकृतियों और अन्य यादगार वस्तुओं का बहुत समृद्ध संग्रह है. इसे गांधीवादी अध्ययन तथा अनुसंधान के लिए एक संसाधन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है. यह समाज के विभिन्न वर्गों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सूचना, डेटा, ऑडियो-विजुअल सामग्री आदि को भी संसाधित करता है.
फोटो अनुभाग, शायद संग्रहालय में सबसे लोकप्रिय वर्गों में से एक है, अनुभाग में तस्वीरों की अनुमानित संख्या क्या होगी?
बिल्कुल! गांधीजी दुनिया के उन पुरुषों में शामिल थे जिनके सबसे अधिक फोटो खींचे जाते थे. हमारे फोटो अनुभाग में गांधीजी की तस्वीरों का एक बड़ा संग्रह है. 7000 से अधिक वर्गीकृत तस्वीरें उपलब्ध हैं और उनमें से 4000 तस्वीरें डिजिटल रूप में हैं. डिजिटीकरण की प्रक्रिया चल रही है. हमारे पास इन-हाउस डिज़ाइनिंग और प्रिंटिंग भी है, इसलिए हम विभिन्न विषयों पर अपनी प्रदर्शनियों के लिए डिज़ाइन करते हैं और हम उन लोगों को भी यह सेवा प्रदान करते हैं जो प्रदर्शनियों का आयोजन करना चाहते हैं. हम फोटो की कॉपी भी मामूली कीमत पर साझा करते हैं. हमारे पास गांधीजी की 7 साल की उम्र से लेकर उनके अंतिम संस्कार तक की तस्वीरें हैं, इसलिए हम उनके जीवन में आए परिवर्तनों का अध्ययन कर सकते हैं. इन घटनाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़कर देखना मेरे लिए अध्ययन का एक दिलचस्प विषय है.
संग्रहालय के श्रव्य-दृश्य खंड के बारे में बताएं. क्या गांधीजी के वीडियो पर्याप्त संख्या में हैं?
संग्रहालय का ऑडियो-विजुअल खंड एक और रोमांचक जगह है जहां गांधीजी और उस समय के अन्य नेताओं की मूल आवाजें उपलब्ध हैं. हम गांधीजी के अंतिम दिनों में प्रार्थना के बाद के उनके मूल भाषणों को संरक्षित कर रहे हैं. उनके कुछ साक्षात्कार भी उपलब्ध हैं. इसके अलावा, हमारे पास प्यारेलाल द्वारा गांधीजी के सहयोगियों के साक्षात्कारों का अच्छा संग्रह है, जैसे एच.एस.एल. पोलक, पेथिक लॉरेंस, होरेस अलेक्जेंडर आदि. हमारे पास गांधीजी के बहुत करीबी सहयोगियों जैसे राजकुमारी अमृत कौर, काका कालेलकर, मनु बहन, नारायण देसाई आदि के संस्मरण भी हैं.
श्रव्य-दृश्य खंड स्वतंत्रता आंदोलन का मौखिक इतिहास बताता है, और यह एक वास्तविक खजाना है. हमने बीबीसी द्वारा निर्मित, एक ऑडियो पुस्तक भी तैयार की है जो बिक्री के लिए नहीं है. इसमें आप गांधीजी के जीवन, उनके सहयोगियों और समकालीनों के साथ उनके तर्क-वितर्क का मूल वर्णन सुन सकते हैं.
गांधी स्मारक निधि ने गांधीजी पर उपलब्ध सभी वीडियो को संरक्षित करने के लिए गांधी फिल्म फाउंडेशन की स्थापना की. इसलिए, हमारे पास गांधी और स्वतंत्रता आंदोलन पर वीडियो का एक सेट है. हमारा हालिया काम गांधी पर ए.के. चेट्टियार की पहली डॉक्यूमेंट्री को पूर्वावस्था में परिवर्तित करना है. पहली बार इसे 1940 में तथा फिर संकलन में वृद्धि के साथ 1953 में सन फ्रांसिस्को, अमरीका में रिलीज किया गया और इसे हिंदी तथा तमिल में डब किया गया.
गांधी फिल्म फाउंडेशन द्वारा हिंदी, अंग्रेजी और तमिल में विभिन्न अवधि की डॉक्यूमेंट्री फिल्में, फिल्म डिवीजन द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री फिल्में, विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री फिल्में हमारे ऑडियो-विजुअल संग्रह में उपलब्ध हैं. इनके अलावा हमारे पास स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं से संबंधित अन्य वृत्तचित्र भी हैं जिनमें नेताजी, खान अब्दुल गफ्फार खान आदि शामिल हैं. हमारे पास देशभक्ति गीत, भजन, वाद्य संगीत और प्रार्थनाएं भी हैं.
आगंतुकों को किस प्रकार की सेवाएं और सुविधाएं प्रदान की जाती हैं?
सैंद्धांतिक रूप में, संग्रहालय के विभिन्न वर्गों तक पहुंच नि:शुल्क है. तथापि, जब भी कोई पुस्तक, फोटो, प्रदर्शनी, दस्तावेजीकरण सेवाएं आदि की आपूर्ति की जाती है, वास्तविक प्रत्यक्ष लागत/सेवा शुल्क गैर-व्यावसायिक आधार पर वसूल किए जाते हैं. यह संग्रहालय विशुद्ध रूप से गैर-व्यावसायिक तर्ज पर चलाया जाता है. नियमित फिल्म शो होते हैं. पुस्तकालय और मुफ्त वाई-फाई सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. हम, अनुरोध किए जाने पर, संग्रहालय के बाहर भी, विशेष फिल्म शो और प्रदर्शनियों का आयोजन करते हैं.
यह संग्रहालय कुछ उद्देश्यों और लक्ष्यों के साथ खोला गया था. क्या आपको लगता है कि उन्हें हासिल किया जा रहा है?
जिन उद्देश्यों के साथ संग्रहालय खोला गया था, वे थेे- गांधीजी के पत्रों, पत्राचार, पांडुलिपियों, पुस्तकों, तस्वीरों, सिने-फिल्मों, वॉयस रिकॉर्ड, व्यक्तिगत प्रभाव और स्मृति चिह्न आदि से युक्त अभिलेखों को एकत्र करना, संरक्षित करना और प्रदर्शित करना. इसके अलावा अध्ययन, प्रसार और गांधीजी के जीवन के अर्थ तथा संदेश का प्रचार करना, गांधीजी के जीवन तथा कार्यों से जुड़े विभिन्न स्थानों को संरक्षित करना और साहित्य, पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि को प्रकाशित करना इत्यादि.
इन सभी वर्षों में हमारी गतिविधियों के लिए ये सभी दिशा-निर्देश हैं. हम जहां तक संभव हो उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं, उदाहरण के लिए गांधीजी की निशानियों का संग्रह किया जा रहा है. आज भी हम विभिन्न स्रोतों से उनसे जुड़ी कुछ वस्तुओं को एकत्रित कर रहे हैं. गांधी विरासत मिशन उनसे जुड़े स्थानों की पहचान कर रहा है. अब हम गांधी विरासत स्थलों के नवीनीकरण के लिए भी काम कर रहे हैं. यह एक रोमांचक यात्रा है और हमें बहुत आगे जाना है.
संग्रहालय अपना वित्त का प्रबंधन कैसे करता है? क्या संग्रहालय को सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है?
प्रारंभ में गांधी स्मारक निधि से प्राप्त धन और जनता के दान से इसकी स्थापना और रख-रखाव किया गया था. राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय को कुल 10 करोड़ रुपये का कॉर्पस फंड प्राप्त हुआ है, जिसमें से 5 करोड़ रुपये वर्ष 1996 में प्राप्त हुए थे और 5 करोड़ रुपये का अगला कॉर्पस फंड ग्यारह साल के अंतराल के बाद 2007 में प्राप्त हुआ था. अब तक प्राप्त कुल राशि में से राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय ने गांधी स्मारक निधि और दान से प्राप्त एक सामान्य निधि अनुदान बनाने में कामयाबी हासिल की है, जिसमें 10 करोड़ की मुख्य निधि को बरकरार रखा गया है. हालांकि, 1996 की शुरुआत से कुल निधि में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है लेकिन व्यय में अत्यधिक वृद्धि को देखते हुए यह अपर्याप्त है. हम अपने राजस्व व्यय का प्रबंधन कर रहे हैं लेकिन पूंजीगत व्यय के लिए, हम प्रायोजकों, सीएसआर फंड आदि पर निर्भर हैं.
आप आम जनता, विशेष रूप से नई पीढ़ी के बीच गांधीजी के जीवन और दर्शन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए क्या प्रयास करते हैं?
संग्रहालय का मूल और मौलिक उद्देश्य गांधीजी की निशानियों, तस्वीरों, पांडुलिपियों तथा दस्तावेजों और अन्य व्यक्तिगत वस्तुओं के माध्यम से उनकी विरासत को संग्रहित और संरक्षित करना है. संग्रहालय में आने वाले लोगों को प्रदर्शित वस्तुओं और अन्य तरीकों से गांधीजी की झलक मिलेगी. इसलिए हम विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को गांधीजी के साथ एक दिन कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करते हैं. एक आउटरीचिंग कार्यक्रम के रूप में हमारे पास 'गांधी की विरासत को विद्यार्थियों तक पहुंचानाÓ कार्यक्रम है, जिसके लिए हम उनके संस्थान का दौरा करते हैं. हम उस संस्थान विशेष के विद्यार्थियों के लिए फोटो प्रदर्शनी, फिल्म शो, प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम, कहानी सुनाने आदि का आयोजन करते हैं.
हम विभिन्न विषयों पर नियमित कार्यक्रम आयोजित करते हैं जो समकालीन और प्रासंगिक हैं. हम हर तीन से छह महीने में विभिन्न विषयों पर प्रदर्शनियां भी आयोजित करते हैं. हम विद्यार्थियों और आम लोगों के बीच वितरित करने के लिए छोटे पैम्फलेट, फोटो कार्ड, गांधी के कथन आदि तैयार करते हैं.
हमने पेन ड्राइव में डिजिटल रिर्सोसिस फॉर गांधी भी तैयार किए हैं जिसमें 100 फोटो की प्रदर्शनी, ए.के. चेट्टियार की वृत्तचित्र फिल्म, खोज योग्य पीडीएफ प्रारूप में गांधीजी की 20 पुस्तकें और उनके बारे में लिखी गई 10 पुस्तकें, गांधीजी की मूल आवाज और भजन शामिल हैं. हमने गांधीजी के जीवन पर 100 पैनलों में एक सुंदर प्रदर्शनी तैयार की जिसे शिक्षण संस्थानों में स्थायी रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है.
हम अन्य संस्थानों के सहयोग से कई कार्यक्रम और गतिविधियां संचालित कर रहे हैं. इनमें शामिल हैं- रेल संग्रहालय के सहयोग से गांधी और रेलवे, दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सहयोग से रिमेंबरिंग गांधी-द लॉयर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से कार्यक्रम गांधी और स्वास्थ्य आदि.
हम गांधीवादी संस्थानों, शैक्षणिक संस्थानों और हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर छोटे संग्रहालय-सह-प्रदर्शनी आयोजित कर रहे हैं. हम विद्यार्थियों के लिए निबंध, भाषण, चित्रकला प्रतियोगिताएं भी आयोजित कर रहे हैं.
क्या आपको लगता है कि गांधीजी का संदेश और दर्शन आज की दुनिया में अधिक प्रासंगिक है?
निश्चय ही वर्तमान में गांधीजी का दर्शन पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है. उनके जीवन के संदेशों और कार्यों को युवा पीढ़ी, खासकर विद्यार्थियों तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है. कोरोना ने हम सबको, हमेशा याद रखने लायक एक महत्वपूर्ण सबक दिया है. पहला लॉकडाउन कई लोगों के लिए एक सदमा था लेकिन इसने वास्तविकता को सामने लाकर खड़ा किया और हमारी आंखें खोल दीं. इससे तथाकथित विकसित देश भी बुरी तरह प्रभावित हुए. शहरी क्षेत्र से दूर के लोगों पर इसका असर नहीं पड़ा. कोरोना ने विकास का बदसूरत चेहरा दिखाया है. अब समय आ गया है कि वास्तविकता का साहसपूर्वक सामना करने के लिए गांधीजी के सिद्धांतों पर फिर से विचार किया जाए.
गांधीजी का, सादा जीवन और प्रकृति के अनुरूप जीवन जीने का दर्शन आज अधिक प्रासंगिक है. हमें लॉकडाउन से यह सबक सीखना चाहिए कि आप जितना आत्मनिर्भर होंगे, उतना ही सुरक्षित रहेंगे. अमरीकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और गांधीजी के महान प्रशंसक, मार्टिन लूथर किंग, जूनियर ने भी कहा था 'गांधी अपरिहार्य हैं, अगर मानवता को आगे बढ़ना है, तो गांधी अनिवार्य हैं. वे शांति और सद्भाव की दुनिया के लिए मानवता की परिकल्पना से प्रेरित होकर सोचते थे, कार्य करते थे और जीते थे. हम अपने जोखिम पर गांधीजी की उपेक्षा कर सकते हैं.
(साक्षात्कारकर्ता, दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकार हैं)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.