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विशेष लेख


Issue no 23, 04-10 September 2021

डॉ. एस. राधाकृष्णन

महान शिक्षा शास्त्री

 

डॉ. राधाकृष्णन आधुनिक समय के ऐसे विचारक और दार्शनिक हैं, जिन्होंने नैतिकता के साथ आध्यात्मिकता का तथा पश्चात्य सभ्यता के साथ पूर्वी संस्कृति के समन्वय पर बल दिया. उन्होंने व्यक्ति में मानवीय गुणों के विकास को सर्वाधिक महत्व दिया. जीवन में धर्म की अनिवार्यता मानते हुए विद्यार्थी के आध्यात्मिक विकास के लिए धार्मिक शिक्षा का सुनियोजित पाठ्यक्रम सुझाया. प्रत्येक व्यक्ति में 'सादा जीवन उच्च विचार का गुण विकसित कर उसे जनतंत्रात्मक समाज का सदस्य बनाने का भरसक प्रयास किया. भारत के राष्ट्रपति बन जाने पर भी वह अपने को प्रमुख रूप से शिक्षक ही मानते रहे. यही कारण है कि उनका जन्मदिन ५ सितंबर शिक्षक दिवस में रूप में मनाया जाता है.

मनुष्य में तर्क और आत्मचिंतन की शक्ति होती है. वह अपनी लगन और साधना से सत्य, प्रेम और सौंदर्य जैसे गुणों को जितना अधिक विकसित कर लेता है उसी मात्रा में उसका आध्यात्मिक विकास होता है. मनुष्य और पशु में अंतर है कि मनुष्य वातावरण को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है. उसके पास अपनी त्रुटियों को सुधारने की सामर्थ्य है. पाप करने पर उसका पश्चाताप भी कर लेता है. यह सामर्थ्य पशुओं में नहीं है. किंतु जब मनुष्य अपनी इस क्षमता का दुरुपयोग करने लगता है तो वह पशुओं से भी निम्न स्तर पर पहुंच जाता है. स्वार्थ के वशीभूत होकर दूसरों को दुख देना या किसी का बुरा सोचना ऐसा ही व्यवहार है.

एक दार्शनिक होने के कारण डॉ. राधाकृष्णन के शिक्षा-दर्शन में धार्मिक, नैतिक एवं लोक कल्याणमय विचारों का सामंजस्य, भारतीय संस्कृति के प्रति उदारभाव तथा विश्व बंधुत्व की भावना को प्रमुखता प्राप्त है. वह समाज को ऐसे श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित रूप में विकसित करना चाहते हैं, जिसमें प्रत्येक मनुष्य को अपना योगदान का पूरा अवसर मिले. मनुष्य के विचारों को श्रेष्ठ बनाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है. शिक्षा के द्वारा ही शिष्ट, चरित्रवान तथा स्वावलंबी नागरिक तैयार किए जा सकते हैं.

संसार के सभी मनुष्य एक ही परिवार के सदस्य हैं. अत: हमें एक-दूसरे की सभ्यता-संस्कृति और राष्ट्रीयता का सम्मान करना चाहिए. भौतिकता और स्वार्थ से दूर हट कर हम आध्यात्मिक मनोवृत्ति का विकास करें और प्रत्येक मनुष्य को अपना हितैषी तथा बंधु समझें. आध्यात्मिक चिंतन द्वारा आत्म विकास करते हुए मन, वचन और कर्म से अपने समाज, राष्ट्र तथा विश्व के कल्याण में जुट जाएं.

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास अर्थात् उसके बौद्धिक, आध्यात्मिक, नौतिक, चारित्रिक तथा शारीरिक शक्तियों का समन्वित विकास. आज की शिक्षा प्राय: बौद्धिक या मानसिक शक्ति के विकास पर अधिक बल देती है. इसका संबंध भौतिक समृद्धि से अधिक है, आध्यात्मिक विकास से कम. हम यह भूल जाते हैं कि भौतिकता पर विजय प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिकता का विकास आवश्यक है.

डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा को पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने या परीक्षा पास करने का साधन मात्र नहीं मानते. शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य आंतरिक शक्तियों को विकसित, प्रशिक्षित तथा अनुशासित करने के साथ ही शिक्षार्थी को रूढ़िगत विचारों तथा अंधविश्वास के बंधन से मुक्त करना है. उसे कृत्रिम जीवन जीने की अपेक्षा प्रकृति से निकट संपर्क स्थापित करना सिखाना है. आध्यात्मिक प्रवृत्ति का विकास कर उसमें लोक कल्याण की भावना भरना है. त्याग, निस्वार्थ सेवाभाव तथा परमात्मा में आस्था रखने वाला व्यक्ति ही समाज और राष्ट्र का उत्थान कर सकता है.

डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा के वर्तमान पाठ्यक्रम में दर्शन, साहित्य, विज्ञान, नीतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, वेदांत या आध्यात्म विद्या, भूगोल, इतिहास, कृषि, विज्ञान, अर्थशास्त्र और मानव विज्ञान आदि विषयों को स्थान देने के पक्ष में है. 'धर्म निरपेक्षता का अर्थ धार्मिक अज्ञानता या धार्मिक संकीर्णता नहीं बल्कि धार्मिक आध्यात्मिकता है. इसका विकास करने के लिए सभी धर्मो के महापुरुषों की जीवनियों को पाठ्यक्रम में स्थान मिलना चाहिए. धार्मिक ग्रंथों से जीवन के लिए उपयुक्त सामग्री का चुनाव कर उसे पढ़ाया जाना आवश्यक है.

शिक्षा को आचार्य कहा गया है क्योंकि उसका आचरण अनुकरणीय होता है. वह शिष्यों को सत्यधर्म तथा सद्गुणों के पालन की प्रेरणा देता है. उनमें उदारता, सहानुभूति, साहस तथा शौर्य की भावना का विकास करता है. वह कुछ सूचनाएं और पुस्तकीय ज्ञान ही न देकर शिक्षार्थी में आत्मिक शक्ति का संचार भी करता है. शिक्षक के व्यक्तित्व और शिष्य के मस्तिष्क के बीच शिक्षा की धारा प्रवाहित होती रहती है.

डॉ. राधाकृष्णन आज के भौतिक तथा भय से ग्रस्त समाज में स्त्रियों को सभ्यता, सौहार्द और शांति के दूत के रूप में देखते हैं. उनमें आत्मत्याग तथा अहिंसा की भावना बलवती होती है. किसी समाज के आध्यात्मिक विकास का मापदंड है उसमें रहने वाली स्त्रियों की स्थिति. अत: स्त्रियों की शिक्षा की संकल्पना शारीरिक स्तर पर नहीं वरन् मानवीय धरातल पर की जानी चाहिए. उसमें निहित नैतिक, आध्यात्मिक तथा चारित्रिक गुणों का ऐसा विकास होना चाहिए, जिससे वह आज के शिशु और कल के नागरिक का सही ढ़़ग से विकास कर सके.

डॉ. राधाकृष्णन व्यक्ति और समाज में जनतांत्रिक भावनाओं के विकास को महत्वपूर्ण मानते हैं. जनतंत्र मनुष्य-मनुष्य के बीच देर को समाप्त कर प्रत्येक को प्रगति के समान अवसर देता है. जनतांत्रिक समाज में एक का ही नहीं, बल्कि सभी का समान महत्व होता है. उस प्रणाली में सबके सुख तथा कल्याण की भावना सर्वोपरि होती है. शिक्षा का यह दायित्व है कि वह बचपन से ही व्यक्ति में निस्वार्थ सेवा-भाव, परदुख कातरता तथा सहानुभूति की भावना का विकास करे. वह अपने विचार तथा कार्य द्वारा परिवार, समाज राष्ट्र तथा विश्व में सुख, शांति, उत्थान तथा समृद्धि के लिए हर संभव प्रयास करे.

शिक्षा अपने शिक्षण के माध्यम से सभी छात्रों को समान रूप से महत्व देता हुआ जनतंत्रात्मक भावना का विकास कर सकता है. प्रत्येक शिक्षार्थी चाहे वह अमीर हो या गरीब, प्रतिभाशाली हो या सामान्य, असाधारण हो या साधारण, उसकी भावना तथा विचार को आदर देते हुए उसके गुणों को उभारने का प्रयास किया जाए. प्रत्येक व्यक्ति को उसके महत्व की अनुभूति कराकर उसमें मानवीय तथा जनतंत्रात्मक गुणों का विकास किया जाना आवश्यक है. यही भावना आगे चलकर राष्ट्र की एकता तथा उत्थान के लिए व्यक्ति को सक्षम और तत्पर बनाती है.

डॉ. राधाकृष्णन की विद्वता से प्रभावित होकर भारत सरकार ने सन् १९४८ में इन्हें विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया. इसकी रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि 'शिक्षा केवल मस्तिष्क का प्रशिक्षण नहीं वरन् आत्मा का प्रशिक्षण है. इसका उद्देश्य ज्ञान और विवेक दोनों प्रदान करना है. अत: शिक्षण संस्थाओं में दोनों की व्यवस्था की जानी चाहिए. शिक्षा के उच्च स्तर पर चरित्र निर्माण के लिए धार्मिक नेताओं के जीवन तथा धर्मग्रंथों के अनुशीलन पर बल दिया गया है. शिक्षा द्वारा प्रत्येक मनुष्य में 'वसुधैव कुटुंबकम्  की भावना का विकास कर राष्ट्रीयता तथा अंतर्राष्ट्रीयता के बीच समन्वय लाने का सर्वाधिक प्रयास डॉ. राधाकृष्णन की सबसे बड़े देन है.

(प्रकाशन विभाग की पुस्तक 'भारत के महान शिक्षाशास्त्री से)