त्रिलोचन पोखरेल
सिक्किम में स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले भूले बिसरे नायक
डॉ. राजन उपाध्याय और प्रो. बिनोद भट्टराई
भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारी चंगुल से उबारने के लिए एक लंबे संघर्ष की आवश्यकता थी. एक ऐसा संघर्ष जिसमें कई नायकों का जन्म हुआ. इस संघर्ष के दौरान कुछ नायकों को प्रसिद्धि प्राप्त हुई और वे हमारी यादों में बने रहे, जबकि कुछ ऐसे थे, जिन्होंने समान रूप से कठिन संघर्ष किया फिर भी उन्हें वह ख्याति नहीं मिली. जिसके वे हकदार थे. परन्तु, भारत के नागरिकों के रूप में हमें उन गुमनाम नायकों के बारे में जानना चाहिए जिनका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान किसी तरह इतिहास के पन्नों में खो गया. यहां यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए पूर्वोत्तर भारत के कई ऐसे नायक भी सामने आए जिन्होंने उत्पीड़न की बेड़ियों को तोड़ने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. त्रिलोचन पोखरेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे ही भूले बिसरे नायक हैं जो स्मरणीय और सम्मान योग्य हैं.
त्रिलोचन पोखरेल का जन्म भद्रलाल पोखरेल और जानुका पोखरेल के घर हुआ था और उनका पालन-पोषण 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में पूर्वी सिक्किम के पाकयोंग उपखंड में तारीथांग बस्ती में हुआ. अपनी युवावस्था के दौरान, वे महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए आंदोलनों से बहुत प्रभावित थे जो सत्य और अहिंसा के मूल सिद्धांतों पर आधारित थे. महात्मा गांधी के पहले के आंदोलनों, जैसे असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उनकी भागीदारी के बारे में बहुत अधिक प्रलेखित जानकारी नहीं है, फिर भी उनके पैतृक गांव में उनके समकालीन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी को याद करते हैं. कहा जाता है कि पोखरेल गुजरात के साबरमती आश्रम और बिहार के सर्वोदय आश्रम में गांधीजी के साथ रहे थे. अपने प्रवास के दौरान, पोखरेल ने अपना समय चरखा कताई और आश्रमों के लिए अपनी सेवाएं प्रदान करने और महात्मा गांधी को उनके दैनिक मामलों में सहायता करने में बिताया. वे गांधीजी की शिक्षाओं और उनकी जीवनशैली से इतने प्रभावित थे कि वे उनके समान कपड़े पहनकर अपने पैतृक गांव जाते थे. उनके इस अदम्य साहस और उत्साही देशभक्ति ने मिलकर उन्हें 'गांधी पोखरेल की उपाधि दी. पोखरेल 'वंदे मातरम के साथ गांव के बुजुर्गों का अभिवादन करते थे. इससे प्रेरित होकर उनके गांव के कुछ लोग उन्हें 'वंदे पोखरेल के रूप में पुकारने लगे.
1861 में, सिक्किम के तत्कालीन साम्राज्य और ब्रिटिश साम्राज्य ने तुमलोंग की संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके फलस्वरूप आज का पूर्वोत्तर राज्य तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार का एक संरक्षित राज्य बना दिया गया. अंग्रेजों के लिए इसका उद्देश्य सिक्किम को व्यापार मार्ग के रूप में इस्तेमाल करना था. तीन दशक बाद, अंग्रेजों ने राज्य की रक्षा और बाहरी मामलों की जिम्मेदारी पूरी तरह से संभालने के लिए सिक्किम को औपचारिक संरक्षित राज्य घोषित कर दिया. सिक्किम के मामलों में बढ़ते ब्रिटिश हस्तक्षेप के इसी संदर्भ में त्रिलोचन पोखरेल ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष करने के लिए सिक्किम के लोगों को शिक्षित और संगठित करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली.
अंबा ग्राम पंचायत के दधीराम धमाला को याद है कि 'वंदे पोखरेल कभी भी लंबे समय तक घर रहने नहीं आते थे. पोखरेल ने अपना अधिकांश समय सिक्किम के किसानों के बीच स्वदेशी के विचार को प्रचारित करने में बिताया. फुर्सत के दिनों में, पोखरेल स्थानीय हाट-बाजारों जैसे रोंगली, रेनॉक, पकयोंग, रंगपो का दौरा करते थे, जहां वे कपास से सूत बनाने के लिए चरखे के साथ बैठते थे. गांधीजी के समान, उन्होंने भी सूती धोती और एक जोड़ी खडाऊ (लकड़ी की चप्पल) पहनी थी. उन्होंने ये सभी कार्य मुख्य रूप से स्वदेशी की भावना को प्रोत्साहित करने, अर्थात कताई करने और स्वदेशी कपड़े पहनने, ग्रामोद्योग स्थापित और प्रोत्साहित करने आदि के लिए किए. उनका लक्ष्य गांवों को आत्मनिर्भर के रूप में विकसित करना था.
कपूरपाटे गांव के तारा प्रसाद भट्टराई का कहना है कि त्रिलोचन पोखरेल ने अपनी अधिकांश जमीन अपने पिता को दे दी थी. परंतु, अभी भी एक छोटे से घर के अवशेष हैं जहां दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी अपने गांव आने पर रुकते थे. घर को अब पोखरेल बाड़ी (पोखरेल का घर) के नाम से जाना जाता है. भट्टराई ने हमें गांधी पोखरेल की एक तस्वीर और एक लिफाफा दिखाया, जिसमें प्राकृतिक चिकित्सालय, रानीपात्रा, जिला पूर्णिया, बिहार द्वारा जारी स्वतंत्रता सेनानी का मृत्यु प्रमाण पत्र था. उनकी मृत्यु का समय सुबह 9 बजे, 27.1.69 बताया गया है. 2018 में, सिक्किम सरकार ने मरणोपरांत त्रिलोचन पोखरेल को लोकतांत्रिक आंदोलन के लिए एलडी काजी पुरस्कार से सम्मानित किया.
(डॉ. राजन उपाध्याय सिक्किम विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्रोफेसर और बिनोद भट्टराई समाजविज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं