भारत को वैश्विक खिलौना विनिर्माण
केंद्र बनाने की पहल
डॉ. एस. पी. शर्मा और कृतिका भसीन
को विड-19 के कारण जारी चुनौतीपूर्ण दौर के बीच देश को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किए गए आत्मनिर्भर भारत के आह्वान ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा प्रदान की है. इस आह्वान ने विविध प्रयासों को एक-दूसरे के करीब ला दिया है और लोगों को चिंतन करने तथा इस एकीकृत लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में बढ़ने का उद्देश्य प्रदान किया है. ऐसे अनेक क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो इस प्रयास में योगदान दे सकते हैं. इस परिस्थिति में, भारतीय खिलौना उद्योग के पास बढ़ी हुई निर्माण संभावनाओं के साथ आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने का बहुत बड़ा अवसर मौजूद है.
आज, वैश्विक खिलौना उद्योग लगभग 100 अरब डॉलर है, जो औसतन 5 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) की दर पर बढ़ता जा रहा है. बाज़ार तेजी से बढ़ती विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और स्वयं खिलौना उद्योग के लचीलेपन से प्रेरित है, क्योंकि यह बच्चों के समग्र विकास से करीबी से जुड़ा हुआ है. हालांकि विशाल वैश्विक खिलौना बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी मात्र 1.5 प्रतिशत है.
भारत का खिलौना बाज़ार आज लगभग 1.5 अरब डॉलर का है, जिसके 5 प्रतिशत वैश्विक औसत की तुलना में 10-15 प्रतिशत सीएजीआर की दर पर बढ़ने का अनुमान है. वर्ष 2019-20 में एचएस कोड 9503 के अंतर्गत भारत का खिलौना निर्यात 13 करोड़ डॉलर का रहा, जबकि इसी अवधि में खिलौनों का आयात 28 करोड़ डॉलर का रहा, जिसमें व्यापार घाटा लगभग 150 मिलियन डॉलर रहा. वर्तमान में, भारत खिलौनों की अपनी लगभग 85 प्रतिशत मांग विदेशी बाज़ार के माध्यम से पूरी करता है. भारत में खिलौनों के आयात में चीन की सबसे अधिक हिस्सेदारी (लगभग 84 प्रतिशत) है, उसके बाद हांगकांग
(5.5 प्रतिशत), श्रीलंका (2.3 प्रतिशत), मलेशिया (1.4 प्रतिशत) और ब्रिटेन (0.9 प्रतिशत) का स्थान है. दूसरी ओर, भारत सबसे ज्यादा खिलौनों का निर्यात अमरीका को (26.2 प्रतिशत) करता है, उसके बाद ब्रिटेन(9.7 प्रतिशत), जर्मनी (8 प्रतिशत), बेल्जियम (6.4 प्रतिशत) और पोलैंड (5 प्रतिशत) का स्थान है.
भारत में खिलौना बाज़ार का असंगठित क्षेत्र 90 प्रतिशत जितना अधिक है, जबकि लगभग 4,000 खिलौना निर्माण इकाईयां एमएसएमई क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं. भारत के अधिकांश खिलौना विनिर्माता मध्य भारत के कलस्टरों सहित महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में स्थित हैं. सरकार खिलौना उद्योग के लिए स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देती है.
भारत की जनसांख्यिकीय और आर्थिक विशेषताएं खिलौना उद्योग की उन्नति और विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं. चीन के बाद, भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है. भारत की कुल जनसंख्या 135 करोड़ से अधिक है, जिसमें लगभग 22 प्रतिशत आबादी की आयु 0-10 वर्ष के बीच है. इसके अलावा, बढ़ती आय (डिस्पोज़ेबल इनकम), बढ़ते मध्यम वर्ग, तेजी से होते शहरीकरण,
ई-कॉमर्स की अत्यधिक पैठ आदि जैसे अन्य कारक देश में खिलौना उद्योग के विकास के लिए उत्प्रेरक हैं.
आर्थिक मोर्चे पर, भारतीय अर्थव्यवस्था की यात्रा आशाजनक रही है, क्योंकि देश के आर्थिक विकास की गति 1960 से 1990 के दशक के दौरान स्थिर से बढ़कर 2000 के दशक में तेज हुई और 2010 के दशक में सबसे तेज हो गई. चूंकि कोविड-19 महामारी के चुनौतीपूर्ण प्रभाव के कारण वर्ष 2020 को कठिन वर्ष माना गया था, इसलिए सरकार ने अर्थव्यवस्था में जल्द से जल्द नई जान डालने के लिए सक्रिय और सार्थक सुधार किए. सरकार द्वारा किए गए सुधारों का प्रभाव अब आर्थिक और व्यावसायिक संकेतकों में जबरदस्त उछाल तथा वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में भारत के जीडीपी की वृद्धि दर के (-) 7.3 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के (-) 24.4 प्रतिशत की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में 0.4 प्रतिशत के साथ मजबूत होने के रूप में जाहिर हुआ है. इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने हाल ही में वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के लिए 11.5 प्रतिशत की शानदार विकास दर का पूर्वानुमान व्यक्त किया है, जिससे देश दहाई के आंकड़े में विकास दर दर्ज करने वाली विश्व की एकमात्र प्रमुख अर्थव्यवस्था होगा.
सरकार सदैव स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने, औद्योगिक व्यवस्था या इकोसिस्टम का निर्माण करने, आयात शुल्कों को युक्तिसंगत बनाने, कड़े गुणवत्ता नियंत्रण अवरोधों आदि के लक्ष्य सहित विभिन्न सुधारों और नीतियों के माध्यम से भारत में खिलौना उद्योग की उन्नति में सहायक रही है. पिछले साल, स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने और खिलौने बनाने वाली एमएसएमई की सहायता के लिए खिलौनों पर आयात शुल्क 20 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था.
फरवरी 2020 में, केंद्र सरकार ने 'खिलौना (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 का प्रकाशन किया, जिसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलौनों को भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा प्रमाणित कराया जाना आवश्यक कर दिया गया. हालांकि, देश में खिलौना बनाने वाली मध्यम, लघु और सूक्ष्म उत्पादन इकाइयों को प्रोत्साहन देने के लिए, सरकार ने दिसंबर 2020 में खिलौना (गुणवत्ता नियंत्रण) दूसरा संशोधन आदेश, 2020 जारी किया, जिसमें, विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) के साथ पंजीकृत कारीगरों द्वारा विनिर्मित और बिक्री की गई वस्तुओं को बीआईएस के लाइसेंस के तहत स्टेंडर्ड मार्क के उपयोग से छूट दी गई.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020, के माध्यम से सरकार ने खेल आधारित और शिक्षा आधारित गतिविधियों पर बड़े पैमाने पर ध्यान केंद्रित किए जाने पर ज़ोर दिया है. चूंकि खिलौने बच्चों में संज्ञेय विकास, भाषायी पारस्परिक संवाद, सांकेतिक और काल्पनिक खेल, समस्या-समाधान, सामाजिक सम्पर्क और शारीरिक गतिविधियों का अन्तर्वाह करने से संबंधित हैं, ऐसे में ये एनईपी में प्रमुख भूमिका निभाएंगे तथा खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन देंगे.
भारतीय खिलौना उद्योग से संबंधित उपर्युक्त आंकड़ों तथा जनसांख्यिकीय एवं आर्थिक विशेषताओं के मद्देनजर, खिलौना उद्योग के लिए बड़ी ऊंचाईयां छूने और आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए देश में बाज़ार के व्यापक अवसर मौजूद हैं. यह पहलू किसी भी खिलौना कंपनी/उद्यमी के लिए भारत को संभावनाओं से भरपूर बाज़ार या ड्रीम मार्केट बनाते हैं. भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के विचार को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अगस्त 2020 के 'मन की बात कार्यक्रम के बाद बल मिला, जिसमें उन्होंने भारत को वैश्विक खिलौना केंद्र के रूप में स्थापित करने, 'वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा देने तथा विश्व आर्थिक व्यवस्था में भारत की मौजूदगी बढ़ाने की अपनी अभिलाषा व्यक्त की थी. इसके पश्चात, परम्परागत हस्तशिल्प और हाथ से बने खिलौनों सहित खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना 2020 विकसित की गई. यह योजना 13 चिह्नित हस्तशिल्प खिलौना समूहों में इस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा शिक्षा, कपड़ा, रेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा सूचना और प्रसारण सहित 14 केंद्रीय मंत्रालयों के सहयोग से प्रारंभ की गई.
घरेलू खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने की राष्ट्रीय पहल की तर्ज पर सरकार ने पहली बार डिजिटल रूप से एक्सेस की जा सकने वाली प्रदर्शनी और प्लेटफॉर्म के माध्यम से 27 फरवरी, 2021 से 2 मार्च 2021 तक 'भारतीय खिलौना मेला 2021Ó की संकल्पना और आयोजन किया. इस मेले का उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किया. इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत में खिलौना उद्योग की छुपी हुई संभावनाओं को उजागर करने तथा आत्मनिर्भर भारत के लिए अभियान के प्रमुख भाग के रूप में इसकी पहचान बनाने का आह्वान किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि खिलौनों के क्षेत्र में भारत के पास परम्परा और प्रौद्योगिकी, अवधारणाएं एवं सामर्थ्य मौजूद है.
'इस खिलौना मेले के माध्यम से सरकार और उद्योग इस बात पर चर्चा करने के लिए एक साथ आएंगे कि इस क्षेत्र में निवेश आकृष्ट करने तथा निर्यात को बढ़ावा देने के जरिए भारत को किस प्रकार खिलौनों के विनिर्माण और स्रोत का अगला वैश्विक केंद्र बनाया जा सकता है.Ó - श्री नरेन्द्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री
भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के बारे में तात्कालिक फोकस बड़ी संख्या में श्रमिकों को शामिल कर स्वदेशी विनिर्माण करने के सरकार के प्रयोजन को प्रतिबिम्बित करता है, जिसके माध्यम से आने वाले समय में भारत, चीन के विकल्प के तौर पर उभर सकता है साथ ही साथ देश में बड़ी संख्या में मौजूद युवा कामगारों के लिए रोज़गार के अवसरों का सृजन करने, एमएसएमई क्षेत्र की सहायता करने, 'मेक इन इंडियाÓ पहल को बढ़ावा देने तथा आत्मनिर्भर बनने के साथ ही साथ वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ने के उद्देश्य की भी पूर्ति कर सकता है. इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए, वैश्विक मानकों के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का निर्माण करने के साथ ही साथ ब्रांड इंडिया की छवि को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने तथा उसे संवर्धित किए जाने की जरूरत है. ऐसी अवस्था में, खिलौना उद्योग प्रमुख भूमिका निभा सकता है.
ऐसी स्थिति में, अन्य कदमों के साथ-साथ ढांचागत सुविधाओं में बड़े पैमाने पर निवेश किए जाने, नवाचार और अनुसंधान एवं विकास (आर. एंड डी.), बड़े कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाने की जरूरत है, ताकि लम्बे समय तक उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित की जा सके तथा ब्रांड इंडिया की छवि को वैश्विक स्तर पर व्यापक बनाया जा सके.
इसके अलावा, भारत को विविध उत्पादों के लिए और ज्यादा गुणवत्ता नियंत्रण आदेश और तकनीकी नियम लाने चाहिए, ताकि चीन से होने वाले घटिया और कम गुणवत्ता वाले आयातों पर रोक लग सके. इससे दो उद्देश्यों की पूर्ति होगी: प्रथम, यहां तक कि भारत अपनी निर्यात खेपों के लिए भी इन नियमों को लागू करेगा. दूसरा, इससे दुनिया में कड़े गुणवत्ता मानकों के बारे में सकारात्मक संदेश जाएगा और इससे भारतीय ब्रांडों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.
कोविड-19 के बाद के दौर में किफायती दामों पर विनिर्माण को बढ़ावा देने पर सरकार को मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यदि भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आए व्यवधानों से लाभ उठाना चाहता है और वैश्विक विनिर्माण और निर्यात केंद्र बनना चाहता है, तो उसके लिए महत्वपूर्ण होगा कि वह बड़ा सोचे और क्षमताओं का निर्माण करने के लिए रणनीति तैयार रखे, बड़े पैमाने की किफायत लाए तथा निर्यात किए जाने वाले अपने उत्पादों को ज्यादा उपयुक्त बनाने के लिए मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता को बेहतर बनाए तथा वैश्विक खरीददारों के लिए आकर्षक बनाए.
इतना ही नहीं, टुकड़ों का आयात करने और उन्हें यहां जोड़ने असेम्बल करने की बजाए देश में खिलौनों की मूल्य शृंखला व्यवस्था का निर्माण किया जाना चाहिए. इससे बड़े पैमाने पर भारत की किफायत में वृद्धि होगी, लागत में कमी आएगी, गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित होगी, पता लगाने की क्षमता बढ़ेगी और डिलीवरी की गति बरकरार रखने में मदद मिलेगी. ये वे महत्वपूर्ण घटक हैं, जो भारत के खिलौना निर्यात उत्पादों को वैश्विक स्तर पर आकर्षक बनाएंगे.
सबसे अंत में, लेकिन उतनी ही महत्वपूर्ण बात यह है कि खिलौना उद्योग की समग्र उन्नति के लिए कारोबार करने की सुगमता अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इससे विदेशी निवेश आकृष्ट होगा तथा घरेलू कारोबारों को व्यापक प्रोत्साहन मिलेगा. इस परिस्थिति में, कारोबार करने की सुगमता को बढ़ाने तथा लेन-देन की लागत में कमी लाने के विविध उपायों का कार्यान्वयन भारतीय खिलौना उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए महत्वपूर्ण होगा.
संक्षेप में कहा जाए, तो बाज़ार की अपार संभावनाओं, अनुकूल जनसांख्यकीय कारकों तथा सरकार द्वारा दी जा रही व्यापक सहायता को देखते हुए भारत खिलौना विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है. इसे साकार करने के लिए, बड़ी संख्या में श्रमिकों को शामिल कर स्वदेशी विनिर्माण करने, निर्यात में सहायता देने, ब्रांड इंडिया की छवि का निर्माण करने, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन सुनिश्चित करने पर और ज्यादा बल दिए जाने की जरूरत है.
(डॉ. एस.पी. शर्मा नई दिल्ली स्थित पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में मुख्य अर्थशास्त्री हैं और कृतिका भसीन, अनुसंधान अधिकारी, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री हैं.
ईमेल - spsharma@ phdcci.in)
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(चित्र: गूगल के सौजन्य से