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विशेष लेख


अंक संख्या 42 , 15 - 21 जनवरी ,2022

एमएसएमई क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता का विस्तार

साक्षात्कार : श्री मिलिंद देवरे, निदेशक, बीईर्ई

प्राथमिक ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भारत दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है. उसे एक ही समय पर अपनी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने के साथ ही साथ पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के उद्देश्यों की पूर्ति भी करनी है. जो प्रबल रणनीति भारत को इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता कर सकती है, वह ऊर्जा दक्षता की रणनीति है. भारत सरकार ने अपने औद्योगिक और घरेलू क्षेत्र की ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए विभिन्न नीतिगत उपायों को अपनाया है. उच्च वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करते हुए सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम (एमएसएमई) के दक्ष और स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के संबंध में सरकार की योजना के बारे में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई), विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक श्री मिलिंद देवरे के साथ रोज़गार समाचार ने बातचीत की.        

प्रश्न: विश्व  में चीन के बाद भारत के पास दूसरा सबसे बड़ा महत्वाकांक्षी और प्रभावशाली विकास पथ सहित एमएसएमई समुदाय है. भारत के ऊर्जा संरक्षण एजेंडे में इस क्षेत्र का क्या स्थान है?

मिलिंद देवरे : सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम (एमएसएमई) भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 28त्न और देश के विनिर्माण उत्पादन के 45त्न हिस्से के लिए उत्तरदायी है. कृषि के बाद, एमएसएमई क्षेत्र भारत में सबसे बड़ा रोज़गार प्रदाता है. 2017 में औद्योगिक एमएसएमई समूहों की कुल ऊर्जा खपत 68 मेगा टन होने का अनुमान था, जिसके 2031 तक 170 मेगा टन से अधिक हो जाने की संभावना है. इसके परिणामस्वरूप एमएसएमई भारत सरकार के ऊर्जा संरक्षण एजेंडे में सबसे आगे रहा है. बीते वर्षों में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो और एमएसएमई मंत्रालय ने एमएसएमई के ऊर्जा संरक्षण और प्रौद्योगिकी उन्नयन को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं. इन कदमों में राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता कार्यक्रम (एनएमसीपी), प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी (सीएलसीएसएस), एमएसएमई को प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता उन्नयन सहायता (टीईक्यूयूपी), बीईई एसएमई कार्यक्रम, जीईएफ-यूनिडो-बीईई कार्यक्रम, जीईएफ-विश्व बैंक-बीईई-सिडबी परियोजना और एमएसएमई समूहों का ऊर्जा मानचित्रण आदि शामिल हैं. एमएसएमई में ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों को अपनाने से एमएसएमई क्षेत्र की वार्षिक ऊर्जा मांग में 14त्न तक कमी सकती है. यह एमएसएमई को उत्पादन की बेहतर गुणवत्ता के साथ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में मदद करेगा.

प्रश्न : ऊर्जा दक्षता सुनिश्चित करने के लिए बेहतर प्रौद्योगिकियों और परिचालन पद्धतियों की पहचान करने, उनके मुताबिक ढलने और उन्हें अपनाने की दिशा में छोटे व्यवसायों को कौन सी प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मिलिंद देवरे : आधुनिक दक्ष तकनीकों तक छोटे व्यवसायों की पहुंच सीमित होती है और आपूर्तिकर्ताओं के साथ संपर्क कमजोर होते हैं. इसके परिणामस्वारूप, वे समूह की अन्य इकाइयों द्वारा उपयोग की जाने वाली पारंपरिक प्रौद्योगिकियों और स्थापित परिचालन पद्धतियों का उपयोग करते हैं. उन्हें आधुनिक ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों के बारे में जानकारी नहीं है. इसके अलावा, ऊर्जा की बचत से संबंधित प्रौद्योगिकियों की विशेषताओं की जटिलता तथा उन पर आने वाली लागत और उनसे होने वाले लाभ का आकलन करने की क्षमता भी उनकी सीमित होती है. किसी भी परिवर्तन का विरोध आदत के कारण भी किया जाता है, जो कामगारों के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध होने से बढ़ जाता है. ऊर्जा दक्षता (ईई) प्रौद्योगिकियों की उच्च अग्रिम लागत तथा बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की कठोर ऋण नीति भी एमएसएमई इकाइयों के लिए वित्तीय सहायता तक पहुंच बनाने की दिशा में एक बड़ी चुनौती साबित होती है.

प्रश्न : बीईई का एमएसएमई ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम वित्तीय प्रोत्साहन, ऊर्जा मूल्य निर्धारण, या तकनीकी समाधान में से किस पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित करता है?

मिलिंद देवरे : क्षेत्र विशेष पर केंद्रित हस्तक्षेपों की लघु और दीर्घकालिक योजना तैयार करना वर्तमान में बीईई के एमएसएमई ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम के अभिमुखीकरण के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है. एमएसएमई क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता से संबंधित विभिन्न पहलुओं को समग्र रूप से शामिल करने के लिए योजना को सावधानीपूर्वक डिजाइन किया जाएगा. इसमें सामान्य सुविधा केंद्रों और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन जैसे तकनीकी समाधानों को बढ़ावा देना; ईई प्रौद्योगिकी अपनाने और कौशल विकास और जागरूकता फैलाने के पहलुओं को प्रोत्साकहन देने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन देना शामिल हैं.

प्रश्न : कृपया एमएसएमई समूहों के ऊर्जा और संसाधन मानचित्रण के परिणामों के बारे में विस्तार से बताइए.

मिलिंद देवरे : ऊर्जा और संसाधन मानचित्रण अध्ययन के परिणामस्वरूप ऊर्जा लेखा परीक्षा के माध्यम से एमएसएमई समूहों के लिए ऊर्जा मानदंड स्थापित किए गए हैं. प्रमुख प्रक्रियागत अवस्थाओं के लिए मानदंड और विभिन्न प्रक्रियागत प्रौद्योगिकियों के बीच तुलना अतीत से बेहतर ढंग से सक्षम हो सकी है. ऊर्जा और संसाधन मानचित्रण अध्ययन का एक अन्य प्रमुख परिणाम ऊर्जा की अत्यधिक खपत करने वाले एमएसएमई क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने की एक व्यापक योजना तैयार करना रहा है. यह योजना एमएसएमई क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता को समग्र रूप से कवर करती है जिसमें सामान्य सुविधा केंद्रों और प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों को बढ़ावा देने जैसे तकनीकी समाधान; ईई प्रौद्योगिकी अपनाने और कौशल विकास और जागरूकता फैलाने संबंधी पहलुओं को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं. इस अध्ययन के तहत, बीईई इसका भी आकलन कर रहा है कि क्षेत्र चिन्हित ईई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए कितने तैयार हैं. अध्ययन के तहत अनेक उद्योगों से संवाद और परामर्श के माध्यम से मानदंडों और ईई योजना में सुधार किया गया है. समूहों में आयोजित की गई कार्यशालाएं ईई प्रौद्योगिकियों और प्रत्येक इकाई के प्रदर्शन और ऊर्जा बचत की संभावनाओं का आकलन करने के लिए सर्वोत्तम परिचालन पद्धति का प्रसार करने के लिए महत्वपूर्ण थीं. एमएसएमई हितधारकों के साथ परामर्श के परिणामस्वरूप ईई प्रौद्योगिकियों को अपनाने की दिशा में अनेक  तकनीकी, वित्तीय और नियामक बाधाओं की पहचान संभव हो सकी. इसके अलावा, चिन्हित चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीतिगत सिफारिशों और उनके कार्यान्वयन की योजना बनाई गई.

प्रश्न : एमएसएमई अपने उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बाजार में व्यवहार्य बनाने के लिए अपनी इनपुट लागत में कमी लाने के लिए लंबे समय से जद्दोजहद कर रहे हैं. क्या ऊर्जा प्रबंधन लागत में कमी लाने की दृष्टि से महत्व्पूर्ण है और क्या यह दृष्टिकोण स्थायी है?

मिलिंद देवरे :  एमएसएमई इकाइयों की तीन प्रमुख लागत हैं - कच्चा माल, कामगार और ऊर्जा. कच्चे माल की लागत मुख्य रूप से बाजार की ताकतों द्वारा तय होती है. दूसरी ओर, कामगारों से संबंधित लागत, श्रम बाजार के रुझानों के अलावा श्रम कानूनों और न्यूनतम मजदूरी द्वारा निर्धारित होती है. इसके अलावा, एमएसएमई में काम करने का वातावरण  प्राय: कठोर होने की वजह से कामगारों द्वारा शहरों में काम के बेहतर वातावरण वालेमॉल और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का रुख करने के कारण भी उन्हें कामगारों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. औद्योगिक एमएसएमई उप-क्षेत्रों के आधार पर ऊर्जा की लागत में  5 से 25त्न तक की भिन्नता हो सकती है. ऊर्जा संरक्षण उपाय (ईसीएम) इन लागतों में कमी ला सकते हैं और अक्सर यूनिट के प्रत्यक्ष नियंत्रण के तहत यही पहला उपाय होता है. इसके अलावा, इन उपायों से प्राय: कच्चे माल की खपत और संबद्ध लागतों में कमी आने से अतिरिक्त लाभ भी होता है. कुछ ईसीएम शोर में कमी लाकर और कामगारों की सुरक्षा को बेहतर बनाने  के साथ-साथ उनकी समग्र उत्पादकता में सुधार लाकर भी काम के वातावरण को बेहतर बना सकते हैं. इस प्रकार, उत्पादन की दृष्टि से तो ऊर्जा संरक्षण एक स्थायी दृष्टिकोण है ही, साथ ही यह एमएसएमई इकाइयों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में भी सुधार कर सकता है.

प्रश्न : क्या आप एमएसएमई में ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों को अपनाने की दिशा में धीमी प्रगति का मुख्य कारण पूंजी संबंधी रुकावटों को मानते हैं? एमएसएमई में प्रौद्योगिकीय सुधार लाने के लिए कौन से विशिष्ट वित्तीय सहायता कार्यक्रम और सब्सिडी उपलब्ध हैं?

मिलिंद देवरे : जी हां, ऊर्जा दक्षता निवेशों से  प्राय: अतिरिक्त वास्तविक राजस्व का सृजन नहीं होता, बल्कि ये ऊर्जा पर होने वाले व्यय में कमी के जरिए आमदनी में योगदान देते हैं. इनके लागू हो जाने की स्थिति से इनसे प्राप्त होने वाले समग्र लाभ के बावजूद, बैंकों के लिए ऐसी परियोजनाओं में नकदी के प्रवाह की पहचान कर पाना और किसी ऋण को उचित ठहराने के लिए इन ऊर्जा बचतों को पर्याप्त बाजार मूल्य की परिसंपत्ति के रूप में मानना कठिन हो सकता है.

प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए निम्नलिखित कार्यक्रमों ने एमएसएमई को वित्तीय सहायता प्रदान की है :

·          प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी (सीएलसीएसएस), एमएसएमई द्वारा प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए 1 करोड़ रुपये तक के अतिरिक्त निवेश के लिए 15त्न सब्सिडी प्रदान करती है. प्रौद्योगिकी उन्नयन का  आमतौर पर आशय अत्याधुनिक या लगभग अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को शामिल करना होगा.

·         राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता कार्यक्रम (एनएमसीपी) एमएसएमई के लिए एक व्यापक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी तक पहुंच, प्रौद्योगिकी के अप्रचलित हो जाने के कारण उच्च ऊर्जा लागत, उत्पाद का डिजाइन, आईपीआर संबंधी मामले, बाजार में पैंठ, गुणवत्ता प्रमाणीकरण आदि जैसे मुद्दों का समाधान कर एमएसएमई क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना है.

·         एमएसएमई को प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता उन्नयन सहायता (टीईक्यूयूपी) योजना उत्पादन की लागत में कमी लाने तथा स्वच्छ विकास व्यवस्था को अपनाने के लिए विनिर्माण इकाइयों में ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों (ईईटी) के उपयोग की वकालत करती है.

प्रश्न: स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों को बढ़ावा देने में ज्ञान साझा किया जाना किस हद तक महत्वपूर्ण है? इस संदर्भ में, कृपया बीईई और एमएसएमई मंत्रालय के सहयोगी प्लेटफॉर्म-समीक्षा के बारे में विस्तार से बताइए.

मिलिंद देवरे : प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेपों के प्रदर्शन से जुड़ी अनिश्चितताओं और बचत को प्रदर्शित करने में कठिनाई के कारण ईई निवेश को आमतौर पर जोखिम से भरपूर माना जाता है. समूहों में ईई प्रौद्योगिकियों की सीमित उपलब्धता, सर्वोत्तम परिचालन पद्धतियों के बारे में सीमित ज्ञान और आपूर्तिकर्ताओं के साथ कमजोर संपर्क भी समूहों में प्रौद्योगिकी उन्नयन में कमी के मुख्य कारण हैं. ज्ञान साझा करने वाले प्लेटफॉर्म पृथक एमएसएमई इकाइयों या उद्योग संघों को उपलब्ध अनेक ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों के बारे में मूलभूत समझ प्रदान कर सकते हैं. ज्ञान साझा करने से वे अपने प्रदर्शन का मूल्यांकन और उसमें सुधार करने में भी सक्षम हो सकते हैं.

समीक्षा ऊर्जा दक्षता के संबंध में विभिन्न संगठनों के ज्ञान और अनुभव को साझा करने का एक ऐसा ही प्लेटफॉर्म है. हालांकि, इस प्लेटफॉर्म के व्यापक प्रसार की संभावनाएं मौजूद हैं, ताकि संबंधित एमएसएमई हितधारक और उद्योग संघ अपने लिए उपलब्ध ज्ञान के बारे में बेहतर रूप से सजग हो सकें. इस प्लेटफॉर्म में बीईई और अन्य संगठनों द्वारा किए गए दीर्घकालिक अध्ययनों के निष्कर्षों के प्रसार का केंद्र बनने की क्षमता मौजूद है. इसलिए, उद्योग संघों के न्यूज़लेटर्स और पत्रिकाओं के साथ-साथ मास मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे संसाधनों के माध्यम से समीक्षा प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है.

प्रश्न : ऊर्जा संरक्षण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन में कमी लाने के लिए बीईई ने किस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय/ बहुपक्षीय सहयोगों में सहायता की है/या वह पक्षकार बना है?

मिलिंद देवरे : बीईई ने एमएसएमई क्षेत्र में ईई और संसाधन दक्ष प्रौद्योगिकियां अपनाए जाने  को बढ़ावा देने के लिए डब्ल्यूबी-जीईएफ कार्यक्रम के तहत विश्व बैंक के साथ सहयोग किया. वर्ष 2011-2015 के दौरान पांच समूहों में कार्यान्वित किए गए चरण-I हस्तक्षेपों की सफलता को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम को परियोजना के चरण-II और चरण-III के दौरान पूरे भारत में 25 समूहों तक बढ़ाया गया. इस परियोजना के अंतर्गत कार्यान्वित हस्तक्षेपों से कार्बनडाई ऑक्साइड उत्सर्जन में कुल 2 मिलियन टन ऊर्जा बचत हुई तथा 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 25 एमएसएमई समूहों में 330+ करोड़ रुपये से अधिक राशि के ईई निवेश के कार्यान्वयन में सहायता मिली.

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, यूनिडो के साथ मिलकर वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) के द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय परियोजना 'भारत में चयनित एमएसएमई समूहों में ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना का कार्यान्वयन कर रहा है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों को आरंभ करने और प्रक्रियागत अनुप्रयोगों में नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए बाजार के वातावरण को विकसित करना और उसे बढ़ावा देना है. यह परियोजना भारत के पांच क्षेत्रों क्रमश: पीतल (जामनगर); सिरेमिक (खुर्जा, थांगढ़ और मोरबी); डेयरी (गुजरात, सिक्किम और केरल); ढलाई खाना या फाउंड्री (बेलगाम, कोयंबटूर और इंदौर); हाथ के औजार (जालंधर और नागौर) में 12 एमएसएमई समूहों में परिचालित थी. परियोजना ने अब राष्ट्रीय स्तर पर एमएसएमई तक पहुंच बनाने के लिए 11 नए समूहों में अपनी गतिविधियों को बढ़ाया और विस्तारित किया है. इस परियोजना के तहत 1250 से अधिक एमएसएमई इकाइयां लाभान्वित होती हैं. इस परियोजना के तहत 1500 से अधिक ईई हस्तक्षेपों को कार्यान्वित किया गया है जिससे 232 करोड़ रुपये के निवेश सहित प्रति वर्ष 112 करोड़ रुपये की कुल मौद्रिक ऊर्जा बचत हुई है.

बीईई ने ऊर्जा संरक्षण केंद्र जापान (ईसीसीजे) के सहयोग से देश में ऊर्जा का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले 25 एसएमई क्षेत्रों के लिए भारत में एमएसएमई क्षेत्रों के लिए ईसी दिशानिर्देश तैयार किए हैं. ईसी दिशानिर्देशों के साथ सामंजस्य बैठाने से इकाइयां अपने संबंधित क्षेत्र/समूह में सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा निष्पादक एसएमई बन जाएंगी, जिससे समूह/क्षेत्र में अन्य एसएमई को अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की प्रेरणा मिलेगी.

प्रश्न : ऊर्जा दक्षता के माध्यम से निरंतर विकास प्राप्त करने में जागरूकता और आउटरीच कार्यक्रम क्या भूमिका निभाते हैं?

मिलिंद देवरे : जागरूकता और आउटरीच कार्यक्रम एमएसएमई को नई और उभरती प्रौद्योगिकियों को समझने तथा एमएसएमई इकाइयों के बीच सहयोग और ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देने में मदद करते हैं. ये एमएसएमई इकाइयों के प्रबंधन और कर्मचारियों के व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं ताकि वे सर्वोत्तम परिचालन पद्धतियों  को अपना सकें तथा ऊर्जा दक्ष प्रौद्योगिकियों के प्रति अपने दृष्टिकोण बदल सकें. एमएसएमई समूहों में अत्याधुनिक ईई प्रौद्योगिकियों की प्रयोज्यता, व्यावहारिकता और व्यवहार्यता के प्रति एमएसएमई के उद्यमियों और कर्मचारियों का विश्वास जगाने के लिए, सैम्पल एमएसएमई इकाइयों में प्रायोगिक कार्यान्वयन किया जा सकता है. जागरूकता और आउटरीच कार्यक्रमों का उपयोग इन नमूना एमएसएमई इकाइयों के अनुभव और प्रमाणों को सभी समूहों के हितधारकों के साथ साझा करने के लिए एक प्लेटफॉर्म  के रूप में किया जा सकता है. प्राप्त किए गए लाभों की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने के लिए इन कार्यक्रमों के तहत इन इकाइयों के दौरे की व्यवस्था भी की जा सकती है.

(व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं)