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विशेष लेख


अंक संख्या 40 , 1-7 जनवरी 2022

विश्व ब्रेल दिवस

पूर्ण दृष्टिबाधित और आंशिक दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए मानवाधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में संचार के साधन के रूप में ब्रेल के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए  2019 से हर वर्ष 4 जनवरी  को विश्व ब्रेल दिवस मनाया जाता है. 4 जनवरी को इस अनूठी और क्रांतिकारी लेखन प्रणाली के रचियता लुई ब्रेल की जयंती भी मनायी जाती है. लुई ब्रेल, जो स्वयं दृष्टिबाधित थे, ने दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए एक प्रणाली विकसित की और इसे 1820 के दशक में प्रकाशित किया. वर्तमान प्रणाली को 1932 में अपनाया गया था. ब्रेल प्रणाली शिक्षा, अभिव्यक्ति और राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक समावेशन के संदर्भ में अनिवार्य है.

ब्रेल क्या है?

ब्रेल वर्णमाला और संख्यात्मक प्रतीकों की स्पर्श आधारित ऐसी प्रणाली है, जिसमें प्रत्येक अक्षर और संख्या, और यहां तक कि संगीत, गणितीय और वैज्ञानिक प्रतीकों को प्रस्तुत करने के लिए छह बिंदुओं का प्रयोग किया जाता है. ब्रेल (जिसका नामकरण 19वीं सदी के फ्रांस में इसके आविष्कारक, लुई ब्रेल के नाम पर किया गया) का उपयोग पूर्ण दृष्टिबाधित और आंशिक दृष्टिबाधित व्यक्तियों द्वारा उन्हीं पुस्तकों और पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए किया जाता है जो किसी दृश्य फ़ॉन्ट में छपी होती हैं.

ब्रेल प्रणाली में 63 बिन्दु पैटर्न या वर्ण होते हैं. प्रत्येक वर्ण किसी अक्षर, अक्षरों के संयोजन, किसी सामान्य शब्द या व्याकरणिक चिह्न को प्रस्तुत करता है. बिन्दु पैटर्न प्रत्येक तीन बिन्दुओं की दो लंबवत पंक्तियों की कोशिकाओं में व्यवस्थित होते हैं. ये पैटर्न जब ब्रेल शीट पर उकेरे जाते हैं तो दृष्टिबाधित व्यक्तियों को स्पर्श करके शब्दों को पहचानने में मदद मिलती है. उन्हें स्पर्श करना आसान बनाने के लिए, बिंदुओं को थोड़ा उभारा जाता है.

दृष्टिबाधित व्यक्ति ब्रेल प्रणाली को अक्षरों से शुरू करके सीखते हैं, फिर विशेष वर्णों और अक्षरों के संयोजन की जानकारी दी जाती है. सीखने के तरीके स्पर्श से पहचान पर निर्भर होते हैं. हर वर्ण को याद रखना होता है. ब्रेल लिपि को हाथ से या मशीन से बनाया जा सकता है. टाइपराइटर जैसे उपकरण और प्रिंटिंग मशीनें अब विकसित हो चुकी हैं. ब्रेल प्रणाली का उपयोग करके कई भारतीय भाषाओं को पढ़ा जा सकता है.

लुई ब्रेल कौन थे?

कूपव्रे (फ्रांस) में पैदा हुए लुई ब्रेल तीन साल की उम्र में एक दुर्घटना में दृष्टिबाधित हो गए थे. परन्तु, यह बाधा उन्हें शिक्षा प्राप्त  करने से नहीं रोक सकी. उन्होंने पहले गांव के स्कूल में और फिर 10 से 18 साल की उम्र में, पेरिस स्थित संस्था- रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ में शिक्षा प्राप्त की, जिसकी स्थापना उनके प्रवेश से 34 साल पहले वैलेन्टिन हौय ने की थी. इस स्कूल में शिक्षण हौय द्वारा आविष्कार की गई प्रणाली पर आधारित था. किताबों में काले अक्षर थे (सामान्य दृष्टि वाले लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रित लिपि में अक्षर) लेकिन वे उभरे हुए होते थे. परन्तु, उन्हें स्पर्श से पढ़ना बहुत मुश्किल था, क्योंकि वे परस्पर बहुत करीब होते थे. इसके अलावा, विद्यार्थी लिख नहीं पाते थे, क्योंकि इसके लिए एक प्रिंटिंग प्रेस की आवश्यकता होती थी, जिसमें कागज को प्रेस पर डालने से पहले पानी में डुबोया जाता था और फिर उसे सुखाना पड़ता था.

स्कूल में रहते हुए, लुई ब्रेल चार्ल्स बार्बियर डे ला सेरे की प्रणाली के बारे में उत्साहित हो गए, जिसे आसानी से पढ़ा और लिखा जा सकता था, और केवल एक साधारण बोर्ड और एक मोहर की जरूरत थी जो किसी भी जेब में फिट हो सके. परन्तु, उन्होंने सोचा कि इसकी सीमाएं हैं क्योंकि यह केवल ध्वन्यात्मकता को लिपिबद्ध करती है. उन्होंने 12 साल की उम्र में इसके सिद्धांतों में सुधार के लिए काम करना शुरू कर दिया था.

सबसे पहले ब्रेल ने उभरे हुए बिंदुओं की संख्या बारह से घटाकर छह कर दी, ताकि वे सभी तर्जनी के नीचे फिट हो जाएं और पढ़ने में आसान और तेज हों. इसी को आधार मानकर उन्होंने विराम चिह्नों, संख्यात्मक चिह्नों और अंकों सहित एक पूर्ण वर्णमाला बनाई. यह बार्बियर की ध्वन्यात्मक प्रणाली से एक विशिष्ट अंतर था. लुई ब्रेल  संगीत प्रेमी थे और वे ऑर्गन (पियानो सदृश बड़ा वाद्य यंत्र जिसे फूंककर बजाया जाता है) पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करते थे. इस प्रकार उन्होंने 19 साल की उम्र में संगीत के लिए अपने सिस्टम को अपनी सुविधानुसार बनाया, जब उन्होंने अपने सिस्टम (ब्रेल संगीत) में संगीत स्कोरर शामिल किए.

उन्होंने अपनी पुस्तक मेथड फॉर राइटिंग वर्ड्स, म्यूजिक एंड प्लेन सॉन्ग बाई मीन्स ऑफ डॉट्स फॉर यूज ऑफ ब्लाइंड में अपनी विधि की व्याख्या की. (Procede pour ecrire les paroles la musique et le plain –chant au moyen de points a l’usage des aveugles)

विकलांग  शब्द का रूपांतरण 'दिव्यांगमें करने, विकलांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम लाने, और  दिव्यांगजनों के लिए शिक्षा, आर्थिक और सामाजिक विकास की पहुंच सुनिश्चित करने से लेकर, जहां कहीं आवश्यक हो, उनके पुनर्वास तक , सरकार ने दृष्टिबाधित लोगों सहित विकलांगजनों के लाभ के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं.  सरकार द्वारा शुरू किए गए अनेक कार्यक्रमों में से कुछ इस प्रकार हैं:-

. प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2019 में 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये, 10 रुपये और 20 रुपये के दृष्टिबाधित अनुकूल सिक्कों की नई शृंखला जारी की. ये नई शृंखला के हिस्से के रूप में जारी किए गए सिक्कों के विभिन्न मूल्यवर्ग हैं. सिक्कों को बढ़ते आकार और वजन के अनुसार, निचले से उच्च मूल्यवर्ग तक वर्गीकृत किया गया है. इस शृंखला में नया शामिल किया गया 20 रुपये का नया सिक्का, दांते रहित और 12 साइड वाला सिक्का होगा. शेष मूल्यवर्ग के सिक्के गोल आकार के होंगे.

. संविधान के अनुच्छेद 41 के प्रावधानों के अनुसरण में, वर्ष 2014-15 में 'ब्रेल प्रेस की स्थापना/आधुनिकीकरण/ क्षमता वृद्धि के लिए समर्थनके वास्ते  केंद्रीय क्षेत्र की योजना शुरू की गई थी ताकि देश में दृष्टिबाधित व्यक्तियों को ब्रेल सामग्री और साहित्य प्रदान किया जा सके. वर्ष 2020-21 से, यह  कार्यक्रम ''विकलांगजन अधिकार कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना अधिनियम’ (एसआईपीडीए) का हिस्सा बन गया है. ब्रेल प्रेस स्कीम के तहत विभिन्न राज्यों में 27 ब्रेल प्रेसों (जिनमें 12 नई ब्रेल प्रेसों की स्थापना,  12  मौजूदा ब्रेल प्रेसों का आधुनिकीकरण और 3 पुरानी ब्रेल प्रेसों की क्षमता में वृद्धि शामिल है) को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. नए ब्रेल प्रेसों की स्थापना और मौजूदा ब्रेल प्रेसों के आधुनिकीकरण/क्षमता वृद्धि के लिए अनावर्ती अनुदान के अलावा, ब्रेल प्रेसों को 1.50/- रु. (बाद में संशोधित कर रु. 2/- प्रति पृष्ठ) के मानदंड के अनुसार आवर्ती अनुदान भी दिया जाता है. पिछले सात वर्षों में मौजूदा योजना के संचालन के दौरान 16 ब्रेल प्रेसों को आवर्ती वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. इन ब्रेल प्रेसों को देशभर में स्कूल जाने वाले दृष्टिबाधित  बच्चों को पाठ्यपुस्तकों और अन्य पाठ्यक्रम सामग्री की छपाई के लिए आवर्ती अनुदान सहायता प्रदान की जाती है. योजना के उद्देश्यों में उन राज्यों में नए ब्रेल प्रेस स्थापित करना जहां पहले से ही मजबूत संगठन मौजूद हैं; केंद्र शासित प्रदेशों में छोटे पैमाने पर ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस स्थापित करना और पारंपरिक तथा कम गति मुद्रण का उपयोग करके पुराने ब्रेल प्रेस का आधुनिकीकरण करना शामिल है.

. भारतीय बैंक नोटों में कई विशेषताएं होती हैं जो दृष्टिबाधित (रंगअंधता से बाधित, आंशिक रूप से दृष्टिबाधित और पूर्ण दृष्टिबाधित) व्यक्तियों को उनकी पहचान करने में सक्षम बनाती हैं, जैसे, इंटैग्लियो प्रिंटिंग और स्पर्श चिह्न, परिवर्तनीय बैंक नोट आकार, बड़े आकार में अंक, परिवर्तनीय रंग, मोनोक्रोमैटिक रंग और पैटर्न. तकनीकी प्रगति ने दृष्टिबाधित लोगों के लिए भारतीय बैंक नोटों को अधिक सुलभ बनाने के नए अवसर खोले हैं, जिससे उनके दिन-प्रतिदिन के लेन-देन में आसानी हुई है. भारतीय बैंक नोटों के मूल्यवर्ग की पहचान करने के लिए दृष्टिबाधित व्यक्तियों की सहायता के लिए रिज़र्व बैंक ने एक मोबाइल एप्लिकेशन 'मोबाइल एडेड नोट आइडेंटिफ़ायर (एमएएनआई)’ विकसित किया है. जनवरी 2020 में लॉन्च किया गया ऐप, महात्मा गांधी शृंखला और महात्मा गांधी (नई) शृंखला के बैंक नोटों के मूल्यवर्ग की पहचान करने में मदद करता है, जिसमें विभिन्न होल्डिंग कोणों और प्रकाश की व्यापक स्थिति (सामान्य प्रकाश/दिन की रोशनी/कम रोशनी) के अनुसार आधे मुड़े नोटों सहित नोट के सामने के या पिछले हिस्से / भाग की जाँच की जाती है. ऐप हिंदी / अंग्रेजी में ऑडियो अधिसूचना और कंपन जैसे गैर-ध्वनि मोड (दृष्टि और श्रवण बाधित लोगों के लिए उपयुक्त) के माध्यम से मूल्य की पहचान करने में मदद कर सकता है. स्थापना के बाद, मोबाइल एप्लिकेशन को इंटरनेट की आवश्यकता नहीं होती है और यह ऑफ़लाइन मोड में काम करता है. परन्तु, ऐप किसी नोट के असली या नकली होने की पुष्टि नहीं करता है.

. सांस्कृतिक धरोहर स्थलों को दृष्टिबाधित लोगों के अनुकूल बनाने के लिए ब्रेल लिपि में सांस्कृतिक नोटिस बोर्ड/ संकेतक, ब्रेल लेबल के साथ प्रदर्शनियां और स्पर्श पथ जैसी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.

संकलन : अनीशा बनर्जी और अनुजा भारद्वाजन

स्रोत: पीआईबी/एनसीईआरटी आरबीआई/museelouisbraille.com