युवा सशक्तिकरण के लिये गांधीवादी विचार
प्रो. एन. राधाकृष्णन
इस वर्ष ‘गांधी जयंती’ महात्मा गांधी से संबंधित दो ऐतिहासिक घटनाक्रमों के संदर्भ में मनाई जा रही है। पहला यह कि इस वर्ष नोआखली (अब बंगलादेश में) के संघर्षपूर्ण मौत के मैदान में शांति और सौहार्द के लिये गांधीजी के वीरतापूर्ण प्रयासों की 70वीं वर्षगांठ है और दूसरा यह कि मानवता शीघ्र ही गांधीजी की 150वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारियों का सिलसिला आरंभ करने वाली है।
अत: गांधीजी की भूमिका, जो वे युवा पुरुषों और महिलाओं से भारतीय समाज के परिवर्तन के लिये निभाने की अपेक्षा रखते थे और गांधीजी के जीवन तथा कार्य जिनसे आज के युवाओं को प्रेरणा मिल सकती है, पर संक्षेप में विचार करना उपयुक्त होगा। नई सामाजिक व्यवस्था की स्थापना में युवाओं की बड़ी भूमिका की कल्पना करते हुए गांधीजी को युवाओं पर बहुत भरोसा था। दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों में युवा सशक्तिकरण उनके कार्य का अभिन्न भाग था। ‘‘छात्र भविष्य की एक आशा हैं।
इन युवा पुरुषों और महिलाओं के साथ राष्ट्र के भविष्य के नेताओं को आगे बढऩा है....’ ‘‘युवा दिमाग विशेषकर किसी के नेतृत्व के बग़ैर, निराशापूर्ण अभिप्राय है....मैंरे युवाओं और आम भारतीयों को अपने सविनय का एक बेहतर और अधिक प्रभावी तरीका प्रस्तुत किया है और यह आत्म बल या प्यार बल की पद्धति है।
आधुनिक युवाओं के लिये गांधीजी के जीवन और कार्य की संगतता
उनका साधारण जीवन अपने आप में उनको जानने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये प्रेरणा का उत्कृष्ट स्रोत था। उन्होंने अपनी संपत्ति और लाभप्रद कानूनी प्रैक्टिस का त्याग करते हुए स्वयं को सार्वजनिक सेवा के जीवन के लिये तैयार किया था। वे केवल लंगोटी और घर में बनी चप्पलों का जोड़ा पहनते थे। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 17 वर्ष एक छोटे से गांव में बिताये। अपनी जाति और वर्ग के नियमों की परवाह नहीं करते हुए उन्होंने चीन में माओ की तरह हरेक के लिये मानवीय श्रम करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उनका यह दृढ़ मत था कि बग़ैर मानवीय श्रम के खाना एक तरह से भोजन की चोरी करना है। गांधीजी ने हर मार्ग पर गऱीबों की पहचान की कोशिश की और वे उन्हें ‘‘दरिद्रनारायण’’ पुकारते थे तथा वे उनकी सेवा में ईश्वर को महसूस करते थे।
वे चाहते थे कि युवा अपने भीतर मौजूद संस्कृति की पहचान करें, ‘‘हमारे अंदर ग्रामीण सभ्यता का परिवेश है’’। हमारे देश की विशालता, जनसंख्या की विशालता, देश की स्थिति और जलवायु मेरी राय में ग्रामीण सभ्यता के अनुरूप बनी है.......हमें वर्तमान ग्रामीण सभ्यता को बढ़ावा देना चाहिये और इसकी कमियों से छुटकारा पाने का प्रयास करना चाहिये।’’
गांधीजी को समझने में युवाओं की बाधाएं
यह सच्चाई है कि भारत में 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के किसी भी व्यक्ति को गांधीजी से रूबरू होने का लाभ नहीं मिल पाया। गांधीजी के बारे में उनकी जागरूकता के चार स्रोत हैं, अर्थात (1) गांधीजी की और गांधीजी के बारे में पुस्तकें, (2) संस्थानों में गांधीजी के बारे में आयोजित किये जाने वाले विभिन्न कार्यक्रम, (3) विभिन्न गांधीवादी संगठन और गांधीवादी रचनात्मक कार्यकर्ता, जिन्होंने स्वयं को गांधीजी की धरोहर को प्रोत्साहन दिये जाने के लिये समर्पित कर रखा है और (4) गांधीजी पर बनी डॉक्यूमेंटरी तथा फ़ीचर फिल्मेें और रेडियो तथा टेलीविजन के लिये बने कार्यक्रम।
गांधीजी की हीरो के रूप में पूजा
यह एक विडंबना है कि गांधीजी, जो कि अपने सभी समकालीन लोगों से मीलों आगे थे, शायद उस चमक से वंचित रह गये जितने कि ये क्रांतिकारी वास्तव में महान थे। यद्यपि गांधीजी जैसे व्यक्ति द्वारा प्रचारित प्रेरणा, दर्शन अथवा आदर्शों के स्रोत के तौर पर पर्याप्त मात्रा में पुस्तकें और अन्य साहित्य पाया जाता है, जिनके सिद्धांत और की गई अन्य घोषणाओं का, जिन पर वे पूर्ण विश्वास करते थे, व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ लेकिन धीरे धीरे कम होकर ये सिद्धांतों के एक सेट तक सीमित होकर रह गये। उन्होंने गांधीजी को कांच के बक्सों में रखना, सडक़ों के नामकरण, विश्वविद्यालयों और संस्थानों की शुरूआत, गांधीजी के बारे में बड़े-बड़े ग्रंथों का प्रकाशन और शोध अध्ययनों के लिये अध्येतावृत्तियों की शुरूआत किये जाने सहित सब कुछ किया, इससे साफ तौर पर ये आशा की जा रही थी कि ये उपाय गांधीजी के संदेशों के प्रसार के लिये पर्याप्त रहेंगे।
गांधीजी ने ईमानदारी के साथ कहा, ‘‘गांधीवाद जैसी कोई चीज़ नहीं है और मैं अपने पश्चात् कोई संप्रदाय छोडक़र नहीं जाना चाहता हूं। मैं कोई नया सिद्धांत या पंथ शुरू करने का दावा नहीं करता। मैंने सामान्य तौर पर अपने तरीके से बाहरी सच्चाई को अपने जीवन और समस्याओं में लागू करने का प्रयास किया है। अत: मेरा मनु संहिता जैसी कोई संहिता छोडऩे का सवाल नहीं है। उस महान शास्त्रकार और मेरे बीच कोई तुलना नहीं हो सकती। मैंने निष्कर्षों पर पहुंचकर जो राय बनाई है वह अंतिम नहीं है, मैं कल उन्हें भी बदल सकता हूं। मेरे पास दुनिया को नई शिक्षा देने के लिये कुछ नहीं है। सत्यता और अहिंसा पर्वतों के समान प्राचीन हैं। मैंने सब कुछ उतने अधिक पैमाने पर जितना कि मैं कर सकता था प्रयोग करने का प्रयास किया है। ऐसा करते हुए मेरे से कई बार गलती हुई है और मैंने अपनी गलतियों से सीखा है। अत: जीवन और इसकी समस्याएं मेरे लिये सत्य और अहिंसा के व्यवहार में कई तरह के अनुभव लेकर आई हैं।’’
क्या हम गांधीजी को सही प्रकार से समझ पाने में सफल हुए हैं? उत्तर निश्चित तौर पर ‘नहीं’ में है। इस प्रश्न का बार-बार दोहराया जाने वाला स्पष्टीकरण है कि उस व्यक्ति को पहचानने में हमारी मनोवैज्ञानिक अक्षमता है जो हमारे से मीलों आगे की सोच रखते थे।
संगठित भारत की अवधारणा और गांधीजी
बहुत कम लोग इस तथ्य से इन्कार करने वाले होंगे कि गांधीजी अपने समय के महान क्रांतिकारियों में से थे। यह इतिहास की सच्चाई है कि ये गांधीजी ही थे जिन्होंने भारतीयों के विभिन्न वर्गों को एकजुट करते हुए आधुनिक भारत की आधारशिला रखी और उन्हें पड़ौस की अवधारणा के साथ जोड़ा। यद्यपि भारत को विदेशी शासन से मुक्ति दिलाना गांधीजी की एक प्रमुख चिंता थी, लेकिन उनका प्रमुख ज़ोर भारत से ब्रिटिश शासन की समाप्ति के बाद की भारतीयों के समकक्ष आने वाली चुनौतियों का सामना करने पर था। अस्पृश्यता उन्मूलन, स्वच्छता, नई शिक्षा, पुरुषों और महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने, अहिंसा पर ज़ोर, धार्मिक सहिष्णुता और विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रम, ये सब गांधीजी की महान रणनीति का हिस्सा थे जो कि उन्होंने एक मज़बूत आधुनिक राष्ट्र के निर्माण में अपनाई थी।
सर्वोदय की अवधारणा, जिसमें सभी के कल्याण, विशेषकर दरिद्रनारायण, वास्तविक गऱीब के उत्थान पर ज़ोर दिया जाता है, पवित्रता के सिद्धांतों में शुद्धता के तौर-तरीकों और लक्ष्य और सरलता को हासिल करना, जिसमें वे बने रहते थे, सभी इस बात को इंगित करते हैं कि वे किस प्रकार के व्यक्ति थे और भविष्य के भारत के लिये उनके क्या लक्ष्य थे।
‘विकास’ के बारे में गांधीजी का आशय था कि यह विकास मानव शरीर के सभी हिस्सों में होना चाहिये और वे पंचायत स्तर से लेकर लोकतांत्रिक संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण में विश्वास करते थे।
संक्षेप में, करूणा और प्रेम का संदेश देने वाले इस दुबले बूढ़े व्यक्ति ने जीवन के एक समग्र दर्शन का विकास किया है और दुनिया को एक सकारात्मक मार्ग दिखाया। वे एक ऐसे समाज की चाह रखते थे जो सभी प्रकार के उत्पीडऩ से मुक्त हो और जहां मनुष्य की तक़दीर का फैसला मनुष्य करेगा न कि मशीन। उन्होंने सभी का आह्वान किया कि वे मानवीय हाथों के अदभुत संगीत को सुनें और न कि मशीनों से तैयार होने वाले संगीत को सुनें।
‘‘मैं एक ऐसे भारत के लिये काम करूंगा जहां सबसे गऱीब महसूस करेगा कि यह उनका देश है, जिसके निर्माण में उनकी प्रभावी आवाज़ होगी, एक भारत जिसमें लोगों का कोई उच्च वर्ग और निचला वर्ग नहीं होगा, एक भारत जिसमें सभी समुदाय सौहार्द के साथ रहेंगे। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होंगे। चूंकि हम शेष दुनिया के साथ शांति के साथ रहेंगे, न उत्पीडऩ करेंगे और उत्पीडऩ होने देंगे, हम सबसे छोटी सेना की कल्पना रखेंगे। सभी के हितों की चाहे विदेशी हों अथवा स्वदेशी, लाखों मूक लोगों के हितों के खि़लाफ जाकर नहीं, ईमानदारी के साथ रक्षा करेंगे। मैं विदेश और स्वदेश के बीच भेदभाव से घृणा करता हूं। यह मेरे सपनों का भारत है।’’
गांधीजी में युवाओं की नये सिरे से रुचि
गांधीवादी विकास मॉडल को लेकर व्यापक जागरूकता है और लगभग हर क्षेत्र में यानी राजनीतिक विद्वान, आर्थिक विशेषज्ञ और यहां तक कि धार्मिक नेता काफी रुचि के साथ गांधीवादी मॉडल का विश्लेषण कर रहे हैं। विडंबना के तौर पर, यह एक निर्विवाद तथ्य है कि अब काफी अधिक शोध फाउण्डेशन, समूह और केंद्र हो गये हैं जो कि भारत के अलावा विदेशों में गांधीवादी विचारों के अध्ययन और विश्लेषण के लिये समर्पित हैं।
चूंकि यह सब समूची दुनिया में घटित हो रहा है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत के युवा और विस्मयकारी ढंग से ऐसे व्यक्ति जो कि प्रौढ़ की श्रेणी में नहीं आते हैं, गांधीजी के बारे में व्यापक रुचि रख रहे हैं।
ऐसे स्पष्ट सबूत हैं कि भारत के युवाओं का गांधीजी की तरफ इतना अधिक झुकाव पहले कभी नहीं देखा गया था। परंतु मूल्यों में सामान्य गिरावट के वातावरण में और इससे जुड़ी तमाम बुराइयों के बीच प्रेरणा के कुछ स्रोत कायम हैं। क्रांतिकारी गांधी, समाज के संपूर्ण विकास में विश्वास रखने वाले गांधी, अहिंसा के पुजारी गांधी, अत्याचारी शासन के विरोधी गांधी, बढ़ते उपभोक्तावाद के विरोधी गांधी युवाओं के लिये पथ प्रदर्शक बने हुए हैं। इस बात को लेकर जागरूकता विस्तारित हो रही है कि गांधीवाद सतत भविष्य का एक सृजनात्मक मार्ग हो सकता है।
गांधीजी के बारे में महान वैज्ञानिक आइंसटीन ने जो कुछ कहा था वह भविष्यवाणी बन गई, ‘‘अपने लोगों का एक नेता जो किसी बाहरी प्राधिकारी से असमर्थित है, एक राजनीतिज्ञ जिसकी सफलता तकनीकी उपकरणों के निर्माण और न कि आधिपत्य में निहित है बल्कि उसके व्यक्तित्व की विश्वासप्रद शक्ति पर टिकी है, एक विजयी संघर्षकर्ता, जो सदैव बल प्रयोग के खिलाफ़ था, दृढ़ संकल्प और निष्ठुर स्थिरता से सज्जित ज्ञान और विनम्रता वाला व्यक्ति, जिसने अपनी सभी शक्तियां अपने लोगों के उत्थान और उनकी बेहतरी के लिये समर्पित कर दीं, एक ऐसा व्यक्ति जिसने साधारण मानवीय गरिमा के साथ यूरोप की क्रूरता का विरोध किया, और इस प्रकार हर समय उत्कृष्टता के साथ आगे बढ़ते रहे। आने वाली पीढिय़ों, को कभी विश्वास नहीं होगा कि इस तरह का कोई व्यक्ति भी इस धरती पर मौजूद था।
कोरेटा स्कॉट किंग ने 1959 में अपने महान पति, डॉ। मार्टिन लूथर किंग जूनिअर के साथ भारत की ऐतिहासिक यात्रा के बाद जो कुछ लिखा था उससे उन सभी को प्रेरणा लेनी चाहिये जो कि महिलाओं को सशक्त करना चाहते हैं और उनके लिये न्याय और समान अवसर सुनिश्चित करना चाहते हैं:
‘‘जब हम यहां की धरती पर यात्रा कर रहे थे हम भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में राजनीतिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को लेकर काफी प्रभावित थे और इनमें से बहुत सी महिलाएं पुरुषों की तरह जेल में भी गईं। गांधीजी ने महिलाओं को हिंदू और मुस्लिम परंपराओं के बंधन से मुक्ति पाने को लेकर भी शिक्षित किया।
भारत ने एक राष्ट्र के तौर पर कई प्रभावशाली उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद स्वतंत्रता के बाद से हमारे देश ने कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं और भारत की उत्तरजीविता की पृष्ठभूमि में रखा गया है। निम्नलिखित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है:
गऱीबी उन्मूलन और सब के लिये न्याय सुनिश्चित करने के प्रयास, बढ़ती मंहगाई और काला धन, हिंसा का फैलाव, महिलाओं और कमज़ोर वर्गों पर अत्याचार, भूमिहीनों को भूमि का वितरण और वंचितों को रोजग़ार उपलब्ध करवाना, सब के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के वास्ते कार्यक्रमों में तेज़ी लाना, सभी तरफ व्याप्त भ्रष्टाचार को अधिक दिनों तक कानून बनाने और संस्थानों के सृजन का मामला मात्र नहीं समझा जा सकता, परंतु यह नागरिक समाज की गतिविधियों में स्वयं ही गहरी जड़ें जमा चुका है, भारत की अखंडता को लेकर आतंकी समूहों के खतरे जो कि राष्ट्र के विकासात्मक लक्ष्यों को प्रभावित करते हैं और ये अकेले सरकार के लिये व्यापक चिंता बने हुए हैं तथा नागरिक समाज इन पर बहुत कम ध्यान देता है।
यदि हम इनको आधुनिक सभ्यता पर गांधीजी के विचारों की मिथ्या-समझ के दृष्टिगत पढ़ते हैं, कोई भी यह महसूस करने में सहायता नहीं कर सकता कि गांधीजी अपने दृष्टिकोण और मूल्यांकन में भविष्य-सूचक थे। जब उन्होंने उभरती सभ्यता को आत्मा-विहीन करार दिया तो उनकी आलोचना की गई। ‘हिंदी समाज’ के जरिये जारी उनकी चेतावनी को यहां तक उचित विचारविमर्श के बिना ही ख़ारिज कर दिया गया।
गांधीजी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी विनोबा भावे के सामाजिक कार्यों के एकीकरण के प्रयास मानवतावाद और आध्यात्मिकता तथा सदियों पुरानी इस धरती के ज्ञान जय जगत (संपूर्ण विश्व की विजय) और वसुधैव कुटुम्बकम (वैश्विक मानवीय परिवार) हासिल करने में निहित हैं, को जनसाधारण के निर्णय के तौर पर उनके महान कार्य को लहरों से भरी पहलों के तौर पर देखा जाता था।
यदि गांधीजी के सपनों के भारत के निर्माण के लिये जयप्रकाश नारायण के साथ संचालित विनोबा जी के क्रांतिकारी कदम जारी रहते तो गांधीजी के सपनों के अनुरूप सर्वोदय समाज हक़ीकत में बदल चुका होता। सामाजिक न्याय और सब के लिये समानता गांधीजी के नये सामाजिक परिदृश्य प्रयासों का महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
सर्वोदय समाज ने प्रभावी रूप से सार्वजनिक और निजी जीवन दोनों में भ्रष्टाचार और नैतिकता, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की सामान्य दुर्गन्ध की भी रोकथाम की होती और इसे जड़ से उखाड़ फैंक दिया होता।
हमारे लिये एक बार फिर सामान्य हित की चुनौती के लिये एकजुट होने का समय आ गया है। इसके लिये ‘भूखे और आध्यात्मिक रूप से वंचित लाखों लोगों के लिये स्वराज’ की दिशा में कदम तेज़ी से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है जैसा कि गांधीजी ने हमें, अब-मशहूर, तंत्र प्रदान किया था। गांधीजी के इस महान स्वप्न को हासिल करने के लिये सशक्त, जागरूक और सामाजिक तौर पर सचेतन युवाओं को बड़ी भूमिका निभानी होगी। गांधीजी को दृढ़ विश्वास था कि हम जो भी बनना चाहते हैं, बन सकते हैं। यह सब हमारे दृढ़ संकल्प पर निर्भर करता है।
दृढ़ संकल्प की शक्ति
यह दृढ़ संकल्प गांधीजी के चव्वन वर्ष के अभियान के दौरान देखने को मिला जो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से और बाद में भारत में मानवाधिकारों, न्याय और शांति के लिये शुरू किया था।
अहिंसक विकल्पों के अत्याधुनिक कदम भौतिक पहलुओं को हल करते हैं परंतु अप्रतिरोधी हिंसा के अमानवीय प्रभावों को नहीं। हमें बड़े दु:ख के साथ यह स्वीकार कर लेना चाहिये कि एक अरब से अधिक मनुष्यों को प्रति वर्ष दो सौ अमरीकी डॉलर से भी कम औसत आय के साथ जीवनयापन करना पड़ रहा है। कुपोषण, निरक्षरता, सुरक्षित पेयजल, वस्त्र और आश्रय का जीवनपर्यन्त अभाव उनकी तक़दीर बन चुका है।
प्रकृति का दोहन उस ख़तरनाक स्थिति में पहुंच गया है कि किसी को भी नहीं कि मनुष्य का कभी शांत न होने वाले लालच किस हद तक नुकसान पहुंचा चुका है। बहमूल्य ग़ैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत समाप्त हो रहे हैं और कृषि के लिये अनिवार्य संसाधन तेज़ी के साथ घट रहे हैं।
विश्व की जनसंख्या छह अरब तक पहुंच चुकी है और हम 21वीं सदी में प्रवेश कर गये हैं तथा सात अरब बारह वर्ष गुजर चुके हैं परंतु प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये समुचित प्रयास नहीं बढ़ाये गये हैं। खाने वाले मुंह अधिक और भोजन की कम उपलब्धता का भयावह परिदृश्य एक अलग संभावना बनती जा रही है। इन दुखद पहलुओं से बेपरवाह विकसित राष्ट्र- ‘वैश्विक मानवीय परिवार’’ और ‘‘वैश्विक गांव’’ के प्रति अपने को संदर्भित किये बग़ैर-सामूहिक विनाश के हथियारों का निर्माण और उन्हें बेचने की होड़ में लगे हैं। जबकि इस बड़ी राशि के एक मामूली हिस्से के साथ धरती से गरीबी और बीमारी का उन्मूलन किया जा सकता है।
अहिंसक मानवीय बदलाव
अहिंसक मानवीव बदलाव का गांधीवादी दृष्टिकोण विश्व के अनेक हिस्सों में धीरे-धीरे लेकिन लगातार ध्यान आकृष्ट कर रहा है, यहां तक कि उनमें भी जिनके लिये अहिंसा को स्वीकार करना उनकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा जो कि सैन्य हार्डवेअर पर आधारित हैं और उन्होंने अपने हथियारों की बिक्री बढ़ाने के लिये संघर्ष को बढ़ावा दिया है। मानवीयता, इस सकारात्मक घटनाक्रम को धन्यवाद, बिस्मार्क के सिद्धांत का पुन: परीक्षण कर रही है कि जब सभ्यता इतनी अधिक अमादक हो जाती है, युद्ध एक आवश्यक विशुद्धीकरण हो जाता है।
इस चर्चा को डॉ। मार्टिन लूथर किंग (जू।) के उस वक्तव्य के साथ विराम देना उचित होगा जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं जो उन्होंने दक्षिण भारत में तमिलनाडु में गांधीग्राम में शांति सैनिकों के एक समूह को संबोधित करते हुए दिया था:
‘‘गांधीजी युवाओं पर विश्वास करते थे और उन्हें प्रोत्साहित भी किया। युवाओं को लेकर हमारी समझ में बदलाव लाना होगा। वे विभिन्न समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जिनके संतोषजनक उत्तर नहीं होते हैं। यह पर्याप्त नहीं है कि हम उनकी योग्यताओं की प्रशंसा करते हैं। हमें उन पर विश्वास करना चाहिये और जिन्हें जिम्मेदारीपूर्ण भूमिका देनी चाहिये........मुझे सामाजिक न्याय और शांति के लिये मेरे अहिंसक संघर्ष में युवाओं से जबर्दस्त समर्थन प्राप्त होता है।’’
(लेखक मैनेजिंग ट्रस्टी: गांधी पीस मिशन और अध्यक्ष: गांधी मीडिया फाउण्डेशन हैं। ई-मेल: keralagandhismaraknidhi@gmail.com)