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विशेष लेख


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भारत में आपदा प्रबंधन

शिखा सिंह

भारत के पास दुनिया की कुल धरती का मात्र दो प्रतिशत भाग है परंतु विश्व की आबादी का छठा हिस्सा यहां निवास करता है। अपनी विशाल भूमि, लगातार बढ़ती जनसंख्या और अब भी विकासशील देश होने के दर्जे के साथ भारत प्राकृतिक आपदाओं (बाढ़, भूकंपों, भूस्खलन आदि) के साथ-साथ मानव-निर्मित आपदाओं (जैसे कि रासायनिक और औद्योगिक आपदाओं) के प्रति अति संवेदनशील है। हमारी 85 प्रतिशत भूमि एक या अधिक आपदाओं के लिये संवेदनशील है, जैसे कि:

*हमारी 57 प्रतिशत भूमि भूकंपों के लिये संवेदनशील है जिसमें से 12 प्रतिशत भूमि भीषण भूकंपों की संभावनाओं का सामना कर रही है।

*68 प्रतिशत भूमि में सूखे की संभावना होती है।

*12 प्रतिशत भूमि बाढ़ के लिये संवेदनशील है, और

*हमारी 8 प्रतिशत भूमि चक्रवातों को लेकर संवेदनशील बनी रहती है।

हमारे देश के सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिये आपदा प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। आपदा के प्रभाव को न्यूनतम करने के प्रयासों का उद्देश्य आपदाओं के दौरान मानव और संपत्ति की कम से कम क्षति सुनिश्चित करना होता है। आपदाओं का न्यूनीकरण आपदाओं के आने से पहले की तैयारी रखने, और यदि संभव हो तो उनकी रोकथाम किये जाने के बारे में होता है। राहत प्रबंधों पर धन ख़र्च करने की अपेक्षा, आपदाओं का न्यूनीकरण अब जोखिमों का विश्लेषण करने, उन्हें कम करने और विपदाओं के दौरान मानवीय जीवन तथा वित्तीय संपत्तियों को पहुंचने वाली क्षति को लेकर कुछ बीमा व्यवस्था किये जाने के बारे में होता है।

प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानव निर्मित आपदाओं के प्रभावी न्यूनीकरण के लिये स्थानीय जोखि़मों, क्षेत्र के लोगों के निवासियों के सामने पेश आ रही कठिनाइयों को अच्छी तरह से समझने की ज़रूरत होती है, और समुदाय की भलाई के लिये दीर्घावधि निवेश किया जाना चाहिये।

भारत आपदाओं के प्रति किस प्रकार संवेदनशील है?

यूएनयू इंस्टीट्यूट फॉर एन्वायरमेंट एंड ह्यूमैन सिक्यूरिटी (यूएनयू-ईएचएस) और बंडनिस एन्टविकलुंग हिल्फट द्वारा प्रकाशित विश्व जोखिम रिपोर्ट 2016 और स्टटगार्ट यूनिवर्सिटी द्वारा की गई गणना में भारत को विश्व जोखिम सूचकांक में 77वें स्थान पर (171 देशों में से) पर रखा है। पाकिस्तान का स्थान 72, श्रीलंका का 63, बंगलादेश का 5, चीन का 85 और नेपाल का 105वां स्थान है। प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की संभावनाओं के अलावा रिपोर्ट में देश के बुनियादी ढांचे और संभार-तंत्र श्रृंखला पर भी विचार किया जाता है जो कि सघन प्राकृतिक घटनाओं के मामले में जोखिम को कम या अधिक करने में काफी योगदान कर सकता है।

भारत आपदा ज्ञान नेटवर्क के अनुमानों के अनुसार देश में हर साल 5 करोड़ लोग सूखे से जबकि 3 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं। भारत का उत्तरी क्षेत्र बाढ़ और भूस्खलन के लिये अधिक संवेदनशील है जबकि तटीय भारत तूफानों और बाढ़ को लेकर संवेदनशील है। देश की विशिष्ट भू-जलवायु स्थितियों ने हमारे देश के कुछेक क्षेत्रों को बारंबार और नियमित रूप से प्राकृतिक आपदाओं के लिये संवेदनशील बना दिया है। ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोग इसके अनुरूप ढल गये हैं। जबकि आर्थिक और सामाजिक लागत वर्ष दर वर्ष निरंतर बढ़ती जा रही है।

आपदाओं के दौरान सबसे बड़ी चुनौती प्रभावित क्षेत्रों के लिये तमाम कठिनाइयों के बावजूद परिवहन की सुविधा बहाल करना और भोजन, पानी तथा आश्रय की व्यवस्था करना होता है। परिवहन मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, बिजली ग्रिड फेल हो जाते हैं और पीडि़तों तक समय पर आवश्यक राहत पहुंचाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

आपदाओं के कारण उद्योगों, विशेषकर संचार तथा प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है और इससे हमारी अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंच सकती है। दीर्घावधि में आपदाएं जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय समस्याओं, शहरों में विस्थापन और अनौपचारिक बस्तियों जैसी अतिरिक्त समस्याओं को जन्म देती हैं।

9. आपदा तैयारी से जुड़ी बातें हैं:-

क. संवेदनशीलता मूल्यांकन

ख. नियोजन

ग. सांस्थानिक ढांचा

घ. सूचना प्रणाली

ड. संसाधन आधार

च. चेतावनी प्रणालियां

छ. मोचन तंत्र

ज. जन शिक्षण और प्रशिक्षण

झ. पूर्वाभ्यास

 सरकारी विभागों की भूमिका

राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) आपदा प्रबंधन कार्यों का समन्वय करता है जबकि राज्य स्तरीय गतिविधियों के लिये राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण समन्वय करते हैं।

एनडीएमए इस उद्देश्य के लिये विभिन्न मंत्रालयों के लिये नीतियों और दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार करता है और प्रत्येक विनिर्दिष्ट आपदा के लिये दिशानिर्देशों का एक सेट प्रकाशित करता है- जिसमें नियामक और ग़ैर नियामक ढांचे, नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में सब कुछ होता है जो कि आपदा प्रबंधन में सहायता कर सकते हैं।

सांस्थानिक ढांचे में आपदा प्रबंध से जुड़ी कुछेक नोडल एजेंसियां हैं:-

*बाढ़ के लिये जल संसाधन मंत्रालय

*तूफानों और भूकंपों के लिये भारतीय मौसम विभाग

*महामारियों के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

*रासायनिक आपदाओं के लिये पर्यावरण और वन मंत्रालय

*औद्योगिक आपदाओं के लिये श्रम मंत्रालय

*परमाणु आपदाओं के लिये परमाणु ऊर्जा विभाग, और

*खान संबंधी आपदाओं के लिये खान विभाग

एनडीएमए की अध्यक्षता प्रधानमंत्री, एसडीएमए की अध्यक्षता मुख्यमंत्री और जिला स्तरीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की अध्यक्षता कलेक्टर या जिला परिषद के अध्यक्ष करते हैं।

2003 में इस मुद्दे पर शोध संचालित करने और जागरूकता बढ़ाने और इसके लिये प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करने के वास्ते राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) की स्थापना की गई। सरकार ने आपात कार्रवाई, राहत प्रबंधन और पीडि़तों के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया है। आपदाओं के लिये तैयारी करना भी महत्वपूर्ण है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में जोखिम न्यूनीकरण और विकास योजनाओं और परियोजनाओं के जरिये आपदा के ख़तरों को कम करने के बारे में उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम के प्रावधान के अधीन एनडीएमए को जोखिम कम करने संबंधी परियोजनाओं पर राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष का इस्तेमाल करने की जि़म्मेदारी सौंपी गई है।

तब से लेकर संकट संभावित क्षेत्रों में हमारी आपदा तैयारी को मज़बूत करने के लिये कई राष्ट्रीय न्यूनीकरण परियोजनाएं भी शुरू की गई हैं। इनमें भूमि उपयोग प्रबंधन, भूकंपों के लिये भवन संहिताएं, सहयोग और जन जागरण अभियान शामिल हैं। 2007 और 2012 के बीच, सरकार ने बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम में कऱीब 181 अरब डॉलर का निवेश किया जिसे नदी प्रबंधन सुधार और ड्रेनेज प्रणालियों के लिये और बाढ़ नियंत्रण कार्यों के लिये ख़र्च किया गया।

कृषि मंत्रालय लोगों को सूखे की स्थिति से निपटने के लिये जल प्रबंधन और संरक्षण तथा वर्षा जल संचयन के बारे में शिक्षित करता है। राज्य सरकारों पर सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य, रोजग़ार प्रदान करने और पशुधन के लिये सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी होती है।

 

एनडीएमए विभिन्न प्रकार की आपदाओं की संभावना वाले क्षेत्रों में स्कूलों में आपात पूर्वाभ्यास भी संचालित करता है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बाढ़ संभावित क्षेत्रों में ग्रामीण अपने घरों को जोखि़म से बचाने के लिये बाढ़ के स्तर से ऊपर उठाकर बनाते हैं। पुणे में बाढ़ के जोखि़म को कम करने के लिये डिज़ाइन किये गये ड्रेनेज मानचित्र के अनुरूप राज्य सरकार ने नालियों को चौड़ा किया है, पुलों का विस्तार किया है और प्राकृतिक पूरक मिट्टी रिसाव का प्रयोग किया है। पुणे की स्थानीय सरकार ने उन घरों के लिये कर प्रोत्साहनों का भी प्रस्ताव किया है जो कि वर्षा जल का संचय करते हैं और प्रयुक्त जल का पुनर्शोधन करते हैं। 

सूखा संभावित क्षेत्रों में भारत सरकार जलाशयों के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। जलाशय संगठन ट्रस्ट भी भागीदारी जलाशय विकास कार्यक्रम संचालित करता है जिसमें वर्षा जल संरक्षण ढांचे का निर्माण किया जाता है, भूमि कटाव को रोकने के लिये रूपाई हेतु पेड़ उपलब्ध करवाये जाते हैं और समुदायों को शिक्षित और सशक्त करने के लिये गतिविधियां संचालित की जाती हैं तथा आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये क्षमता निर्माण किया जाता है। डब्ल्यूओटीआर तीन राज्यों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजना का भी संचालन कर रहा है जहां यह पर्यावरण संरक्षण, फसल विविधीकरण, मौसम संबंधी रिपोर्ट और जल प्रबंधन पर काम कर रहा है।

नई राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी)

मई, 2016 में एनडीएमए ने भारत को आपदा से उबरने में सक्षम बनाने के लिये एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना प्रस्तुत की। यह संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम कटौती हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क 2015-2030 के अनुरूप है जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किये हैं। एनडीएमपी की कुछ प्रमुख बातें हैं:-

*प्रत्येक आपदा के लिये राष्ट्रीय योजना में कार्रवाई हेतु पांच प्रमुख क्षेत्रों का सुझाव दिया गया है:

जोखि़म समझना, विभिन्न एजेंसियों का परस्पर समन्वय, डीआरआर में निवेश-संरचनात्मक उपाय, डीआरआर में निवेश-गैऱ संरचनात्मक उपाय, क्षमता विकास

*आपदा मोचन के भाग के तौर पर मोटे तौर पर 18 गतिविधियों की पहचान की गई है, जो कि निम्नलिखित हैं:

शीघ्र चेतावनी, मानचित्र, उपग्रह से जानकारी, सूचना विस्तार, लोगों और पशुओं को सुरक्षित निकालना, लोगों और पशुओं की खोज़ तथा बचाव, चिकित्सा देखभाल, पेयजल/पानी निकासी हेतु पंपों/सफाई सुविधाओं/जन स्वास्थ्य की व्यवस्था, खाद्य और आवश्यक आपूर्तियां, संचार, आवास और अस्थाई आश्रय, विद्युत, ईंधन, परिवहन, राहत संभार तंत्र, मृत पशुओं का निपटान, अभावग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं के लिये चारा, पशुओं और दूसरे प्राणियों का पुनर्वास और सुरक्षा सुनिश्चित करना, पशुओं की देखभाल, डॉटा संग्रह और प्रबंधन, राहत रोजग़ार, मीडिया संपर्क,

 

*आपदा जोखिम न्यूनीकरण के उद्देश्य के लिये, 11 सामूहिक स्थितियों के लिये जिम्मेदारियों का उल्लेख किया गया है: चक्रवात और तेज़ हवाएं, बाढ़, शहरी बाढ़, भूकंप, त्सुनामी, भूस्खलन और बर्फीला तूफान, सूखा, शीत लहर और फ्रोस्ट, रासायनिक (औद्योगिक) आपदाएं, परमाणु और विकिरण संबंधी आपात स्थितियां, आग

आपदा के समय यह आवश्यक होता है कि पहला प्रत्युत्तर और राहत प्रभावित क्षेत्रों में कम से कम समय के भीतर पहुंचा जाये। यह सुनिश्चित करने के लिये आपदा प्रबंधन प्रभावी, दक्ष और समग्र तरीके से संचालित हो, एनडीएमपी ने केंद्रीय मंत्रालयों को परिभाषित किया है जो कि राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाइयों का समन्वय करने के लिये जि़म्मेदार होंगे।

राहत कार्यों के दौरान घटना कमान चौकी, राहत शिविर, बेस, कार्यनीतिक क्षेत्र, शिविर और विभिन्न सेवाएं प्रदान करने के लिये हेलीपैड की व्यवस्था करना और उनके बारे में सूचना का प्रचार करने की जि़म्मेदारी राज्य और जिला प्रशासन की होती है।

आपदा निवारण, न्यूनीकरण और तैयारी के लिये समन्वित और समग्र दृष्टिकोण

एनडीएमएस के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी उप प्रभाग ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सेवाएं (एनडीएमएस) नामक एक प्रायोगिक परियोजना शुरू की है जो फेसबुक, ट्वीटर और यू ट्यूब जैसे सोशल मीडिया अकाऊंट का रखरखाव करता है। यह ऑफसाइट न्यूक्लियर इमरजेंसी और निम्नलिखित गतिविधियों की देखरेख के लिये निर्णय समर्थन प्रणाली भी तैयार कर रहा है:

*एनडीएमए में एलएएन और डब्ल्यूएएन की स्थापना और प्रबंधन

*नोडल मंत्रालयों, अनुमान और पूर्व चेतावनी एजेंसियों के साथ संपर्क

*सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मामलों पर केंद्र और राज्य सरकार तथा संबंधित विभागों से विचारविमर्श

*सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मामलों पर राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) को परामर्श देना और

*सेवा प्रदाताओं से संपर्क करना

एनडीएमएस प्रायोगिक परियोजना के अधीन, 120 स्थानों पर आपदा प्रबंधकों को विश्वसनीय दूरसंचार अवसंरचना उपलब्ध करवाने के प्रयास किये जा रहे हैं जो कि वी-सैट संचार का प्रयोग करेंगे और उनके समर्थन के लिये टेरेस्ट्रियल नेटवर्क तथा एचएफ रेडियो होगा। यह परियोजना भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) कार्यान्वित कर रहा है।

एक राष्ट्रीय भूकम्प जोखिम न्यूनीकरण परियोजना भी अपने तैयारी चरण में है जिसमें आदर्श भवन कानून और भूकंप रोधी निर्माण तथा योजना मानदंड लागू किये जाने पर ध्यान दिया जायेगा।

एक संयुक्त चेतावनी प्रोटोकॉल की स्थापना का भी प्रस्ताव है जिसमें आपदा से पूर्व, दौरान अथवा उपरांत जनता को विश्वसनीय, सटीक और समय पर सूचना उपलब्ध हो सकेगी।

कुछेक अन्य पहलें जो कि संचालित की जा रही हैं:

*सभी मेट्रो, बड़े शहरों और क्षेत्रों में लावारिस रेडियोएक्टिव सामग्रियों का पता लगाने के लिये मोबाईल विकिरण पहचान प्रणालियों की तैनाती

*पूर्व चेतावनी प्रणालियों के विकास और क्षमता निर्माण में वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये स्थल-विनिर्दिष्ट भूस्खलन न्यूनीकरण परियोजनाएं

*बाढ़ संभावित क्षेत्रों में आदर्श बहु उद्देशीय बाढ़ आश्रयों और नदी थाला विनिर्दिष्ट शीघ्र चेतावनी प्रणालियों तथा डिजिटल एलिवेशन मानचित्रों के विकास के लिये बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण योजना

*भारत में नौका दुर्घटनाओं को टालने के लिये दिशानिर्देश तैयार करने के लिये एक कोर ग्रुप का गठन

आपदा प्रबंध के लिये व्यापक और योजनाबद्ध दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सभी प्रकार की आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता परंतु समय पर कार्रवाई किये जाने से निश्चित तौर पर मानवीय वेदना कम होती है और अत्यधिक अपेक्षित आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

 

(लेखक एक टीवी चैनल के लिये कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार हैं, (ई-मेल: singhset@gmail.com)