राष्ट्रपति के विचार महान और उनकी सोच अत्यंत व्यापक है
उप राष्ट्रपति ने दो पुस्तकों- ‘द रिपब्लिकन एथिक’ और ‘लोकतंत्र के स्वर’ का विमोचन किया
भारत के उप राष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द के विचार महान हैं और उनकी सोच अत्यन्त व्यापक है. उन्होंने कहा कि एक राष्ट्राध्यक्ष एवं हमारे मज़बूत गणराज्य के प्रथम नागरिक के रूप में वे राष्ट्र के सार-उसके लक्ष्यों, आकांक्षाओं, उम्मीदों-और सबसे ऊपर, अनिवार्यत: उसके लोकाचार का प्रतिनिधित्व करते हैं. श्री नायडू 8 दिसम्बर, 2018 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द के चुने हुए भाषणों से युक्त दो पुस्तकों-‘द रिपब्लिकन एथिक’ और ‘लोकतंत्र के स्वर’-का विमोचन करने के बाद एकत्र लोगों को संबोधित कर रहे थे. ये पुस्तकें प्रकाशन विभाग ने प्रकाशित की हैं.
उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय लोकाचार का आधार इन शब्दों में समाहित है- एकम् सद् विप्रा: बहुधा वदंति, अर्थात् सत्य एक है, सुदी जनों ने उसे अनेक प्रकार से व्यक्त किया है और यही समावेशन भारत का सार है. उन्होंने कहा कि श्री कोविन्द ने पिछले 15 महीने के दौरान भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपने विद्वतापूर्ण भाषणों में इसी समावेशन की आवश्यकता को ईमानदारी से व्यक्त किया है.
उप राष्ट्रपति ने कहा कि गणराज्य के नीति शास्त्र के स्तम्भों में समानता, समतावाद और शिक्षा शामिल हैं और यही विषय राष्ट्रपति को प्रिय हैं. उन्होंने कहा कि गांव के कच्चे मकान से राष्ट्रपति भवन तक की उनकी बेजोड़ यात्रा इन्हीं सिद्धांतों से प्रेरित रही है.
उप राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति की परिकल्पना और विचारों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के अनेक मुद्दे कवर हुए हैं और उन्होंने ऐसी चुनौतियों पर
विशेष ध्यान केन्द्रित किया है, जिनका सामना समसामयिक विषय में भारत को करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि
सबसे महत्पूर्ण बात यह है कि वे आम जन के दिल की बात करते हैं.
श्री नायडू ने सुंदर लेआउट और डिज़ाइन के साथ इन पुस्तकों के प्रकाशन के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय को बधाई दी, जो युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों, दोनों की सोच को समान रूप से व्यक्त करती हैं.
उप राष्ट्रपति ने कहा कि ‘द रिपब्लिकन एथिक’ उन सम-सामयिक चुनौतियों और मुद्दों के बारे में राष्ट्रपति के विचारों का सारांश है, जिनका सामना भारत और विश्व को करना पड़ रहा है. श्री नायडू ने कहा कि हम सभी को अपने भीतर की शक्ति को पहचानना होगा और मिल कर कार्य करना होगा. हमें सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक रूपांतरण के एक नए युग की शुरुआत करनी होगी, जहां हम गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर के शब्दों में ‘घातक लत के भीषण रेगिस्तान’ से अपने को दूर ले जा सकें.
उप राष्ट्रपति ने कहा कि राजनीतिक दलों को विधायका के भीतर और बाहर अपने सदस्यों के लिए एक आचार संहिता अवश्य विकसित करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं होगा, तो लोगों का हमारी राजनीतिक प्रक्रियाओं से विश्वास उठ जाएगा. उन्होंने कहा कि हमें अधिक संख्या में नेतृत्व के पदों पर ऐसे विचाारवान व्यक्तियों को लाना होगा, जो न केवल ‘संवैधानिक नैतिकता’ के प्रति सचेत हों, बल्कि ‘संस्थागत गरिमा’ और ‘व्यक्तिगत निष्ठा’ का सम्मान करते हों.
इस अवसर पर अपने भाषण में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि राष्ट्रपति कोविंद का ज्ञान और विविध विषयों पर उनके अधिकार का पता उनके भाषणों से चलता है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति कोविंद अपने भाषणों में देश के प्राचीन अतीत में अंतर्निहित ज्ञान की गहराई को समाहित करने में सफल रहे हैं.
श्रीमती स्वराज ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र समानता और भाईचारे के मूल्यों पर आधारित रहा है. उन्होंने कहा कि ये मूल्य राष्ट्रपति के जीवन और कार्यों को निरंतर प्रेरित करते रहे हैं.
सूचना और प्रसारण मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने अपने भाषण में इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि भारत का नेतृत्व निचले स्तर से उभर कर आया है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के भाषणों को प्रकाशित करना और उन्हें संरक्षित करना प्रकाशन विभाग के लिए सर्वाधिक गर्व के क्षणों में से एक है.
इससे पहले, अपने स्वागत भाषण में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव श्री अमित खरे ने कहा कि राष्ट्रपति कोविंद के चुने हुए भाषणों के ये दो खंड उनकी बुद्धिमता, व्यापक ज्ञान और भारत के करोड़ों लोगों की खुशहाली के प्रति उनकी सुदृढ़ प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं.
प्रसार भारती के अध्यक्ष डॉ. ए. सूर्य प्रकाश ने कहा कि राष्ट्रपति के भाषण उनकी सादगी, देशवासियों के प्रति उनके सरोकार, संविधान के बुनियादी मूल्यों और लोकतांत्रिक जीवनशैली के प्रति उनकी वचनबद्धता को व्यक्त करते हैं. उन्होंने कहा कि विधायिका के तीन ‘डी’ - डिबेट, डिसेंट और डिसाइड यानी बहस, असहमति और निर्णय में एक और ‘डी’ यानी डिसेंसी अर्थात् शालीनता को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये चार ‘डी’ व्यवहार में आने के बाद ही पांचवें ‘डी’ यानी डेमोक्रेसी अर्थात् लोकतंत्र की सही स्थापना होती है.
बाद में सूचना और प्रसारण मंत्री कर्नल राठौड़ ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति कोविंद से भेंट की और जारी की गई पुस्तकों की प्रथम प्रतियां उन्हें सौंपीं.
‘द रिपब्लिकन एथिक’ में अंग्रेजी में दिए गए राष्ट्रपति के 95 चुने हुए भाषण शामिल हैं. ये भाषण श्री कोविंद द्वारा भारत के राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के बाद एक वर्ष की अवधि में दिए गए उनके कुल 243 भाषणों में से चुने गए हैं. इन भाषणों को 8 उप-समूहों में विभाजित किया गया है - राष्ट्र को संबोधित करते हुए, भारत की विविधता, विश्व की झलक, शैक्षिक भारत, सुसज्जित भारत, लोक सेवा का धर्म, हमारे वैज्ञानिकों का सम्मान, कानून की शक्ति और उत्कृष्टता की पहचान.
दूसरी पुस्तक ‘लोकतंत्र के स्वर’ में उनके 109 हिंदी भाषण शामिल किए गए हैं, जिनमें दुनिया के सबसे बड़े बहु-आयामी लोकतंत्र-भारत के विभिन्न वर्गों और स्तरों की बात की गई है.
उप राष्ट्रपति ने कहा कि हिंदी माननीय राष्ट्रपति की मातृ भाषा है. अत: यह स्वाभाविक था कि हिंदी में उन्होंने गंभीर राष्ट्रीय और संवैधानिक विषयों पर धारा-प्रवाह विचार व्यक्त किए हैं.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत प्रकाशन विभाग ने दोनों ग्रंथ प्रकाशित किए हैं.
-रोज़गार समाचार