उपभोक्ताओं का सशक्तीकरण - भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस का आयोजन
डॉ. शीतल कपूर
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 समेकित एवं प्रभावी तरीके से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा एवं संवर्धन के लिए एक सामाजिक-आर्थिक विधायन है. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम त्रुटिपूर्ण सामानों, सेवा में कमी, प्रतिबंधकारी एवं अनुचित व्यापार पद्धतियों से संबंधित विक्रेताओं, निर्माताओं एवं व्यापारियों द्वारा शोषण के विरुद्ध लड़ाई में उपभोक्ताओं के हाथों में एक हथियार है. उ.सं.अ. उचित विकल्प चुनने, उपभोक्ताओं के लिए निष्पक्ष, साम्य और सतत् परिणाम सुनिश्चित करने में उपभोक्ताओं को सशक्त बनाता है और समयवद्ध एवं प्रभावी शिकायत निपटान को सुकर बनाता है. केवल यही एक अधिनियम है, जो भारतीय उपभोक्ता को क्षतिपूर्ति प्रदान करता है और इसमें जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तीन-स्तरीय शिकायत निपटान प्रणाली है जिसे उपभोक्ता फोरम के रूप में जाना जाता है, जहां 1 जनवरी 2018 को निपटान दर 91त्न थी.
भारत में बड़ी संख्या में कानून हैं, जिसमें उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए प्रावधान हैं, लेकिन भारत में उपभोक्ता आंदोलन को गति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के लागू होने से मिली. 24 दिसंबर भारत में उपभोक्ता आंदोलन के इतिहास में एक मील का पत्थर है, क्योंकि इसी दिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 अस्तित्व में आया. इस दिन उपभोक्ता संरक्षण बिल भारत के राष्ट्रपति से स्वीकृति के बाद अंतत: अधिनियम बन गया. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम घटिया उत्पादों, बाजार हेरफेर के जरिए बढ़ी कीमतों, विफल वारंटियों, बिक्री सेवा के बाद कमी और अनुचित व्यापार पद्धतियों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है. इसीलिए 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
भारतीय क्रेताओं का बदलता व्यवहार
पिछले दस वर्षों में भारतीय व्यवसाय वातावरण में व्यापक परिवर्तन हुए हैं. डिजीटल प्रौद्योगिकी के तेजी से विकास और ई-व्यवसाय, स्मार्ट फोन, क्लाउड एवं इंटरनेट के बढ़ते प्रवेश के साथ भारतीय उपभोक्ता के उत्पाद खरीद के तरीके में परिवर्तन हुआ है. विनिमय के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के रूप में इंटरनेट मुख्यत: वल्र्ड वाइड वेब (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू) और मोबाइल फोन ने क्षेत्रीयता से परे आभासी बाजार को जन्म दिया है और पिछले कुछ वर्षों में व्यवसाय से उपभोक्ता खंड में बिक्री कई गुणा बढ़ती जा रहा है. स्मार्ट फोन का प्रयोग भारत में डिजीटल बाजार में परिवर्तनकारक है और वर्तमान में तीन में से एक ग्राहक मोबाइल का प्रयोग करके भुगतान करता है. एसोचेम द्वारा एक अध्ययन में यह रिपोर्ट आई है कि 2017 में भारतीय ई-व्यवसाय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है और ऑनलाइन खरीद करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या 100 मीलियन तक पहुंच गई है और ई-खुदरा बाजार 2018 में 65त्न बढ़ेगा. एक बाजार अनुसंधान फर्म ई-मार्केटर ने रिपोर्ट दी है कि भारतीय ऑनलाइन खुदरा बिक्री के 2018 में 31त्न बढऩे की आशा है और यह 32.7 बीलियन डॉलर तक पहुुंचने जा रहा है. इंटरनेट एवं मोबाइल प्रवेश में वृद्धि, डिजीटल भुगतान की बढ़ती स्वीकार्यता और अनुकूल जन सांख्यिकी ने दिन में 24 घंटे ऑनलाइन खरीद करने और अपनी खरीदों की सुपुर्दगी स्थिति का भी पता लगाने में उपभोक्ताओं के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान किया है. लेकिन ऑनलाइन खरीददारी कभी-कभी सीमा-पार लेनदेन, खराब गुणवत्ता का जोखिम एवं असुरक्षित उत्पाद, अनुचित मूल्यों, शोषणकारी एवं अनुचित व्यापार पद्वतियों से संबंधित समस्या पैदा करती है.
भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में 7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और व्यापारियों की बेईमानी द्वारा ठगी से बचने के उद्देश्य से उपभोक्ता को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने हेतु सरकार द्वारा अनेक फ्लैगशिप योजनाएं जैसे कि जागो ग्राहक जागो, जन धन योजना, आरईआरए, जीएस टी, आधार, हॉलमार्किंग की शुरूआत की गई है. उपभोक्ता आंदोलन ने व्यवसाय के सामाजिक-आर्थिक वातावरण पर पर्याप्त प्रभाव डाला है. भारत जैसे देश में जहां लोगों के बीच निरक्षरता की उच्चतर प्रतिशतता है, जहां लोग कम जानकार हैं और जहां महत्वपूर्ण वस्तुओं की हमेशा कम आपूर्ति होती है, स्वच्छ प्रतिस्पर्धा के वातावरण को बढ़ावा देकर और उपभोक्ताओं के शोषण को रोककर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है.
संघ सरकार ने मौजूदा कानून के सुदृढ़ीकरण, उपभोक्ता शिकायतों के तीव्र निपटान, विशेषकर ऑनलाइन उपभोक्ताओं के सशक्तीकरण और भेद्य एवं आर्थिक रूप से वंचित उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु 20.12.2017 को संसद में नए उपभोक्ता संरक्षण बिल को पेश करने की मंजूरी दे दी हैै. बाजार में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप नया उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2018 लोक सभा में 5 जनवरी 2018 को पेश किया गया था.
उपभोक्ता संरक्षण के लिए यू एन दिशानिर्देश
उपभोक्ता संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देश, 2016 इस बात पर जोर देता है कि सभी सदस्य देश सभी देशों और वाणिज्य के सभी क्षेत्रों के बीच अधिक प्रभावी और बेहतर समन्वित संरक्षण प्रयास सुनिश्चित करें. इसके अलावा, डिजीटल परिप्रेक्ष्य में उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण ई-वाणिज्य के सतत् एवं समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण है और यह डाटा सुरक्षा और निजता से संबंधित दिशानिर्देश भी निर्धारित करता है. उपभोक्ता संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देश के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
(क) उपभोक्ताओं के रूप में अपनी आबादी को पर्याप्त सुरक्षा देनेे या इसे अनुरक्षित करने में देशों को सहायता देना.
(ख) उपभोक्ताओं की जरूरतों और इच्छाओं के लिए जिम्मेवार उत्पादन एवं वितरण प्रतिमानों को सुकर बनाना.
(ग) उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण में संलग्न व्यक्तियों के लिए उच्च स्तर के नैतिक आचरण को बढ़ावा देना.
(घ) देशों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर सभी उद्यमियों द्वारा गलत व्यवसाय पद्धतियों, जो उपभोक्ताओं को बुरी तरह प्रभावित करता है, के शमण में सहायता करना.
(ड.) स्वतंत्र उपभोक्ता समूहों के विकास को सुकर बनाना.
(च) उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना.
(छ) उन बाजार स्थितियों के विकास को प्रोत्साहित करना, जो उपभोक्ताओं को निम्न मूल्यों पर बेहतर विकल्प दे सके.
(ज) सतत् खपत को बढ़ावा देना.
यूएनजीसीपी के तहत अच्छे व्यवसाय पद्धतियों का सिद्धांत
उपभोक्ताओं के साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन वाणिज्यिक कार्यकलापों के लिए अच्छे व्यवसाय पद्धतियों के लिए बेंचमार्क स्थापित करने के सिद्धांत इस प्रकार हैं:
(क) निष्पक्ष एवं समान व्यवहार: व्यवसायों को उपभोक्ताओं के साथ उनके संबंध के सभी चरणों पर निष्पक्षता एवं इमानदारी से डील किया जाना चाहिए, क्योंकि यह व्यवसाय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. व्यवसाय को ऐसी पद्धतियों से बचना चाहिए, जो उपभोक्ताओं, खासकर भेद्य और वंचित उपभोक्ताओं को हानि पहुंचाएं.
(ख) वाणिज्यिक व्यवहार: व्यवसाय उपभोक्ताओं को गैर कानूनी, अनैतिक, विभेदकारी या कपटी पद्धतियों जैसे कि अपमानजनक विपणन युक्तियां, अपमानजनक ऋण संग्रहण या अन्य अनुचित व्यवहार जो अनावश्यक रूप से जोखिमपूर्ण हो या उपभोक्ताओं को हानि पहुंचाए के अध्यधीन न करे. व्यवसाय और उनके अधिकृत ऐजेंटों को उपभोक्ताओं के हितों के लिए यथेष्ठ आदर और उद्देश्य के रूप में उपभोक्ता संरक्षण करने की जिम्मेवारी हो.
(ग) प्रगटन एवं पारदर्शिता: व्यवसाय को वस्तुओं एवं सेवाओं, नियमों, शर्तों, लागू शुल्कों और अंतिम लागत के संबंध में पूर्ण, सही और भ्रामक नहीं सूचना प्रदान करनी चाहिए ताकि उपभोक्ता सम्यक निर्णय लेने में समर्थ हो. व्यवसाय को प्रयुक्त प्रौद्योगिकी के साधन का ध्यान किए बिना विशेषकर मुख्य निबंधन एवं शर्तों की सूचना तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना चाहिए.
(घ) शिक्षा और सजगता बढ़ाना: व्यवसाय को वित्तीय जोखिम सहित जोखिम को समझने, सम्यक निर्णय लेने और अधिमानत: आवश्यक होने पर स्वतंत्र रूप से दक्ष एवं व्यावसायिक सलाह एवं सहायता तक पहुंचने के लिए आवश्यक ज्ञान एवं कौशल को विकसित करने के लिए उपभोक्ताओं की सहायता करने हेतु यथोचित कार्यक्रम एवं तंत्र विकसित करना चाहिए.
उपभोक्ता कौन है?
उपभोक्ता वह व्यक्ति है, जो या तो अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए या स्व-रोज़गार के साधन द्वारा अपनी आजीविका अर्जित करने के उद्देश्य से कोई उत्पाद खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है. प्रयोजन हो सकता है:
· भुगतान किया हुआ
· वादा किया हुआ
· आंशिक रूप से भुगतान किया हुआ और आंशिक रूप से वादा किया हुआ.
· इसमें ऐसी वस्तुओं/सेवाओं का लाभार्थी भी शामिल है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है.
कौन उपभोक्ता नहीं है?
एक व्यक्ति उपभोक्ता नहीं है, जब वह:
· नि:शुल्क कोई वस्तु खरीदता/खरीदती है या कोई सेवा प्राप्त करता/करती है;
· वाणिज्यिक उद्देश्य से कोई वस्तु खरीदता/खरीदती है या सेवा लेता/लेती है;
· सेवा की संविदा के तहत कोई सेवा प्राप्त करता/करती है.
वस्तु क्या है?
‘‘वस्तु’’ का अर्थ कार्रवाई योग्य दावे और राशि के अलावा प्रत्येक प्रकार की चल संपत्ति है और इसमें स्टॉक एवं शेयर, उगती फसल, घास और इससे जुड़ी वस्तुएं या भूमि का भाग शामिल है, जिसके लिए बिक्री से पहले या बिक्री की संविदा के तहत देने की सहमति दी गई है.
त्रुटि क्या है?
‘‘त्रुटि’’ का अर्थ गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता या मानक में कोई चूक, अपूर्णता या कमी है, जिसे बनाए रखना उस समय लागू किसी कानून या किसी व्यक्त या निहित संविदा द्वारा अपेक्षित हो या जिसका किसी वस्तु के संबंध में किसी भी तरह से व्यापारी द्वारा दावा किया गया हो.
सेवाएं क्या हैं?
‘‘सेवा’’ का अर्थ किसी भी तरह की सेवा है, जो सारवान प्रयोक्ताओं को उपलब्ध कराया जाता है और इसमें सीमित नहीं लेकिन बैंकिंग, वित्त पोषण, बीमा, पहिवहन, संसाधन, विद्युत या अन्य ऊर्जा की आपूर्ति, भोजन या ठहरना या दोनों, आवास निर्माण, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद या समाचार या अन्य सूचना जुटाना शामिल है, लेकिन इसमें नि:शुल्क दी गई या व्यक्तिगत सेवा की संविदा के अंतर्गत दी गई ऐसी कोई सेवा शामिल नहीं है.
सेवा की संविदा - इसका अर्थ मालिक और सेवक का संबंध है और इसमें कार्य के तरीके और निष्पादन के तरीके के हिसाब से किए जाने वाले कार्य के आदेश का पालन शामिल है. यह सीपी अधिनियम के क्षेत्र में नहीं आता है.
सेवा के लिए संविदा - इसका अर्थ एक संविदा है, जहां एक पक्ष सेवा देने का वचन देता है अर्थात् व्यवसाय या तकनीकी सेवाएं या अन्य जिसके निष्पादन में वह विस्तृत निर्देश और नियंत्रण के अध्यधीन नहीं है लेकिन व्यावसायिक कौशल और अपने ज्ञान एवं निर्णय का इस्तेमाल करता है.
सेवा में त्रुटि क्या है?
‘‘त्रुटि’’ का अर्थ गुणवत्ता, निष्पादन की प्रकृति और तरीके में कोई चूक, अपूर्णता या कमी या अपर्याप्तता है, जिसे बनाए रखना उस समय लागू किसी कानून या किसी व्यक्ति द्वारा किसी संविदा द्वारा या किसी सेवा के संबंध में अपेक्षित है.
अनुचित व्यापार पद्धति क्या है?
एक ‘‘अनुचित व्यापार पद्धति’’ का अर्थ एक व्यापार पद्धति है, जो किसी बिक्री के संवर्धन, किसी वस्तु या सेवा के प्रयोग या आपूर्ति के लिए अनुचित साधन का सहारा लेता है या अनुचित या छलपूर्ण पद्धति का सहारा लेता है.
- रो.स.
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(ड.) व्यवसायों द्वारा प्रदत्त वस्तुओं या सेवाओं और संगत लेनदेन की निबंधन एवं शर्तों के संबंध में स्पष्ट एवं समय पर सूचना.
(च) स्पष्ट, संक्षिप्त और समझने में आसान संविदा शर्तें, जो अनुचित न हों.
(छ) लेनदेन की पुष्टि, निरस्तीकरण, वापसी और धन वापसी के लिए पारदर्शी प्रक्रिया.
(ज) सुरक्षित भुगतान तंत्र.
(झ) निष्पक्ष, वहनीय एवं त्वरित निपटान तंत्र.
(ञ) उपभोक्ता निजता एवं डाटा सुरक्षा.
(झ) उपभोक्ता एवं व्यवसाय शिक्षा.
यूएनजीसीपी के सदस्य देशों को यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिए कि उपभोक्ता संरक्षण प्रवर्तन एजेंसियों के पास प्रभावी अनुपालन के संवर्धन और उपयुक्त मामलों में उपभोक्ताओं के लिए निपटान प्राप्त करने या इसे सुकर बनाने के लिए अनिवार्य मानवीय एवं वित्तीय संसाधन हो.
उपभोक्ता संरक्षण बिल 2018
एक नया बिल लाकर मौजूदा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का व्यापक उन्नयन संसद के विचाराधीन है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ता कानून को अधिक प्रभावी, कार्यात्मक और उद्देश्यपूर्ण बनाना है. बिल की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
(क) ‘उपभोक्ता’ की परिभाषा में ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों उपभोक्ता शामिल हैं. अभिव्यक्ति ‘कोई वस्तु खरीदता है’ और ‘कोई सेवा लेना या प्राप्त करना’ में इलेक्ट्रॉनिक साधनों या टेलीशॉपिंग या प्रत्यक्ष बिक्री या बहु-स्तरीय विपणन के जरिए ऑफलाइन या ऑनलाइन लेेनदेन शामिल होगा.
(ख) उपभोक्ताओं के अधिकारों के संवर्धन, रक्षा और प्रवर्तन, अनुचित व्यापार पद्धतियों से उत्पन्न उपभोक्ता की हानि को रोकने के लिए अनिवार्य होने पर अन्वेषण और हस्तक्षेप करने और वापस लेने, धन वापसी और उत्पादों की वापसी के प्रवर्तन सहित उपयुक्त कार्रवाई करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना. सीपीए के अंतर्गत अन्वेषण खंड की भी स्थापना की गई है. झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिए सीसीपीए ऑनलाइन विपणन सहित निर्माता और अनुमोदक पर 10 लाख तक का दंड लगा सकता है. बाद में चूक होने पर दंड को 50 लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है. निर्माता को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है, जिसे बाद में प्रत्येक चूक के लिए पांच वर्ष बढ़ाया जा सकता है.
(ग) अधिनिर्णायक निकायों के मौद्रिक न्यायक्षेत्र को बढ़ाकर जिला आयोग के मामले में रु. 1 करोड़, राज्य आयोग के मामले में रु. 1 करोड़ से 10 करोड़ के बीच और राष्ट्रीय आयोग के मामले में रु. 10 करोड़ से ऊपर कर दिया गया है. शिकायतों की फाइलिंग और शिकायतों की ऑनलाइन फाइलिंग की प्रक्रिया का और सरलीकरण.
(घ) दावाकर्ता के प्रति निर्माता की जिम्मेवारी नियत करके किसी उत्पाद द्वारा या उसके परिणामस्वरूप हुई हानि के लिए या इसके कारण ‘‘उत्पाद दायित्व’’ का प्रावधान.
(ड.) वैकल्पिक विभेद समाधान (एडी आर) तंत्र के रूप में ‘मध्यस्थ’ का प्रावधान, जिसका उद्देश्य मध्यस्थता के जरिए उपभोक्ता विवादों के लिए विधायी आधार देना और इस प्रकार प्रक्रिया को कम उलझनपूर्ण, सरल और तीव्र बनाना है. इसे उपभोक्ता मंच के तत्वावधान में किया जाएगा.
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में विभिन्न प्रावधान शामिल हैं, जो कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को बढ़ाने के लिए लोक उपक्रम के विस्तार, कुछ लोगों की मुट्ठी में आर्थिक शक्ति के संकेंद्रण से बचाव और निजी एकाधिकार पर रोक, निर्मित वस्तुओं और कच्चे माल के उत्पादकों के उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा आदि पर जोर देता है. अत: उपभोक्ता न्याय संविधान में उत्कीर्णित सामाजिक एवं आर्थिक न्याय का हिस्सा है.
संवैधानिक अधिदेश के अनुसरण में उपभोक्ताओं की रक्षा के लिए अनेक कानून लागू किए गए हैं. कुछ महत्वपूर्ण कानून हैं:
· औषधि नियंत्रण अधिनियम, 1950;
· खाद्य अपमिश्रण अपवर्जन अधिनियम, 1954;
· औषधि एवं त्वरित उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954;
· अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955;
· निर्यात गुणवत्ता नियंत्रण एवं निरीक्षण अधिनियम, 1963;
· एकाधिकार एवं प्रतिबंधकारी व्यवसाय पद्धति अधिनियम, 1969;
· तौल एवं माप मानक अधिनियम, 1976; और
· कालाबाजारी का अपवर्जन एवं अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति का अनुरक्षण अधिनियम, 1980
- रो स
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(च) उपभोक्ता मंच में उपभोक्ता विवाद अधिनिर्णयन प्रक्रिया के सरलीकरण के लिए लक्षित प्रावधान की परिकल्पना है. इनमें अन्यों के साथ शामिल हैं: उपभोक्ता विवाद निपटान एजेंसियों के मौद्रिक न्यायक्षेत्र को बढ़ाना, शिकायतों के तीव्र निपटान को सुकर बनाने के लिए उपभोक्ता मंच में सदस्यों की न्यूनतम संख्या को बढ़ाना, राज्य और जिला आयोग को अपने ही आदेशों की पुनरीक्षा की शक्ति, शिकायतों के तीव्रतर निपटान को सुकर बनाने के लिए ‘सर्किट बेंच’ की स्थापना, जिला मंच के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया में सुधार, इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत फाइल करने और उस उपभोक्ता मंच में शिकायतें फाइल करने, जिसका शिकायतकर्ता के निवास के स्थान पर न्यायक्षेत्र है, के लिए समर्थकारी प्रावधान और शिकायतों की मानित प्रयोजनीयता, यदि प्रयोजनीयता के प्रश्न का निर्णय 21 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर नहीं होता है.
निष्कर्ष: एक जानकार उपभोक्ता किसी समाज की संपत्ति है. विवेकपूर्ण एवं मांग करने वाले उपभोक्ता अपने अधिकारों के लिए दावा करते हैं और खराब गुणवत्ता, घटिया उत्पादों पर समझौता करने के लिए तैयार नहीं होते हैं और सुरक्षित और गुणवत्ता वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करने के लिए व्यापारियों पर दवाब बनाते हैं. इसके अलावा भारतीय उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा अनेक नई योजनाएं शुरू की गई हैं. मुकदमेबाजी में संलग्न लागत एवं समय इतना अधिक है कि सरकार द्वारा शुरू किया गया एडीआर, विशेषकर उपभोक्ता मंचों में मध्यस्थता केंद्र उपभोक्ता शिकायतों के निपटान में मददगार होगा. यह आशा की जाती है कि नया उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2018 शीघ्र कार्यान्वित होगा, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में त्रुटियों को दूर करेगा.
सरकार द्वारा की गई कोई पहल सफल नहीं हो सकती है जब तक कि व्यवसाय उपभोक्ता के खरीद व्यवहार की समझ और उपभोक्ता प्रतिधारण कार्यक्रमों के विकास द्वारा उपभोक्ताओं की तरह सोचना न शुरू करे. यह विश्वास किया जाता है कि व्यवसायों के लिए मौजूदा ग्राहकों को बनाए रखने के बजाय नये ग्राहकों की तलाश बहुत ही कठिन है. संतुष्ट ग्राहक लाभ कमाने की कुंजी हैं. अत: ग्राहकों के साथ अच्छा संबंध बनाए रखना अनिवार्य हो गया है. उपभोक्ता संरक्षण का दक्ष एवं प्रभावी कार्यक्रम का हम सबके लिए विशेष महत्व है, क्योंकि हम सब उपभोक्ता हैं. विपणनकर्ता, उत्पादक या सेवा प्रदाता भी कुछ अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए उपभोक्ता हैं. केवल सावधान उपभोक्ता ही स्वयं और समाज की रक्षा कर सकते हैं.
(लेखक कमला नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं. ईमेल: sheetal_kpr@hotmail.com
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.