नए भारत के लिए मेरी आकांक्षाएं
लवी चौधरी
दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला भारतीय लोकतंत्र आधुनिक युग का अचंभा है, जहां कुल मानव जाति का लगभग छठा हिस्सा, 130 करोड़ लोग एक ही छत के नीचे रहते हैं, जो 700 से अधिक भाषाओं में संवाद करते हैं.
पहली नजऱ में, मेरी भारत को बेहतर बनाने की इच्छा है अधिक प्रगाढ़ स्तर पर सोचने से यह एक कल्पना मात्र है. भारत, और भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनियाभर में शीर्ष पायदान पर देखना मेरी अदम्य इच्छा है. मुझे विश्वास है कि आप में से अनेक ऐसा ही सपना देखते हैं.
सरकारी सेवाओं की दयनीय स्थिति, ऊंची मुद्रास्फीति, पंगु कर देने वाला भ्रष्टाचार और कमजोर बुनियादी ढांचा ऐसी शिकायतें हैं, जो जन समुदाय निरंतर करता रहा है. भारतीय, बेहतर शिक्षा, रोज़गार के अधिक अवसरों, शून्य गरीबी, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और खुशहाली के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए तीव्र विकास की अभिलाषा रखते हैं.
भारत को तीसरी दुनिया के देश के रूप में जाना जाता है, जो बड़ी चिंता का विषय है, इस तथ्य को देखते हुए कि ऐसा देश, जो विश्वभर में सबसे अधिक संख्या में रोज़गार पैदा करता है और वैश्विक परिदृश्य में सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, फिर भी वह सभी बुनियादी मानव जरूरतों से वंचित है.
मेरा मानना है कि भारत दुनिया के महानतम देशों में से एक है, जिसके पास दुनिया मेें किसी भी देश की तुलना में अधिक तेजी से आगे बढऩे की व्यापक क्षमता है. आज, भारत की आधे से अधिक आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है. 2020 तक भारत की औसत आयु मात्र 29 वर्ष होगी. इसकी तुलना में चीन एवं अमरीका में औसत आयु 37, पश्चिमी यूरोप में 45 और जापान में 48 वर्ष होगी. यह ऐसी पीढ़ी है, जिसमें व्यापक क्षमता है और बड़ी अभिलाषाएं हैं. भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधनों और जनशक्ति की दृष्टि से भारत आत्मनिर्भर है.
आज के बच्चे कल के भविष्य निर्माता होंगे, जिनका पालन-पोषण शिक्षा के औपचारिक और अनौपचारिक निगमों के सानिध्य में हो रहा है. हमें अपने कल के भविष्य को मस्तिष्क में सबसे ऊपर रखने और नीति आयोजना में भी सबसे अधिक ध्यान उन्हीं पर देने की आवश्यकता है, क्योंकि उनके फलने-फूलने के साथ ही भारत का भी विकास होगा. भारत हर तरह से विविध क्षेत्रों में तेजी से विकसित हो रहा है. परंतु, नीचे कुछ ऐसे प्राथमिक क्षेत्र हैं, जो भारत को विकसित देश बनाएंगे.
कृषि
मेरे सपनों के भारत में यह क्षेत्र रोज़गार का मुख्य आधार बना रहेगा, जिसका 40 प्रतिशत से अधिक योगदान होगा. खेती भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. भारत की जमीन का 75 प्रतिशत कृषि भूमि है. भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कृषि व्यापार और किसानों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए. कृषि व्यापार को तरजीह देने से हमें अपना आधार मजबूत बनाने में मदद मिलेगी.
हरित क्रांति
भारत को एक हरित भारत होना चाहिए. हम नहीं चाहते कि केवल अत्याधुनिक ढांचा बने और पेड़ पौधे शून्य रहें. पेड़ों की संख्या कम होने से प्रदूषण बढ़ेगा, वर्षा नहीं होगी और लोगों को अज्ञात रोगों का कष्ट झेलना पड़ेगा. भारत को हरित भारत बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को हर परिवार के लिए एक वृक्ष लगाने का दायित्व वहन करना चाहिए.
साक्षरता दर
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74 प्रतिशत थी, लेकिन अद्यतन खबरों के अनुसार भारत में साक्षरता की दर 80 प्रतिशत है. स्वतंत्रता के बाद 71 वर्ष बीत जाने पर साक्षरता की दर शत-प्रतिशत होनी चाहिए. हम जो भी करते हैं, उसके प्रत्येक भाग की समझ केवल शिक्षा के जरिए ही हासिल की जा सकती है. बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए शिक्षा को भी पर्याप्त गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए. भविष्य में साक्षरता में 80 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी होगी, परंतु फिर भी प्रत्येक 5 वयस्कों में से एक निरक्षर रहेगा.
लिंग समानता
भारतीय महिलाओं ने लिंग समानता के क्षेत्र में अभी आधा मार्ग तय किया है और लैंगिक असमानता के कारण वे अपने कार्य निष्पादन के प्रति आशंकित रहती हैं, जिससे केवल लिंग संबंधी मानकों और रूढि़बद्धता को बढ़ावा मिलता है. यही वजह है कि वे घर-परिवार के लिए अपने व्यावसायिक जीवन और व्यावसायिक लक्ष्यों को ताक पर रख देती हैं.
महिलाओं को लिंग संबंधी मानकों से अब अधिक वंचित नहीं किया जाना चाहिए. उन्हें सुरक्षा अवश्य प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे निडर होकर पूरे विश्वास के साथ घर की चारदिवारी से बाहर आएं और अपनी स्वयं की दुनिया में प्रवेश करें. लड़कियों को लडक़ों की तरह पाला जा सकता है, लेकिन क्या लडक़ों को लड़कियों की तरह पाला जाता है? क्या पुरुष, महिलाओं द्वारा अदा की गई परंपरागत भूमिकाओं को स्वीकार करते हैं?
अपराध के खिलाफ तत्काल कार्रवाई
बड़े अपराध रोकने के लिए हर अपराध के लिए कठोर दंड होना चाहिए और न्याय तत्काल किया जाना चाहिए. दंड संबंधी निर्णयों के लिए कोई विकल्प प्रदान नहीं किया जाना चाहिए. जो भी व्यक्ति कोई अपराध करे, उसे कड़ा दंड अवश्य दिया जाना चाहिए. इससे देश में वैसा ही अपराध करने से अन्य लोगों को रोकने में मदद मिलेगी. हर रोज हम अखबार में औसतन कम से कम चार घटनाएं बलात्कार की पढ़ते हैं. यौन उत्पीडऩ रोकने के लिए यह भी जरूरी है कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की किसी भी प्रकार की घटना के लिए कड़ा दंड दिया जाए.
भ्रष्टाचार
हर वर्ष हम करोड़ों रुपये का घोटाला देखते हैं. वर्ष गुजरते लोग भूल जाते हैं, इसकी वजह यह है कि ऐसे घोटालों के लिए कोई सजा कभी नहीं मिलती, जिससे लोगों को उन्हें दोहराने से रोका जा सके. आवश्यकता इस बात की है कि भ्रष्टाचार के मामलों में शीघ्र निर्णय हो और गंभीर सजा दी जाए, जिससे लोगों को भ्रष्टाचार करने से हतोत्साहित किया जा सके.
सत्ता का विकेंद्रीकरण
बिजली/ सडक़ों/ खेती/ बांधों जैसी सुविधाओं के मामले में स्थानीय गांव या पंचायत या कालोनी या वार्ड को यह जानकारी होती है कि उनके लिए उत्तम निर्णय क्या है. ऐसे निर्णयों में उन्हें उचित अधिकार दिए जाने चाहिएं. सत्ता के केंद्रीकरण का अर्थ है, ‘‘सबके लिए एक आकार’’ की चीजें प्रदान करने की कोशिश करना. धन एक स्थान पर केंद्रित न रहने से भ्रष्टाचार में कमी लाने में भी मदद मिलेगी.
समुचित/स्वच्छ और निष्पक्ष परिवहन
देश में 10 प्रतिशत के लिए बेहतर परिवहन व्यवस्था है लेकिन 90 प्रतिशत इससे वंचित हैं. सार्वजनिक परिवहन वाहनों की स्थिति बेहतर नहीं है, परिवहन/रेल रोड़ स्टेशन सुचारू नहीं हैं और यातायात भरोसेमंद नहीं है. भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के अंतिम लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए परिवहन व्यवस्था को समुचित, स्वच्छ और निष्पक्ष बनाने की आवश्यकता है.
लोगों में नगर-विषयक चेतना (सिविक सेंस)
भारत के कोने कोने में थूकने के निशान, कहीं भी पेशाब करने, कचरा डालने और सीवरों के बहने जैसी समस्याएं आम बात हैं. ये सब ऐसी बातें हैं, जो पूरी तरह प्रशासन पर नहीं छोड़ी जा सकती हैं. लोगों को स्वयं जिम्मेदारी लेनी होगी और विशेष सामुदायिक चेतना पैदा करनी होगी. गलियां इसलिए गंदी नहीं हैं कि कोई उन्हें साफ नहीं करता, बल्कि इसलिए गंदी हैं कि कोई उन्हें गंदी करता है. नगर-विषयक चेतना (सिविक सेंस) और कुछ नहीं है, सिर्फ सामाजिक आचार नीति है.
स्वच्छ और साफ नदियां/जल निकाय
प्रमुख नदी/जल निकाय का प्रत्येक कोना कचरे से भरा रहता है, और जब आप वहां से गुजरते हैं तो तीखी बदबू महसूस करते हैं. नए भारत के लिए मेरी आकांक्षाओं में देश के जल निकायों को स्वच्छ और साफ बनाना शामिल है. इसका दायित्व सरकार के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक पर भी है. जल निकायों में कचरा न डालें, यह कोई डस्टबिन नहीं हैं.
सस्ती औेर कारगर सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल
सरकारी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं उतनी प्रभावकारी नहीं हैं, जितनी प्राइवेट स्वास्थ सुविधाएं हैं. इतना ही नहीं, प्राइवेट स्वास्थ्य देखभाल भारत में हर किसी के लिए वहन कर पाना संभव नहीं है. सरकार को सफल और उचित स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए व्यापक उपाय करने चाहिएं. ये सेवाएं धर्म, लिंग और जाति के भेदभाव रहित सभी को मुहैया कराई जानी चाहिएं.
सरकारी योजनाओं का उचित कार्यान्वयन
सरकार भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू करती है, लेकिन सब व्यर्थ हो जाते हैं. इसका कारण यह है कि इन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन सशक्त ढंग से नहीं होता है. इसका प्रमुख कारण घोटाले और भ्रष्टाचार है. यदि प्रस्तावित योजनाएं कारगर ढंग से कार्यान्वित की जाएं, तो विकसित राष्ट्र बनने में अधिक समय नहीं लगेगा.
मेरे सपनों के भारत में सकल घरेलू उत्पाद करीब आठ ट्रिलियन (अस्सी खरब) अमरीकी डॉलर पर पहुंचेगा, जो वर्तमान स्तर से करीब चार गुना अधिक होगा, और एक दशक में सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी आजादी के बाद 71 वर्षों में हुई बढ़ोतरी से करीब तीन गुना अधिक होगी. जनसंख्या बढ़ोतरी की दर में कमी आने के साथ प्रति व्यक्ति आय भी करीब चार गुना बढक़र छह हजार अमरीकी डॉलर पर पहुंच जाएगी.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत का एकीकरण अधिक मजबूती के साथ होगा, क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का करीब दो तिहाई हो जाएगा. औसत भारतीय आज की तुलना में बिजली की खपत चार गुना अधिक करेगा.
इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या आबादी के 50 से 80 प्रतिशत के बीच होगी. यात्री कारों की बिक्री वर्ष में करीब 72 लाख होगी, जो अमरीकी बाजार के वर्तमान आकार के बराबर होगी. 32 करोड़ से अधिक लोग देश के भीतर हर वर्ष विमान यात्रा करेंगे. इसका अर्थ है, हर रोज दस लाख भारतीय उड़ान भरेंगे.
वास्तविक जगत में सशक्तिकरण के लिए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की आवश्यकता है, जो एक वर्ग और जाति ग्रस्त परंपरागत समाज स्वेच्छा से नहीं कर पाएगा. व्यापक रूप में असमान समुदायों में अवसरों से सिलसिलेवार वंचित वर्ग और सत्ता को अपने में संकेंद्रित किए हुए प्रभुत्ववादी आभिजात्य वर्ग के बीच एक संघर्ष अवश्यंभावी होगा.
यदि भारतीय होने के नाते हम भारत का उज्ज्वल भविष्य चाहते हैं, तो हमारे पास परिवर्तन के अलावा कोई विकल्प नहीं है. यदि आप ऐसी परिकल्पना करते हैं, तो उसे हासिल कर सकते हैं.
(लेखक, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ चेंबर ऑफ कॉमर्स में मीडिया संचार प्रबंधक हैं) ई-मेल: loveeyyy@gmail.com