वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में भी हैं अवसर
विष्णु चौहान
यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति कुछ नई वस्तुओं का निर्माण कर या कोई बड़ा उद्योग लगा कर ही जीवन में एक सफल व्यक्ति बन सकता है. आज के दौर में फैक्ट्रियों व घरों से निकलने वाले कूड़े-करकट व अन्य वेस्ट सामान में भी मैनेजमेंट कर जीवन को सफल किया जा सकता है. आज-कल फैक्ट्रियों से निकलने वाले कूड़े-करकट और घर की बेकार चीजों को इधर-उधर फेंकने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुँच रही है. पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए अवशिष्ट पदार्थों को रीसाइकल करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है, ताकि इसे पुन: किसी अन्य रूप में उपयोग में लाया जा सके. इन अपशिष्ट पदार्थों को फिर से एक नया रूप देने की प्रक्रिया को ही ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ के नाम से जाना जाता है. गौरतलब है कि वेस्ट मैनेजमेंट पर्यावरण प्रबंधन एवं संरक्षण का एक आधार स्तंभ है. इसके तहत पर्यावरण विज्ञान अथवा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कुछ प्रमुख क्षेत्रों में काम किया जा सकता है. गौरतलब है कि भारत में घरेलू वेस्ट का केवल 30 प्रतिशत ही रीसाइकल करने की क्षमता है. अब तो वेस्ट मैनेजमेंट का चलन जोरों पर है. इसमें ज्यादातर वेस्ट मैटीरियल इलेक्ट्रॉनिक तथा प्लास्टिक का होता है. धारावी (महाराष्ट्र), मुरादाबाद (यू़पी) और मुंडका (दिल्ली) इसके प्रमुख केन्द्र हैं. देश में तेजी से खुल रही वेस्ट ट्रीटमेंट एजेंसियों ने इस क्षेत्र में रोज़गार के ढेरों अवसर सृजित कर दिए हैं. वेस्ट मैनेजमेंट अपने भीतर कई तरह के अवयवों को समेटे हुए हैं. वेस्ट मैनेजमेंट न सिर्फ अपशिष्ट पदार्थों के दोबारा प्रयोग में लाने के बारे में जानकारी प्रदान करता है, बल्कि प्रोफेशनल्स को उस फील्ड में स्थापित करने के लिए कई अन्य तरह की स्किल्स भी सिखाता है. इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने के लिए प्रकृति के प्रति लगाव होना नितांत आवश्यक है. शुरू-शुरू में विद्यार्थियों को ये सारी चीजें अटपटी लगेंगी, लेकिन जैसे-जैसे उनका मन इसमें रमता जाएगा, वो इस प्रोफेशनल्स का भरपूर मजा उठा सकेंगे. वेस्ट मैनेजमेंट का पूरा कार्यक्षेत्र एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट तथा उसके ईद-गिर्द घूमता है. पर्यावरण सुरक्षा संबंधी कार्य साइंस एवं इंजीनियरिंग के विभिन्न सिद्धांतों के प्रयोग से आगे बढ़ते हैं. वातावरण में व्याप्त प्रदूषण को दूर करने के लिए साइंटिस्ट कई प्रकार की रिसर्च, थ्योरी तथा विधियों को अपनाते हैं अर्थात् वेस्ट मैनेजमेंट प्रक्रिया में एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट का कार्य रिसर्च ओरिएंटेड ही होता है, जिसमें एडमिनिस्ट्रेटिव, एडवाइजरी तथा प्रोटेक्टिव तीनों स्तर पर करना होता है. डेवलपिंग कंट्री होने के कारण भारत में ई-वेस्ट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. उसी अनुपात में उसे पुन: प्रयोग में लाए जाने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है. ई-वेस्ट के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरे जैसे बंद मोबाइल, कम्प्यूटर, डीवीडी, टीवी, डिसप्ले डिवाइस, प्रिंटर, फैक्स मशीन, सीडी, मिलिट्री इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट आदि शामिल किए होते हैं. गौरतलब है कि घरों, शहरों तथा फैक्टरियों से निकलने वाले कूड़े का सही तरीके से निस्तारण न हो पाना एक प्रमुख समस्या है. हर देश इस समस्या से ग्रसित है. अथक प्रयासों के बाद भी इस क्षेत्र में उतना काम नहीं हो पाया है, जितनी कि जरूरत है. केन्द्र सरकार के स्वच्छता अभियान कार्यक्रम सहित कई एनजीओ इस समस्या को हल करने में लगे हुए हैं. इसके लिए वे घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर रहे हैं. इस कूड़े में जो कुछ ज्वलनशील पदार्थ हैं उससे एनर्जी तथा जो सडऩे वाले हैं, उससे वर्मी कपोस्ट तैयार किया जा रहा है. आज भी हमारे देश में लाखों लोग जागरूकता के अभाव में अपशिष्ट पदार्थ जहाँ-तहाँ फेंक देते हैं. इससे उनका प्रबंधन नहीं हो पाता, जबकि कई एनजीओ उन्हें इस कूड़े के एवज में पैसा भी दे रहे हैं.
हमारे देश में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है. सरकारी और निजी स्तर पर भी इस क्षेत्र में काफी कार्य हो रहे हैं. यहां तक कि विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर भी पर्यावरण को एक विषय के रूप में शामिल कर छात्रों को इसके महत्व और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए जाने से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से बताया जाने लगा है यानि वो अब समय आ गया है कि इन सभी बातों के लिए लोगों को जागरूक करना आवश्यक हो गया है.
वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित अलग से ज्यादा कोर्स देश में उपलब्ध नहीं हैं. वेस्ट मैनेजमेंट को ज्यादातर पर्यावरण विज्ञान के कोर्स में एक विषय के रूप में शामिल किया गया है. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वेस्ट मैनेजमेंट कोर्स बैचलर अथवा मास्टर डिग्री स्तर के ही होते हैं. इसमें तीन साल के बैचलर कोर्स व बीटेक इन एन्वायर्नमेंटल साइंस तथा दो साल के मास्टर कोर्स एमएससी/एमटेक इन एन्वायर्नमेंट साइंस कोर्स हमारे देश में उपलब्ध हैं. बीएससी तथा बीई में प्रवेश साइंस विषयों सहित 10+2 (बारहवीं) के बाद मिलता है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है, जबकि एमएससी व एमटेक में प्रवेश एन्वायर्नमेंटल साइंस में बीएससी अथवा बीटेक करने के उपरांत मिलता है. कुछ संस्थान में एमफिल तथा पीएचडी कोर्स भी उपलब्ध हैं, जिसमें मास्टर डिग्री के कोर्स के बाद रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. कई संस्थान वेस्ट मैनेजमेंट में एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा कोर्स भी करा रहे हैं. वेस्ट मैनेजमेंट कोर्स के तहत छात्रों को यह बताया जाता है कि वेस्ट क्या है, ये कितने प्रकार का होता है एवं इसका किस प्रकार से प्रबंधन किया जा सकता है. साथ ही वेस्ट मैनेजमेंट के कोर्स में उन्हें यह भी बताया जाता है कि किस तरह से नई तकनीक विकसित कर कम पैसे में अपशिष्ट पदार्थ का प्रबंधन किया जा सकता है. लड़कियों के लिए भी यह क्षेत्र काफी अच्छा है. मैनेजमेंट में दक्षता के अलावा वे ग्रुप बनाकर या किसी एनजीओ से जुडकऱ घर-घर से कूड़ा एकत्र कराकर उसका प्रबंधन कराने में सहायक हो सकती हैं.
वेस्ट मैनेजमेंट का कोर्स करने के उपरांत रोज़गार के कई अवसर उपलब्ध हो जाते हैं. एक नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के तकरीबन 130 देश प्रदूषण की समस्या से बुरी तरह से त्रस्त हैं. भारत भी उनमें से एक है. भारत के करीब 15-20 शहर भीषण प्रदूषण की जद में हैं. ऐसे में वेस्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स की मांग और बढ़ जाती है. इस क्रम में विभिन्न सरकारी विभागों तथा एजेंसियों जैसे फॉरेस्ट एंड एन्वायर्नमेंटल, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, अर्बन प्लानिंग, इंडस्ट्री, वॉटर रिसोर्सेज एवं एग्रीकल्चर आदि में रोज़गार उपलब्ध हैं. वेस्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स को पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित एनजीओ में काम करने के चमकीले अवसर मिल रहे हैं. प्राइवेट कंपनियाँ भी बड़े रोज़गार प्रदाता के रूप में सामने आ रही हैं. वेस्ट ट्रीटमेंट इंडस्ट्री, रिफाइनरी, डिस्टिलरी, माइन्स, फर्टिलाइजर प्लांट्स, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री एवं टेक्सटाइल मिल्स में वेस्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए रोज़गार के कई अवसर उपलब्ध हैं. कई सरकारी तथा प्राइवेट कंपनियां रिसर्च क्षेत्र में भी काम करती हैं. बतौर एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट उसमें भी अपना कॅरिअर बना सकते हैं. वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में शुरूआती चरण में प्रोफेशनल्स को 18-30 हजार रुपए प्रतिमाह की सैलरी आसानी से मिल जाती है. जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे प्रोफेशनल्स की सैलरी भी बढ़ती जाती है. दो-तीन वर्ष के अनुभव के बाद तो यह सैलरी 30 हजार से 45 हजार रुपये प्रतिमाह के करीब तक पहुंच जाती है. टीचिंग के क्षेत्र में जाने पर आकर्षक सैलरी मिलती है.
वेस्ट मैनेजमेंट का कोर्स कराने वाले प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं-
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल मैनेजमेंट, डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, गुरु गोविन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी आदि संस्थान इन कोर्सों को करा रहे हैं. इन सभी संस्थानों की पूर्ण जानकारी आप इंटरनेट के जरिए लेकर, अपने कोर्स की जानकारी व कोर्स से संबंधित फीस की भी जानकारी एकत्र कर सकते हंै जो आपके लिए सहयोगी साबित होगी.
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं आलेख में लेखक ने निजी विचार व्यक्त किए हैं.)
चित्र: गूगल के सौजन्य से