देश में पादप संरक्षण, संगरोध और भंडारण
अरुण खुराना
भारत में समन्वित कीट प्रबंधन : रुझान विश्लेषण
भारत में पादप संरक्षण अब भी फसल उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पादप संरक्षण के विशेष जोर वाले क्षेत्रों में समन्वित कीट प्रबंधन को बढ़ावा देना, कीटों और बीमारियों के प्रकोप से फसल को बचाते हुए फसल उत्पादन के उच्च स्तर को बनाए रखने के लिए सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाले कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना और अधिक पैदावार देने वाली नयी किस्मों की शुरुआत को तेज करने के लिए सुरक्षित और श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा बाहर से किसी कीट के प्रवेश की आशंका को समाप्त करना, मानव संसाधन विकास और पादप संरक्षण कौशल में महिलाओं का सशक्तिकरण भी आवश्यक है. कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए और राष्ट्रीय कृषि नीति को ध्यान में रखकर समन्वित कीट प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाया गया है और इसे देश में समग्र फसल उत्पादन कार्यक्रम के अंतर्गत महत्वपूर्ण सिद्धांत और आधार के रूप में अपनाया गया है. समन्वित कीट प्रबंधन एक व्यापक पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण भी है जिसका मकसद उपलब्ध विधियों और तकनीकों से कीट नियंत्रण का प्रबंधन करना है जिनके अंतर्गत सांस्कृतिक, यांत्रिक, जैव और रासायनिक जैसी विधियों का भी इसमें सहारा लिया जाता है.
समन्वित कीट प्रबंधन दृष्टिकोण का उद्देश्य न्यूनतम आधान लागत से फसल उत्पादन बढ़ाना, पर्यावरण प्रदूषण को कम से कम करना और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखना है. 1960 और 1970 के दशक में सघन फसल प्रणाली के अंतर्गत उन्नत नस्ल की फसलों की उत्पादन क्षमता को बनाए रखने कीटनाशकों का अंधाधुंध और एकतरफा इस्तेमाल ही पादपों के संरक्षण का एकमात्र औजार था. इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आए, जैसे मनुष्यों और पशुओं के लिए स्वास्थ्य संबंधी जोखिम, पारिस्थितिकीय असंतुलन, कीटों में कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता का विकास, कीटों का नये सिरे से उभर कर सामने आना और पर्यावरण प्रदूषण. इसके अलावा कीटनाशकों से कीटों के प्राकृतिक शत्रु (जैव-नियंत्रक एजेंट) भी नष्ट हो गये, मिट्टी, पानी और खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों के अवशेषों की मात्रा बढ़ गयी. खतरनाक रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम से कम करने और कीड़े-मकौड़ों और महामारियों आदि के प्रकोप को खत्म करके खेती की उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि और समन्वय विभाग ने 1991-92 में एक योजना लागू की जिसका नाम था: भारत में कीट प्रबंधन दृष्टिकोण का सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण. इसमें समन्वित कीट प्रबंधन के सिद्धांत को प्रमुख नियम के रूप में अपनाया गया और पादप संरक्षण नीति का मुख्य जोर समग्र फसल उत्पादन कार्यक्रम को बना दिया गया. समन्वित कीट प्रबंधन के दायरे में भारत सरकार ने 28 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में 35 केन्द्रीय समन्वित कीट प्रबंधन केन्द्र स्थापित किये हैं.
मानव संसाधन विकास और पादप संरक्षण कौशल में महिलाओं का सशक्तिकरण
आज व्यापक तौर पर यह माना जाता है कि पादप संरक्षण के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी संबंधी नवीनतम खोजों को किसानों में तेजी से लोकप्रिय बनाने का एक सबसे बड़ा माध्यम मानव संसाधन विकास है. पादप संरक्षण के प्रशिक्षण को व्यापक समर्थन इसलिए मिलता है क्योंकि मानव संसाधनों के विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है. प्रसार कर्मी की पेशेवर दक्षता को बढ़ाने के लिए औपचारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि प्रशिक्षण का ज्ञान, क्षमता और दृष्टिकोण पर बड़ा असर पड़ता है. भारत के सामने बड़ी तादाद में पादप संरक्षण प्रसार कर्मियों के प्रशिक्षण का भारी कार्य पड़ा है जो विभिन्न शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले और विभिन्न स्तरों पर हैं. इनमें से ज्यादातर किसान हैं. इन जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया गया है और आगे भी किया जा रहा है. विस्तृत बुनियादी ढांचा खड़ा किया गया है और प्रशिक्षण के लिए किसानों समेत प्रसार कर्मियों को हर स्तर पर प्रशिक्षित किया गया है. राष्ट्रीय पादप संरक्षण प्रशिक्षण संस्थान हैदराबाद और पादप संरक्षण, संगरोध और भंडारण निदेशालय फरीदाबाद राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. राष्ट्रीय पादप संरक्षण प्रशिक्षण संस्थान हैदराबाद पादप संरक्षण के बारे में नवीनतम तकनीकी जानकारियां उपलब्ध कराता है. ये जानकारियां आधुनिक पादप संरक्षण विज्ञान की बेहतरीन उपलब्धियां हैं. संस्थान को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन से मान्यता मिली हुई है. इसके अलावा अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र , प्रसार शिक्षा संस्थान और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का प्रसार निदेशालय, राज्य कृषि विश्वविद्यालय, राज्य प्रशिक्षण संस्थान, प्रसार प्रशिक्षण केन्द्र, ग्राम सेवक प्रशिक्षण केन्द्र, किसान प्रशिक्षण केन्द्र, कृषि-विज्ञान केन्द्र, प्रशिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र आदि भी प्रसार कर्मियों और किसानों को पादप संरक्षण और प्रसार में ट्रेनिंग देते हैं. नतीजा यह हुआ है कि आयोजित प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की संख्या के लिहाज से गुणात्मक उपलब्धियां और प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या काफी शानदार रही है. लेकिन व्यवस्थित और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए प्रशिक्षण में गुणात्मक सुधार की आवश्यकता है. फसलों में समन्वित कीट प्रबंधन, कीट जोखिम विश्लेषण, कीट प्रबंधन सूचनाओं को हासिल करने और इनके आदान-प्रदान और कम्प्यूटरों के उपयोग का प्रशिक्षण देने में ज्यादा बल देने की आवश्यकता है. इसके अलावा महिलाओं, ग्रामीण युवाओं और ग्रामीण समाज के दुर्बल वर्गों को प्रशिक्षण देना भी बहुत जरूरी है. गैर-सरकारी संगठनों की सक्रिय भागीदारी से पादप संरक्षण के पर्यावरण के अनुकूल तौर-तरीकों को किसानों में लोकप्रिय बनाने काफी मदद मिल सकती है. इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का पूरा उपयोग किया जाना चाहिए. संस्थाओं की प्रशिक्षण सुविधाओं को भी विकसित करने की आवश्यकता है जिसके लिए उनके कर्मियों को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसानों की पादप संरक्षण की आवश्यकताओं को प्रशिक्षण में सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए. किसी भी प्रशिक्षण का तब तक वांछित परिणाम सामने नहीं आएगा जब तक कि सब सम्बद्ध लोगों का इस कार्य के प्रति हार्दिक समर्पण नहीं होगा. इसलिए यह अनिवार्य है कि संगठन, प्रशिक्षक और प्रशिक्षणार्थी प्रशिक्षण के प्रति अपनी वचनबद्धता की समीक्षा करें और इसकी पुनर्पुष्टि करें क्योंकि यह प्रशिक्षण की बेहतर सफलता और पादप संरक्षण की नयी चुनौतियों से निपटने के लिए अनिवार्य शर्त है.
पादप संरक्षण के क्षेत्र में भारत सरकार की प्रमुख पहल
कृषि क्षेत्र के कई सरकारी संगठन, निजी कंपनियां और स्टार्टअप्स भारतीय कृषि के समक्ष उपस्थित समस्याओं का सामना कर रहे हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर प्रयास समस्याओं के आंशिक समाधान पर आधारित हैं. इसके अलावा ज्यादातर प्रयास आखिरी किसान तक पहुंचने में असमर्थ हैं. इन्हीं सीमाओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने कृषि पदार्थों की मूल्य शृंखला में पूरी न हो सकने वाली आवश्यकताओं की पहचान की है जो इस प्रकार है:
1.फसल विशेष से संबंधित परामर्श और फार्म मैनेजमेंट सेवाओं की आवश्यकता
क)गुणवत्ता और उपज में सुधार पर बढ़ता हुआ जोर;
ख)प्रशिक्षित विशेषज्ञों तक पहुंच और मांग पर आधुनिक कृषि उपकरणों की उपलब्धता;
2.कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए नि:शुल्क बाजार की आवश्यकता
क)पारदर्शी मूल्य निर्धारण प्रणाली
ख)आखिरी ग्राहक तक सीधी पहुंच ताकि बिचौलिये कम से कम रहें
3.डिजिटल टेक्नोलॉजी को और अधिक अपनाने की आवश्यकता
क)ग्रामीण भारत में बुनियादी ढांचा और डिजिटल संपर्क बढ़ाने के लिए सरकार की डिजिटल पहल
ख)वाजिब दामों में स्मार्टफोन और इंटरनेट सेवा
ये आवश्यकताएं डिजिटीकरण/एम-कॉमर्स/ई-कॉमर्स के जरिए समग्र समाधान के जरिए पूरी की जा सकती हैं जिनसे किसानों के साथ न सिर्फ बेहतर संपर्क कायम होगा बल्कि खेती-बाड़ी के हर पहलू पर समय रहते सहायता उपलब्ध करायी जा सकेगी. भारत सरकार की कुछ प्रमुख पहले नीचे दी गयी हैं:
‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ : सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना फरवरी 2015 में शुरू की जिसका उद्देश्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना और किसानों के लिए खेती की आधान लागत में कमी लाना है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड एक छपी हुई रिपोर्ट है जो किसानों को हर तीन साल में उनकी हर जोत के लिए दिया जाता है. इसमें मिट्टी में मैक्रो न्यूट्रिएंटस, सेकेंडरी न्यू ट्रिएंट्स और जमीन के भौतिक परिमापकों के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं रहती हैं. हर कार्ड के साथ एक परामर्श भी रहता है जिसमें मृदा स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर उपज के लिए किसान द्वारा उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी रहती है. इस प्रणाली में पूरे देश के लिए मृदा स्वास्थ्य संबंधी एक ही राष्ट्रीय डेटाबेस के निर्माण की व्यवस्था है ताकि किसान मृदा स्वास्थ में सुधार के लिए जरूरी कदम उठाकर बेहतर उपज प्राप्त कर सके और भविष्य में इसका उपयोग अनुसंधान व नियोजन में भी किया जा सके. इसके अंतर्गत 2.53 करोड़ नमूने इकट्ठा कर उनका परीक्षण किया जाएगा और तीन वर्षों में एक बार 14 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जाएंगे.
परम्परागत कृषि विकास योजना
परम्परागत कृषि विकास योजना की शुरूआत भारत सरकार ने ऑर्गेनिक फार्मिंग को मदद और बढ़ावा देने के लिए की थी ताकि किसान के खेत की मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हो सके. इससे किसानों को पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल खेती के तौर-तरीकों को अपनाने और उर्वरकों तथा कृषि-रसायनों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलती है. ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए परम्परागत संसाधनों का ही उपयोग किया जाता है और कार्बनिक पदार्थों को बाजार से जोड़ा जाएगा. इससे घरेलू उत्पादन में वृद्धि होगी किसानों को भागीदार बनाकर ऐसे उत्पादों का प्रमाणन भी किया जा सकेगा. परम्परागत कृषि विकास योजना को लागू करने के लिए वर्ष 2015-16 में 300 करोड़ रुपये निर्धारित किये
गये हैं.
राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एमईजीपी)
राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एमईजीपी) देश में ई-गवर्नेंस संबंधी उपायों के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्हें एक सामूहिक लक्ष्य में एकीकृत करती है. इस कवायद के जरिए एक राष्ट्रव्यापी विशाल ढांचा सुदूर गांवों तक विकसित किया जा रहा है और बड़े पैमाने पर रिकार्डों का डिजिटीकरण हो रहा है, ताकि इंटरनेट पर उन्हें आसानी से, भरोसेमंद ढंग से प्राप्त किया जा सके. इस कार्यक्रम का अंतिम लक्ष्य जनसेवाओं को नागरिकों के द्वार तक पहुंचाना है. राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एमईजीपी)-कृषि (एनईजीपी-ए) के अंतर्गत कृषि विस्तार (अनुसंधान को प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचाने के क्रम में) के हिस्से के रूप में सेवाओं के वितरण की विभिन्न पद्धतियों की व्यवस्था है. इनमें इंटरनेट, टच स्क्रीन कियोस्क, कृषि क्लिनिक, प्राइवेट कियोस्क, मास माडिया, कॉमन सर्विस सेंटर, किसान कॉल सेंटर और विभागीय कार्यालयों में समेकित प्लेटफार्म और उनके साथ विस्तार कार्मिकों द्वारा पिको-प्रोजेक्टरों एवं हस्तधारित उपकरणों के साथ भौतिक रूप में पहुंच कायम करना शामिल है. परंतु, मोबाइल टेलीफोनी (इंटरनेट के साथ या इंटरनेट रहित) सर्वाधिक सक्षम और सर्वव्यापी कृषि विस्तार उपकरण हैं. एनईजीपी के अंतर्गत किसानों से संबंधित प्रौद्योगिकी किसानों को वास्तविक समय पर बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करने, उपकरणों आदि के लिए ऑनलाइन ऑर्डर देने और मोबाइल बैंकिंग के साथ ऑनलाइन नकदी, ऋण और राहत संबंधी भुगतान प्राप्त करने में मदद करेगी. मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो-एटीएम प्रोग्राम और कॉमन सर्विस सेंटरों (सीएससीज़)/डाकघरों के इस्तेमाल के जरिए वित्तीय समावेशन सुदृढ़ किया जाएगा.
एम-किसान
एम-किसान एक मोबाइल आधारित कृषि परामर्श सेवा है, जो सभी केंद्रीय और राज्य सरकारों के कृषि एवं अनुषंगी क्षेत्रों से सम्बद्ध संगठनों को ऐसी सुविधा प्रदान करती है जिससे वे एसएमएस के जरिए किसानों को उनकी भाषा में जानकारी/सेवाएं/परामर्श उपलब्ध करा सकें. इसके जरिए कृषि पद्धतियों की प्राथमिकता और स्थान के बारे में भी जानकारी दी जाती है.
*ग्राहकों को वास्तविक समय पर और परस्पर सलाह मशविरे के रूप में फसल एवं मवेशी संबंधी विशेषज्ञों के पैनल से कीटों, बीमारियों और पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जाती है.
*किसानों को नियमित रूप से मौसम संबंधी बुलेटिन, कीटों और बीमारियों संबंधी चेतावनियां और बाजार भाव की जानकारी भी प्राप्त होती है, जिससे उन्हें अपने खेत में ही निर्णय करने में मदद मिलती है.
*आईवीआर (इंटर-एक्टिव वॉयस रेसपोंस) प्रौद्योगिकी के जरिए परामर्श दिया जाता है. यह प्रौद्योगिकी सभी प्रकार के मोबाइल फोन पर उपलब्ध रहती है.
हाल ही में इस सेवा का विस्तार मध्यवर्ती और पूर्वी भारत के तीन हिंदी भाषी राज्यों (मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश) में किसान हेल्पलाइन प्रदान करने के लिए किया गया. कॉल सेंटर किसानों को सीधे विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों के साथ संपर्क की सुविधा प्रदान करता है और खेती संबंधी समस्याओं के उनके प्रश्नों के उत्तर उन्हीं की भाषा में दिए जाते हैं. यह सेवा किसान को खास विषयों को चुनने की सुविधा प्रदान करती है. उदाहरण के लिए टमाटर की कीट संबंधी समस्या के बारे में प्रश्न रिकॉर्ड किए जाते हैं और तत्संबंधी जानकारी सुनी जा सकती है या विशेषज्ञ उपलब्ध होने पर सीधे प्राप्त की जा सकती है. कॉल सेंटर द्वारा सृजित सवालों का डेटा एम-किसान की इस रूप में मदद करेगा कि वह किसानों के प्रश्नों के प्रकार और विस्तार पर प्रकाश डालेगा और ग्राहकों को बेहतर सहायता करने के लिए सेवा संबंधी विषयवस्तु का विस्तार करने और उनकी जरूरत के अनुसार प्रस्तुत करने में मदद करेगा.
पादप संरक्षण सूचना वैज्ञानिक समूह
स्थिर खेती के लिए पादप संरक्षण कार्यनीति और गतिविधियां समग्र फसल उत्पादन कार्यक्रम में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. पादप संरक्षण प्रयासों का लक्ष्य कीटों, रोगाणुओं, बीमारियों, खरपतवारों, सूत्रकर्मियों, चूहों, गिलहरियों आदि के प्रकोप से फसल के नुकसान को न्यूनतम स्तर पर लाने का है. पादप संरक्षण के अंतर्गत प्रमुख संभावनाशील क्षेत्रों में समेकित कीट प्रबंधन को बढ़ावा देना, स्थायी फसल उत्पादन के लिए कीटों और बीमारियों के प्रकोप से फसल उत्पादन को बचाने के लिए सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, संगरोधन उपायों को सुचारू रूप प्रदान करना ताकि बाहरी कीटों के प्रवेश की आशंकाएं समाप्त की जा सकें और पादप संरक्षण कौशल में महिलाओं के सशक्तिकरण सहित मानव संसाधन विकास को प्रोत्साहित किया जा सके. पादप संरक्षण, संगरोधन और भंडारण निदेशालय (डीपीपीक्यू एंड एस), कृषि और सहकारिता विभाग (डीएसी) राष्ट्रीय स्तर पर पादप संरक्षण के लिए नोडल एजेंसी है, जो अपने क्षेत्रीय और फील्ड यूनिटों के नेटवर्क के जरिए काम करती है. इसकी फील्ड यूनिटों में केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड एवं पंजीकरण समिति (सीआईबीआरसी) केंद्रीय कीटनाशक प्रयोगशाला (सीआईएल), क्षेत्रीय कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशालाएं (2), राष्ट्रीय पादप संरक्षण प्रशिक्षण संस्थान (एनपीपीटीआई), पादप संगरोधन केंद्र (31), केंद्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र (31) और टिड्डी चेतावनी एवं नियंत्रण केंद्र (11) शामिल हैं, जो देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं. निदेशालय ने विभिन्न केंद्रीय कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों के साथ सूचना साझा करने की सुदृढ़ व्यवस्था कायम की है. बीपीपीक्यू एंड एस की पादप संरक्षण और संगरोधन सेवाएं फसल उत्पादन में कीटों और बीमारियों से होने वाले नुकसान को कम करते हुए पैदावार को स्थायित्व प्रदान करने और जैव सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं. इनमें निम्नांकित सेवाएं शामिल हैं:
*कीट निगरानी और पूर्व चेतावनी
*टिड्डी निगरानी
*जैव नियंत्रण एजेंटों का संरक्षण और संवर्धन
*जैव नियंत्रण एजेंटों का उत्पादन और उन्हें जारी करना
*आईपीएम पद्धतियां तैयार करना और उनका प्रचार करना
*किसान फील्ड स्कूल (एफएफएस) का संचालन करना
*पादप संगरोधन, धूमिकरण, कीटनाशक पंजीकरण, कीटनाशक नमूना गुणवत्ता परीक्षण सेवाएं
*कीटनाशक व्यापारियों का पंजीकरण
*कीटनाशकों की उपलब्धता और उनका वितरण
*पादप संरक्षण और संगरोधन गतिविधियों में बुनियादी ढांचा विकास और क्षमता निर्माण
सूचना, रिपोर्टिंग, प्रोसेसिंग और सम्प्रेषण के लिए देशभर में कारगर पादप संरक्षण और संगरोधन सेवाओं के लिए आईसीटी की क्षमता का दोहन करने हेतु, एनआईसी की कृषि सूचना विज्ञान डिविजन, डीपीपीक्यू एंड एस; डीएसी, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सहयोग से पादप संरक्षण सूचना नेटवर्क (पीपीआईएन) को सुदृढ़ कर रही है.
भारत में कृषि रसायनों में एम-कॉमर्स और ई-कॉमर्स के जरिए किसानों की आजीविका में सुधार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान सुविधा नाम के एक नए मोबाइल ऐप का शुभारंभ किया, जो किसानों को मौसम, सामग्री व्यापारी, बाजार मूल्य, पादप संरक्षण और विशेषज्ञों की सलाह जैसे पांच मानदंडों के बारे में जानकारी प्रदान करेगा. इसे देखते हुए कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मॉर्टफोन बाजार है और ग्रामीण क्षेत्रों में 8.7 करोड़ मोबाइल इंटरनेट इस्तेमालकर्ता हैं और यह भी कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की मुख्य भूमिका है, जहां श्रमिक शक्ति का 60 प्रतिशत से अधिक नियोजित है, यह समझा जाता है कि यह ऐप बहुत बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करेगा और भारतीय खेती का रूप बदलने में मदद करेगा. परंतु, इसमें कुछ चिंताजनक घटक भी हैं, पहला यह है कि इस ऐप को संचालित करने के लिए एक स्मॉर्टफोन जरूरी है. दूसरे वर्तमान में जानकारी केवल हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध है. ये दोनों घटक वर्तमान में इस ऐप के बड़े पैमाने पर लक्षित इस्तेमाल को क्षति पहुंचाते हैं. आईएएमएआई के अनुसार ग्रामीण भारत में सक्रिय इंटरनेट इस्तेमालकर्ता (एआईयू) आधार 2014 के डेटा के अनुसार 90.5 करोड़ की समग्र ग्रामीण आबादी में 6.7 प्रतिशत था, और इसमें कुल इस्तेमालकर्ता 6.1 करोड़ थे. 2016 के मध्य में यह संख्या 10.9 करोड़ दर्शायी गई है. परंतु, इन इस्तेमालकर्ताओं में से अधिकतर केवल वाट्सऐप के जरिए संदेश सेवा का इस्तेमाल करते हैं. मोबाइल आधारित सभी सेवाएं उपयोगी नहीं हैं, चूंकि वे अधिकतर सामान्य किस्म की सलाह उपलब्ध कराती हैं, जो एकल कैच उपकरण में मदद नहीं करती हैं. एक पखवाड़े में एक बार में आधा घंटे का एपीसोड किसी को बेहतर किसान बनने के लिए प्रेरित कर सकता है, परंतु जरूरी नहीं है कि इससे अधिक मदद मिले. खेती संबंधी परामर्श को ग्राहकोन्मुखी बनाने की आवश्यकता है और उसे उसी पद्धति में दिए जाने की आवश्यकता है, जिसे किसान समझ सकें और अपने खेतों में लागू कर सकें.
भावी पादप संरक्षण और फसल संवर्धन समाधान
बढ़ती आबादी, कृषि संसाधनों की कीमत पर बढ़ते शहरीकरण और कीटों के हमलों के कारण कृषि उपज को होने वाली क्षति के मद्देनजर भारतीय खेती को देश के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. अत: यह जरूरी हो गया है कि न केवल फसल संरक्षण के लिए बल्कि फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए भी उपाय लागू किए जाएं. समेकित कीट प्रबंधन (आईपीएम) के अंतर्गत कीटों के प्रबंधन के प्रति एक स्थिर दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जिसमें मिलीजुली तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं, जैसे जैविक नियंत्रण, परिवास संबंधी उपाय, खेती पद्धतियों का परिष्करण और प्रतिरोधी किस्में आदि. कीटनाशकों का इस्तेमाल केवल स्थापित दिशा निर्देशों के अनुसार उनकी अनिवार्यता सुनिश्चित करने के बाद ही किया जाता है और इस बात के उपचार किए जाते हैं कि केवल लक्षित कीटाणु समूह को निशाना बनाया जाए. कीट नियंत्रण सामग्री का चयन किया जाता है और उसे इस ढंग से प्रयोग में लाया जाता है कि मानव स्वास्थ्य, लाभदायक कीटाणुओं और अलक्षित जीव समूहों को नुकसान पहुंचने का जोखिम कम से कम रहे. कीटों के प्रबंधन का सर्वाधिक कारगर और दीर्घावधि का तरीका यही है कि मिलीजुली पद्धतियां इस्तेमाल की जाएं जो अलग अलग इस्तेमाल करने की बजाए एक साथ इस्तेमाल की जाएं तो बेहतर काम कर सकती हैं.
निष्कर्ष
वर्तमान में 1.32 अरब की जनसंख्या के साथ भारत विश्व की करीब 17.84 प्रतिशत आबादी को संरक्षण प्रदान करता है, जबकि उसके पास विश्व के कुल भूमि संसाधनों का 2.4 प्रतिशत और जल संसाधनों का मात्र 4 प्रतिशत हिस्सा है. यह भी देखा गया है कि संभावित फसल उत्पादन का करीब 15-25 प्रतिशत कीटों, खरपतवारों और बीमारियों के कारण नष्ट हो जाता है. खेती योग्य भूमि का निरंतर सिकुड़ते जाना, कृषि उत्पादकता में सुधार में धीमी प्रगति, फसल उगाए जाने और फसल-कटाई परवर्ती फसल की हानि/बर्बादी जैसे कारणों से राष्ट्र के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना एक गंभीर चुनौती है. इसे देखते हुए स्थिति और भी जटिल हो जाती है कि आने वाले दशक में खेती-श्रमिकों में 50 प्रतिशत कमी आने का अनुमान है. फसल संरक्षण और फसल संवद्र्धन के समाधान अत्यन्त आवश्यक होंगे. हालांकि पिछले वर्षों में प्रति हेक्टेयर उपज बढक़र दुगनी हो गई है, फिर भी भारतीय खेती को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे मानसून पर अत्यधिक निर्भरता, अप्रत्याशित मौसम स्थितियों, खेती योग्य भूमि में कमी, प्रति हेक्टेयर उपज कम होना, कीट हमलों में बढ़ोतरी, आदि. यह वास्तव में खेती के लिए सर्वाधिक चुनौतीभरा समय है. ऐसे मे स्थायी फसल संरक्षण के लिए कुछ बेहतर विधियां और समाधान उभर रहे हैं, जिनमें फसल संरक्षण रसायन, कृषि विज्ञान, खेती को उपजाऊ बनाना, बीज उपचार, जैव प्रौद्योगिकी विकास आदि शामिल हैं. देश में अगली कृषि पीढ़ी को ताजा हालात के अनुरूप उत्कृष्ट पद्धति का चयन करते हुए इन सभी उपायों या समाधानों का इस्तेमाल करना होगा. कृषि क्षेत्र को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और यदि उनका सही समाधान किया जाये तो भारत गुणवत्तापूर्ण फसल संरक्षण रसायनों के विनिर्माण का केन्द्र बन सकता है.
पादप संरक्षण रसायन या कृषि रसायन फसल कटाई पूर्व और फसल कटाई परवर्ती प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण साधन हैं और इसलिए वे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं. भारत में कृषि रसायन क्षेत्र के विकास की व्यापक संभावनाएं हैं, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में देश में रसायनों के इस्तेमाल का स्तर बहुत ही कम है. इसके साथ ही कृषि-रसायनों के निर्यात की भी उच्च संभावनाएं हैं, जिनके उत्पादन का 50 प्रतिशत भाग निर्यात किया जा रहा है. इस क्षेत्र को वर्तमान में भले ही अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, परन्तु उनका समाधान करके भारत पादप संरक्षण रसायनों के विनिर्माण का वैश्विक केन्द्र बन सकता है. भारत में फसल उत्पादन के लक्ष्य हासिल करने में पादप संरक्षण की भूमिका निरंतर महत्वपूर्ण रही है. पादप संरक्षण के प्रमुख संभावनाशील क्षेत्रों में ‘‘समेकित कीट प्रबंधन’’, कीटों और बीमारियों के प्रकोप से फसल उत्पादन को बचाने और स्थिरता प्रदान करने के लिए सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना; अधिक पैदावार देने वाली नई प्रजातियां अपनाने में तेजी लाने के लिए संगरोधन उपायों को सुदृढ़ बनाना; साथ ही बाहरी कीटों का प्रकोप रोकने की आशंका समाप्त करना; और पादप संरक्षण कौशल में महिला सशक्तिकरण सहित मानव संसाधन विकास के उपाय शामिल हैं.
फसल संरक्षण रसायनों के इस्तेमाल के अतिरिक्त, भारतीय कृषि को फसल उत्पादकता बढ़ाने के विशिष्ट उपायों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है. हमारे लिए यह जरूरी है कि फसल की बर्बादी में कमी लाने और खेती की पैदावार में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए हम सक्षम कृषि वैज्ञानिक पद्धतियां अपनाएं, धरती की उपजाऊ शक्ति बढ़ाएं और बीज उपचार, जैवप्रौद्योगिकी और प्लास्टिकल्चर जैसी पद्धतियों का इस्तेमाल करें. समेकित कीट प्रबंधन भारतीय कृषि में कीटों और बीमारियों की समस्या के समाधान के सर्वाधिक कारगऱ उपायों में से एक है. कृषि क्षेत्र से संबंध अनेक संगठन और स्टार्टअप्स भारतीय खेती के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने की दिशा में काम कर रहे हैं. भारत सरकार कृषि मूल्य शृंखला में अभी तक अधूरी रही किसानों की मांगें पूरी करने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम, परम्परागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स योजना, एम.किसान आदि विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए सक्रिय रूप से काम कर रही है. भारत के भौगोलिक विस्तार को देखते हुए किसानों तक पहुंचने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी आधारित समाधान सर्वाधिक कारगऱ माध्यमों में से एक हो सकते हैं, जिनके ज़रिए किसानों को वास्तविक समय पर जानकारी प्राप्त करने के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं ताकि वे खेती संबंधी निर्णय समय पर और बेहतर ढंग से ले सकें. भारतीय कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली इस बात की जरूरत महसूस करने लगी है, लेकिन इन प्रौद्योगिकियों को रोजमर्रा की खेती पद्धतियों के साथ जोडऩे में समय लगेगा.
पादप संरक्षण उत्पादों (पीपीपी) के पंजीकरण और समुचित उपयोग पर नियंत्रण रखना अत्यन्त आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में उत्पादित फल और सब्जियां उन देशों की शर्तों का अनुपालन करें जिनमें वे बेची जाती हैं, जिससे वहां कि आबादी को हानिकारक अवशेषों के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके.
पादप संगरोधन में, वर्तमान में जारी गतिविधियों के अलावा, कीट-जोखिम विश्लेषण (पीआरए) और संगरोधन परवर्ती निगरानी के क्षेत्र में विशेष संभावनाएं हैं. विश्व व्यापार संगठन समझौते को देखते हुए ऐसा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया है, जो पौधों और पादप सामग्री के अधिक और तीव्र वैश्विक आदान-प्रदान के अवसर प्रदान करता है. यह स्थिति देश में बाहरी कीटों/बीमारियों के प्रवेश का समान खतरा पैदा करती है. इस तथ्य पर विचार करते हुए कृषि मंत्रालय ने ‘‘पादप संगरोधन (भारत में आयात विनियमन) आदेश 2003’’ अधिसूचित किया, जिसने ‘‘पौधे, फल और बीज (भारत में आयात विनियमन) आदेश 1989’’ का स्थान लिया. नए विनियम 1 अप्रैल 2004 से लागू हुए. संगरोधन विनियमों को अधिक प्रभावशाली ढंग से लागू होने को देखते हुए मौजूदा पादप संगरोधन केन्द्रों को सुदृढ़ किया जायेगा और कुछ नए केन्द्र खुलने की भी संभावनाएं हैं. इससे बाहरी कीटों और बीमारियों को दूर रखने में मदद मिलेगी.
भारत के प्रमुख पादप संरक्षण कानूनों और संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में निम्नांकित शामिल हैं:
*विनाशकारी रोगाणु और कीटाणु अधिनियम (डीआईपी एक्ट) 2014 और तत्संबंधी संशोधन (जो व्यापक पादप संगरोधन अधिनियम के रूप में लोकप्रिय हैं).
*पौधे, फल और बीज (भारत में आयात विनिमयन) आदेश, 1989 (जो पीएफसी ऑर्डर के रूप में लोकप्रिय हैं).
*पादप प्रजातियों और किसानों के अधिकारों का संरक्षण (पीपीवीएफआर) अधिनियम, 2001
*पादप संरक्षण आदेश 2003-संशोधन.
*कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2008
*कृषि जैव-सुरक्षा विधेयक, 2013
*अंतर्राष्ट्रीय पादप संरक्षण कन्वेंशन
*डब्ल्यूटीओ-एसपीएस समझौता
*पादप स्वच्छता उपायों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मानक (आईएसपीएम्स)
*बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं के बारे में समझौता (ट्रिप्स)
उद्योग विशेषज्ञों की सहायता करते हुए कारगऱ फसल संरक्षण समाधानों के ज़रिए घरेलु और वैश्विक खाद्य सुरक्षा दोनों सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली प्रबंधन, बीज कोटिंग सामग्री बाज़ार, बायो-कंट्रोल बाज़ार, बीज उपचारों और बीज संवद्र्धनों के अनुमानों के लिए नए उपकरणों को समझा जा सके, जिससे फसल संरक्षण विंडो और फाइटो-मास का विस्तार होगा और फसलों के स्थायी और लाभकारी उत्पादन में मदद मिलेगी और पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव कम से कम करते हुए वैश्विक मांग पूरी की जा सकेगी.
(लेखक सोशल रिस्पोंसिबिलिटी काउंसिल नई दिल्ली के संस्थापक निदेशक हैं. ई-मेल : khurana@arunkhurana.com)
चित्र: गूगल के सौजन्य से