प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 30 जुलाई, 2017 को प्रसारित
‘मन की बात’ के अंश
‘‘मेरे प्यारे देशवासियों, अगस्त माह क्रांति का महीना है. यह बात हम बचपन से ही नैसर्गिक तथ्य के रूप में सुनते आये हैं. असहयोग आंदोलन एक अगस्त, 1920 को शुरू किया गया था. भारत छोड़ो आंदोलन जिसे अगस्त क्रांति के रूप में भी जाना जाता है, ०९ अगस्त, 1942 को शुरू हुआ था. भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ. अगस्त माह में कई ऐसी घटनाएं हुईं जो हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास से नजदीक से जुड़ी हैं. इस साल हम भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘भारत छोड़ो’ के नारे की रचना डॉ. यूसुफ मेहर अली ने की थी. हमारी नयी पीढ़ी को जानना चाहिए कि नौ अगस्त, 1942 को क्या हुआ था. भारत के लोग 1857 से 1942 तक आजादी की उत्कट इच्छा के साथ एकजुट हुए, साथ लड़े और कठिनाइयां झेलीं. इतिहास के ये पन्ने गौरवमय भारत के निर्माण के लिये हमारी प्रेरणा हैं. हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने अपने पूरे समर्पण के साथ तपस्या की, कठिनाइयां सहीं, महान बलिदान किये और यहां तक कि अपनी जान भी न्यौछावर कर दी. इससे महान प्रेरणा क्या हो सकती है! भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. इस आंदोलन ने समूचे राष्ट्र को ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल करने के लिये संकल्पबद्ध कर दिया. गांव हों या शहर, देश के हरेक हिस्से के शिक्षित या अशिक्षित, गरीब या अमीर, हर तरह के लोग एकजुट होकर कंधे से कंधा मिलाते हुए भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बने. जनता का गुस्सा चरम पर था. लाखों भारतीय महात्मा गांधी के आह्वान और ‘करो या मरो’ के मंत्र के साथ हो गये और खुद को संघर्ष में झोंक दिया. देश के लाखों युवाओं ने अपनी पढ़ाई और किताबों को त्याग दिया. वे आजादी के शंखनाद को सुन कर निकल पड़े. महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का नारा
०९ अगस्त को दिया. लेकिन हर प्रमुख नेता को ब्रिटिश सरकार कैद कर चुकी थी. ऐसे में डॉ. लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे दूसरी पीढ़ी के महान नेताओं ने प्रमुख और महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
‘‘1920 के असहयोग आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के दो अलग-अलग रूपों को देखा जा सकता है. भारत छोड़ो आंदोलन का पूरा परिदृश्य अलग था. वर्ष 1942 में स्थितियां इस हद तक पहुंच चुकी थीं, इतनी तीव्रता का भाव था कि महात्मा गांधी जैसे महापुरुष ने ‘करो या मरो’ का मंत्र दिया. इस समूची सफलता का कारण जनता का समर्थन, संकल्प और संघर्ष था. समूचा देश एक लक्ष्य के लिये संघर्ष करने के मकसद से एकजुट हो गया था. मैं कभी-कभी सोचता हूं कि अगर इतिहास के पन्नों को जोड़ें तो पता चलेगा, स्वतंत्रता की पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गयी थी. आजादी की जो लड़ाई 1857 में शुरू हुई थी वह देश के एक या दूसरे कोने में 1942 तक प्रकट होती रही. इस लंबे काल ने लोगों के मन में आजादी की तीव्र चाहत सुलगा दी. हर कोई कुछ करने के लिये प्रतिबद्ध हो गया. यह संकल्प पीढिय़ों के गुजरने के साथ कम नहीं हुआ. गुजरे हुए लोगों की जगह नये लोग आगे आते गये और देश ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिये हर पल अथक प्रयास करता रहा. वर्ष 1857 से जारी इस दृढ़ता और संघर्ष ने एक ऐसी स्थिति पैदा की जो 1942 में अपने चरम तक पहुंच गयी. भारत छोड़ो का उद्घोष कुछ ऐसा था कि ब्रिटिश पांच साल के अंदर 1947 में हमारे देश को छोडऩे के लिये मजबूर हो गये. वर्ष 1857 और 1942 के दरम्यान आजादी की चाहत निचले स्तर तक पहुंच चुकी थी. वर्ष 1942 से 1947 के पांच साल के निर्णायक काल में जनता के लिये जरूरी हो गया कि अपने संकल्प के जरिये देश की आजादी हासिल करे. ये पांच साल वास्तव में निर्णायक थे.
‘‘मैं अब आपको इसकी गणितीय अभिव्यक्ति से जोडऩा चाहूंगा. हम 1947 में आजाद हुए थे और अब 2017 है. इन लगभग 70 बरसों में कितनी ही सरकारें आयीं और गयीं. व्यवस्थाएं बनायी गयीं, बदलीं, परिपोषित हुईं और उनका विस्तार हुआ. हर किसी ने देश को समस्याओं से निजात दिलाने की अपने तरीके से कोशिश की. रोजगार बढ़ाने, गरीबी दूर करने और विकास के प्रयास किये गये. इनके लिये अलग-अलग ढंग से कठिन परिश्रम किया गया. सफलताएं मिलीं और साथ ही उम्मीदें भी बढ़ीं. जिस तरह 1942 से 1947 तक का समय संकल्प के माध्यम से लक्ष्य सिद्धि का रहा उसी प्रकार मैं 2017 से 2022 के काल खंड को पक्के इरादे के जरिये प्राप्ति के पांच साल के तौर पर देखता हूं. हमें 15 अगस्त, 2017 को संकल्प पर्व के रूप में मनाना चाहिये. हम निस्संदेह इस संकल्प को 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर सिद्धि में परिवर्तित कर सकेंगे.
‘‘अगर 1.25 अरब भारतीय
०९ अगस्त को अगस्त क्रांति दिवस मनायें और हरेक शख्स 15 अगस्त को ठान ले कि व्यक्ति और नागरिक के तौर पर तथा परिवार, समाज, गांव, शहर, सरकारी विभाग और सरकार के हिस्से के रूप में कितना कुछ करेगा तो लाखों संकल्प हो जायेंगे. इन लाखों संकल्पों को पूरा करने के लिये प्रयास किये जायेंगे. जिस तरह 1942 से 1947 तक के पांच साल देश की आजादी के लिये निर्णायक थे उसी भांति 2017 से 2022 तक का काल भारत के भविष्य के वास्ते निर्णयात्मक फैसला हो सकता है और उसे ऐसा करना चाहिये. पांच साल बाद हम देश की आजादी की 75वीं सालगिरह मनायेंगे. इसलिए हमें आज ठोस संकल्प करना चाहिये. हमें 2017 को अपने लिये संकल्प का वर्ष बनाना चाहिये. अगस्त के इस महीने में हमें एकजुट होकर ‘गंदगी-भारत छोड़ो’, ‘गरीबी-भारत छोड़ो’, ‘भ्रष्टाचार-भारत छोड़ो’, ‘आतंकवाद-भारत छोड़ो’, ‘जातिवाद-भारत छोड़ो’ और ‘साम्प्रदायिकता-भारत छोड़ो’ का संकल्प करना होगा. आज की जरूरत ‘करो या मरो’ नहीं है. आज का समय नये भारत के निर्माण के लिये एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत के साथ निरंतर और अथक काम करने का है. हम इस संकल्प के लिये जियें और काम करें. आइये, इस नौ अगस्त से संकल्प से सिद्धि का एक बृह्द अभियान शुरू करें. सभी भारतीय व्यक्तियों, सामाजिक संगठनों, स्थानीय स्वशासन संस्थाओं, स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न अन्य संगठनों को नये भारत के लिये कोई-न-कोई संकल्प जरूर लेना चाहिये. ऐसा संकल्प जिसे पांच बरसों में हर हाल में पूरा किया जायेगा. युवा, छात्र और गैरसरकारी संगठन नये विचारों को सामने लाने के लिये सामूहिक चर्चाएं आयोजित कर सकते हैं. हम एक राष्ट्र के रूप में कहां पहुंचना चाहते हैं? इसके लिये एक व्यक्ति के रूप में मेरा क्या योगदान होना चाहिये? हम एकजुट हों और इसे संकल्प का उत्सव बनायें.
‘‘मैं खास तौर से ऑनलाइन जगत का आह्वान करना चाहूंगा. हम जहां भी हों लगभग हमेशा ऑनलाइन रहते हैं. इसलिये मैं ऑनलाइन समुदाय और खास तौर से अपने नौजवान दोस्तों को आमंत्रण देना चाहूंगा कि वे आगे आयें और नये भारत के निर्माण में अपनी अभिनवता के साथ योगदान करें. वे इस काम के लिये वीडियो, पोस्ट और ब्लॉग जैसी प्रौद्योगिकी तथा आलेख और अनूठे विचारों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस अभियान को जनता के आंदोलन में तब्दील कर दें. नरेन्द्रमोदीऐप पर मेरे नौजवान साथियों के लिये एक ‘भारत छोड़ो’ क्विज शुरू किया गया है. इसका मकसद युवाओं को भारत के गौरवपूर्ण इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों से अवगत कराना है. मेरा विश्वास है कि आप इस क्विज का प्रचार करेंगे और इसके बारे में जागरूकता फैलायेंगे.
‘‘मेरे प्यारे देशवासियों, मुझे 15 अगस्त को भारत के प्रधान सेवक के रूप में लाल किले के प्राचीर से देश के साथ संवाद करने का मौका मिलेगा. वास्तव में मैं तो बस निमित्त मात्र हूं. यह संबोधन कोई एक व्यक्ति नहीं करता. लाल किले से गूंजने वाली आवाज़ मेरे 1.25 अरब देशवासियों का सामूहिक स्वर है. मैं उनके सपनों को जुबान देने की कोशिश करता हूं. मैं खुश हूं कि मुझे पिछले तीन बरसों से 15 अगस्त के लिये देश के हर कोने से सुझाव मिलते रहे हैं. इन सुझावों में बताया जाता है कि मुझे 15 अगस्त पर क्या बोलना और अपने भाषण में किन मुद्दों को शामिल करना चाहिये. मैं इस बार भी आपको माईगॉव या नरेन्द्रमोदीऐप पर अपने विचार साझा करने के लिये आमंत्रित करता हूं. मैं इन्हें खुद ही पढ़ता हूं और 15 अगस्त पर मेरे पास जो भी समय होगा उसमें इन्हें अभिव्यक्त करने की कोशिश करूंगा. पंद्रह अगस्त पर मेरे पिछले तीन भाषणों के कुछ लंबा होने की शिकायत रही है. मैंने इस बार अपना भाषण छोटा रखने और इसे 40, 45 या 50 मिनटों से ज्यादा का नहीं होने देने की योजना बनायी है. मैंने अपने लिये ये नियम बनाने की कोशिश की है मगर मुझे नहीं पता कि क्या मैं इनका पालन कर सकूंगा. लेकिन मेरा इरादा इस बार अपना भाषण छोटा रखने की कोशिश करने का है. देखें, मैं इसमें सफल रहता हूं या नहीं.
‘‘मैंने महसूस किया है और कभीकभार सोचता हूं कि हमारे देश के नागरिक मुझसे ज्यादा जागरूक और सक्रिय हैं. पिछले माह भर में पर्यावरण के प्रति जागरूक नागरिकों ने मुझे लगातार पत्र लिखे हैं. उन्होंने मुझसे अनुरोध किया है कि समय रहते पर्यावरण के लिये अनुकूल गणेश प्रतिमाओं की बात करूं ताकि लोग गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर गणेश की मिट्टी की मूर्तियों की व्यवस्था करें. मैं इस तरह के जागरूक नागरिकों का बेहद आभारी हूं. उन्होंने गणेश चतुर्थी के त्यौहार से पहले इस विषय पर बोलने का अनुरोध किया है. इस दफा सार्वजनिक समारोह के रूप में सामुदायिक गणेश उत्सव मनाने का विशेष महत्व है. इस महान परंपरा की शुरुआत लोकमान्य तिलकजी ने की थी और सामुदायिक गणेश उत्सव की यह 125वीं वर्षगांठ है. 125 साल और 1.25 अरब देशवासी! लोकमान्य तिलकजी ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत एकता की भावना भरने, समाज में जागरूकता बढ़ाने और एकजुटता की संस्कृति को बढ़ावा देने के मूल उद्देश्य से की थी. लिहाजा इस साल हम गणेश उत्सव के दौरान लोकमान्य तिलक के योगदान को याद करते हुए आलेख प्रतियोगिताएं और खुले विचार-विमर्श आयोजित करें. हम सामुदायिक गणेश उत्सव को तिलकजी की भावनाओं के अनुरूप मनाने के नये तरीकों के बारे में सोचें. हम सोचें कि किस तरह इस भावना को मजबूत किया जाये और साथ ही पर्यावरण की रक्षा के लिये इसके अनुकूल मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं के इस्तेमाल का संकल्प लें. इस बार मैंने इसके बारे में समय रहते बात की है. मुझे विश्वास है कि आप सब मेरे साथ आयेंगे. इससे निस्संदेह गरीब शिल्पकारों और कलाकारों को लाभ होगा तथा मूर्ति बनाने वालों को रोजगार मिलेगा. गरीब आजीविका कमाने और अपना पेट भरने में सक्षम होंगे. आइये, हम अपने त्यौहारों को गरीबों के आर्थिक कल्याण से जोड़ें. हमारे त्यौहारों की खुशियां वंचितों के परिवारों से जुड़ें तथा गरीबों के लिये वित्तीय खुशहाली लायें. इसके लिये हम सबको प्रयास करना चाहिये. मैं आगामी विभिन्न त्यौहारों और समारोहों के लिये अपने सभी देशवासियों को शुभकामनाएं देता हूं.
‘‘मेरे प्यारे देशवासियो, मैं एक बार फिर आपको ०९ अगस्त की अगस्त क्रांति की याद दिलाता हूं. एक बार फिर 15 अगस्त का स्मरण कराता हूं. इसके साथ ही आपको एक बार फिर 2022 की याद दिलाता हूं जब भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होंगे. हर देशवासी को एक संकल्प लेकर उसे पूरा करने के लिये पांच साल का रोडमैप तैयार करना चाहिये. हम सब को अपने देश को नयी ऊंचाइयों तक ले जाना है. इसके लिये हमें अथक प्रयास करना होगा. आइये, हम अपने दायित्व निभाते हुए साथ-साथ आगे बढ़ें. इस विश्वास के साथ आगे बढ़ें कि हमारी मंजिल- देश का भविष्य उज्ज्वल होगा. आप सब को ढेर सारी शुभकामनाएं. धन्यवाद!
पत्र सूचना कार्यालय