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विशेष लेख


Volume-11, 16-22 June, 2018

 
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का महत्व

डॉ. राजेश कुमार

प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग एक अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करते हैं, साथ ही जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ाते हैं. कई सारी बीमारियां जो कि आधुनिक युग ने दी हैं जैसे कि स्ट्रोक, कैंसर, मधुमेह, गठिया आदि नियंत्रित होती हैं और अन्य रोग भी नहीं होते हैं.
नैचुरोपैथी एक प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है जिसमें दवाओं का उपयोग किए बिना रोगों को ठीक किया जाता है. नैचुरोपैथी में कई रोगों को रोकने की क्षमता है और जो रोग हो चुके हैं उनका इलाज आप कर सकते हैं. एक अच्छा स्वास्थ्य मनुष्य को प्रकृति द्वारा दिया गया सबसे अच्छा उपहार है, लेकिन आज के दौर में व्यक्ति अपनी यांत्रिक जीवन शैली में इतना व्यस्त होता जा रहा है कि उसने खुद को प्रकृति से बिलकुल दूर कर लिया है.
नैचुरोपैथी एवं योग का मुख्य उद्देश्य लोगों को अपनी दिनचर्या बदलकर स्वस्थ रहने की कला सिखाता है इससे न केवल आपके रोग ठीक होते हैं बल्कि आपका शरीर भी मज़बूत बनता है और आपके चेहरे पर चमक आती है.
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग के द्वारा मनुष्य अपने स्वास्थ्य को स्वस्थ रख सकता है इससे व्यक्ति के जीवन के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक भागों के रचनात्मक सिद्धांतों के साथ-साथ व्यक्ति के सद्भाव का भी निर्माण होता है.
प्राकृतिक चिकित्सा अर्थात् पंच भूतात्मक चिकित्सा जो आरंभ से ही आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी पर केंद्रित है. मानव शरीर इन्हीं तत्वों से निर्मित है. शरीर में इन तत्वों का असंतुलन ही रोग पैदा करता है जिसे विजातीय द्रव्यों के संग्रह के रूप में देखा जाता है. इन मलों के असंतुलन से उत्पन्न मल संग्रह को पंचमहाभूतों के द्वारा संतुलित करना ही प्राकृतिक चिकित्सा है.
प्राकृतिक चिकित्सा में शामिल होने वाली तकनीक
इसका चार भागों में वर्गीकरण किया गया है :-
1. भोजन 2. मिट्टी 3. पानी 4. मालिश थैरेपी
1. खाद्य थैरेपी :-  खाद्य थैरेपी की बात की जाए तो हम इसमें मालिश प्रक्रिया का प्रयोग करते हैं कि जितना संभव हो किसी भी आहार को उसे प्राकृतिक तरीके में ही खाया जाए. प्राकृतिक रूप में सेवन करने पर कई खाद्य पदार्थ अपने आप में एक दवा हैं. आपको इसमें मुख्य रूप से लेना है- ताजे फल, ताजी हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित अनाज.
आहार को लेना ही काफी नहीं है आपको इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि किस चीज को कितने अनुपात में लेना है. साथ ही आपको अपने पेट का कुछ हिस्सा खाली भी छोडऩा जरूरी है. प्राकृतिक  चिकित्सा में खाने का बहुत महत्व है समय पर खाना, संतुलित खाना, कम खाना, नहीं खाना यह सब प्राकृतिक चिकित्सा के ही अंग हैं.
खाना, पीना और पचाना यह तीन ऐसे माध्यम हंै जो शरीर को स्वस्थ भी रखते हैं और बीमार भी करते हैं.
2. मिट्टी थैरेपी:- शरीर से मादक द्रव्यों को निकालने के लिए मिट्टी का स्नान, मिट्टी लेप, मिट्टी की पट्टी का प्रयोग किया जाता है. यह विशेष रूप से उच्च रक्तचाप, तनाव, सिरदर्द, चिंता, कब्ज, गैस्ट्रिक और त्वचा विकार आदि बीमारियों के लिए किया जाता है. अत: सप्ताह में एक बार अवश्य सम्पूर्ण शरीर का मिट्टी स्नान या मिट्टी लेप लेना चाहिए. विष का मूल स्थान नाभि के पास माना जाता है और यही कुण्डलिनी का भी स्थान है अत: वहां आधे घंटे तक मिट्टी की पट्टी लेनी चाहिए. मिट्टी थैरेपी बहुत ही प्रभावी है.
3. जल चिकित्सा :- प्राकृतिक चिकित्सा में जल चिकित्सा भी अपनाई जाती है, जिसमें स्वच्छ, ताजे और ठंडे पानी का उपयोग किया जाता है. इस उपचार के बाद शरीर ताजा और सक्रिय महसूस करता है. इस चिकित्सा के अलग-अलग बीमारियों के लिए अलग-अलग परिणाम हैं.
1. कटिस्नान आपके जिगर, बड़ी आंत, पेट और गुर्दे की दक्षता में सुधार करता है.
2. भाप स्नान आपकी त्वचा के छिद्रों को खोलता है और पसीने के द्वारा शरीर के विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालता है.
3. गर्मपाद स्नान आपको अस्थमा, घुटनों का दर्द, सिरदर्द, अनिंद्रा और मासिक धर्म जैसी अन्य बीमारियों में मदद करता है.
4. इसके अलावा पूरे शरीर की पानी से मालिश की जाती है, जिससे विषाक्त पदार्थों को शरीर से दूर किया जाता है. सप्ताह में दो दिन सम्पूर्ण गीली चादर लपेट लेना चाहिए और अनिमा का प्रयोग करना चाहिए.
मालिश थैरेपी :- शरीर की मांसपेशियों एवं स्नायुओं को स्वस्थ एवं सक्रिय करने अथवा रखने की कला का नाम ही मालिश या मसाज है. किंतु यह एक ही तरह से नहीं होती भिन्न-भिन्न प्रकार से शरीर को थपथपाकर और त्वचा पर विभिन्न तरीकों से हाथ फेरकर मालिश की जाती है. कभी त्वचा पर हाथों को रगडऩा होता है तो कभी इस पर कम्पन उत्पन्न करना होता है कभी हल्के हाथों से थपथपाना होता है. इन सभी विभिन्न प्रणालियों द्वारा विभिन्न उदेद्श्यों की पूर्ति की चेष्टा की जाती है और इसी प्रणाली के भेद के कारण इसके अलग-अलग नाम हैं.
योग क्या है :-
योग शब्द संस्कृत के युजधातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है जोडऩा. किसी वस्तु को अपने में जोडऩा अर्थात् किसी अच्छे कार्य में अपने को लगाना. (मन से तथा शरीर से जो कार्य किया जाएगा उसे ही योग कहते हैं.) शारीरिक, मानसिक, धार्मिक, आध्यात्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हमको योग की कोई न कोई क्रिया कम से कम पन्द्रह-बीस मिनट करनी चाहिए, जिससे हम अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त कर सकें तथा सांसारिक दुखों से, रोगों से अपने को मुक्त कर सकें. योग आनन्दमय जीवन जीने की एक कला है और इसी योग के द्वारा हम शरीर की अन्य बीमारियों को भी दूर कर सकते हैं.
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग में युवाओं का महत्व
भारत युवाओं का देश है. वर्तमान में भारत में लगभग 65 प्रतिशत युवा हैं. आज इन युवाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या है बेरोजग़ारी. आज स्थिति ऐसी हो गई है कि देश का हर व्यक्ति चाहे पढ़ा-लिखा है या नहीं, रोजग़ार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं और अपना स्वास्थ्य खराब कर रहा है. बेरोजग़ारी के कारण फैक्ट्रियों, कंपनियों इत्यादि में जाकर काम करने के लिए दिन-प्रतिदिन वह पलायन कर रहा है. यदि देश के शहरों में, गांवों में प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली को स्थापित किया जाए तो, हो रहे इस पलायन को रोकने में प्राकृतिक चिकित्सा काफी मदद दे सकती है इसलिए देश में निवास करने वाले युवाओं को जो थोड़े पढ़े-लिखे हैं और शिक्षित हैं, उन्हें प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का प्रशिक्षण प्रदान करके बेरोजग़ारी की समस्याओं को भी काफी हद तक दूर किया जा सकता है और इस चिकित्सा का प्रशिक्षण लेकर युवा अपने स्वास्थ्य और समाज दोनों का कल्याण
कर सकते हैं.
इसके लिए जरूरी है शहरों और गांवों में जगह-जगह प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएं और प्रशिक्षण के द्वारा युवा वर्ग को जागरूक
किया जाए.
लेखक गांधी आश्रम किंग्सवे कैम्प, दिल्ली-स्थित प्राकृतिक जीवन केंद्र, हरिजन सेवक संघ में मुख्य चिकित्सक हैं. लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.ई-मेल: Rajeshraj43210@gmail.Com