८ जून : विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस
ब्रेन ट्यूमर : समय पर उपचार से बचाव संभव
लेखिका : डॉ. राखी मेहरा
अगर आपको आए दिन सिर दर्द की शिकायत रहती है और यह लगातार रहने वाला सिरदर्द जो दर्द निवारक औषध से ठीक हो जाता हो और पुन: उभर आता हो यह ब्रेन ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारी का लक्षण भी हो सकता है. इसलिए लगातार होते सिर दर्द को मामूली रूप में लेने के बजाय उसके सही, उचित एवं शीघ्र जांच कराने से इस रोग की घातकता से बचा जा सकता है. वरना इलाज में देरी हो जाने से ये जीवन के लिये घातक हो सकता है या मानसिक विक्षिप्तता की स्थिति तक आ सकती है. अत: शुरूआती लक्षणों से ब्रेन ट्यूमर की पहचान कर लेना आवश्यक है.
ब्रेन ट्यूमर की स्थिति में दिमाग की कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ती जाती हैं, जिसके कारण आसपास की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती रहती हैं और लगातार शुरूआती लक्षणों को अग्रसर व उत्तेजित करती जाती हैं.
चिह्न एवं लक्षण :
सिरदर्द :-
सबसे सामान्य और पहला लक्षण सिरदर्द होता है. बे्रन ट्यूमर के शुरूआत में पहले सुबह सिरदर्द होता है और बाद में लगातार होने लगता है और तीव्र होते हुए, मानसिक संतुलन पर भी असर करने लगता है.
शरीर का संतुलन :- अक्सर चक्कर आता है और कई बार चक्कर आते-आते रोगी गिर भी जाता है. मस्तिष्क के संतुलन करने वाले हिस्से सेरिबेलम में घातक ट्यूमर होने से शरीर का संतुलन बिगडऩे लगता है.
उल्टी और मितली : सिरदर्द के साथ उल्टी व मितली का बराबर बना रहना, खाने में रुचि का कम हो जाना और लगातार तीव्रता का बढऩा.
दौरे का पडऩा - ट्यूमर से आसपास की कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं फलस्वरूप दौरा भी पडऩे लगता है.
हाथ पैरों में ऐंठन - मस्तिष्क के पेराइटल हिस्से में ट्यूमर होने से शरीर के अंगों में निष्क्रियता एवं अकडऩ होने लगती है.
लकवे जैसी स्थिति - ट्यूमर की कोशिकाओं के लगातार असीमित एवं अनियंत्रित रूप से विभाजित होने एवं बढऩे से शरीर के कुछ क्षेत्रों में संवेदना कम होती जाती है और कई बार पेरालिसिस या ब्रेन ट्यूमर जैसी स्थिति पैदा हो जाती है.
बोलने या शब्द को समझने में कठिनाई- बढ़ता हुआ ट्यूमर जब टेंपोरल लोब को प्रभावित करता है तब व्यक्ति को बोलने में परेशानी, फेशियल सुन्नता और कई बार लिखने, पढऩे या मामूली जोड़-घटाव करने में परेशानी तक हो सकती है.
सुनने में समस्या होना- टेंपोरल लोब पर ट्यूमर का प्रभाव होने से व्यक्ति को सुनने में भी परेशानी होने लगती है.
कमजोरी का एहसास होना- एक निश्चित कमजोरी व थकान का पूरे दिन रहना.
चिड़चिड़ापन और स्वभाव में परिवर्तन- ट्यूमर के फंरटल लोब पर होने से व्यक्ति के व्यवहार में अनियंत्रण भी होने लगता है और अक्सर वह चिड़चिड़ा हो जाता है.
इस तरह इन ट्यूमर की कोशिकाएं जिस-जिस भाग को प्रभावित करती जाती हैं उन हिस्सों से संचालित कार्य प्रभावित होते जाते हैं.
प्राय: प्राथमिक (सच्चे) मस्तिष्क ट्यूमर या अर्बुद सामान्य बच्चों के ऑक्सीपीटल भाग में और वयस्क में मस्तिष्क के सामने के अगले दो तिहाई भाग में पाये जाते हैं, हालांकि यह बे्रन के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं.
फलत : कई बार अचानक ही तीव्र लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिसमें दौरे का होना, मस्तिष्क का रक्तचाप का बढ़ जाना, ट्यूमर में रक्तस्राव, मस्तिष्क में सूजन तथा मेरूद्रव के मार्ग में अवरोध होना भी हो सकता है.
ब्रेन कैंसर शुरू किसी एक खास कारण से कैसे हो जाता या कैसे शुरू होता है यह कहना तो मुश्किल है लेकिन अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि आनुवंशिक कारण ट्यूमर सस्पेन्सर जीन (क्कह्य३) केमिकल एक्सपोजर रेडिएशन आदि कारणों से हो सकता है.
कोई भी कारण से मस्तिष्क कोशिकाओं का तापमान तीव्र नहीं होने देना चाहिये. यानि दादी की बात कि ‘‘सिर ठंडा रखो’’ कुछ हद तक सार्थक लगता है.
देखा जाये तो शहरीकरण जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की जगह केमिकल, रेडिएशन, प्रदूषण और असामान्य मानसिक तनाव कहीं न कहीं मस्तिष्क कोशिकाओं का सामान्य तापमान अनियंत्रित कर रहा है. एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यूनाइटेड स्टेट में तकरीबन प्रतिवर्ष १७००० नये ब्रेन ट्यूमर के रोगियों का पंजीकरण होता है. जर्मनी में ब्रेन कैंसर ट्यूमर से ८००० से अधिक पीडि़त हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में ब्रेन ट्यूमर के ५०० नये रोगी प्रतिदिन पंजीकृत हो रहे हैं. भारत में भी ब्रेन ट्यूमर के रोगियों का प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है.
एडवर्ड स्टेनले ने भी बहुत सही लिखा है कि जो यह सोचते हैं कि उनके पास कसरत करने के समय नहीं है उन्हें देर -सबेर बीमार पडऩे के लिये समय निकालना ही पड़ेगा.
बे्रन ट्यूमर के लक्षण उसके आकार और स्थान पर निर्भर होते है. इसी तरह रोग की घातकता ट्यूमर की प्रकृति या संरचना पर निर्भर करती है. धीरे-धीरे बढऩे वाला, देर से लक्षणों की उत्पत्ति करने वाला बे्रन ट्यूमर उचित व समय पर इलाज से ठीक भी हो जाता है. जबकि तेजी से बढऩे वाला एवं शीघ्र लक्षणों की उत्पत्ति करने वाला ट्यूमर प्रायश: असाध्य होता हैं और तुरंत ही चिकित्सक परामर्श की सलाह देते हैं.
ट्यूमर का आकार व स्थान निर्धारित करता है कि मस्तिष्क के किस भाग का कार्य दबाव में है और उसी के अनुरूप एवं व्यक्ति विशेष विभिन्न लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं.
मस्तिष्क में ४ लोब होते हैं जिन्हें निम्न प्रकार से ब्रेन ट्यूमर के संदर्भ में निम्न प्रकार से समझ सकते हैं.
फ्रंटल लोब - यहां का ट्यूमर निर्णय लेने में परेशानी, सामाजिक व्यवहार, व्यक्तित्व परिवर्तन, कमजोर प्लानिंग, कार्य शुरू करने में हिचकिचाहट, बोलने की क्षमता का ह्रास (ब्रोका क्षेत्र) करता है.
टेम्पोरल लोब - यहां का ट्यूमर याददाश्त की कमी, सुनने में परेशानी और भाषा समझने में परेशानी (वर्निक क्षेत्र) करता है.
पेराइटल लोब- यहां का ट्यूमर भाषा को समझने में कठिनाई, स्पर्श एवं दर्द की कम अनुभूति एवं दृश्य-अनुभूति होता है.
ऑक्सीपीटल लोब- यहां का ट्यूमर दृष्टि का नाश करता है.
सेरिबेलम- यहां का ट्यूमर संतुलन की कमी मांसपेशियों की अकडऩ एवं शरीर की आकृति में परिवर्तन करता है.
ब्रेन स्टेम- यहां का ट्यूमर रक्तचाप, निगलने में और हृदय गति में परिवर्तन कर देता है.
ब्रेन कैंसर का निदान- ब्रेन ट्यूमर में ट्यूमर blood brain Barrier BBB से अलग करने का पता MRI एवं CT स्कैन से कैंसर ग्लीओमा, मेनिन्जिओमा और ब्रेन मेटास्टेसिस का पता चल जाता है. हालांकि, चिकित्सकीय संदेह लक्षणों से होता है.
स्टेज-१ - ब्रेन कैंसर की यह सामान्य स्थिति जिसे आसानी से रोका जा सकता है
स्टेज-२ - इस स्थिति में घातक कोशिकायें शरीर के अन्य हिस्से में फैलने लगती हैं.
स्टेज-३ - इस स्थिति में ट्यूमर परिपक्व होकर तीव्रता से शरीर में फैलकर दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान पहुंचाने लगते हैं.
स्टेज-४ - यह अंतिम अवस्था होती है जिसकी चिकित्सा अत्यंत कष्ट प्रद हो सकती है.
शिशुओं और बच्चों में मस्तिष्क का ट्यूमर-
२ वर्ष से कम उम्र के शिशुओं में ७०% ब्रेन ट्यूमर मेडुलोब्लास्टोमा, एपेन्डाइमोमा और कम स्टेज का ग्लियोमा होता है. टेराटोमा भी देखे जाते हैं. Germ Cell tumour बच्चों में ३% ही होते हैं. US में ही २००० बच्चे (२० वर्ष से कम) प्रतिवर्ष बे्रन ट्यूमर से ग्रसित हो जाते हैं. इसी तरह भारत में भी लगातार यह प्रतिशत बढ़ रहा है.
ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफोर्म (GBM)- कुल में से ४५.२% त्रक्चरू ब्रेन ट्यूमर अक्सर मिलता है और अधिकतर ६० वर्ष के उम्र के बाद पाया जाता है. यह पुरुषों में स्त्रियों की तुलना में १.५ GBM अधिक मिलता है.
ब्रेन ट्यूमर को रोकने के उपाय- प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में वर्णित जीवन शैली-दिनचर्या, रात्रिचर्या अर्थात् दिन रात क्या खायें, क्या करें क्या न करें और वो भी मौसम के अनुसार जिसमें शरीर-मन-भावना-व्यवहार का संतुलन बना रहता है.
इसमें से कुछ नियम निम्न हैं, जिन्हें एलोपेथी चिकित्सा भी तनाव रहित चर्या में आवश्यक मानती है-
१. संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का प्रतिदिन लेना.
२. नींद को पूरा करना.
३. स्वच्छ व पीने योग्य पानी उचित मात्रा में पीना.
४. अप्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कम से कम करना.
५. नशा, अल्कोहल, तम्बाकू का प्रयोग न करना.
६. तनाव से दूर रहना.
७. अधिक से अधिक सक्रिय रहें.
८. शारीरिक परिश्रम करना.
ब्रेन ट्यूमर की चिकित्सा - ब्रेन ट्यूमर की प्रथम चिकित्सा शल्य चिकित्सा है जिसमें शल्यक्रिया के समय ताजे ऊतक की हिस्टोपेथोलोजी जांच और इम्यूना हिस्टोकेमिकल जांच से कैंसर होने का जेनेटिक विश्लेषण भी हो जाता है. ब्रेन ट्यूमर के फैलने की प्रकृति होने के कारण प्रत्यक्ष में पूरी तरह से निकाल देने के बावजूद ट्यूमर का फिर बढ़ जाना असामान्य नहीं होता है. इसीलिये लगातार शोध-अध्ययन द्वारा कैंसर कोशिकाओं को एक रसायन (५ अमाइनोलेवुलिनिक एसिड), जो उन्हें प्रतिदीप्त कर देता है, से लेवल करके मस्तिष्क अर्बुदों को निकालने की शल्यक्रिया को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है.
दुर्दभ कैंसर के लिये शल्यक्रिया के बाद रेडियोथेरेपी और केमोथेरेपी भी चिकित्सा के अभिन्न अंग हैं. रेडियोथेरेपी, कम स्टेज वाले ग्लियोमास के लिए भी प्रयोग की जाती है जब शल्य क्रिया से अर्बुद की बड़ी मात्रा को निकालना संभव न हो.
रेडियोथेरेपी द्वितीयक ब्रेन कैंसर का सबसे सामान्य उपचार है. भविष्य में अन्य द्वितीयक कैंसर के विकसित होने की संभावना हो तो होल ब्रेन रेडियोथेरेपी उपचार (WBRT) की सलाह दी जाती है. इसी तरह कम से कम क्षति कर ब्रेन ट्यूमर को खत्म करने हेतु लगातार उत्तरोत्तर बढ़ती हुई कई प्रक्रियाओं जैसे, स्टीरियोटैक्टिक रेडियोथेरेपी, वेसिकुलार स्टोमेटाइटिस वाइरस या वी एस वी, इंटरफेशन के साथ इंजेक्शन दिये जाने, गामा नाइफ सर्जरी, ओपन सर्जरी, लगातार सुरक्षित औषधों में टेमोलोजेमाइड (TMZ) या टेमोडर, एवेस्टीन एवं नोवोक्योर और अन्य कीमोथेरेपी से ब्रेन ट्यूमर से ग्रसित रोगियों के सर्वाइवल रेट बढ़ाने की कोशिश जारी है.
सर्वाइवल बढ़ाने हेतु अन्य प्राकृतिक संसाधन -
ब्रेन ट्यूमर के प्रतिशत में विकसित और विकासशील देशों में महत्वपूर्ण फर्क होने की एक वजह निदान का और उसके आधार का सही समय न होने से मृत्युदर का बढऩा या स्वास्थ्य का क्षतिग्रस्त हो जाना होता है. इसी तरह केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से सबंधित ट्यूमर का विशेष रूप से यूनाइटेड स्टेट, इजराइल एवं नॉर्डिक देशों में, जापान एवं एशियन देशों की तुलना में अधिक मिलना, इस ट्यूमर के जैविक, पैथोलाजिक निदान एवं रिर्पोटिंग की भिन्नता पर भी होता होगा. तमाम संसाधनों का वैज्ञानीकरण कर उनका उचित उपयोग इस जान लेवा बीमारी से लडऩे की ताकत को बढ़ायेगा. इसीलिये यहां कुछ अतिरिक्त प्राकृतिक थेरेपी का वर्णन करना श्रेयस्कर रहेगा.
विटामिन सी एवं एंटीआक्सीडेन्टस आंवला- कोशिकाओं की सूजन एवं डी एन ए के नुकसान को ठीक करने में महत्वपूर्ण है. विटामिन ‘सी’ कोशिकाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है और कैंसर से लडऩे की ताकत देता है लेकिन एक अनुसंधान में यह भी कहा गया है कि विटामिन ‘सी’ का रासायनिक संगठन शुगर से मिलने के कारण कैंसर की कोशिकाओं द्वारा आकर्षित होता है, जिससे कैंसर कोशिकाओं के लिये अधिक मात्रा में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस करता है.
अश्वगंधा- (withamnia Somnifera) आमलकी के समान आयुर्वेद औषध अश्वगंधा कैंसर जनित तनाव और थकान को ७५% कम करती है. अश्वगंधा कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को भी कम किया जा सकता है. एंटीऑक्सीडेंट एन्जाइम का स्तर बढ़ जाता है और यकृत व वृक्क कोशिकाओं का सामथ्र्य बढ़ाता है.
हरिद्रा-(Curcuma Longa) करक्यूमिन जो हल्दी का एक्टिव घटक है कोशिकाओं की शोथ या सूजन को कम करता है. इसी तरह करक्यूमिन कुछ प्रोटीन ढ्ढहृत्र४ बनाता है जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है. कैंसर कोशिकाओं को रोकने के साथ करक्यूमिन कैंसर को अग्रिम स्तर पर जाने से रोकती है.
शल्लकी (Boswella Serrata) - अत्यंत शक्तिशाली शोथहर शल्लकी आयुर्वेद औषध है जो ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर-अल्फा, आणविक, इंटरलियूकिन्स और बोसवेलिक एसिड मिलकर ब्रेन ट्यूमर के लिये लाभकारी होता है.
केनाबिस तेल (भांग तेल)- केनाबिस जाति के पौधे से बना तेल वैज्ञानिक स्तर पर दर्द नाशन, सूजन हर, एवं भूख बढ़ाने में कैंसर रोगियों के लिये लाभकारी साबित हुआ है.
इसी तरह कई अन्य औषधों पर अनुसंधान प्रगतिशील है.
योग से तनाव रहित व्यवस्था - लगातार भागती जिंदगी में आज चिर तनाव से जूझते हुये इम्यून सिस्टम की T सेल एवं B सेल के IL-6 जो Pro-inflammatory marker हैं- C-reactive protein(CRP) को बढ़ाता है जो शरीर के संस्थान में आंतरिक सूजन बढऩे लगती है. जो योग के आसन-प्राणायाम-ध्यान से लगातार कम होता शोध में पाया गया है. इसलिये योग को तनाव कम करने और कैंसर जैसे रोगों से बचाव में सहायक माना गया है.
इस तरह जीवन शैली की सही शिक्षा जिसमें आहार, निद्रा व नियमबद्ध जीवन आता है, को अपनाने से न केवल स्वास्थ्य ही बना रहता है, बल्कि कैंसर जैसे रोगों से बचाव के साथ उसके भयावह असर व स्तर में उत्तरोत्तर बढऩे से रोक भी मिलती है. अर्थात् उचित शिक्षा आज स्वास्थ्य एवं गुणवत्ता युक्त जीवन हेतु आवश्यक कुंजी बन गयी है और शिक्षा में अहम है कि बे्रन ट्यूमर में आहार, औषध और उपचार घर पर रहकर अपने आप नहीं वरन् सुविधा सम्पन विशेषज्ञता पूर्ण अस्पताल में ही उपचार कराना चाहिये.
‘‘अपने शरीर की देखभाल करो. यही वही जगह है जहां तुम्हें रहना है’’ -पब्लिलियस सायरस
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.) लेखिका-प्रसिद्ध स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं. ई-मेल: drrakhimehra@yahoo.com, Tweeter- drrakhimehra1