14 नवंबर बाल दिवस
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण)
संशोधन विधेयक 2021
चौदह नवंबर भारत में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन विशेष रूप से बच्चों का सम्मान करने और उनकी उपस्थिति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. यह दिन इस तथ्य को भी पुष्ट करता है कि बच्चे सबसे कमजोर होते हैं और यह सरकार का कर्तव्य है कि उन्हें समान नागरिक के रूप में अधिकारों की गारंटी देकर उनके लिए सुविधाएं सुनिश्चित करे और उन्हें विशेष देखभाल तथा सुरक्षा प्रदान करे.
1989 में, विश्व नेताओं ने बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि कर दुनिया के बच्चों के प्रति ऐतिहासिक प्रतिबद्धता व्यक्त की. यह इतिहास में सबसे व्यापक रूप से समर्थित मानवाधिकार संधि बन गई है और इसने दुनियाभर में बच्चों के जीवन को बदलने में मदद की है. भारत सहित अधिकांश देशों ने अपने कानूनों में इन सिद्धांतों को शामिल किया है. भारत में, बच्चों को वे सभी अधिकार प्राप्त हैं, जो किसी अन्य वयस्क पुरुष या महिला को हासिल हैं. भारत में एक मजबूत बाल अधिकार प्रणाली है जिसमें बाल अधिकारों के नियंत्रण तथा संरक्षण के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो), बाल विवाह निषेध अधिनियम, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल तथा संरक्षण) अधिनियम जैसे कानून और केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण की स्थापना शामिल हैं.
किशोर न्याय, बच्चों के अधिकारों और संरक्षण से संबंधित कानून का सबसे संवेदनशील क्षेत्र है, इसलिए, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर कई कानून बनाए गए हैं. आजादी के बाद से, भारत की किशोर न्याय प्रणाली में समय और परिस्थितियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कई बदलाव किए गए हैं. 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति किशोर कहलाता है. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015, कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों और देखभाल तथा संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के संबंध में है. यह अधिनियम बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि, बच्चों के संरक्षण पर हेग संधि और अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण (1993) के संबंध में सहयोग और अन्य संबंधित अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है. एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत को किशोर न्याय, देखभाल तथा संरक्षण और गोद लेने के संबंध में बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए सभी उचित उपाय करने की आवश्यकता है.
9 अगस्त 2021 को किशोर न्याय-जे.जे. (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को अधिसूचित किया गया था. यह कानून, व्यवस्था में खामियों के मद्देनज़र, बच्चों को देखभाल और संरक्षण प्रदान करने के लिए, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के स्थान पर लाया गया है. संशोधित अधिनियम प्रत्येक जिले में बच्चों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीके से निपटाने के लिए जिलाधिकारियों को सशक्त बनाने और उन्हें अधिक जिम्मेदारी सौंपने के बारे में है.
संशोधन
जिलाधिकारियों की भूमिका बढ़ाई गई
जिलाधिकारियों को पहले से ही बच्चों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की समीक्षा करने का अधिकार दिया गया था. संशोधन के बाद अब उनका दायरा समीक्षा के मुद्दों से आगे बढ़ गया है. संशोधित अधिनियम में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट सहित जिला मजिस्ट्रेट को किशोर न्याय अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है, ताकि मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित किया जा सके और जवाबदेही बढ़ाई जा सके. गोद लेने की प्रक्रिया के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयासों को सुनिश्चित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेटों को अधिनियम के तहत और अधिक अधिकार दिए गए हैं. संशोधित कानून, गोद लेने में देरी के मुद्दों को हल करने में मदद करेगा क्योंकि यह प्रस्ताव करता है कि गोद लेने के आदेश पर अपील, संभागीय आयुक्त को दी जाए.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री, स्मृति ईरानी ने इस साल मार्च में लोकसभा को संबोधित करते हुए कहा कि बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीपीसीआर) ने बाल देखभाल संस्थानों- सीसीआई का ऑडिट किया, जिसमें पाया गया कि इनमें से 90 प्रतिशत संस्थान गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे हैं. आयोग ने पाया कि 2015 में संशोधन लाए जाने के बाद भी 39 प्रतिशत बाल देखभाल संस्थान पंजीकृत नहीं थे. यह भी पाया गया कि, पांच में से तीन में शौचालय नहीं हैं, दस में से एक में पीने का पानी तथा कोई आहार योजना नहीं है और 15 प्रतिशत संस्थानों में अलग बिस्तर का प्रावधान नहीं है. 2021 के संशोधन में सीसीआई को डीएम की सीधी निगरानी में रखते हुए उन्हें अधिक जवाबदेह बनाया गया है. अधिनियम के संशोधित प्रावधानों के अनुसार, किसी भी बाल देखभाल संस्थान को जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिशों पर विचार करने के बाद पंजीकृत किया जाएगा. जिला मजिस्ट्रेट स्वतंत्र रूप से जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, बाल देखभाल संस्थानों आदि के कामकाज का मूल्यांकन करेंगे.
बाल कल्याण समितियों की नियुक्ति में परिवर्तन
बाल कल्याण समितियों को मजबूत करने के लिए इसके सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया गया है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि केवल आवश्यक योग्यता और सत्यनिष्ठा के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करने में सक्षम व्यक्तियों को ही बाल कल्याण समिति में नियुक्त किया जाए, सदस्यों की अयोग्यता के मानदंडों का भी प्रावधान किया गया है. संशोधित कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को समिति के सदस्य के रूप में तब तक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके पास बाल मनोविज्ञान या मनोचिकित्सा या कानून या सामाजिक कार्य या समाजशास्त्र या मानव स्वास्थ्य या शिक्षा या मानव विकास या दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा की डिग्री न हो और सात साल तक बच्चों से संबंधित स्वास्थ्य, शिक्षा या कल्याण गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रहा हो या बाल मनोविज्ञान या मनोचिकित्सा या कानून या सामाजिक कार्य या समाजशास्त्र या मानव स्वास्थ्य या शिक्षा या मानव विकास या दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा में डिग्री के साथ पेशेवर रहा हो. अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति समिति के सदस्य के रूप में चयन के लिए पात्र नहीं होगा, यदि उसका मानवाधिकारों या बाल अधिकारों के उल्लंघन का कोई पिछला रिकॉर्ड है, या वह कभी भी बाल शोषण या बाल श्रम के रोजगार में लिप्त रहा है.
परिभाषाओं में परिवर्तन
पहले, अधिनियम के तहत परिभाषित तीन श्रेणियां (छोटे, गंभीर और जघन्य) थीं जिन्हें कानून के उल्लंघन में बच्चों के मामलों पर विचार करते समय संदर्भित किया जाता था, लेकिन यह देखा गया कि कुछ अपराध पूरी तरह से इनमें से किसी भी श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं.
2015 के अधिनियम में, गंभीर अपराधों में वे अपराध शामिल थे जिनके लिए तीन से सात साल के कारावास की सजा होती थी. 2021 के संशोधित विधेयक में कुछ और जोड़ा गया है और कहा गया है कि गंभीर अपराधों में वे अपराध भी शामिल होंगे जिनके लिए सात साल से अधिक की अवधि के लिए कारावास की सजा है और न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है या सात साल से कम है.
2015 के अधिनियम में, समिति या बोर्ड द्वारा दिए गए निर्देशों को पूरा करने के लिए बाल कल्याण अधिकारी एक ऐसा व्यक्ति होता था जो बाल गृह से जुड़ा हो. नए कानून में किए गए संशोधन के अंतर्गत, बाल देखभाल संस्थान से जुड़ा अधिकारी होने के नाते इसे बाल कल्याण अधिकारी के रूप में परिभाषित किया गया है.
(संकलन: अनीशा बनर्जी और अनुजा भारद्वाजन)
(स्रोत: यूनिसेफ.ओआरजी, पीआईबी, भारत का राजपत्र, पीआरएस इंडिया)