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विशेष लेख


Volume-50, 10-16 March, 2018

 

 

जर्नल में अनुसंधान लेखों का प्रकाशन

माधवेन्द्र शुक्ल और
आकांक्षा त्यागी

‘‘लेखन मानवीय है, संपादन दैवीय है.’’

स्टीफन किंग

किसी की शैक्षिक आजीविका को संवारने हेतु लेखन कार्य तथा उसका प्रकाशन अपरिहार्य है. शैक्षिक दक्षता प्राप्त करने में लेखन का प्रकाशित होना एक महत्वपूर्ण चरण है. प्रकाशन के पुरस्कार स्वरूप लेखक न केवल अपने बेहतर जीवनवृत्त तथा पहचान से प्रफुल्लित होते हैं, बल्कि उन्हें अपने क्षेत्र में पुरस्कार के साथ-साथ ख्याति भी मिलने लगती है.

लेखन और प्रकाशन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तथा सिक्के शैक्षिकशक्तियां सृजित करते हैं. शैक्षिकता में किसी के जीवनवृत्त का फैलाव, व्यक्ति की शैक्षिक कुशाग्र बुद्धि का संकेत देता है, जो प्रकाशनों से ज्यादा और आपकी क्षमता से बेहतर होता है.

शिक्षाजगत में जर्नलों के माध्यम से प्रकाशन की योजना सबसे अधिक अधिकृत और प्रभावी है.

जर्नल का प्रकाशन शैक्षिक संवाद की जीवनरेखा है. इनमें सावधिक तौर पर शैक्षिक अनुसंधान प्रकाशित किए जाते हैं. इनमें निश्चित तौर पर अनुसंधान आधारित मूल लेख तथा समय-समय पर मामला अध्ययन और वैज्ञानिक विचार भी शामिल  होते हैं.

किसी जर्नल के प्रकाशन में इसकी विषय सामग्री की वैज्ञानिक मान्यता और मौलिकता के रूप में किसी पत्रिका के लेख से भेद कायम किया जाता है. सभी जर्नलों को एक  अनन्य आईएसएसएन (अंतर्राष्ट्रीय मानक क्रम संख्या) दी जाती है, ताकि साहित्य के बढ़ते साम्राज्य में इसकी पहचान करना आसान हो.

भारतीय शिक्षा जगत उच्च ख्याति, व्यापक तौर पर पढ़े जाने वाले तथा अनेक बहु-विषयी जर्नलों के बल पर समृद्ध है. देश भर में हमारे अनुसंधानकर्ता प्रतिवर्ष हजारों लेखों का योगदान करते हैं, जो न केवल भारतीय जर्नलों में, बल्कि अत्यधिक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में भी प्रकाशित होते हैं.

एक अनुसंधान लेख को किसी उच्च स्तरीय जर्नल में प्रकाशित कराना प्रत्येक युवा वैज्ञानिक की आकांक्षा होने के साथ-साथ अध्ययन के सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठित अनुसंधानकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में भी देखा जाता है. शिक्षा जगत में अनुसंधान संबंधी पेपरों को काफी गंभीरता से लिया जाता है, क्योंकि उन्हें प्रकाशित किए जाने से पूर्व उनके वास्तविक आंकड़े तक पहुंचने के  बारे में काफी विचार-विमर्श किया जाता है. इतना ही नहीं, विशेषज्ञों द्वारा इन पेपरों की विस्तृत समीक्षा की जाती है तथा प्रकाशित होने से पहले जर्नल के संपादक के द्वारा इसकी पूरी जांच की जाती है. इस प्रकार, अनुसंधान जर्नल हमारी वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय प्रगति के इंजन हैं, जो नये अनुसंधानों को लोगों के सामने लाते हैं.

अनुसंधान से जुड़े लेख कई कारणों से प्रकाशित किए जाते हैं, जैसे-

*राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ अनुसंधान के निष्कर्षों को साझा करने के लिए,

*परिचर्चा, विमर्श और अतिरिक्त मूल्यांकन हेतु अभिनव अवधारणाओं को लोगों के सामने रखने के लिए,

*वैज्ञानिक संवाद में भाग लेकर खुद को अथवा समूह को एक वैज्ञानिक के रूप में पहचान दिलाने के लिए,

*एक डिग्री और उच्चतर ग्रेड प्राप्त करने के लिए,

*अनुसंधान और  वैज्ञानिक लेखन की अभिलाषा पूरी करने के लिए,

*आवश्यक मुद्दे को जाहिर करना तथा शिक्षाजगत का ध्यान उसकी ओर आकर्षित करने के लिए,

वैज्ञानिक समुदाय पर जर्नल में प्रकाशित लेखों का काफी प्रभाव पड़ता है तथा यह विशेषकर, युवा वैज्ञानिकों की आजीविका में प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए लेखन की कला और वैज्ञानिकता के साथ ही लेखों को प्रकाशित कराना एक अनिवार्य कौशल है.

कहां से शुरू करें तथा जर्नलों और प्रकाशकों की अपेक्षाएं क्या हैं.

एक उपयुक्त मूल विषय के चयन के साथ एक अनुसंधान पेपर के विकसित होने की प्रक्रिया शुरू होती है. अधिकांश अनुसंधानकर्ता अपना प्राथमिक आंकड़ा प्रकाशित करने का विकल्प चुनते हैं, जबकि कुछ अनुसंधानकर्ता एक समीक्षा लेख को प्रमुखता देते हैं. युवा अनुसंधानकर्ताओं को पांडुलिपि की तैयारी की शुरूआत करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके लेख में निम्नलिखित तथ्य शामिल हों :-

* उनके क्षेत्र में एक ऐसे निष्कर्ष का समाधान हो, जो पहले से वर्णनातीत हो,

*विवादों का समाधान प्रस्तुत करें अथवा परिचर्चा के मुद्दे पर प्रकाश डालें,

*एक नई खोज/आविष्कार की चर्चा हो,

अनुसंधानकर्ता को मौजूदा साहित्य अच्छी तरह पढऩा चाहिए तथा संबंधित सम्मेलनों में भाग लेना चाहिए, ताकि उपयुक्त व्यक्तियों के समूह से संपर्क कायम हो. इन प्रयासों से ऐसे उपयुक्त विषय की तलाश पूरी हो सकती है, जिसमें जर्नलों और प्रकाशकों की गहरी रुचि हो.

प्रकाशक और जर्नल के संपादक निरंतर अच्छी गुणवत्ता वाले विज्ञान की तलाश में जुटे रहते हैं. वे ऐसा पेपर चाहते हैं, जिसमें-

*विषय से संबंधित चर्चित शीर्षक शामिल हों,

*एक सक्रिय अनुसंधान क्षेत्र पर जोर दिया जाता हो,

*प्रस्तुत लेख ऐसा हो, जो किसी रूप में उस क्षेत्र को उन्नत बनाता है,

*अत्यधिक लोगों तक पहुंचने तथा प्रशस्तियां पाने का माद्दा हो.

*अच्छी वैज्ञानिकता हो, संक्षिप्त व स्पष्ट प्रस्तुति हो.

इसलिए प्रकाशन के लायक मूल विषय के चयन से लेख के लिए ही सही मार्ग सुनिश्चित होता है और उसकी स्वीकार्यता के अवसर बढ़ते हैं.

जर्नल का चयन :

आपके अनुसंधान कार्य के लिए एक उपयुक्त जर्नल की तलाश करना, इसे प्रकाशित करने की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण पहल है. यह जानकारी रखना महत्वपूर्ण है कि अनुपयुक्त जर्नल के चयन के कारण लगभग २० प्रतिशत पांडुलिपियां अस्वीकृत हो जाती हैं.

अपने लेख के लिए एक जर्नल का चयन करते समय इन तथ्यों का गहन विश्लेषण करें-

*आपके लेख का मुख्य बिंदु क्या है तथा इसे पढऩे में किसकी रुचि होगी? इन उत्तरों से कुछ उपयुक्त जर्नलों को चुनने में मदद मिलेगी.

*जर्नल में उल्लिखित ‘‘लक्ष्य और संभावना’’ तथा ‘‘लक्षित पाठक’’ शीर्षकों को ध्यान से पढ़ें. इससे इस बात का पता लगाने में मदद मिलेगी कि आपके संदेश के लिए कोई जर्नल सचमुच उपयुक्त है अथवा नहीं.

*यह सुनिश्चित करें कि चयनित जर्नल ऐसे लेख प्रकाशित करता है, आप जिसे दाखिल करने की योजना बना रहे हैं.

*प्रकाशनों की पृष्ठभूमि की जांच करें, ताकि इस बात की पुष्टि हो कि चयनित जर्नल में संबंधित लेख प्रकाशित होते हैं. इस प्रयास से आपके लेख की नवीनता को प्रमाणित करने में भी मदद मिलेगी.

*कई मामले में लेख को शीघ्र प्रकाशित कराना आवश्यक होता है. ऐसी स्थिति में, यह सलाह योग्य है कि एक ऐसे जर्नल का चयन करें, जिसकी अधिक बारंबारता हो तथा प्रकाशन में कम समयलगे.

*विशेषकर आजीविका तथा शैक्षिक प्रगति के प्रकाशन के समय प्रभाव घटक (आईएफ) पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है. अधिक प्रभावोत्पादक जर्नल का चयन होने से अधिक संख्या में प्रशस्तियां प्राप्त हो सकेंगी.

*खुली पहुंच (ओपन एक्सेस) अथवा ग्राहकों की संख्या के आधार पर भी जर्नल का विकल्प चुनना चाहिए. ऐसे जर्नलों तक पहुंच कायम करना आसान है तथा वे व्यापक तौर पर पाठक वर्ग को आकर्षित करते हैं. हालांकि, प्रकाशक खुली पहुंच वाले प्रकाशन के नाम पर लेख प्रक्रिया शुल्क (एपीसी) वसूलते हैं.

*जर्नल का चयन करते समय, विशेष जर्नलों में प्रकाशन हेतु किसी शासनादेश को ध्यान में रखते हुए अपने संस्थान और/अथवा वित्त पोषण एजेंसी की भी जांच कर लें. साथ ही, खुली पहुंच प्रकाशन से जुड़े प्रावधान और एपीसी के भुगतान में मिलने वाली सहायता की भी जांच करें.

जर्नलों के चयन की प्रक्रिया में, अक्सर ऐसा पाया जाता है कि समान जर्नलों के एक समूह को चुन लिया जाता है. प्रकाशन से जुड़ी नैतिकता के अनुसरण में, अनेक जर्नलों में लेख प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं है. इसलिए, विशेष उद्देश्यों और उम्मीदों के अनुसार सही जर्नल का चयन करें.

लेख का प्रवाह

आजकल कई जर्नल प्रकाशकों की ओर से जर्नल के चयन तथा जर्नल प्रवाह सेवाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं.

यदि आप जर्नल के अपने विकल्प से आश्वस्त नहीं हैं तो अपने लिए उपयुक्त जर्नल के चयन में प्रकाशक की मदद ले सकते हैं. इसके अलावा चयन से वंचित अथवा अस्वीकृत लेखों को किसी अन्य संबंधित जर्नल में स्थानांतरित करने के भी प्रावधान हैं. इसलिए हतोत्साहित न हों तथा किसी वैकल्पिक जर्नल में इसे दाखिल होने की संभावना की जांच करें.

पांडुलिपि तैयार करना :

केवल किसी लोकप्रिय मूल विषय तथा उपयुक्त जर्नल की तुलना में पेपर की स्वीकार्यता से जुड़े कुछ अन्य तथ्य भी हैं. एक साफ-सुथरा मसौदा, संगठित, संक्षिप्त और पूर्ण पांडुलिपि से इसकी स्वीकार्यता के अवसर कई गुणा बढ़ जाते हैं.

जर्नल में उल्लिखित ‘‘पांडुलिपि दाखिल करने के लिए मार्गनिर्देश’’ को निष्ठा से  पढऩा तथा उसका अनुसरण करना एक  प्रभावोत्पादक पांडुलिपि तैयार करने का मूलमंत्र है.

न केवल अच्छे समीक्षक, बल्कि पाठक भी जल्द-से-जल्द अधिकतम विवरण प्राप्त करने के प्रति इच्छुक होते हैं. इसलिए विषय सामग्री को हमेशा उप-शीर्षकों के तहत व्यवस्थित करें. मोटे तौर पर, इसमें प्रस्तावना, प्रक्रिया विज्ञान, निष्कर्ष और विमर्श के भाग होते हैं, जो पेपर की संरचना तैयार करते हैं.

इसके अलावा, शीर्षक, शब्दानुक्रम, सारांश, संदर्भ आदि भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं.

अधिकतम निरंतरता के लिए इन घटकों को निम्नलिखित क्रमों में लिखें :

*प्रक्रिया और परिणाम-अनुसंधान के दौरान लिखें

*प्रस्तावना और विमर्श-अपने लक्षित जर्नल के चयन के बाद लिखें

*मुख्य शीर्षक तथा सारांश - अंत में लिखें

पांडुलिपि के प्रत्येक उपशीर्षक के लिए निम्नलिखित उपायों को ध्यान में रखें :

१. मुख्य शीर्षक : मुख्य शीर्षक पाठकों के लिए आपका पहला अभिवादन है. यह अधिकांश लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है. मुख्य शीर्षक विशिष्ट तथा संक्षिप्त हो. मुख्य शीर्षक में निरर्थक शब्दों तथा संक्षिप्त शब्दों का इस्तेमाल न करें. इसे संक्षिप्त रखें तथा लेख के मुख्य मूल विषय को प्रकट करें.

२. सारांश : अधिकांश लोग केवल सारांश ही पढ़ेंगे. यह संक्षिप्त होना चाहिए. इस हिस्से में संदर्भों से बचें. सारांश में अनुसंधान संबंधी उद्देश्य, प्रक्रिया तथा निष्कर्ष का संक्षिप्त स्वरूप शामिल हो. अपने निष्कर्षों की प्रासंगिकता का वर्णन करते हुए इसे समाप्त करें.

३. शब्दानुक्रम : शब्दानुक्रम (कीवर्ड) प्रशस्तियां प्राप्त करने में निर्णायक हैं. शब्दानुक्रम के सही चयन से आपके लेखों को अच्छी तरह से पढ़ा-समझा जा सकता है. शब्दानुक्रम के तौर पर सभी के लिए समझे जाने वाले तथा विशेष तकनीकी शब्दों का चयन करें. प्रजातीय शब्दों से बचें.

४. प्रस्तावना : अपने लेख को संदर्भ में लाने हेतु पृष्ठभूमि संबंधी पर्याप्त विवरण दें. अनुसंधान संबंधी प्रश्न तथा इसकी दिशा में अपनी पहुंच को प्रस्तुत करें. हमेंशा ही संदर्भ का उल्लेख करें, ताकि पाठक इसका संदर्भ प्राप्त कर सकें. लंबी समीक्षा न लिखें.

५. प्रक्रिया : भूतकाल में लिखें. स्पष्ट तथा उत्तम उप-शीर्षकों का इस्तेमाल करें. स्थापित तरीके से संदर्भ का उल्लेख करें और अधिक विस्तार से अभिनव प्रक्रिया का वर्णन करें. निर्माता के लिए औजारों तथा उपकरणों का वर्णन करें. सभी सांख्यिकीय परीक्षणों का वर्णन करें.

६. परिणाम : अपने निष्कर्षों को एक कहानी की तरह सुव्यवस्थित करें. भूतकाल का इस्तेमाल करें तथा विवरणों को उप-शीर्षकों में विभाजित करें. परिणामों के हिस्से में आंकड़े तथा सारणियों को वर्तमान काल में लिखें. तथ्य प्रस्तुत करें, न कि केवल परिणाम की चर्चा करें. साथ ही, मूलपाठ से लेकर सारणाी/आंकड़ेे तक विवरणों को दोबारा न लिखें. सांख्यिकीय विश्लेषण के परिणामों को शामिल करें. जहां आवश्यक हो, मूलपाठ में आंकड़े तथा सारणियों के संदर्भ लिखें.

७. विमर्श : परिणामों का उल्लेख करते समय उपखंड का इस्तेमाल करें, भूतकाल में लिखें तथा प्रभावों का वर्णन करते समय वर्तमान काल में लिखें. अपने परिणामों को संंक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करें. अपने निष्कर्षों के महत्व का वर्णन करें. अपने अध्ययन की सीमा के बारे में थोड़ा उल्लेख करें. अप्रत्याशित निष्कर्षों के संभावित कारणों के बारे में लिखें.

८. समापन : मुख्य जानकारी तथा इसका महत्व पुन: बताएं. अध्ययन के बारे में भविष्य की संभावना पर आधारित चर्चा करें. पाठक को एक ठोस संदेश दें.

९. संदर्भ : भूतकाल तथा भविष्य में अनुसंधान का पता लगाने हेतु, ये संदर्भ प्रभावी औजार हैं. इन संदर्भों से आपके कार्य को वैधता मिलती है. सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे आपके कार्य का पता लगाने में अन्य लोगों को मदद मिलती है तथा यह प्रशस्ति सूचकांकों के लिए भी महत्वपूर्ण है. अपने लक्षित जर्नल के तरीके से संबंधित मार्गनिर्देश का अनुसरण करें. संदर्भों में हमेशा पूर्ण विवरण दें. संदर्भों के बारे में मूलपाठ के भीतर शामिल की गई प्रशस्तियों के साथ निरंतरता कायम रखें.

१०. दर्शाए जाने वाले मद : आंकड़े, सारणियों तथा अन्य चित्रणों को दर्शाए जाने वाले मदों में शामिल किया जाता है. जटिल आंकड़ों को दर्शाने में ये अत्यंत प्रभावकारी औजार हैं. यह सुनिश्चित करें कि आपके आंकड़े और सारणी को मूलपाठ में दोबारा शामिल नहीं किया गया है. उन्हें साफ सुथरा तथा सुव्यवस्थित रखें. उच्च गुणवत्तापूर्ण आंकड़े तथा चित्रणों को प्रमुखता दी जाती है. आवश्यकतानुसार मूलपाठ में कैप्शन लगाएं तथा दर्शाये जाने वाले मदों का उल्लेख करें.

यह सुनिश्चित करें कि कोई गलत अथवा अतिशय विवरण शामिल नहीं किया गया है. लंबे वाक्यों से बचें. तथ्यों को सरल तथा सीधी भाषा में प्रस्तुत करें.

प्रकाशन योग्य पेपर लिखना तथा उन्हें प्रकाशित कर पाने के लिए उनमें स्पष्टता, संक्षिप्तता तथा शुद्धता आवश्यक है. आपकी पांडुलिपि में जब ये सारे घटक मौजूद हों तो इसके प्रकाशित होने की संभावना बढ़ जाती है. जर्नल के संपादकों को बहुत सी पांडुलिपियां प्राप्त होती रहती हैं तथा वे जैसे-तैसे लिखे गए लेखों पर अपना समय नहीं गंवाना चाहते. लेख बेशक अच्छे विज्ञान पर आधारित हों किंतु उसे अच्छी तरह नहीं लिखा गया हो तो अक्सर समीक्षा के लिए नहीं भेजा जाता है.

वैज्ञानिक लेखन की आचारनीति

शैक्षिक तथा प्रकाशन जगत में आचारनीति तथा तौर-तरीके का ऊंचा स्थान होता है. जब आप अनुसंधान कर रहे हैं तथा पेपर लिख रहे हैं तो ऐसे में प्रकाशन संबंधी आचारनीति का पूरा-पूरा अनुसरण करें. इन्हें ध्यान में रखें:-

१. एक समय में एक लेख को केवल एक ही जर्नल के लिए प्रस्तुत  करें.

२. आंकड़े को तोड़-मरोडक़र पेश करने अथवा गलत आंकड़े पेश करने से बचें.

३. साहित्यिक चोरी एक गंभीर अपराध है. यह सुनिश्चित करें कि आपकी पांडुलिपि में किसी प्रकाशित विषय सामग्री की नकल नहीं की गयी है. पूर्व-प्रकाशित विषय सामग्री से मिलना अथवा समानता होने से बचें.

४. अपने पूर्व-प्रकाशित लेख को प्रकाशित करना अपने साहित्य की चोरी का मामला बनता है. ऐसा करने से बचें.

५. अपने लक्षित जर्नल की प्रकाशन संबंधी आवश्यकताओं तथा नियमनों का अनुसरण करें.

प्रिंसटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टॉनी मॉरिसन ने कहा था, ‘‘मेरे विचार से लेखन से जुड़े कुछ पहलुओं को पढ़ाया जा सकता है. निश्चित तौर पर, आप दृष्टिकोण अथवा प्रतिभा की  शिक्षा नहीं दे सकते.  किंतु सुविधा से जुड़ी मदद कर सकते हैं.’’

लेखन कला तथा प्रकाशन कार्य को सीखना और पुन: सीखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि समय के साथ अपने कौशलों को फिर से निखारना जरूरी होता है. इन कौशलों को पुन: सीखने की प्रक्रिया तथा प्रकाशन से एक ऐसी प्रणाली विकसित होती है, जो प्रकाशकों, अनुसंधानकर्ताओं, लेखकों तथा पाठकों के लिए कुल मिलाकर परस्पर लाभदायक है.

(लेखक माधवेन्द्र शुक्ल एक पर्यावरणविद् तथा एक प्रकाशित लेखक हैं. ई-मेल :madhvendra.shukla@gmail.com, आकांक्षा त्यागी, प्रकाशन संपादक, स्प्रिंगर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, ई-मेल -aktyagi9@gmail. com