युवा परियोजना: वंचित और उपेक्षित युवाओं
के लिये एक नयी शुरूआत
मनीष कुमार
‘‘कोई भी इंसान पैदाइशी बुरा नहीं होता. उपेक्षा, अपमान और गरीबी जैसे अनुभव उसे खराब बनाते हैं. लेकिन हालात कितने भी कठिन हों, उसके अंदर बेहतरी की चाहत बनी रहती है.’’
किसी भी इंसान पर हालात का बहुत गहरा असर पड़ता है. लेकिन सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है. दिल्ली पुलिस के व्यापक अनुभव इस विश्वास की पुष्टि करते हैं कि बदनसीबी की गर्दिश से उठ खड़ा होने की क्षमता हर किसी में होती है. इसलिये हमने कमजोर परिवारों के युवाओं को उनके खराब हालात से अलग कर उन्हें आत्मनिर्भर और अपने परिवार के लिये रोजीरोटी कमाने के लायक बनने में मदद करने का बीड़ा उठाया है. राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) की मदद से दिल्ली पुलिस राजधानी में हजारों युवाओं की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव ला रही है. उसकी इस मुहिम से जुर्म को बार-बार दोहराने की प्रवृत्ति और अपराधों में भी कमी आती दिखाई दे रही है.
शेहन सकारात्मक बदलाव की एक मिसाल है. जेबकतरी करने वाले इस युवक की जवानी का ज्यादातर हिस्सा दिल्ली पुलिस के साथ लुकाछिपी में गुजरा है. डकैती के एक मामले में पकड़े जाने के बाद उसे दिल्ली पुलिस ने दक्षता प्रशिक्षण कार्यक्रम में दाखिल होने का सुझाव दिया. वह अब कंप्यूटर हार्डवेयर नेटवर्किंग सीख रहा है. कुल 150 युवाओं के उसके बैच में लगभग 10 अन्य युवक भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं. लेकिन अब वे सब एक सम्मानजनक और बेहतर भविष्य की ओर देख रहे हैं.
‘युवा’ परियोजना: एक नया अवसर
दिल्ली पुलिस के साथ मिल कर एनएसडीसी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत ‘युवा’ परियोजना चला रहा है. एनएसडीसी ने अपने प्रशिक्षण साझीदारों के जरिये दिल्ली के आठ पुलिस स्टेशनों में कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्र शुरू किये हैं. इस अभियान का मकसद 16 से 25 साल तक उम्र के 3000 युवाओं को प्रशिक्षित करना है. इन केन्द्रों में झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहने वाले उम्मीदवारों को रोज़गारोन्मुख अल्पकालिक पाठ्यक्रमों में शामिल करने पर ध्यान दिया जा रहा है. उम्मीदवारों में स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले, नशे के आदी और अनैतिक कामों में लगे रहे युवा भी शामिल हैं. दिल्ली पुलिस ढांचागत सुविधाएं मुहैया कराने के अलावा उम्मीदवारों के दाखिले में भी मदद करती है. प्रशिक्षण के बाद युवाओं को भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के इंडस्ट्री कनेक्ट के जरिये नौकरी हासिल करने में मदद की जाती है.
हमारे लिये उम्मीदवार सिर्फ छोटे-मोटे अपराधों में शामिल नौजवान ही नहीं हैं. आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों के युवा भी इन केन्द्रों में प्रशिक्षण के उम्मीदवारों में शामिल हैं. जेलों में बंद और अपराध से प्रभावित व्यक्तियों के परिवारों के युवाओं को भी कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्रों में दाखिला दिया जाता है.
यहां मैं दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से स्नातक 19 साल की खुशबू कुमारी की मिसाल देना चाहूंगा. वह आतिथ्य क्षेत्र में फ्रंट डेस्क की नौकरी के लिये कोर्स करना चाहती थी. लेकिन उसके पास किसी संस्थान में दाखिला लेने के लिये पैसे नहीं थे. उसके ट्रक चालक पिता के लिये छह सदस्यों के परिवार का खर्च चलाना ही मुश्किल था. वह खुशबू की पढ़ाई की फीस अदा करने में असमर्थ थे. खुशबू ने कीर्ति नगर पुलिस स्टेशन में फ्रंट डेस्क सहायक के पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया. उसका संवाद का कौशल बढ़ता गया और उसे 16 हजार रुपये प्रति माह की शुरुआती तनख्वाह पर ओखला के फोर्टिस एस्कॉट्र्स अस्पताल में नौकरी मिल गयी.
हम बदकिस्मती के शिकार हुए अनेक लोगों की जिंदगी बदल रहे हैं. इक्कीस साल की सुमन अपनी दो बेटियों की परवरिश अकेले ही कर रही है. उसकी पूरी जिंदगी तकलीफों में कटी है. उसकी शादी 15 साल की कम उम्र में ही कर दी गयी थी और उसका पति हत्या के आरोप में जेल में है. गरीबी और परिवार से कोई सहायता नहीं मिलने की वजह से वह गुजारे के लिये घरों में चौका-बर्तन का काम करती थी. छोटी की कमाई से घर का खर्च नहीं चल पा रहा था. आखिरकार सुमन कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्र में दाखिल हो गयी. अब उसे स्टार इमेजिंग एंड पैथलैब में नौकरी मिल गयी है. वह अपने बूते पर ही अपनी दो बेटियों की परवरिश अच्छी तरह कर रही है.
कौशल विकास कार्यक्रम का उद्घाटन केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 29 अगस्त, 2017 को किया था. इस कार्यक्रम का मकसद युवाओं की क्षमताओं के अनुरूप उनके कौशल का विकास करना है. इस प्रशिक्षण से उन्हें अन्य दक्षताओं के विकास के अलावा अपने व्यावहारिक और व्यावसायिक कौशल, कंप्यूटर के बुनियादी ज्ञान तथा मौखिक अंग्रेजी को बेहतर बनाने का मौका मिलता है. इस प्रशिक्षण के जरिये एक बेहतर और ज्यादा दक्ष समाज की स्थापना के लिये युवाओं के उन्नयन की कोशिश की जा रही है.
पिछले अगस्त से अब तक ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर, खुदरा व्यापार, पर्यटन और आतिथ्य, स्वास्थ्य और सौंदर्य तथा सूचना प्रौद्योगिकी समेत विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले युवाओं की संख्या 1600 तक पहुंच गयी है. उम्मीद है कि परियोजना में शामिल 70 से 80 प्रतिशत युवाओं को आजीविका के अवसर मुहैया कराये जा सकेंगे. अब तक 520 उम्मीदवारों को हीरो मोटो कॉर्प, वोडाफोन, कैफे कॉफी डे, फोर्टिस अस्पताल और बर्गर किंग जैसे कॉरपोरेट प्रतिष्ठानों में नौकरी मिल चुकी है.
बदलाव के दूत
‘युवा’ परियोजना निराशा में नशे, छोटे-मोटे अपराधों और अनैतिक कार्यों को अपनाने वाले अशिक्षित युवाओं में एक बेहतर कल की उम्मीद और विश्वास पैदा कर रही है. यह समाज के कमजोर तबकों का सशक्तीकरण करने के अलावा आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को मुख्यधारा से जोड़ रही है.
नौजवान अक्सर आजीविका के अवसरों के अभाव में गलत काम को अपनाते हैं. कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के समर्थन से ‘युवा’ परियोजना उन्हें विभिन्न रोज़गारों के लिये प्रशिक्षण मुहैया करा रही है. इस तरह यह परियोजना समाज को एक कौशल से परिपूर्ण देश बनने की दिशा में बढऩे में मदद कर रही है. साथ ही यह युवाओं को अपराधों से दूर रखने में भी सहायक साबित हो रही है.
इस प्रशिक्षण से युवाओं को सिर्फ अच्छा रोज़गार ही नहीं मिलता बल्कि यह पुलिस संगठनों में युवाओं का विश्वास बनाने में भी महत्वपूर्ण किरदार अदा करता है. विशेष पुलिस आयुक्त (हवाई अड्डा, आधुनिकीकरण और महिला सुरक्षा) संजय बेनीवाल के मुताबिक कई युवाओं की राय में थाना तभी जाया जाता है जब कोई विपदा आ पड़ी हो. इस सोच को बदलने की जरूरत है. यह परियोजना इस धारणा को बदलने की दिशा में एक पहल भी है.
कौशल विकास कार्यक्रम में शामिल हिमांशु इसे अपने लिये वरदान मानता है. हिमांशु का गरीब परिवार उसकी उच्च शिक्षा का खर्च उठा पाने में असमर्थ था. उसे और उस जैसे अन्य युवाओं को वह प्रशिक्षण मिल रहा है जिसके लिये उन्हें किसी अन्य जगह लाखों रुपये खर्च करने पड़ते. वह कठिन मेहनत कर इस अवसर का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है.
सफलता का कोई छोटा रास्ता नहीं होता. हर किसी को गुजर-बसर के लिये कड़ी मेहनत करनी होती है. नौजवानों को अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये. उनकी दिलचस्पियों और क्षमताओं को मजबूत कर उन्हें सही दिशा दी जानी चाहिये. यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि युवा अनैतिक
कामों और अपराधों में शामिल होकर समाज को नुकसान नहीं पहुंचायें. उन्हें आजीविका के वैकल्पिक उपाय मुहैया कराने की जरूरत है ताकि वे अपराध की दुनिया में नहीं लौटें. इस परियोजना से अपराध की दुनिया में लौटने वालों की संख्या में गिरावट आ रही है.
एक बाल अपराधी ने बताया कि वह हमेशा से जीवन में कुछ अच्छा करना चाहता था. लेकिन गरीबी और धन के अभाव की वजह से उसे कभी इसका मौका नहीं मिला. ‘युवा’ परियोजना ने उसे प्रशिक्षण लेकर एक नयी जिंदगी शुरू करने का अवसर दिया है.
परियोजना के पहले चरण में शाहदरा, रोहिणी, कीर्ति नगर, लाजपत नगर, न्यू अशोक नगर, आनंद पर्वत, जामा मस्जिद और उस्मानपुर के पुलिस स्टेशनों में युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अगले चरण में 12 अन्य पुलिस स्टेशनों में भी युवाओं को कौशल प्रशिक्षण दिया जायेगा. अब तक किसी भी उम्मीदवार ने प्रशिक्षण को बीच में नहीं छोड़ा है. एनएसडीसी और दिल्ली पुलिस के साझा प्रयासों से अंधकारमय और अनिश्चित भविष्य वाले लोगों को समाज में सकारात्मक योगदान करने के लायक बनने का अवसर मिला है. वे बदलाव और उसके प्रभाव के जीते-जागते सबूत हैं. हर किसी की जिंदगी में नयी शुरुआत का एक बटन होता है. एक बार यह मिल जाये तो सामने अवसरों से भरी एक नयी दुनिया नजर आने लगती है.
(लेखक राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं.)