एमएसएमई: भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़
लवी चौधरी
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग -एमएसएमई विश्वभर में विकास के इंजन को आगे धकेलने, आजीविका को स्थिरता प्रदान करने और समान क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. अस्थिर वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति में भारत में एमएसएमई क्षेत्र निरंतर समुत्थानशील सिद्ध हुआ है. एमएसएमई उद्यमों के महत्व का अंदाजा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को देख कर लगाया जा सकता है, जहां यह क्षेत्र कुल उद्यमिता में 90 प्रतिशत से अधिक योगदान कर रहा है और औद्योगिक उत्पादन, निर्यात तथा रोज़गार के अवसर पैदा करने में इस क्षेत्र की बड़ी भूमिका है. इस तरह एमएसएमईज़ देश की समग्र औद्योगिक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं.
एमएसएमई उद्यमों की एक खास बात यह है कि उनका एक बड़ा हिस्सा 6000 औद्योगिक समूहों के रूप में संकेंद्रित होने की संभावना है. इसके अतिरिक्त 1157 उद्यम परंपरागत औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित हैं और 3091 हस्तशिल्प औद्योगिक समूह हैं तथा 563 हथकरघा उद्यम समूह कार्यरत हैं. भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय के आकलन के अनुसार यह क्षेत्र 4.6 करोड़ से अधिक इकाइयों के माध्यम से करीब 10 करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा करता है. ये इकाइयां देश के सभी भौगोलिक क्षेत्रों में फैली हुई हैं.
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अब अर्थव्यवस्था के नियंत्रित क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मुक्त बाजार का प्रतिस्पर्धात्मक दबाव झेलने के लिए तैयार हैं. एमएसएमईज़ एक नए व्यापार वातावरण में रूपांतरित हो रहे हैं, जो राष्ट्रीय और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के रूप में उभर रहे हैं, जहां वे बड़े निगमों के साथ सहजीवी संबंध कायम करते हैं.
क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के लिए एमएसएमईज़ की स्पष्ट नवाचार क्षमता कोई अतिश्योक्ति नहीं है. अपनी दक्षता और गतिशीलता की बदौलत इस क्षेत्र ने आर्थिक आघातों, यहां तक कि गंभीर किस्म के झटकों के बीच अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए सम्मानजनक नवाचार और समुत्थानशीलता प्रदर्शित की है.
विविध और व्यापक स्तर की सेवाएं प्रदान करने के अलावा यह क्षेत्र 6000 से अधिक उत्पादों की इंजीनियरी में संलग्न है, जिनमें परंपरागत से लेकर उच्च प्रौद्योगिकी विषयक उत्पाद शामिल हैं. भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र कृषि क्षेत्र से बाहर स्वरोज़गार और दिहाड़ी रोज़गार दोनों के लिए अधिकतम अवसर प्रदान कर रहा है तथा मामूली लागत पर गैर-कृषि आजीविका के जरिए अनेक पद्धतियों से एक समावेशी और स्थिर समाज की रचना करने और संतुलित क्षेत्रीय विकास, लिंग और सामाजिक संतुलन, पर्यावरण कीदृष्टि से टिकाऊ विकास आदि में योगदान कर रहा है.
वर्षा पर अत्यधिक निर्भर सिंचाई के कारण कृषि क्षेत्र में निरंतर अनिश्चितता के चलते सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम एक वैकल्पिक पावर पैक के रूप में काम करता है, जिसका उपयोग अभी नहीं किया गया है. एमएसएमईज़ आमतौर पर श्रम बहुल होते हैं, इसलिए भारत जैसे नए जनसांख्यिकीय देश में इन उद्यमों में रोज़गार के अधिक अवसर पैदा करने की क्षमता है. इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन की सतत जटिलताओं को देखते हुए यह अनिवार्य है कि एमएसएमई क्षेत्र को तैयार किया जाए, ताकि कृषि क्षेत्र से बेरोज़गार होने वाले संभावित लाखों लोगों को इन उद्यमों में रोज़गार मिल सके.
भारत में एमएसएमई क्षेत्र आकार, नियोजित प्रौद्योगिकी के स्तर, उत्पाद एवं सेवाओं की रेंज और लक्षित बाजारों के संदर्भ में विविधता लिए हुए है. एमएसएमई टूल रूम्स को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने भारत के मंगलयान (मार्स अर्बिटर मिशन प्रोब) में प्रयुक्त कम से कम 10 कल-पुर्जे उपलब्ध कराए. मंगलयान अभी तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का सर्वाधिक महत्वाकांक्षी मिशन रहा है, जो देश का प्रथम अंतर-ग्रहीय अंतरिक्ष मिशन है. इस क्षेत्र ने चन्द्रयान जैसे अन्य अंतरिक्ष उपग्रहों के लिए भी महत्वपूर्ण निवेश उपलब्ध कराए हैं. भारत के दूसरे चन्द्र अभियान, चन्द्रयान-2, जो 2017-18 में छोड़ा जाना है, के लिए एक पहिएदार रोबोटिक वाहन पर सॉफ्ट स्थान उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि स्थलीय क्षेत्र की खोज की जा सके. भारत यूरोपीय संघ के सहयोग से ग्लोबल सी ट्रैफिक मॉनिटरिंग सिस्टम और एक भू-पर्यवेक्षण उपग्रह जैसी अन्य महत्वाकांक्षी परियोजनाएं भी शुरू करने पर विचार कर रहा है. इन परियोजनाओं में भारतीय एमएसएमई क्षेत्र से उल्लेखनीय योगदान अपेक्षित है और इस क्षेत्र के लिए अवसर उभरने की संभावनाएं हैं.
ढलाई उद्योग, इलेक्ट्रोनिक्स उद्योग, रसायन, चमड़ा, वस्त्र, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, फार्मास्युटिकल, परिवहन और पर्यटन उद्योग आदि में भी भारतीय एमएसएमई क्षेत्र के लिए कई अन्य लाभकारी अवसरों के दोहन की संभावनएं हैं. उद्योगों के वैश्वीकरण ने धीरे धीरे एमएसएमईज़ को विविध प्रकार की सीमा पार गतिविधियों के जरिए ग्लोबल वैल्यू चेंज की ओर अग्रसारित कर दिया है. अनेक सजग उद्यमियों ने इन अवसरों की पहचान की है और उन्होंने वैश्विक बाजारों में प्रवेश किया है, जो उनके अत्याधुनिक विकास के लिए युक्तिसंगत तं़़़त्र बन गया है. सरकार द्वारा एमएसएमई क्षेत्र पर अत्यधिक बल दिए जाने, अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने, प्रौद्योगिकी विषयक उन्नयन, अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों की दिशा में अभियान और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने तथा विकास को प्रेरित करने के फलस्वरूप इन अवसरों में बढ़ोतरी हुई है.
प्रचलित और संभावित एमएसएमईज़ के मामले में उद्यमियों को धन की समस्या का सामना करना पड़ता है. सरकारी और गैर-सरकारी संगठन एमएसएमईज़ के वित्त पोषण और संसाधन निर्धारित करने का प्रयास करते हैं, परंतु ये संसाधन अक्सर लक्षित उद्यमियों तक नहंी पहुंचते हैं. जन-धन योजना के सफल कार्यान्वयन का इस्तेमाल लक्षित एमएसएमईज़ तक सीधे मौद्रिक संसाधन पहुंचाने के लिए किया जा सकता है. कुछ एमएसएमईज़ के लिए बैंक से धन प्राप्त करना अभी भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. अत: उनके लिए वित्त पोषण के विभिन्न विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता है.
जापान में एमएसएमईज़ को किसी साहूकार द्वारा ऋण देने के मामले में सरकार ने ऋणों पर ब्याज दर की सीमा निर्धारित कर दी है. चूंकि भारत में ऋण प्रदान करने में साहूकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है, अत: यह उचित होगा कि साहूकारों को नियमों के अंतर्गत लाया जाए ताकि उन पर एमएसएमईज़ को ऋण देने के मामले में ब्याज की सीमा लागू की जा सके. जापान में जो औद्योगिक प्रगति हुई है, उसे देखते हुए ऐसा करना उचित प्रतीत होता है.
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो सराहनीय वृद्धि दर बनाए रखने और रोज़गार के अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं.
भारत में वाणिज्यिक बैंकों को आदेश दिया गया है कि वे एमएसएमईज़ को ऋण प्रदान करें. ऐसे मामलों में भी यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सरकारी क्षेत्र, निजी क्षेत्र की अनदेखी न करे. इसके अतिरिक्त एमएसएमईज़ को आमतौर पर बड़े बैंकों की अनदेखी का सामना करना पड़ता है. कुछ मामलों में वित्तीय उत्पादों की अनुचित बिक्री की शिकायत उद्यमियों द्वारा आमतौर पर की जाती है. इन शिकायतों में अधिक शुल्क या ब्याज दर वसूल करना, ऋण चुकाने की लागत स्पष्ट करने में बैंकों की विफलता और कभी कभी उन्हें नियमित ऋण प्रदान करने से इन्कार करने की धमकी जैसी बातें शामिल होती हैं. उदाहरण के तौर पर, जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक की अद्यतन वार्षिक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, वाणिज्यिक बैंकों की भारित औसत ऋण ब्याज दर कृषि, बड़े उद्योगों और बुनियादी ढांचे के लिए दिए जाने वाले ऋणों की तुलना में एमएसएमईज़़ के लिए दिए जाने वाले ऋणों पर अधिक है.
अत: एमएसएमईज़ के लिए वित्तीय
शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है, ताकि वे समुचित स्टार्ट-अप वित्त व्यवस्था का आकलन कर सकें और उन्हें वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं का इस्तेमाल करने में अधिकारिता प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि वे जोखिम और अन्य व्यापार जरूरतों का प्रबंधन कर सके.
वैश्विक तौर पर विनिर्माण उद्योग में मध्यम आकार के उद्यम अर्थ की दृष्टि से भिन्न हैं. चीन में 30 करोड़ युआन (वर्तमान मूल्य स्तर के अनुसार 4.4 करोड़ डॉलर) तक निवेश वाले; थाईलैंड में 20 करोड़ थाई बाट्स (60 लाख डॉलर); और यूरोपीय संघ में 5 करोड़ यूरो (लगभग 5.8 करोड़ डॉलर) तक कारोबार वाले उद्यमों को मध्यम उद्यम के रूप में परिभाषित किया गया है.
इसके विपरीत भारत में विनिर्माण क्षेत्र के अंतर्गत 2006 में मध्यम उद्यमों में 10 करोड़ रुपये, यानी 23 लाख डॉलर तक निवेश वाले उद्यमों को रखा गया. मुद्रा स्फीति कारकों से देखें तो यह सीमा 2016 मेें मात्र 5.28 करोड़, अथवा वर्तमान विनिमय दर पर 8 लाख डॉलर बैठती है.
अच्छा हो कि मुद्रास्फीति को देखते हुए वर्तमान में यह सीमा करीब 18.63 करोड़ रुपये अथवा 29 लाख डॉलर के करीब निर्धारित की जाए. इसमें 13.35 करोड़ रुपये अथवा 15 लाख डॉलर का बड़ा अंतर है.
यह विसंगति इस क्षेत्र के उद्यमियों के लिए एक विवशता है कि वे मूल्य शृंखला में हिस्सा नहीं ले पाते हैं. निवेश सीमा इतनी कम होने के साथ भारतीय एमएसएमईज़ या तो पाश्र्ववर्ती विस्तार कर पाते हैं या फिर अपने को मूल्य शृंखला के निचले स्तर पर रख पाते हैं. सरकार को चाहिए कि वह एमएसएमईज़ की निवेश सीमा का विस्तार करे ताकि इस क्षेत्र की प्रौद्योगिकी विषयक जरूरतें पूरी हो सकें.
इससे उद्यमों को एमएसएमईज़ के रूप में पनपने और विकास के लिए अधिकारिता प्राप्त करने में मदद मिलेगी. कुछ देशों (जैसे यूरोपीय संघ और चीन) ने पूंजी प्रवाह, प्रौद्योगिकी उन्नयन, गुणवत्ता सुधार, निर्यात संवर्धन और रोज़गार के अवसरों को देखते हुए मध्यम उद्यमों में निवेश की सीमा उच्च स्तर पर निर्धारित की है.
एमएसएमईज की रूपरेखा तय करते समय दो मुख्य श्रेणियों - विनिर्माण और सेवाओं के बीच व्यापक अंतर होना चाहिए. इन व्यापक श्रेणियों के भीतर प्रत्येक क्षेत्र के लिए निवेश का पृथक स्तर और आकार अपेक्षित होगा.
आज आवश्यकता इस बात की है कि एक ऐसा वर्गीकरण निर्दिष्ट किया जाए, जो न केवल नियोजित पूंजी का अध्ययन करे, बल्कि उनमें कारोबार और नियोजित व्यक्तियों की संख्या को भी शामिल किया जाए.
(लेखक दिल्ली-स्थित श्रमजीवी पत्रकार हैं.)