प्रवासी भारतीय दिवस
वीणा सबलोक पाठक
भारतीय संस्कृति सभ्यता परंपरा अत्यंत समृद्ध और संपन्न रही है जिसका लोहा विश्व भर में माना और जाना जाता रहा है. यूं तो विश्व भर से लोगों ने भारत आकर यहां के दर्शन साहित्य संस्कृति को करीब से जाना समझा और माना है परन्तु संसार के विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में भारत के नागरिक एक तरह से भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन प्रवासी भारतीयों के माध्यम से परदेस में भारत को एक अलग पहचान मिल रही है. प्रवासी भारतीय वे लोग हैं जो विश्व के दूसरे देशों में जा बसे हैं. ये दुनिया भर के भिन्न-भिन्न देशों में फैले हुए हैं. एक अनुमान के अनुसार लगभग 48 देशों में रह रहे प्रवासियों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है. इनमें से 11 देशों में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और वहां की आर्थिक व राजनीतिक दशा व दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारतीय अपनी मेहनत ईमानदारी और आत्मविश्वास के साथ निर्णायक की भूमिका भी निभा रहे हंै. वहां उनकी आर्थिक, शैक्षणिक व व्यावसायिक दक्षता का आधार काफी मजबूत है. वे विभिन्न देशों में रहते हैं, उनकी भाषा और संस्कृति का भी पूरा सम्मान करते हैं परन्तु भारत और भारतीयता से पूरी तरह जुड़े भी रहते हैं. ऐसे ही भारतीयों की समस्याओं उनके अनुभव को जानने समझने और उन्हें सम्मानित करने के लिए भारत में हर साल ९ जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है. साल 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में यह दिन मनाने की शुरुआत हुई.
प्रवासी भारतीय दिवस से महात्मा गांधी के 9 जनवरी 1915 को भारत आगमन की यादें भी ताजा होती हैं. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए 21 साल तक लड़ाइयां लड़ीं. सत्य अंहिंसा सत्याग्रह जैसे सिद्धांत और विचार गांधी जी ने, भारत के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका में भी प्रसारित और प्रचारित किये. गांधीजी के समय के औपनिवेशिक विश्व में प्रवासी भारतीयों की स्थिति आज की स्थिति से बेहद अलग थी. उस समय विदेश जाना या विदेश में बसने को मान-सम्मान या प्रतिष्ठा का विषय नहीं माना जाता था. मजबूरी में विदेश जाने वाले ज्यादातर भारतीय फैक्ट्रियों में मजदूरी और खेती से जुड़े कार्यों के लिए जाते थे. इसके पहले तक हिन्दू लोग समुद्री यात्रा के घोर विरोधी थे. वास्तव में हिंदू समाज में समुद्री यात्रा के खिलाफ मध्यकालीन मान्यताओं को बदलने का श्रेय श्रमिकों और मजदूरों को जाता है. प्रवासी भारतीय दिवस को समारोह पूर्वक मनाये जाने की परिकल्पना प्रख्यात न्यायविद् संविधान विशेषज्ञ लेखक श्री लक्ष्मीमल सिंघवी ने की थी. वे राजस्थान के एडवोकेट जनरल थे. राज्यसभा और लोकसभा सदस्य रहे श्री सिंघवी लम्बे समय तक इंग्लैंण्ड में भारत के राजदूत रहे थे. यही नहीं डॉ. सिंघवी ने नेपाल, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका के संविधान लिखने में भी अपना योगदान दिया. यही वजह रही कि उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बारे में गहन अध्ययन किया था. उन्होंने अपने देश की भाषा के माध्यम से न केवल प्रवासियों अपितु विदेशियों को भी भारतीयता से जोडऩे की कोशिश की. डॉ. एल. एम. सिंघवी की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी ने प्रवासी भारतीयों पर 18 अगस्त 2000 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. रिपोर्ट में प्रवासी भारतीयों पर बनाई गई उच्चस्तरीय कमेटी को पहला ऐतिहासिक कदम बताते हुए इस बात की आशा व्यक्त की गई थी कि कमेटी द्वारा जो सुझाव दिए गए हैं उन्हें अमल करने में सरकार पहल करेगी. इनमें भारतीय मूल के लोगों के लिए कार्ड की योजना के साथ ही प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की बात कही गई थी. समिति ने अंतिम रूप से जो रिपोर्ट सौंपी उसमें लगभग 160 विभिन्न सिफ़ारिशें की गई हैं भारतवासियों को अप्रवासी बंधुओं की उपलब्धियों के बारे में बताना तथा अप्रवासियों को देशवासियों की उनसे अपेक्षाओं से अवगत कराना. विश्व के 110 देशों में अप्रवासी भारतीयों का एक नेटवर्क बनाना. भारत का दूसरे देशों से बनने वाले मधुर संबंध में अप्रवासियों की भूमिका के बारे में आम लोगों को बताना. भारत की युवा पीढ़ी को अप्रवासी भाइयों से जोडऩा. भारतीय श्रमजीवियों को विदेश में किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना होता है, के बारे में विचार-विमर्श करना.
रिपोर्ट में हवाई अड्डों की हालत सुधारने की बात भी कही गई. इस बारे में कहा गया है कि भारतीय मूल के लोग जब भारत आएं तो उनके साथ हवाई अड्डे पर लोग अच्छी तरह से पेश आएं और उनके लिए सारी प्रक्रियाएं भी आसान हों. समिति की रिपोर्ट के अनुसार जब कोई भारतीय देश से बाहर जा रहा हो तो उसे कौन-सी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी इस बारे में पूरी जानकारी सहज ढंग से मुहैया कराई जाए. प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों से विवाह करने वाली महिलाओं के शोषण के बारे में एक विशेष शाखा का गठन करने की सिफारिश की गई जिससे उन्हें मुफ़्त वैधानिक सलाह भी दी जाए. दूल्हों को उस समय की वैवाहिक स्थिति के बारे में शपथ पत्र देना होगा. विदेश में श्रमिक के तौर पर काम कर रहे भारतीयों के हितों के संरक्षण पर विशेष ज़ोर दिया गया. इसके लिए मुख्य तौर पर बीमा योजना की बात की गई. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार दिए जाने चाहिए. जिसे जल्द लागू भी कर दिया गया.
प्रवासी भारतीय सम्मान भारत के प्रवासी भारतीय के मामलों का मंत्रालय द्वारा स्थापित एक पुरस्कार है जो प्रतिवर्ष प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार प्रवासी भारतीयों को उनके अपने क्षेत्र में किये गये असाधारण योगदान के लिये दिया जाता है. यह पुरस्कार उन्हें दिया जाता है, जिन्होंने भारत की बेहतर समझ का प्रसार एक मूर्त रूप में भारत के मुद्दों और चिंताओं का समर्थन किया हो. भारत, और प्रवासी भारतीय समुदाय तथा उनके निवास के देश के बीच घनिष्ठ संबंधों का निर्माण किया हो. भारत और विदेशों में सामाजिक और मानवीय मुद्दे के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो. स्थानीय भारतीय समुदाय का कल्याण; की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की हो. लोकोपकारी और परोपकारी कार्य; किये हों. व्यक्ति के किसी ऐसे क्षेत्र में उत्कृष्टता अथवा उत्कृष्ट कार्य, जिसने निवास के देश में भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि की हो; अथवा कौशलों में उत्कृष्टता जिन्होंने उस देश में भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि की हो. प्रवासी भारतीयों के बारे चिंता स्वतंत्रता से पहले ही दिखाई देने लगी थी. स्वतंत्रता सेनानियों ने जहां देश को परतंत्रता से मुक्त करने के लिए आंदोलन किये वहीं देश के बाहर रहने वाले भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए भी संघर्ष किया.
सन् 1841 में मॉरीशस में भारत के अनुबंधित श्रमिकों की हालत अत्यंत खऱाब थी तब भारतीयों ने उनकी जांच के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया था. इसी तरह से 1894 में कांग्रेस के मद्रास सत्र में दक्षिण अफ्रीकी उपनिवेशों में भारतीयों के मताधिकार से वंचित करने के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया था. कांग्रेस ने पूना (1895) कोलकाता (1896) मद्रास (1898) लाहौर (1900) कोलकाता (1901) और अहमदाबाद (1902) सत्रों में भी इसी तरह के प्रस्तावों को अपनाया. उन दिनों में प्रवासी भारतीयों से अभिप्राय अधिकांश दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका में भारतीयों से संबंधित था. इन्होंने स्थानीय ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके अधिकारों के अतिक्रमण के खिलाफ कई संघर्ष आरंभ किए थे. गांधी-स्मट्स समझौता 1914 उनके लिए एक बड़ी जीत का द्योतक है.
वास्तव में जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे वहां उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से अपनी विशिष्टता भी स्थापित की है. विश्व का शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहां भारतीयों ने अपनी पहुंच न बनाई हो. विकसित कहे जाने वाले देशों के विकास का सफर भारतीयों के योगदान के बिना अधूरा ही कहलाता. भारतीय चाहे मजदूर हो, व्यापारी, शिक्षक अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक राजनीतिज्ञ सभी क्षेत्रों में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. कई देशों में तो वहां के मूल निवासियों की अपेक्षा भारतवंशियों की प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है. वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके कारण भारत की विदेशों में छवि निखरी है. प्रवासी भारतीयों की सफलता के कारण भी आज भारत आर्थिक विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है. भारत के बाहर रहने वाले इन प्रवासी नागरिकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्योंकि वे परदेस में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी छवि में लोग भारत की झलक देखते हैं. प्रवासी भारतीय अन्य देशों को भारत से जोडऩे में एक कड़ी का काम भी करते हंै. वे भारतीय दूत की तरह विदेशों में भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करते हैं.
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख में उद्धृत विचार निजी हैं.)