रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

नौकरी फोकस


Issue no. 04, 22-28 April 2023

भारत की विश्व में सबसे अधिक भाषाई सम्पन्नता और विविधता है, जो प्राचीन काल से ही इसकी वास्तविकता शक्ति है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 मातृभाषा शिक्षा (क्षेत्रीय, स्थानीय और मूल भाषा) पर अत्यधिक बल देती है ताकि छात्र अधिक प्रभावी ढंग से विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकें और उसे समझ सकें । यह नीति भारत की अनेक समाप्तप्राय या कम ज्ञात भाषाओं को समाप्त होने से बचाने के उद्देश्य भी पूरा करती है । भाषाविज्ञान का अध्ययन मानव भाषा की संरचना और विकास और मानव प्रयास के प्रत्येक पहलू में इसके उपयोग की वैज्ञानिक तथा प्रणालीबद्ध व्याख्या है । एक विषय के रूप में भाषाविज्ञान भाषा संरचना सिद्धांतों, उनकी विविधता और उपयोग, समसामयिक भाषाओं के विवरण तथा प्रलेखीकरण और मन मस्तिष्क, मानव संस्कृति, सामाजिक व्यवहार को समझने तथा भाषा सीखने एवं सिखाने के लिए भाषा के सिद्धांतों के निहितार्थ पर बल देता है । इसमें न केवल ध्वनि, व्याकरण और अर्थ का अध्ययन शामिल है, बल्कि भाषा परिवारों का इतिहास, बच्चे और वयस्क भाषा कैसे ग्रहण करते हैं तथा मन-मस्तिष्क भाषा के उपयोग को कैसे प्रक्रिया में लाता है और यह गति तथा लिंग से कैसे संबद्ध है आदि भी शामिल है । विषय ने हाल ही में कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान में भी प्रगति की है और यह मानव तथा कम्प्यूटेशनल उपकरणों के बीच संबंध को समझने में सक्रिय है । भाषा ‘’एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में परिभाषा है कि’’ भाषा परम्परागत भाष्य (बोले जाने वाले) या लिखित प्रतीकों की एक प्रणाली है, जिसके माध्यम से मनुष्य एक सामाजिक समूह के सदस्यों के रूप में और इसकी संस्कृति में भागीदार के रूप में परस्पर बात करते हैं । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि भाषा व्यक्तियों द्वारा परस्पर बात करने या अपनी अभिव्यक्ति करने के लिए एक साझा संस्कृति में प्रयुक्त किए जाने वाले परम्परागत भाष्य अथवा लिखित प्रतीक चिह्नों की एक प्रणाली है । मानव भाषा की, वैज्ञानिक पद्धति की दृष्टि से, विचार और व्यवहार के एक सार्वभौमिक घटक के रूप में जांच की जा रही है । सभी भाषाएं भाष्य रूप में या बोलने से शुरू होती हैं और कई भाषाएं लिखित प्रणाली का विकास करती हैं । भाषाविज्ञानी, भारत के भाषायी इतिहास के रिकार्ड, जो 5000 से भी अधिक वर्षों से पहले उद्भूत और पूर्व चित्रों से प्रारंभ हुए थे और चित्रमयी लिपियों तथा उत्कीर्णन में अंतरित हुए और अंतत: आधुनिक वर्तनी (ऑर्थोग्राफी) में परिवर्तित हुए हैं को भी दर्ज करते हैं । भारतीय उपमहाद्वीप में सात संप्रभू राष्ट्र-भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव शामिल हैं । किंतु भाषा की दृष्टि से बात करें तो इन राजनीतिक विभाजन ने उपमहाद्वीप के वर्तमान राष्ट्रों के साहित्यिक तथा सामाजिक भाषाई इतिहास के व्यापक अंतनिर्हित इतिहास को ढक लिया है । भारतीय-आर्य, द्रविड़, तिब्बती-बर्मन और मुंडा दक्षिण एशिया के मुख्य भाषा परिवार हैं । इस क्षेत्र की विविधता स्वयं बौद्ध धर्म, क्रिश्चियन, हिंदु धर्म, इस्लाम, जैन धर्म, सिख धर्म और पारसी धर्म के प्रतिनिधित्व के साथ धार्मिक बहुलता में भी दिखाई देती है । यह व्यापक कार्यों की भाषाएं है जो बहुलवादी उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय जातीय और भाषायी जनसंख्या को आपस में जोड़ती है । इन भाषाओं का प्रयोग कार्यात्मक प्रभावकारिता तथा संचार के भिन्न-भिन्न अंश जैसे प्रशासनिक, वाणिज्यिक और धार्मिक संदर्भ में तथा क्रॉस भाषायी स्थितियों में तथा प्राय: स्टेटस, शक्ति एवं पहचान बनाने के लिए किया जाता है। भारतीय भाषाओं के विकास का पूरा इतिहास प्रारंभिक प्रोटो भाषाओं से लेकर आधुनिक भारतीय भाषाओं तक अपने प्रभावों और पुन: निमार्ण के एक निरंतर क्रम में रहा है । भाषाविज्ञानी का प्रोफाइल भाषाविज्ञानी किसी भाषा विशेष के विशेषज्ञ हो सकते हैं और उस पर व्यापक अध्ययन कर सकते हैं या वे किसी भाषा की संकल्पना जैसे इतिहास अथवा व्याकरण के विशेषज्ञ हो सकते हैं । भाषा विज्ञानी यह जांच करते हैं कि लोग भाषा के बारे में अपना ज्ञान कैसे प्राप्त करते हैं, यह ज्ञान अल्प संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के साथ कैसे अनुक्रिया करता है, यह वक्ताओं और भौगोलिक क्षेत्रों में कैसे अलग होता है और इस ज्ञान को कैसे कम्प्यूटेशन रूप में मॉडल किया जाए । वे यह अध्ययन करते हैं कि भाषा के विभिन्न पहलुओं (जैसे ध्वनि या अर्थ) को कैसे वर्णित किया जाए, विभिन्न भाषाई पद्धतियों का सैद्धांतिक रूप से कैसे समाधान किया जाए और भाषा के विभिन्न घटक परस्पर एक-दूसरे के साथ कैसे अनुक्रिया करते हैं । कई भाषाविज्ञानी छात्रों को किसी विशेष भाषा में या भाषाओं का सामान्य रूप से अंतर्निहित ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करने के लिए अनुभवजनित साक्ष्य एकत्र करते हैं । भाषाविज्ञानी यह निर्धारित करने के लिए भाषा के अत्यधिक विशिष्ट पहलुओं का विश्लेषण करते हैं कि भाषाओं को उनके ध्वन्यात्मक, वाक्य विन्यास और सांस्कृतिक रूप में क्यों संरचित किया जाता है । यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि गैर-क्षेत्रों में भाषाविज्ञानी शब्द का प्रयोग अलग-अलग रूप में किया जाता है । कभी-कभी भाषा विशेषज्ञों को भाषाविज्ञानी कहा जाता है, किंतु यह आवश्यक नहीं है कि वे व्यक्ति वैसा ही वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं जैसा कि भाषाविज्ञान का उच्च ज्ञान रखने वाले करते हैं । इसलिए हम कह सकते हैं कि यह आवश्यक नहीं है कि ये भाषाविज्ञानी वे होते हैं जो कई भाषाएं बोल सकते हैं, बल्कि ये वे व्यक्ति होते हैं जिन्होंने भाषा संरचना और भाषा के उपयोग की पद्धतियों का विश्लेषण करने की कला तथा विज्ञान में विशेषज्ञतापूर्ण प्रशिक्षण प्राप्त किया है । बहुभाषी (पॉलिग्लोट) शब्द का प्रयोग उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जिन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान होता है । कोई भी व्यक्ति भाषाविज्ञानी और बहु भाषाविज्ञानी दोनों हो सकता है । भाषाविज्ञान की व्याप्तता: मानविकी, सामाजिक विज्ञान और प्रकृति विज्ञान से घनिष्ठ संबंध होने के साथ साथ भाषाविज्ञान अन्य विविध विषयों जैसे मानव विज्ञान, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, सामाजिकी, जीवविज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, शिक्षा और साहित्य का भी पूरक है । किसी को भी भाषाविज्ञान का अध्ययन निम्नलिखित कारणों से करना चाहिए : भाषा के विकास तथा प्रकृति को समझने के लिए भाषा सिद्धांत का ज्ञान लेने और विभिन्न भाषाओं को किसी विशेष संदर्भ में समझने के लिए। मानव विकास और समाज में भाषाओं के प्रगामी महत्व को पहचानने के लिए यह जांच करने के लिए कि भाषाएं और बोलियां समय के साथ साथ बदलती हैं और पनपती हैं। किसी भाषा के अनेक पहलुओं जैसे वाक थैरेपी, सामाजिक-भाषाविज्ञान, मानव विज्ञानीय अनुप्रयोग, मनोवैज्ञानिक तथ्यों और ऐसे ही अन्य तथ्यों के बारे में सीखने के लिए । भाषाविज्ञान के क्षेत्र भाषाविज्ञान में अनेक मुख्य क्षेत्र शामिल हैं जेसे स्वर विज्ञान, ध्वनि विज्ञान, आकृति विज्ञान, वाक्य विन्यास, शब्दार्थ, व्यावहारिकता, ऐतिहासिक भाषाविज्ञान, सामाजिक भाषाविज्ञान, मनो भाषाविज्ञान और कम्प्यूटेशनल भाषा विज्ञान । स्वर विज्ञान: वाक् ध्वनियां कैसे उत्पन्न होती हैं और इन्हें कैसे समझा जाता है इस प्रक्रिया के अध्ययन को स्वरविज्ञान कहा जाता है । वाक ध्वनियों की जांच ध्वनि उत्पन्न-तंत्र (आर्टिकुलेटरी फोनेटिक्स) प्रसार या संचार तंत्र (एकॉस्टिक फोनेटिक्स) और अवधारणा तंत्र (ऑडिटरी फोनेटिक्स) के संबंध में की जाती है । ध्वनिविज्ञान: ध्वनि विज्ञान ध्वनियों की संरचना, विस्तार और क्रम तथा किसी भाषा विशेष में उसके शब्दांशों के रूप को नियंत्रित करने की विधि का अध्ययन है । यह प्रारंभिक बिंदु के रूप में स्वरों का उपयोग करते हुए किसी भाषा की ध्वनि प्रणाली पर जाता है। स्वनिम (फोनेम) ध्वनि की सबसे छोटी इकाई होती है जो अर्थ में भिन्नता होने का संकेत दे सकती है । आकृति विज्ञान: आकृति विज्ञान शब्दों की आंतरिक संरचना का अध्ययन है । यह अर्थ की सबसे छोटी इकाइयों, शब्दों के अंश और शब्द वाकतंत्र की यह देखने के लिए जांच करता है कि कोई सम्पूर्ण शब्द बनाने में शब्दांश उपसर्ग और प्रत्यय के साथ कैसे मिलते हैं । वाक्य विन्यास: वाक्य विन्यास वाक्य निर्माण और उसके घटक अंशों के संबंध का अध्ययन है । वाक्य विन्यास शब्द क्रम व्यवस्था को संदर्भित करता है और यह शाब्दिक श्रेणियों जैसे वाक् (स्पीच) के अंशों पर निर्भर होता है । वाक्य विन्यास हमें वाक्य कैसे कार्य करते हैं, शब्द क्रम, संरचना और विराम चिह्न के पीछे के अर्थ समझने में सहायता करता है । दूसरे शब्दों में कहें तो वाक्य विन्यास वाक्य संरचना का अध्ययन है । अर्थ विज्ञान: अर्थ विज्ञान हमें शब्द के अर्थ और शब्द युग्मकों या संयोजन को समझने में हमारी सहायता करता है । अर्थविज्ञान में हम यह भी अध्ययन करते हैं कि कैसे प्रत्येक भाषा मौलिक अवधारणाओं के लिए शब्द और मुहावरे देती है, कैसे किसी वाक्य को समझने के लिए उसके अंशों को आधार में एकीकृत किया जता है (रचनात्मक अर्थविज्ञान) । भाषाविज्ञान के कुछ अन्य क्षेत्रों में उपयोगितावाद-किसी संदर्भ में भाषा का कैसे उपयोग किया जाता है, ऐतिहासिक भाषाविज्ञान-भाषा परिवर्तन का अध्ययन, सामाजिक भाषाविज्ञान-भाषा और समाज के बीच संबंध का अध्ययन, मनो भाषाविज्ञान-यह अध्ययन कि मनुष्य भाषा को कैसे ग्रहण और उपयोग करता है, आदि शामिल है । यह भाषा के मानसिक पहलुओं और वाक्, शैलीवाद-भाषा में शैली तथा स्वरों का अध्ययन और व्याख्या, तंत्रिका (न्यूरो) भाषाविज्ञान-यह अध्ययन की मस्तिष्क में भाषा कैसे आती है, तुलनात्मक भाषाविज्ञान-किसी समान मूल उद्भव की विभिन्न भाषाओं के बीच समान एवं अलग विशिष्टताओं की पहचान का अध्ययन, दार्शनिक भाषाविज्ञान – भाषा और इसके बीच अंतराल को समाप्त करने का अध्ययन तथा मानवविज्ञानी भाषाविज्ञान-क्रॉस कल्चरल संदर्भ में भाषा का अध्ययन है । कॅरियर के अवसर: भाषाविज्ञान में कोई डिग्री कॅरिअर के व्यापक विकल्प प्रदान करती है । भाषाविज्ञान में डिग्रीधारी छात्रों ने न केवल पारम्परिक दृष्टि से परिभाषित शैक्षिक पदों (अर्थात विश्वविद्यालय स्तर के अध्यापन एवं अनुसंधान) में बल्कि प्रकाशन एवं अनुवाद, अंतराष्ट्रीय विकास, साक्षरता परामर्श, भाषा नियोजन, भाषा प्रौद्योगिकी (माइक्रोसोफ्ट, अमेजॉन), ईएलटीआर ईएसएल अध्यापन आदि के क्षेत्र में भारत और विदेश में और कई अन्य रोचक कॅरिअर क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त किए हैं । भाषाविज्ञान में डिग्रीधारियों के लिए रोजगार के कुछ अवसर निम्नानुसार हैं:- लेक्सिकोग्राफी: भाषायी परामर्शदाता शब्दकोश प्रकाशकों के परामर्श पैनल में काम करते हैं । अच्छे लेक्सिकोग्राफर को ध्वनिविज्ञान, आकृतिविज्ञान, ऐतिहासिक भाषाविज्ञान, बोलीविज्ञान और सामाजिक भाषाविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए । कम्प्यूटेशलन भाषाविज्ञान कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञानी ऐसे मॉडलों का अनुसंधान, सृजन तथा अनुरक्षण करता है जो मानव भाषा का बेहतर रूप में संसाधन करने में प्रौद्योगिकी की सहायता करता है । वह उन अनुप्रयोगों का विकास करने के लिए जिम्मेदार होता है जो कम्प्यूटर को मानव कमांड का आधिकाधिक सीमा तक पालन करने में सहायता करने हेतु प्रौद्योगिकी के साथ संचार करते हैं । कम्प्यूटेशलन भाषाविज्ञानी वाक् (स्पीच) पहचान, पाठ (टैक्स्ट) से वाक संश्लेषण, कृत्रिम आसूचना, प्राकृतिक भाषा संसाधन, प्रयोक्ता अनुसंधान तथा कम्प्यूटर समर्थित भाषा सीखने के साथ-साथ कई अन्य क्षेत्रों में भी कार्य करते हैं । प्रकाशन: प्रकाशक तथा मीडिया उद्योग तकनीकी लेखक के रूप में प्रशिक्षित भाषाविज्ञानियों को पसंद करते हैं । भाषाविज्ञानियों द्वारा विकसित मौखिक एवं लिखित कौशल लेखन, सम्पादन और प्रकाशन के पदों के लिए आदर्श होता है । सूचना प्रौद्योगिकी: भाषाविज्ञान का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त स्नातक वाक् पहचान, पाठ से वाक् संश्लेषण, कृत्रिम आसूचना, प्राकृतिक भाषा संसाधन और कम्प्यूटर समर्थित भाषा सीखने में विशेषज्ञ माने जाते हैं । अनुवादक: अनुवादक वह भाषाविज्ञानी होता है जो पाठ सामग्री और संचार को एक भाषा से दूसरी भाषा में अंतरित करता है । कोई भी अनुवादक किसी सरकारी एजेंसी, किसी सार्वजनिक केंद्र में या किसी भी ऐसी भूमिका में कार्य कर सकता है जो संचार को कारगर बनाता है और लिखित प्रलेखों, मौखिक संवाद तथा अन्य का अनुवाद उपलब्ध कराता है । परीक्षा (टेस्ट) डिजाइन: भाषाविज्ञानी परीक्षा एजेंसियों के लिए कार्य कर सकते हैं, जहां वे मानकीकृत परीक्षा की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं और मूल्यांकन कर सकते हैं तथा निर्धारण मुद्दों पर अनुसंधान कर सकते हैं । भाषा विशेषज्ञ: भाषा विशेषज्ञ मौखिक संदेशों की एक भाषा से दूसरी भाषा में व्याख्या और अनुवाद कर सकते हैं । भाषा विशेषज्ञ मौखिक अभिव्यक्ति को उसी भाषा में या किसी अन्य भाषा में लिखित सामग्री रूप में लिप्यंतरित भी कर सकते हैं । भाषा प्रलेखीकरण: कुछ एजेंसियों और संस्थानों को भाषाओं (जिसमें से अनेक समाप्तप्राय होती हैं) के प्रलेखीकरण, विश्लेषण और परिरक्षण के लिए भाषा परामर्शदाताओं के साथ कार्य करने के लिए भाषविज्ञानियों की आवश्यकता होती है । कुछ संगठन भाषा विज्ञानियों को क्षेत्रगत कार्यों जैसे भाषा सर्वेक्षण संचालन, साक्षरता कार्यक्रम चलाने और सांस्कृतिक विरासत प्रलेखों का अनुवाद करने के लिए रखते हैं । विज्ञापन एवं विपणन: अधिकांश विज्ञापन एजेंसियां और निगमों के विपणन अनुभाग ऐसी विशेष ध्वनि या ध्वनि वर्गों वाले व्यक्ति-संघों पर और उस प्रकार के शब्दों पर व्यापक, परिष्कृत तथा भाषायी अनुसंधान करते हैं जो संभावित उपभोक्ताओं को आकर्षित करें । भाषायी परामर्श: भाषाविज्ञान में डिग्रीधारी छात्र भाषा परामर्शदाता बन सकते हैं और विधि या चिकित्सा व्यवसायियों के लिए विशेषज्ञ सहायता देते हैं । न्यायालयिक भाषाविज्ञान के उप क्षेत्रों में विधिक पाठों की भाषा, साक्ष्य के भाषायी पहलुओं, आवाज पहचान के मामलों और विशेषज्ञताओं के अन्य क्षेत्रों का अध्ययन करना शामिल है । विधि प्रवर्तन एजेंसियां और अन्य न्यायालय तथा अन्य संबंधित एजेंसियां इन उद्देश्यों के लिए भाषा विज्ञानियों को सेवाओं में रखते हैं । वाक् भाषा रोगविज्ञानी: वाक भाषा रोगविज्ञानी वह विशेषज्ञ होता है जो ऐसे लोगों के लिए कार्य करता है जिन्हें अभिव्यक्ति समस्याएं होती हैं या बोलने में कठिनाई होती है । वाक् भाषा रोगविज्ञानी भाषा संबंधी मामलों का निदान कर सकते हैं, उपचार योजनाएं बना सकते हैं और व्यक्तियों को, उनकी वाक् (बोलने की) क्षमता में सुधार लाने में सहायता के लिए उपचार करते हैं । शिक्षा एवं अध्ययन: भाषाविज्ञान और शिक्षा में पृष्ठभूमि रखने वाले व्यक्ति विभिन्न जनसंख्या के लिए सामग्री का विकास कर सकते हैं, अध्यापकों को प्रशिक्षित कर सकते हैं, मूल्यांकन की रूपरेखा बना सकते हैं, विशिष्ट समुदायों में भाषा से संबंधित विषय पढ़ाने के प्रभावी तरीकों का पता लगा सकते हैं या शिक्षा में किसी समुदाय की भाषा का प्रभावी रूप में उपयोग कर सकते हैं । अनेक भाषाविज्ञानी शिक्षक-शिक्षा और शैक्षिक अनुसंधान में शामिल होते हैं । यदि आप भाषाविज्ञान में कोई पीएचडी डिग्री प्राप्त करते हैं तो आपको भाषाविज्ञान, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, अंग्रेजी जैसे विभागों में तथा विशिष्ट विदेशी भाषाओं पर सकेंद्रित विभागों में पढ़ाने के लिए रखा जा सकता है । फिल्म उद्योग: भाषाविज्ञानियों को, कलाकारों को उनके बोलने और संवाद शैली में प्रशिक्षण देने के लिए रखा जाता है । अभिनेता/अभिनेत्रियों को उच्चारण, स्वर शैली तथा व्याकरण के विभिन्न घटकों में प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ताकि वे किसी भाषा या बोली के वास्तविक वक्ताओं की तरह बोल सकें । उन्हें यह जानने की भी आवश्यकता हो सकती है कि किसी प्रमाणित गैर-मूल वक्ता की तरह बोलने में त्रुटियां कैसे हो सकती हैं । भाषाविज्ञान का अध्ययन कराने वाले भारत के 10 उच्च कॉलेज: 1. दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली 2. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ 3. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली 4. कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता 5. बनारस हिंदु विश्वविद्यालय, वाराणसी 6. लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ 7. हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद 8. भरतियार विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर 9. राष्ट्रसंत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर 10. महाराजा सायाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा प्रवेश के लिए पात्रता: स्नातक स्तर: स्नातक स्तर का भाषाविज्ञान पाठ्यक्रम करने के इच्छुक उम्मीदवारों को किसी मान्यताप्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से अपनी 10+2 शिक्षा या कोई अन्य समकक्ष परीक्षा पूरी करनी होती है। उम्मीदवारों को संबंधित प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होना आवश्यक होता है । स्नातकोत्तर स्तर: स्नातकोत्तर स्तर पर भाषाविज्ञान पाठ्यक्रम करने के इच्छुक उम्मीदवारों को किसी मान्यताप्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से अपनी 10+2 शिक्षा या कोई अन्य समकक्ष परीक्षा न्यूनतम कुल 50% अंकों के साथ पूरी करनी होती है और उसके बाद किसी मान्यताप्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से संबंधित स्नातक डिग्री या कोई अन्य समकक्ष डिग्री न्यूनतम कुल 50% अंकों के साथ उत्तीर्ण करनी होती है । भाषा विज्ञान के लिए प्रवेश परीक्षा: अधिकांश कॉलेज छात्रों को मैरिट के आधार पर जबकि कुछ कॉलेज सीधे प्रवेश देते हैं और कुछ कॉलेज प्रवेश मापदंड के लिए अपनी प्रवेश परीक्षाएं और एक निजी साक्षात्कार संचालित करते हैं । बीए-भाषाविज्ञान कार्यक्रम में प्रवेश के लिए कुछ अत्यधिक लोकप्रिय प्रवेश परीक्षाएं नीचे दी गई हैं: यूएल प्रवेश परीक्षा- प्रवेश परीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा आयाजित की जाती है जेएनयू प्रवेश परीक्षा- जवाहरलाल नहेरू विश्वविद्यालय बीए-भाषाविज्ञान सहित विभिन्न कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन करता है । एलपीयू प्रवेश परीक्षा- लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी बीए-भाषा-विज्ञान सहित विभिन्न कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन करती है । भाषाविज्ञान में पाठ्यक्रम विषय सामान्य भाषाविज्ञान सिंटेक्स और शब्दार्थ पुरानी फारसी ध्वन्यात्मकता अभिकलनात्मक भाषाविज्ञान स्वर विज्ञान और आकृति विज्ञान पुराने और मध्य भारतीय-आर्य भाषाविज्ञान अवेस्तान स्वर विज्ञान और आकृति विज्ञान शब्दकोष प्रोग्रामिंग कम्प्यटेशलन सिंटेक्स और कम्प्यूटेशलन शब्दार्थ कॉपर्स भाषाविज्ञान ध्वनिक ध्वन्यात्मकता और वाक् प्रसंस्करण पर्ल में उन्नत सिंटेक्स प्रोग्रामिंग मशीनी अनुवाद भाषा प्रौद्योगिकी (लेखक भाषाविज्ञान विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश में प्रोफेसर हैं। उनसे Warsimj@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)