मत्स्य विज्ञान के क्षेत्र में करियर के अवसर
डॉ. निरंजन सारंग
प्रो.कश्ती प्रेरणा देवराव
भारत के अलग-अलग हिस्सों में भरपूर मात्रा में विभिन्न प्रकार के मत्स्य प्रजातियों की भरमार है। हर जगह की अपनी भौगोलिक संरचना के अनुसार इन इलाकों में मीठा पानी, समुद्री जल और खारे पानी वाले मत्स्य संसाधन मौजूद है। हमारे देश में तटीय सीमा का दायरा गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल तक फैली हुई है और इसकी कुल लंबाई 8,129 किलोमीटर है।
हमारे पास 0.5 मिलियन वर्ग किमी का महाद्पीय (कॉन्टिनेंटल सेल्फ) सेल्फ और 2.02 मिलियन वर्ग किमी का विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है। अंतर्देशीय संसाधनों में भारत की कुल नदी की लंबाई 29000 किमी है जिसमें 14 प्रमुख नदियाँ,44 मध्यम नदियाँ और विभिन्न क्षेत्रों बहने वाली अनगिनत छोटी नदियाँ भी शामिल हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी की घाटियाँ मीठे पानी वाली होने के कारण जलीय कृषि के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है,जो जल आधारित लगभग आधे कृषि क्षेत्र को अपने दायरे में समेटे हुए है। खारे पानी में मतस्त्य पालन का मुख्य स्रोत खाड़ी या नदी का चौड़ा मुहाना है, जो 0.29 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफलमें फैला हुआ है। प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों तरह के जलाशय, मछली पकड़ने और मछली पालन दोनों ही उद्देश्य के लिए तैयार स्रोत हैं, जोकि कुल 3.15 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल के दायरे में फैले हुए हैं। जलीय कृषि के लिए तालाबों और पोखर का कुल क्षेत्रफल खारे पानी की जलीय कृषि के लिए 12 मिलियन हेक्टेयर और मीठे पानी की जलीय कृषि के लिए 2.85 मिलियन हेक्टेयर से भी अधिक होने का अनुमान है।
दुनिया में भिन्न भिन्न प्रजातियों के 10 प्रतिशत से भी ज्यादा तरह की मछलियां भारत में पाई जाती है। हमारे देश में मछलियों के प्रजातियों की विविधता बहुत ज्यादा है, इसमें समुद्री प्रजातियां, गर्म पानी की प्रजातियां, खारे पानी की प्रजातियां और ठंडे पानी में रहने वाली मछलियों की प्रजातियां भी शामिल हैं। भारतीय मात्स्यिकी की क्षमता का अंदाजा से बात से लगा सकते है कि यह न केवल घरेलू बाजार की मांग को पूरा करती है बल्कि निर्यात से होने वाली मुनाफे में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है। मत्स्य पालन क्षेत्र न सिर्फ पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करता है बल्कि यह पशु प्रोटीन का सस्ता स्रोत भी है। वैश्विक स्तर पर मछली उत्पादन के क्षेत्र में भारत 14.16 मिलियनटन के कुल मत्स्य उत्पादन के साथ दुनिया में दूसरे स्थान पर है, इसमें समुद्री क्षेत्र से 3.72 मिलियन टन और अंतर्देशीय क्षेत्र का योगदान 10.43 मिलियन टन (2019-20)है। कुल मिलाकर भारत का मतस्य आधारित निर्यात 46662.85 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
इस विशाल उत्पादन, खपत और निर्यात के कारण मत्स्य पालन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन क्षेत्र का प्रतिशत योगदान 1.24% प्रतिशत (2018-2019)है और भारतीय कृषि क्षेत्र में मत्स्य पालन क्षेत्र का योगदान 7.28%प्रतिशत है। इसके बाद भी लोगों की बढ़ती मांग को देखते हुए उत्पादन का यह स्तर पर्याप्त नहीं है क्योंकि बढ़ती आबादी के कारण भोजन के रूप में मछली की मांग बढ़ती जा रही है। मछली उत्पादन में वृद्धि करना किसान समुदाय के लिए एक चुनौती भरा कार्य है, इसलिए ऐसी तकनीकों और प्रौद्योगिकी को विकसित करने और अपनाने की आवश्यकता है, जो मछली के अधिकतम उत्पादन के साथ ही किसानों की आय में समुचित वृद्धि करें। इन उद्देश्यों को हासिल करने में मत्स्य पालन से जुड़ी शिक्षा, शोध और विस्तार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मत्स्यपालन में तकनीकी रूप से दक्ष श्रमशक्ति की आवश्यकता
भारत में समुद्री और मीठे पानी दोनों क्षेत्रों में मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं। भारी संख्या में मछुआरे, किसान और व्यापारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पारंपरिक रुप से अपनी आजीविका के लिए या मछली पकड़ने के व्यवसाय को अपनाकर मत्स्य पालन के माध्यम से इस पर निर्भरहैं। इसके लिए मीठे पानी, समुद्री जल और खारे पानी काबड़ा भू-भाग जलीय कृषि क्षेत्र भी उपलब्ध है। इसलिए मत्स्य पालन का क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मत्स्य पालन क्षेत्र खाद्य सुरक्षा के साधन के रूपमें भी काम करता है और रोजगार के अवसर भी पैदा करता है। मत्स्य पालन क्षेत्र से जुड़ी सहायक गतिविधियाँ जैसे जल क्षेत्र से जुड़ी खेती, मछली जाल मरम्मत,नौका निर्माण,मछली पकड़ने के सामान का निर्माण, मछली के लिए विशेष खुराक तैयार करना, एंटीबायोटिक और दवाऔर कई अन्य संबंधित गतिविधियाँ हैं। पारंपरिक मत्स्य पालन, उत्पादन,संरक्षण, प्रबंधन और सतत उपयोग एवं विकास के लिए तकनीकी रूप से दक्ष श्रमशक्ति की आवश्यकता है। तकनीकी श्रमशक्ति शोधकर्ताओं और किसानोंके बीच मजबूत कड़ी बन जाती है, कार्यक्षेत्र में कई स्तरों पर नई तकनीक के उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आईसीएआर और एसएयू के तहत विभिन्न मत्स्य संस्थान छात्रों को मत्स्य पालन से जुड़ी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं और जाहिर तौर पर तकनीकी श्रमशक्ति की आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं।
मत्स्यपालन शोध संस्थान
कुछ शोध संस्थान मत्स्य संसाधनों के उत्पादन, संरक्षण, प्रबंधन और सतत उपयोग को बढ़ाने के लिए नई तकनीक का आविष्कार करने के कार्यमें जुटे हुए है। सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई)समुद्री मछली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए समुद्री जलीय क्षेत्र में विभिन्न पहलुओं पर शोध कर रहा है, इसी तरह केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) अंतर्देशीय क्षेत्र से जुड़े चुनौतियों पर शोध कर रहा था। सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ फिशरीजटेक्नोलॉजी (सीआईएफटी) मछलियों के संवर्धन, पकड़ने और प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी के विकास के लिए काम कर रहा है। दूसरी ओर केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफई) पूरी तरह से अनुसंधान, शिक्षाऔर विस्तारगतिविधियों में लगा हुआ है। मछली आनुवंशिक संसाधनों का राष्ट्रीय ब्यूरो (NBFGR) मछली आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और रखरखाव के लिए काम कर रहा है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ खारापानीमछली पालन (CIBA) मीठे पानी और खारे पानी के मछली पालन के लिए नई तकनीक विकसित करने में लगे हुए हैं। ठंडे पानी की मात्स्यिकी शोध निदेशालय (डीसीएफआर) शीत जल की मात्स्यिकी के क्षेत्र में विशेष रूप से कार्य कर रहा है। ये मात्स्यिकी शोध संस्थान मात्स्यिकी क्षेत्र की बेहतरी के लिए शोध कार्य कर रहे हैं, हालांकि, शोधकर्ताओं और किसानोंके बीच अभी भी एक तरह की दूरी है, जिसे प्रशिक्षित तकनीकी श्रमशक्ति की उपलब्धता से भरा जा सकता है।
क्रम संख्या
|
संस्थान का नाम
|
स्थापना (साल)
|
|
आईसीएआर –केंद्रीय समुद्री मत्स्य शोध संस्थान, कोच्चि, केरल
|
1947
|
|
आईसीएआर - केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य शोध संस्थान, बैरकपुर, पश्चिम बंगाल
|
1947
|
|
आईसीएआर - केंद्रीय समुद्री मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान, कोच्चि, केरल
|
1957
|
|
आईसीएआर – केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र
|
1961
|
|
आईसीएआर – राष्ट्रीय मछली अनुवांशिक संसाधन व्यूरो, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
|
1983
|
|
आईसीएआर - केंद्रीय स्वस्छ पानी मत्स्य पालन संस्थान, भुवनेश्वर, ओडिशा
|
1987
|
|
आईसीएआर - केंद्रीय खारा पानी मत्स्य पालन संस्थान,चेन्नई, तमिलनाडु
|
1987
|
|
आईसीएआर – शीतजल मत्स्यकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल, उत्तराखंड
|
1987
|
अन्य संस्थान
क्रम संख्या
|
संस्थान का नाम
|
स्थापना (साल)
|
अन्तर्गत स्थापित
|
1.
|
समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए), कोच्चि
|
1972
|
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय
|
2.
|
केंद्रीय मत्स्य नौचालन एवं इंजीनियरी प्रशिक्षण संस्थान (या सीआईएफएनईटी), कोच्चि
|
1963
|
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार
|
3.
|
राष्ट्रीय मत्स्यकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी), हैदराबाद
|
2006
|
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार
|
4.
|
राष्ट्रीय मात्स्यिकी पोस्ट हार्वेस्ट प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण संस्थान (निफेट)
|
1952
|
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार
|
भारत में मत्स्यपालन शिक्षा
बढ़ती आबादी को देखते हुए खाद्य सुरक्षा की चुनौतीपूर्ण मांग को पूरा करने के लिए प्रशिक्षित श्रमशक्ति के जरिए संसाधनों के वैज्ञानिक और विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से उपलब्ध संसाधनों का दोहन करना आवश्यक है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारत में काफी पहले 1969में मत्स्य पालन शिक्षा की शुरुआत की गई। इसके तहत कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय (यूएएस), बैंगलोर के तत्वावधान में मगलोर में मत्स्य पालन महाविद्यालय की स्थापना की गई। इसके बाद से पूरे भारत में कुल 32 मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान स्थापित किए गए हैं, जिन्होंने तकनीकी श्रमशक्ति की आवश्यकता को पूरा करके मत्स्यशिक्षा, शोध और विस्तार को मजबूती प्रदान किया है। राज्य कृषि और पशु चिकित्सा / पशु विज्ञान विश्वविद्यालयों के तहत विभिन्न मत्स्य पालन संस्थानों द्वारा पेशेवर मत्स्य पालन शिक्षा प्रदान की जाती है, जो स्नातक, मास्टर और डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करते हैं।
मत्स्य विज्ञान स्नातक (बी.एफ.एससी)
मत्स्य विज्ञान में स्नातक की डिग्री की शुरुआत 1969 में मत्स्य महाविद्यालय, मगलोर, जोकि कर्नाटक पशु चिकित्सा पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय का हिस्सा है के तहत की गई। इसके बाद देश के सभी तटीय राज्यों और अंतर्देशीय राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों के तहत मत्स्य पालन में पेशेवर स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम शुरू किए गए। मत्स्य विज्ञान में स्नातक की डिग्री की अवधि 4 साल की होती है, जो पीसीबी या पीसीएमबी या विभिन्न एसएयू में कृषि विषयों के साथ 10 + 2 के बाद होता है।
मत्स्य विज्ञान के स्नातकोत्तर (M.F.Sc)
भारत में विश्वविद्यालय स्तर पर मत्स्य पालन शिक्षा पारंपरिक विश्वविद्यालयों में शुरू हुई, जो मछली और मत्स्य पालन, मछली जीव विज्ञान और लिम्नोलॉजी और मत्स्य पालन में कुछ विशेषज्ञता के साथ जूलॉजी में स्नातकोत्तरपाठ्यक्रम का संचालन करते हैं। अनुप्रयुक्त विज्ञान के रूप में मत्स्य पालन शिक्षा 1961 में केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफई), मुंबई की स्थापना के साथ शुरू हुई, इसके बाद मत्स्य महाविद्यालय, मैंगलोर, कर्नाटकऔर उसके बाद अन्य राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों में इस तरह के पाठ्यक्रमों की शुरुआत की गई। मत्स्य पालन में स्नातकोत्तर के विभिन्न उप-विषयों जैसे मत्स्य पालन, मत्स्य संसाधन प्रबंधन, जलीय पर्यावरण प्रबंधन, मछली आनुवंशिकी और प्रजनन, जैवप्रौद्योगिकी, जलीय पशु स्वास्थ्य प्रबंधन, मछली विस्तार, मछली प्रसंस्करण में एम.एफ.एससी की डिग्री प्रदान की जाती है आईसीएआर की सिफारिश के अनुसार यह 2 साल का पेशेवर पाठ्यक्रम है। मत्स्य विज्ञान स्नातक (B.F.Sc)डिग्री रखने वाले उम्मीदवार इस डिग्री पाठ्यक्रम के लिए योग्य है।
मत्स्य विज्ञान में पीएचडी
पीएचडी पाठ्यक्रम कोर्स वर्क और रिसर्च के प्रावधान के साथ 3 साल का डिग्री पाठ्यक्रम है। उम्मीदवार संबंधित विषय में स्नातकोत्तर (मत्स्य विज्ञान मेंस्नातकोत्तर)(M.F.Sc)के सफल समापन के बाद पीएचडी में नामांकन प्राप्त कर सकते हैं।
मत्स्य विज्ञान में शिक्षा प्रदान करने वाले देश के सरकारी मत्स्य महाविद्यालय नीचे सूचीबद्ध हैं।
क्रम संख्या
|
महाविद्यालय का नाम
|
स्थान
|
विश्वविद्यालय
|
स्थापना का साल
|
1.
|
केंद्रीय मत्स्य पालन शिक्षा संस्थान
|
मुंबई, महाराष्ट्र
,
|
केंद्रीय मत्स्य पालन शिक्षा संस्थान (डिम्ड विश्वविद्यालय)
|
1961
|
2.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
मंगलोर, कर्नाटक
|
कर्नाटक पशु चिकित्सा पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय
|
1969
|
3.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालयऔर शोध संस्थान
|
थोथुकुडी, तमिलनाडु
|
तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय
|
1977
|
4.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
पनगढ, केरल
|
केरल मत्स्य पालन और सामुद्रिक अध्ययन विश्वविद्यालय
|
1979
|
5.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
रंगईलुंडा, ओडिशा
|
ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
|
1981
|
6.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
रत्नागिरी, महाराष्ट्र
|
डॉ बाला साहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ
|
1981
|
7.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
पंतनगर, उत्तरांचल
|
जीबी पंतकृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
|
1985
|
8.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
ढोली, बिहार
|
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय
|
1986
|
9.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
राहा, असम
|
असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट
|
1988
|
10.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
वेरावल, गुजरात
|
कामधेनु विश्वविद्यालय, गांधी नगर
|
1991
|
11.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
मुथुकुर, आंध्र प्रदेश
|
श्री वेंकेटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, तिरुपति
|
1992
|
12.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
कोलकाता, पश्चिम बंगाल
|
पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय
|
1995
|
13.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
लेंबुचेरा, त्रिपुरा
|
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल
|
1998
|
14.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
उदयपुर, राजस्थान
|
महाराणा प्रताफ कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
|
2003
|
15.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर
|
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
|
2005
|
16.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
नागपुर, महाराष्ट्र
|
महाराष्ट पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय
|
2006
|
17.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
फैजाबाद, उत्तर प्रदेश
|
आचार्य नरेंद्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
|
2007
|
18.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
उदगीर, लातूर, महाराष्ट्र
|
महाराष्ट पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय
|
2007
|
19.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
लुधियाना, पंजाब
|
गुरू अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय
|
2009
|
20.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
कवर्धा, छत्तीसगढ़
|
दाउ श्री वसुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय
|
2010
|
21.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
जबलपुर, मध्य प्रदेश
|
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, अधरतल, जबलपुर
|
2012
|
22.
|
डॉ एम जी आर मत्स्य पालन शोध महाविद्यालय
|
पोन्नेरी, तमिलनाडु
|
तमिलनाडु डॉ. जे जयललिता मत्स्य पालन विश्वविद्यालय
|
2012
|
23.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
नवसारी, गुजरात
|
कामधेनु विश्वविद्यालय
|
2014
|
24.
|
मत्स्य पालन विज्ञान एवं शोध केंद्र महाविद्यालय
|
इटावा, उत्तर प्रदेश
|
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
|
2015
|
25.
|
मत्स्य पालन अभियांत्रिक महाविद्यालय
|
नागापट्टीनम
|
तमिलनाडु डॉ. जे जयललिता मत्स्य पालन विश्वविद्यालय(टीएनजेएफयू)
|
2015
|
26.
|
स्नातकोत्तर मत्स्य पालन शिक्षा और शोध संस्थान
|
गांधीनगर, गुजरात
|
कामधेनु विश्वविद्यालय
|
2015
|
27.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
गुमला, झारखंड
|
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय
|
2015
|
28.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
पेब्बायर, तेलंगाना
|
पीवी नरसिम्हाराव तेलंगाना पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय
|
2017
|
29.
|
स्नातकोत्तर मत्स्य पालन अध्ययन संस्थान
|
वनियनचावाडी, तमिलनाडु
|
तमिलनाडु डॉ. जे जयललिता मत्स्य पालन विश्वविद्यालय (टीएनजेएफयू)
|
2017
|
30.
|
डॉ एम जी आर मत्स्य पालन शोध महाविद्यालय
|
थलयनायरूडू, तमिलनाडु
|
तमिलनाडु डॉ. जे जयललिता मत्स्य पालन विश्वविद्यालय (टीएनजेएफयू)
|
2017
|
31.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
किशनगंज, बिहार
|
बिहार पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय
|
2018
|
32.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
हिसार, हरियाणा
|
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
|
2018
|
नए मतस्य महाविद्यालय:
क्रम संख्या
|
महाविद्यालय का नाम
|
स्थान
|
विश्वविद्यालय
|
1.
|
मत्स्य पालन विज्ञान महाविद्यालय
|
अमरावती
|
महाराष्ट्र पशु और मत्स्य पालन विज्ञान विश्वविद्यालय
|
2.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
मथुरा
|
यूपी पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गौ-अनुसंधान संस्थान
|
3.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
नोनोर, दत्तिया
|
रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय
|
निजी महाविद्यालय
क्रम संख्या
|
महाविद्यालय का नाम
|
स्थान
|
विश्वविद्यालय
|
स्थापना का साल
|
1.
|
मत्स्य पालन विभाग, द नेवतिया विश्वविद्यालय
|
कोलकाता, पश्चिम बंगाल
|
द नेवतिया विश्वविद्यालय
|
2015
|
2.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
भुवनेश्वर, खुर्दा, ओडिशा
|
सेंचुरियन प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान
|
2005
|
3.
|
मत्स्य पालन विभाग, आईटीएम विश्वविद्यालय
|
ग्वालियर
|
आईटीएम विश्वविद्यालय
|
1997
|
4.
|
मत्स्य पालन महाविद्यालय
|
जमुहर, बिहार
|
नारायण कृषि विज्ञान संस्थान
|
2018
|
मत्स्य पालन में डिप्लोमा
विभिन्न राज्यों में अलग-अलग विश्वविद्यालयों के तहत मत्स्य पालन की विभिन्न विधाओं में डिप्लोमा प्रदान करने वाले बहुत सारे महाविद्यालय हैं, जैसे मत्स्य पालन में डिप्लोमा, मत्स्यपालन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, जलीय कृषि में डिप्लोमाऔर इसी तरह के पाठ्यक्रम। छात्रों को डिप्लोमा प्रदान करने का प्राथमिक उद्देश्य मत्स्य पालन के क्षेत्र में प्रशिक्षित श्रमशक्ति का उत्पादन करना है। पीसीबी ग्रुप (भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान) वाले विज्ञान विषय में 12वीं पासकरने के बाद एडमिशन होता है। डिप्लोमा कोर्स 2 साल का होता है। डिप्लोमा धारक छात्रों को विभिन्न कंपनियों जैसे मछली प्रसंस्करण संयंत्र, पारंपरिक मछली संयंत्र,पारंपरिक झींगा संयंत्र, प्रबंधक, सहायक, एंटीबायोटिक्स कंपनियां, फ़ीड कंपनियां, मछली फार्म, बीज उत्पादन फार्म, मत्स्य पालन सहायक आदि में नौकरी मिलती है।
मत्स्य विज्ञान में डिप्लोमा प्रदान करने वाले कॉलेज नीचे सूचीबद्ध हैं।
क्रम संख्या
|
महाविद्यालय का नाम
|
स्थान
|
विश्वविद्यालय
|
1.
|
मत्स्य पालन डिप्लोमा महाविद्यालय
|
गैवाडी, तुवनडेवाडी, महाराष्ट्र
|
डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ, रत्नागिरी
|
2.
|
मत्स्य पालन लीटेक्नीक
|
भावाडेवेरापल्ली
|
श्री वेंकेटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय
|
3.
|
कृषि पॉलीटेक्नीक केंद्र
|
रंगेईलुंडा, बेहरामपुर, ओडिशा
|
ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, रंगेईलुंडा, बेहरामपुर, ओडिशा
|
4.
|
मत्स्य पालन में डिप्लोमा
|
सहारनपुर
|
ग्लोकल विश्वविद्यालय
|
5.
|
मत्स्य पालन डिप्लोमापॉलीटेक्नीक
|
राजपुर (धामधा)
|
दाउ श्री वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय, दुर्ग, छत्तीसगढ़
|
नामांकन प्रक्रिया
राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में 15% आरक्षण है जो कृषि और संबद्ध विषयों के लिए आईसीएआर द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के माध्यम से भरे जाते हैं। इस परीक्षा के लिए न्यूनतम पात्रता 50% अंकों के साथपीसीबी/पीसीएमबी के साथ 10+2 है। कुछ राज्य कृषि और संबद्ध पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए राज्य स्तरीय प्रवेश परीक्षा भी आयोजित करते हैं।
एसएयू (SAU)और सीआईएफई (CIFE)में स्नातकोत्तर (M.F.Sc)में प्रवेश के लिए, आईसीएआर (ICAR)की ओर से हर साल अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। एसएयू (SAU)में 25% सीटें आरक्षित हैं और सीआईएफई(CIFE)में 100%प्रतिशत आरक्षण है। न्यूनतमयोग्यता60%प्रतिशत अंक के साथ बी.एफ.एससी कार्यक्रम में स्नातक पास होना चाहिए।
रोजगार के अवसर
मत्स्य पालन क्षेत्र में नौकरी के अच्छे अवसर हैं क्योंकि कई कॉलेज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर)के मानदंडों के अनुसार अपने संकाय से संबंधित पदों पर जानकार और प्रशिक्षित लोगों को नियुक्त कर रहे हैं। राज्य के मत्स्य विभाग भी मत्स्य पेशेवरों की भर्ती कर रहे हैं।
सरकारी क्षेत्र: मत्स्य स्नातक केंद्र या राज्य सरकार की नौकरियों में शामिल हो सकते हैं। मत्स्य स्नातकों को केंद्र और राज्य सरकार के कृषि, पशुपालन और मत्स्य पालन विभाग में मत्स्य अधिकारी के रूप में, सहायक मत्स्य विकास अधिकारी, जिला मत्स्य विकास अधिकारी, मत्स्य विस्तार अधिकारी, मत्स्य पालन में सहायक निदेशक, मत्स्य पालन निदेशक और मत्स्य पालन के सहायक आयुक्त आदि के रूप में भर्ती की जाती है।
संस्थान / विश्वविद्यालय और अनुसंधान केंद्र: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), पूसा, नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड (एएसआरबी) में मास्टर डिग्री पूरी करने और परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मत्स्य पालनमें वैज्ञानिक बनने की अवसर है। मास्टर और डॉक्टरेट डिग्री धारक छात्र टीचिंग, जूनियर रिसर्च ऑफिसर (JRO), सीनियर रिसर्च ऑफिसर (SRO), लेक्चरर, सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट (SMS) या असिस्टेंट प्रोफेसर(AP) के लिए यूनिवर्सिटी में नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। मत्स्य पालन में स्नातकोत्तर (M.F.Sc)स्नातक दो साल के अनुभव के साथ कृषि विज्ञान केंद्र में विषय विशेषज्ञ के लिए आवेदन कर सकते हैं। कुछ छात्र निजी पर्यावरण या मात्स्यिकी विज्ञान संस्थान में मात्स्यिकी ट्यूटर के रूप में मात्स्यिकी धारक के लिए रोजगार प्रदान करते हैं। मात्स्यिकी स्नातकोत्तर भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण (एफएसआई) में भी शामिल हो सकते हैं। उन्हें संस्थानों और विश्वविद्यालयों में सरकारी संगठन द्वारा संचालितविभिन्न परियोजनाओं के तहत जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF), सीनियर रिसर्च फेलोशिप (SRF) और रिसर्च एसोसिएटशिप (RA) भी मिलती है।
बैंकिंग क्षेत्र: कई बैंक जैसे नाबार्ड, राष्ट्रीयकृत बैंक, एनसीडीसी आदि, मछुआरों के लिए सरकारी नीतियों को लागू करने के लिए प्रबंधकीय पदों पर ग्रामीण विकास गतिविधियों में मत्स्य स्नातकों की नियुक्ति कर रहे हैं। निजी और सार्वजनिक बैंक भी मात्स्यिकी क्षेत्र में अपना व्यवसाय विकसित करने के लिए मात्स्यिकी पेशेवरों की भर्ती करते हैं।
निजी और सार्वजनिक क्षेत्र: अपने कार्यालयों, प्रयोगशालाओं, खेत, ग्राहक देखभाल इकाइयों, मत्स्य प्रसंस्करण संयंत्र, सुरीमी प्रसंस्करण संयंत्र, मछली मांस संयंत्रों, मछली के तेल संयंत्रों, मछली के पौधों जैसे मत्स्य उद्योग में कामकरने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में मत्स्य पालन पेशेवरों की आवश्यकता होती है। फ़ीड निर्माण कंपनियां विनिर्माण, विपणन और विस्तार कार्य में अच्छी नौकरी के अवसर प्रदान करती हैं। कई प्रोबायोटिक्स और चिकित्साकंपनियां अच्छी रोजगार की पेशकश करती है, जो जलीय कृषि के लिए प्रोबायोटिक्स की आपूर्ति करती हैं। साथ ही मछली उत्पादों का निर्यात करने वाली कंपनियों में भी रोजगार के बेहतर अवसर हैं।
स्वरोजगार/उद्यमिता : मत्स्य व्यवसायी मत्स्यपालन, मत्स्य प्रसंस्करण, चारा निर्माण संयंत्र, मत्स्य उत्पाद तथा उत्पाद उद्योग के क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं। कृषि-पर्यटन आधारित व्यवसाय जैसे मछली होटल, मछली तालाब, मछली पकड़ने की गतिविधियों का भी पता लगाया जा सकता है। वे मत्स्य उत्पाद का विपणन व्यवसाय करके भी कमा सकते हैं।
आउटसोर्सिंग / मात्स्यिकी सलाहकार: बिजनेस प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग (बीपीओ) और प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग का ज्ञान (केपीओ) को हाल के वर्षों में बहुत महत्व दिया जा रहा है। बड़े संगठनों में, निजी कंपनियों केसाथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों की परियोजना प्रबंधन इकाइयों को और एनजीओ को सलाहकार के रूप में मत्स्य पालन पेशेवरों की आवश्यकता होती है।
गैर सरकारी संगठन: मत्स्य पालन समुदाय के पारिस्थितिक और सामाजिक लाभ के लिए बहुत सारे लोग मछली किसानों के लिए सहकारी समितियों की स्थापना करके इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। कुछ मत्स्य सहकारीसमितियों ने अपना व्यवसाय भी विकसित किया है।
विदेशी रोजगार: अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), यूएनवी, एशियाई विकास के माध्यम से मछली पालन और मछली प्रसंस्करण के क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिभाशाली और अनुभवी मत्स्य पालन पेशेवरों के लिए अपना दरवाजा हमेशा खुला रखती हैं। एशियाई विकास बैंक (एडीबी), एशिया प्रशांत क्षेत्र में मत्स्य पालन केंद्रों के नेटवर्क (एनएसीए) के जरिए भी मदद करती है। कई देश विभिन्न परियोजनाओं में इस क्षेत्र के पेशेवरों के लिए अच्छी नौकरी का प्रस्ताव भी देते हैं।
(लेखक विवरण: डॉ निरंजन सारंग, मत्स्य संसाधन प्रबंधन विभाग, मत्स्य पालन कॉलेज (डीएसवीसीकेवी), कवर्धा, छत्तीसगढ़ में पढ़ाते हैं। प्रो. कश्ती प्रेरणा देवराव मत्स्यपालन पॉलिटेक्निक (डीएसवीसीकेवी), राजपुर धमधा, दुर्ग, छत्तीसगढ़ से पीएचडी कर रहे हैं।) व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।