कला निर्देशन और निर्माण में कॅरिअर
आशुतोष आर. कवीश्वर
लाइट, साउंड, कैमरा और एक्शन... और हमें कोई पात्र कैमरे के सामने आता दिखाई देता है. पात्र के साथ ही, हम एक पृष्ठभूमि, उसके लिए उपयुक्त बनाये गये कुछ स्थान, को देखते हैं. हम उस पृष्ठभूमि में या स्थानों में क्या देखते हैं? इन स्थानों को कौन तैयार करता है? बहुत सारे सवाल... इस सृजन के पीछे जो व्यक्ति होते हैं उन्हें कला निर्देशक और प्रोडक्शन डिज़ाइनर कहा जाता है.
फिल्म और टेलीविजन मुख्य रूप से दृश्य-उन्मुख माध्यम है. कहानी को प्रस्तुत करने में दृश्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कला निर्देशक और प्रोडक्शन डिज़ाइनर संपूर्ण फिल्म और टेलीविज़न प्रोडक्शन के दृश्य निर्माण के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. प्रोडक्शन डिज़ाइनर की अवधारणा पश्चिमी दुनिया से भारत में आई थी. लेकिन सिनेमा के प्रारंभिक वर्षों में, भारत और दुनिया में, एक कला निर्देशक संपूर्ण दृश्य निर्माण या दृश्य डिज़ाइन के लिए जिम्मेदार होता था. वर्ष 1939 की फिल्म 'गॉन विद द विंड में, कला निर्देशक विलियम कैमरोन मेन्ज़ीस ने फिल्म के लिए रेखाचित्रों की एक शृंखला बनाई, जिसमें पूरी कहानी को दृश्य रूप में दर्शाया गया था. कई रेखाचित्रों में दृश्य-दर-दृश्य दृश्य-सामग्री, केरेक्टर डिज़ाइन और इसके गेटअप, वेशभूषा, सहायक उपकरण, वास्तुकला, आंतरिक स्थान, फर्नीचर आदि सब शामिल थे.
मेन्ज़ीस के इन प्रयासों ने निर्देशक विक्टर फ्लेमिंग के काम को इतना आसान बना दिया कि उन्हें फिल्म की शूटिंग के दौरान केवल उन रेखाचित्रों के अनुरूप ही कार्य करना पड़ा. उस समय, भारतीय कला निर्देशकों द्वारा भारतीय सिनेमा में भी इसी तरह के प्रयास किए गए थे. भारतीय सिनेमा के अग्रदूत दादासाहेब फाल्के, सिनेमा केसरी बाबूराव पेंटर, प्रभात फिल्म कंपनी के स्वामी दामले और फतेलाल सभी चित्रकार थे. इसलिए फिल्म निर्माण के अन्य क्षेत्रों के अलावा, दृश्य निर्माण (विजुअल डिज़ाइनिंग) में उनकी भागीदारी, पात्र निर्माण (केरेक्टर डिज़ाइन) से लेकर पृष्ठभूमि, वास्तुकला तक उनकी अपनी प्रस्तुतियों में स्पष्ट दिखती थी. भारतीय सिनेमा के आगे के सफर में एम. आर. आचरेकर, बंसी चंद्रगुप्त, सुधेंदु रॉय, नीतीश रॉय, समीर चंदा, साबू सिरिल, थोट्टा थरानी, पी. कृष्णमूर्ति, शर्मिष्ठा रॉय आदि कला निर्देशकों ने भी यही परंपरा जारी रखी. उनके अथक प्रयासों और नवाचार की भूख, प्रयोग एवं अनुसंधान उन्मुख दृष्टिकोण ने संपूर्ण श्रव्य-दृश्य (ऑडियो-विजुअल) माध्यम में कला निर्देशन के पेशे को एक सम्मानजनक और महत्वपूर्ण स्तर पर पहुंचा दिया.
श्रव्य-दृश्य माध्यम में प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ, फिल्म और टेलीविजन प्रोडक्शन के कई प्रमुख पहलू विशिष्ट बन गए, जो प्री-प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट-प्रोडक्शन तक इसकी कार्य प्रक्रिया में परिलक्षित होते हैं. विशेषज्ञता के इस चरण में, एक ऐसे समर्पित व्यक्ति की आवश्यकता उत्पन्न हुई, जो केवल निर्माण के संरचना (डिज़ाइन) और दृश्य आयाम पर ध्यान केंद्रित करे. इस तरह एक कला निर्देशक 'प्रोडक्शन डिज़ाइनर बन गया. प्रोडक्शन डिज़ाइन की कार्य प्रक्रिया में डिज़ाइन का निष्पादन एक महत्वपूर्ण चरण है. डिजाइन के निष्पादन का कार्य देखने वाले व्यक्ति को 'कला निर्देशक के रूप में जाना जाने लगा. प्रोडक्शन डिज़ाइनर की अवधारणा विश्व सिनेमा में 90 के दशक के अंत में और भारतीय सिनेमा में 2०वीं सदी के अंत में अस्तित्व में आई. प्रोडक्शन डिज़ाइनर को पेंटिंग, मूर्तिकला, वास्तुकला, नगर नियोजन, कॉस्ट्यूम डिज़ाइन और भौतिक संस्कृति का उत्तम ज्ञान होना चाहिए और साथ ही फिल्म एवं टेलीविज़न प्रोडक्शन कार्य प्रक्रिया से संबंधित तकनीकी का भी पूरा ज्ञान होना चाहिए.
किसी कहानी का स्थान या स्थिति (सिचुएशन) प्राचीन काल या भविष्य पर आधारित हो सकते हैं; यह किसी अन्य ग्रह पर अंतरिक्ष यान और एलियंस के साथ अंतरिक्ष हो सकता है; यह बाढ़, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं हो सकती हैं; या यह किसी कोरी कल्पना, परी कथा या स्वप्न पर आधारित हो सकती है. प्रोडक्शन डिज़ाइनर वह व्यक्ति होता है जो सबसे उल्लेखनीय क्षमता, व्यापक शोध और रचनात्मक बुद्धि के साथ इसका सृजन एवं निर्माण करता है.
प्रोडक्शन डिज़ाइनिंग में 50 प्रतिशत रचनात्मकता और 50 प्रतिशत डिज़ाइन प्रबंधन शामिल है, इसलिए डिज़ाइनर के पास रचनात्मक बुद्धि, अवलोकन, दृश्य और ड्राइंग कौशल के साथ प्रबंधकीय कौशल भी होना चाहिए. उसे स्थानीय बाजार और उस औद्योगिक सामग्री का अच्छा ज्ञान होना चाहिए जिसका उपयोग निर्माण और निष्पादन के लिए किया जाता है. निर्माण इकाई के प्रमुख सदस्यों के साथ, उसे सेट निर्माण में शामिल व्यक्तियों से व्यवहार में भी सक्षम होना चाहिए.
भारतीय और विश्व सिनेमा के संबंध में, प्रौद्योगिकी और कला निर्देशन एवं प्रोडक्शन डिज़ाइन ने मिलकर सफर तय किया है. यह सफर सामग्री, शारीरिक कार्य एवं शारीरिक प्रभावों में बहुत सारे प्रयोग के साथ शुरू हुआ और निर्माण एवं डिजिटल प्रभावों में औद्योगिक सामग्री, नवीनतम उपकरणों के उपयोग तक पहुंच गया. लेकिन इस क्षेत्र की विशिष्टता डिज़ाइन के निष्पादन में नवीनतम तकनीकों के साथ पुरानी प्रथाओं का समामेलन है. अब भी, यह नवीनतम उपकरणों के उपयोग के साथ पारंपरिक तरीकों अर्थात बढ़ईगीरी, मोल्डिंग, पेंटिंग और मॉडल मेकिंग को अपनाता है. लघुचित्रों का निर्माण पारंपरिक तरीकों से किया जाता है, लेकिन इसे डिजिटल रूप से निर्मित पृष्ठभूमि के साथ विस्तारित करने के लिए हरे/नीले स्क्रीन पर शूट किया जाता है.
'राजा हरिशचंद्र से लेकर 'बाहुबली तक और 'मेट्रोपोलिस से लेकर 'ब्लैक पैंथर तक, भारतीय सिनेमा और विश्व सिनेमा की प्रगति में कला निर्देशकों और प्रोडक्शन डिज़ाइनर्स का योगदान असाधारण है. यूके, यूएसए, जर्मनी, फ्रांस, रूस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका में कुछ संस्थान और विश्वविद्यालय स्नातक स्तर और स्नातकोत्तर स्तर पर कला निर्देशन और निर्माण संरचना (प्रोडक्शन डिज़ाइन) के पाठ्यक्रम संचालित करते हैं.
भारत में, भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे एकमात्र शैक्षणिक संस्थान है, जो कला निर्देशन और निर्माण संरचना (प्रोडक्शन डिज़ाइन) में पूर्णकालिक पाठ्यक्रम संचालित करता है. यह एक तीन वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा है जिसे एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) द्वारा मास्टर डिग्री के समकक्ष माना जाता है.
कला निर्देशन और निर्माण संरचना में एफटीआईआई पाठ्यक्रम
निम्नलिखित में से कोई भी योग्यता रखने वाले छात्र इस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं.
· एप्लाइड आर्ट/पेंटिंग/मूर्तिकला/धातु शिल्प/सिरेमिक और पॉटरी में ललित कला (बी.एफ.ए.) में स्नातक की डिग्री या
· वास्तुकला/आंतरिक संरचना और सजावट में स्नातक की डिग्री या
· दृश्य कला में स्नातक की डिग्री (बी.वी.ए.), डिज़ाइन में स्नातक (बी. डेस.) या
· ड्राइंग और पेंटिंग में कला स्नातक (बी.ए.) या
· फैशन डिज़ाइन में स्नातक की डिग्री
· कला इतिहास में स्नातक की डिग्री
इस पाठ्यक्रम के बारे में
एफटीआईआई, पुणे ने वर्ष 1961 से फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं में शिक्षा देना शुरू किया था. अन्य पाठ्यक्रमों की तुलना में, 'कला निर्देशन और निर्माण संरचना एफटीआईआई में एक नया पाठ्यक्रम है. इसकी शुरुआत वर्ष 1996 में संस्थान की फिल्म विंग के अंतर्गत हुई थी और 2021 में इसके शानदार 25 वर्ष पूरे हुए हैं. यह संयोग ही है कि एफटीआईआई की फिल्म विंग अपने 60वें वर्ष में है और टेलीविजन विंग अपने 50वें वर्ष में है. कला निर्देशन और निर्माण संरचना पाठ्यक्रम के पूर्व छात्रों ने खुद को भारतीय फिल्म उद्योग में कुशल शिल्पकार और तकनीशियन के रूप में स्थापित किया है. इस संस्थान की विरासत को बनाए रखने और प्रोडक्शन डिज़ाइनर के रूप में शानदार कॅरिअर बनाने के साथ, इसके पूर्व छात्रों ने हिंदी सिनेमा और दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में कई लोकप्रिय फिल्म पुरस्कार जीते हैं. इस पाठ्यक्रम की मुख्य विशेषता कला निर्देशन और निर्माण संरचना (प्रोडक्शन डिज़ाइन) के विभिन्न पहलुओं में सिद्धांत, प्रदर्शन (डेमो) और व्यावहारिक आगमों का समामेलन है. फिल्म निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी बातों के अध्ययन के बाद छात्र कला निर्देशन और निर्माण संरचना के कई पहलुओं को विशेषज्ञता के साथ सीखते हैं. वे कई छात्र-अभ्यास और परियोजनाओं में कला निदेशक और प्रोडक्शन डिज़ाइनर के रूप में भाग लेते हैं. भारत के प्रख्यात प्रोडक्शन डिज़ाइनर्स के साथ नियमित बातचीत, सेट निर्माण का अध्ययन करने के लिए शूटिंग स्थानों पर अध्ययन पर्यटन और पेशेवर कामकाज को समझना इस पाठ्यक्रम के मुख्य आकर्षण हैं. ला फेमिस, पेरिस के लिए छात्रों का आदान-प्रदान कार्यक्रम इस पाठ्यक्रम की विशिष्ट विशेषता है.
कॅरिअर के अवसर- श्रव्य-दृश्य माध्यम के शुरुआती चरण में, कला निर्देशक के लिए कॅरिअर के अवसर के रूप में सिनेमा ही एकमात्र माध्यम था. लेकिन आज, प्रौद्योगिकी के बदलते परिदृश्य के कारण, कई अवसर हमारे दरवाजे पर मौजूद हैं. ऐसे व्यक्ति खुद को एक कला निर्देशक/प्रोडक्शन डिज़ाइनर के रूप में टीवी उद्योग (टेलीविजन धारावाहिक, टेलीविजन शो, समाचार स्टूडियो और दर्शक भागीदारी कार्यक्रम), विज्ञापन, फिल्म और टीवी कमर्शियल, कॉर्पोरेट फिल्म, वेब सीरीज़, इवेंट और रियलिटी शो में स्थापित कर सकते हैं. आज की विशेषज्ञता वाली दुनिया में, प्रोडक्शन डिज़ाइन के क्षेत्र में ही बहुत सारे अवसर उपलब्ध हैं. ऐसे व्यक्ति ड्राफ्टिंग और ड्रॉइंग स्किल आर्टिस्ट, मॉडल मेकर, प्रॉप्स डिज़ाइनर, सेट डेकोरेटर के रूप में कॅरिअर शुरू कर सकते हैं, और अंतत: कला निर्देशक और प्रोडक्शन डिज़ाइनर बन सकते हैं. यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रोडक्शन डिज़ाइनर बनने के लिए पहले एक अच्छा कला निर्देशक बनना होगा.
(लेखक एफटीआईआई, पुणे के कला निर्देशन और निर्माण संरचना विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं. उनसे shudesign@yahoo.co.in/kavishw arashutosh72@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.