पर्यावरण और संधारणीयता अध्ययन में कॅरिअर के अवसर
विजय प्रकाश श्रीवास्तव
पर्यावरण हमेशा से हमारे साथ रहा है और आगे भी रहेगा. संभवत: यही कारण है कि हमने पर्यावरण को हल्के में लिया और इसका परिणाम आज हमारे सामने है. पर्यावरण प्रदूषित हो गया है, जल स्रोत कम हो रहे हैं, हमारे चारों ओर हरियाली कम हो रही है और कई जीव विलुप्त हो चुके हैं. पर्यावरण को हुई इस क्षति से कई समस्याएं पैदा हुई हैं. प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से कम होने से हमारे जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. मानव जाति और पृथ्वी पर रहने वाली लाखों अन्य प्रजातियों की भलाई के लिए पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोकने, इसे वृक्षारोपण तथा जैव विविधता से समृद्ध करने और संधारणीयता की दिशा में काम करने के लिए दुनियाभर में आवाजें उठ रही हैं. यदि आप इस चिंता को साझा करते हैं, तो पर्यावरण और संधारणीयता को शिक्षा में अध्ययन का विषय बना सकते हैं.
पर्यावरण विज्ञान दशकों से अध्ययन के विषय के रूप में अस्तित्व में है. हालांकि अब जिस तरह इस पर ध्यान दिया रहा है, उस तरह पहले नहीं दिया गया था. दुनियाभर में पर्यावरण और संधारणीयता संबंधी चिंताएं सर्वोपरि होती जा रही हैं और इन्हें दूर करने के लिए इस क्षेत्र में अधिक पेशेवरों की आवश्यकता है. पर्यावरण अध्ययन केवल एक विषय नहीं है. यह एक अंत: विषयक पाठ्यक्रम है जिसमें जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिकी, पारिस्थितिकी, पृथ्वी विज्ञान और कुछ अन्य विषय शामिल हैं. जैसा कि नाम से पता चलता है, यह पाठ्यक्रम पर्यावरण के साथ-साथ पर्यावरण और पृथ्वी पर होने वाली घटनाओं और प्रक्रियाओं पर केंद्रित है.
पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य
पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों में अन्य बातों के साथ-साथ विद्यार्थियों को पर्यावरण की मूल बातें, इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इससे संबंधित अन्य प्रमुख मुद्दों, इसके सामाजिक दृष्टिकोण, वैश्विक पर्यावरणवाद संबंधी मुद्दों, पारिस्थितिक परिवर्तनों के वाहकों तथा इनकी प्रभावकारिता, वन्यजीवों की भूमिका, पर्यावरणीय जोखिम मूल्यांकन, पर्यावरण प्रदूषण के कारणों तथा शमन कार्यनीतियों, पर्यावरण नियोजन, प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति तथा मांग समीकरण, पर्यावरण से संबंधित कानून, पर्यावरण नीतिशास्त्र और दर्शन आदि शामिल हैं.
पर्यावरण शिक्षा लोगों को जीवन जीने के सतत् उपाय और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना प्राकृतिक संसाधनों के प्रभावी ढंग से उपयोग के तरीके तलाशने में मदद करती है.
शैक्षिक अवसर
उच्चतर माध्यमिक प्रमाणपत्र के स्तर तक, पर्यावरण की चर्चा आमतौर पर पाठ्य पुस्तकों में एक अध्याय के रूप में की जाती है. इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को पर्यावरण के बारे में जागरूक करना है. पर्यावरण विज्ञान की औपचारिक शिक्षा स्नातक स्तर पर ली जा सकती है. विद्यार्थी या तो पर्यावरण विज्ञान में डिग्री (तीन वर्ष) बी.एससी कर सकते हैं या पर्यावरण इंजीनियरिंग में बी.टेक डिग्री (चार वर्ष) के लिए. उपर्युक्त किसी भी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए विद्यार्थियों को अपने 10+2 स्तर पर विज्ञान विषय (भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान) लेना चाहिए. स्नातकोत्तर स्तर पर पर्यावरणीय अध्ययनों में निम्नलिखित में से किसी भी पाठ्यक्रम में दाखिला लिया जा सकता है:
पर्यावरण विज्ञान में एम. एससी.
पर्यावरण इंजीनियरिंग में एम.टेक
पर्यावरण प्रबंधन में एमबीए
उपर्युक्त सभी पाठ्यक्रमों की अवधि दो वर्ष है.
पर्यावरण अध्ययन के विषय
पर्यावरण अध्ययन भूकंप, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़, अपशिष्ट प्रबंधन और सतत् विकास के बड़े मुद्दों से संबंधित है. स्नातकोत्तर स्तर पर पाठ्यक्रम में पर्यावरण में ऊर्जा का अधिग्रहण, परिवर्तन तथा उपयोग, भू-रासायनिक तथा जल विज्ञान चक्र, पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा; वातावरण की संरचना और वायु तथा जल प्रदूषक, सतह तथा उपसतह जल, जल रसायन, मिट्टी की किस्म तथा संरचना, मिट्टी में खनिज पदार्थ, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, खनन तथा इसके प्रभाव, पर्यावरणीय नीतिगत मुद्दे नियम तथा कानून, पर्यावरण का सामाजिक दृष्टिकोण, वानिकी, जनसंख्या तथा खपत, पर्यावरण पर शहरीकरण का प्रभाव, वैश्विक पर्यावरणवाद के मुद्दे, समुदाय तथा पर्यावरण जागरूकता, सतत् विकास तथा इसके घटक, पारिस्थितिक और पर्यावरणीय अर्थशास्त्र, पर्यावरण डेटा संग्रह, रिमोट सेंसिंग, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, प्राकृतिक संसाधन, नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, तेल तथा गैस के भंडार, ग्रीनहाउस प्रभाव, संरक्षण, पर्यावरण नीतिशास्त्र, संचार तथा शिक्षा, वैश्विक और सांस्कृतिक मुद्दे जैसे विषय शामिल होंगे.
संधारणीयता, पर्यावरण अध्ययन का एक हिस्सा है और यह एक पूर्ण पाठ्यक्रम भी हो सकता है.
संधारणीयता अध्ययन के विषयों में, संधारणीयता की अवधारणाएं, विज्ञान के रूप में संधारणीयता, सतत् विकास तथा इसके विभिन्न घटक, समाज की संधारणीयता, संसाधन तथा पारिस्थितिकी तंत्र, पारिस्थितिक अर्थशास्त्र तथा इसकी उपयोगिता, जैव विविधता पर विकास का प्रभाव, व्यापार तथा पर्यावरण, पर्यावरण की लागत, प्राकृतिक संसाधन लेखांकन, विकास संकेतक और मानव स्वास्थ्य आदि शामिल हैं.
पर्यावरण इंजीनियरिंग के तहत, स्पष्ट रूप से पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए कार्रवाई और योजना प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. पाठ्यक्रम में पर्यावरण में भौतिक-रासायनिक प्रक्रियाओं, पर्यावरण रसायन विज्ञान और सूक्ष्म जीव विज्ञान, संख्यात्मक तरीकों, पर्यावरण स्वच्छता, अपशिष्ट जल उपचार के लिए डिज़ाइन, पर्यावरण में ऊर्जा प्रणाली, ठोस तथा खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन, वायु तथा ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण, सतह तथा भू-जल मॉडलिंग, जल पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी तथा भू-प्रौद्योगिकी, ऊर्जा प्रणाली तथा पर्यावरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, जलवायु नियंत्रण और आपदा प्रबंधन जैसे विषय शामिल हो सकते हैं.
पाठ्यक्रमों की उपलब्धता
भारत के अधिकांश विश्वविद्यालयों में पर्यावरण विज्ञान का एक विभाग/विद्यालय है (नाम भिन्न हो सकता है) जो पर्यावरण विज्ञान विषय में पाठ्यक्रम प्रदान करता है. इनमें शामिल हैं: देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर; बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी; आंध्र विश्वविद्यालय; विशाखापत्तनम; गोवा विश्वविद्यालय; गुजरात विश्वविद्यालय अहमदाबाद; कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा; जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली; मैसूर विश्वविद्यालय; मैंगलोर विश्वविद्यालय; कोचीन विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय; अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा; जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर; भारती विद्यापीठ, पुणे; शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर; उत्तर पूर्वी पहाड़ी विश्वविद्यालय, शिलांग; राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर; डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद; कल्याणी विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल. इसके अलावा, कई कृषि विश्वविद्यालय पर्यावरण विज्ञान/इंजीनियरिंग में स्नातक/ स्नातकोत्तर/ अनुसंधान पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं. उदाहरण के लिए, कोयंबटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में बी.टेक (ऊर्जा तथा पर्यावरण इंजीनियरिंग) और पर्यावरण विज्ञान में एम.एससी. और एम.टेक (पर्यावरण इंजीनियरिंग) जैसे पाठ्यक्रम हैं.
वानिकी अनुसंधान संस्थान, देहरादून में एम.एससी. पर्यावरण प्रबंधन नाम का पाठ्यक्रम है. सीईपीटी विश्वविद्यालय, अहमदाबाद संरक्षण और बहाली में मास्टर कार्यक्रम आयोजित करता है. केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, वानिकी (वन जीव विज्ञान और वृक्ष सुधार)/ (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) / (वन्यजीव विज्ञान), एम.टेक कृषि इंजीनियरिंग मृदा तथा जल संरक्षण इंजीनियरिंग में एक एकीकृत पाठ्यक्रम (बी.एससी.+एम.एससी.) है. कई आईआईटी स्नातक, स्नातकोत्तर और अनुसंधान स्तर पर पर्यावरण इंजीनियरिंग में पाठ्यक्रम चला रहे हैं. उदाहरण के लिए, आईआईटी खड़गपुर में पर्यावरण इंजीनियरिंग और प्रबंधन में एक संयुक्त एम.टेक-पीएच.डी कार्यक्रम है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) के केंद्र बेरहामपुर, भोपाल, पुणे, कोलकाता, मोहाली, तिरुवनंतपुरम और तिरुपति में हैं, जो पृथ्वी और पर्यावरण विज्ञान सहित विभिन्न विज्ञान विषयों में पांच साल का एकीकृत बीएस-एमएस पाठ्यक्रम संचालित करते हैं.
संबंधित विषय
वायुमंडलीय विज्ञान, मौसम विज्ञान, बागवानी, वानिकी और वन्यजीव के विद्यार्थियों के लिए पर्यावरण के मामलों में कार्य-क्षेत्र खोजना भी संभव है. सार्वजनिक नीति के पाठ्यक्रमों में पर्यावरण नीति से संबंधित मुद्दों को भी शामिल किया जाता है.
काम के अवसर
एक योग्य पर्यावरणविद् के पास वाणिज्यिक, औद्योगिक, सरकारी, गैर-लाभकारी क्षेत्रों में नौकरी की तलाश का अवसर होता है. ये नौकरियां प्रदूषण नियंत्रण, अपशिष्ट/ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, इंजीनियरिंग, कानून, संरक्षण, मत्स्य पालन और वन्य जीवन के क्षेत्रों में हैं. पर्यावरण विज्ञान/इंजीनियरिंग और संधारणीयता के तहत विभिन्न कार्य अवसर हैं. उद्योगों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है कि उनकी गतिविधियों के कारण पर्यावरणीय क्षति न्यूनतम हो. डिस्टिलरी, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों, रिफाइनरियों और उर्वरक, कपड़ा /रंगाई इकाइयों तथा रासायनिक योजनाओं को सख्त पर्यावरणीय दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा. ऐसे अधिकांश उद्योगों में पर्यावरण निगरानी प्रकोष्ठ हैं. इन्हें आवासन, पानी, ध्वनि और निर्माण के कारण लोगों के विस्थापन से लेकर कई मोर्चों पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता है. इनका प्रबंधन पर्यावरणीय विषयों में योग्य लोग करते हैं.
पर्यावरणीय मामलों में परामर्श के अवसर भी उपलब्ध हैं. कई कंपनियां पर्यावरण संबंधी कार्यों और समस्याओं को पर्यावरण सलाहकारों को आउटसोर्स करती हैं. नई सवंर्धित या प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए संबंधित सरकारी एजेंसियों को पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होता है. कई मामलों में ऐसी रिपोर्ट तैयार करने के लिए सलाहकारों से संपर्क किया जाता है.
पर्यावरण क्षेत्र की नौकरियों में शामिल भूमिकाओं और जिम्मेदारियों की प्रकृति में स्वच्छ हवा तथा पानी के लिए कार्यक्रम तथा प्रक्रियाएं तैयार करना, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, शहरी तथा ग्रामीण अपशिष्ट निपटान की योजना बनाना, पर्यावरणीय डिज़ाइन के लिए विनिर्माण इकाइयों, कारखानों तथा उद्योगों का अध्ययन करना और मानक संचालन प्रक्रियायों का कार्यान्वयन, सतत् विकास नियोजना, जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग का अध्ययन और उनके नकारात्मक प्रभाव को कम करने के तरीके खोजना, पर्यावरणीय मामलों में तकनीकी सहायता प्रदान करना, निजी एवं सरकारी एजेंसियों को पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों तथा सेवाओं को विकसित करने और नवाचार और पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में सार्वजनिक नीतियों के निर्माण या प्रचार के लिए सलाह देना शामिल है. उच्च शिक्षित और अनुभवी पर्यावरणविदों के लिए, वैश्विक पर्यावरण निकायों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों जैसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर, आदि के साथ काम करने के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं.
ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और ओजोन रिक्तीकरण को कम करने में लगे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ भी काम किया जा सकता है. कंपनियों के अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और सार्वजनिक छवि के बारे में तेजी से जागरूक होने और पर्यावरण नियमों को सख्ती से लागू करने के मद्देनजर योग्य पर्यावरण पेशेवरों की मांग में निरंतर वृद्धि होने की आशा है. कोविड-19 महामारी कम होने के बाद औद्योगिक गतिविधियों को गति मिलेगी. इससे भी पर्यावरण पेशेवरों के लिए अधिक अवसर पैदा होने की संभावना है. एक और उत्कृष्ट कॅरिअर भारतीय वन सेवा में है जिसके लिए संघ लोक सेवा आयोग हर साल परीक्षाएं आयोजित करता है. शुरुआत में चयनित उम्मीदवारों को मंडल वन अधिकारी (डीएफओ) के रूप में नियुक्त किया जाता है और बाद में ये केंद्रीय या राज्य प्रशासन में उच्च पदों पर आसीन होतेे हैं. इस विषय में शिक्षण के अवसर भारत और विदेश दोनों में कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और कृषि विश्वविद्यालयों में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं. यदि आप हरित ऊर्जा को अपने कार्य क्षेत्र के रूप में चुनते हैं, तो वह भी पर्यावरण से संबंधित कार्य-क्षेत्र के रूप में गिना जाएगा.
राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, राष्ट्रीय जैव-विविधिता प्राधिकरण, राष्ट्रीय समुद्री विज्ञान संस्थान, केंद्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड केंद्र सरकार के तहत कुछ ऐसे संगठन हैं, जिन्हें पर्यावरणीय मामलों में योग्य लोगों की जरूरत होती है. कई राज्य सरकारों के पास भी पर्यावरण नियोजन और समन्वय संगठन (मध्य प्रदेश) जैसे निकाय हैं. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की कुछ इकाइयां हैं जिनमें पर्यावरण वैज्ञानिकों की आवश्यकता होती है.
पर्यावरण पत्रकारिता
कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण के संरक्षण में लगे हुए हैं. इनमें से कुछ वैश्विक स्तर पर काम करते हैं. इनमें से किसी के साथ भी काम किया जा सकता है.
अनुसंधान के अवसर
पर्यावरण के कई रहस्य अब भी अज्ञात हैं या आगे खोजे जाने की आवश्यकता है. पर्यावरण अध्ययन अन्वेषण और अनुसंधान के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करते हैं. पर्यावरण अध्ययन या संबंधित विषय में स्नातकोत्तर योग्यता (एम.ए./एम.एससी./ एम.टेक.) के बाद शोध कार्यक्रम किया जा सकता है. आईआईटी, एनआईटी, कृषि विश्वविद्यालयों और भारतीय विज्ञान संस्थान में अनुसंधान के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं.
पर्यावरण विज्ञान में केंद्रित अनुसंधान अवसरों की पेशकश करने वाले संस्थानों की सूची नीचे दी गई है:
पारिस्थितिक विज्ञान केंद्र, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु;
खनन पर्यावरण केंद्र, धनबाद;
पर्यावरण शिक्षा केंद्र, अहमदाबाद;
सीपीआर पर्यावरण शिक्षा केंद्र, चेन्नै;
सलीम अली पक्षी विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केंद्र, कोयंबटूर;
डिग्रेडेड पारिस्थितिक तंत्र का पर्यावरण प्रबंधन केंद्र, दिल्ली;
उष्णकटिबंधीय वनस्पति उद्यान एवं अनुसंधान संस्थान, तिरुवनंतपुरम;
जीबी पंत हिमालय पर्यावरण और विकास संस्थान, अल्मोड़ा, उत्तराखंड.
यदि कोई पर्यावरण विज्ञान में पीएच.डी करना चाहता है, तो वह राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) दे सकता है. यह परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाती है. पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की अंतिम परीक्षा में बैठने वाला विद्यार्थी नेट के लिए आवेदन कर सकता है. भारत सरकार के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग का कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड, राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा, कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) और वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी (एसटीओ) के लिए एक संयुक्त परीक्षा आयोजित करता है. पर्यावरण विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त व्यक्ति इस परीक्षा में बैठने के पात्र हैं. जो लोग विदेश में अध्ययन करना चाहते हैं, उन्हें डिग्री/शोध करने के उत्कृष्ट अवसर मिल सकते हैं क्योंकि विकासशील देशों में कई विश्वविद्यालय पर्यावरण प्रबंधन/विज्ञान/प्रौद्योगिकी में अपने कार्यक्रमों/ पाठ्यक्रमों के लिए जाने जाते हैं. एक पर्यावरण पेशेवर के रूप में, आपके पास दुनिया को एक स्वच्छ और रहने के लिए अधिक अच्छा स्थान बनाने का अवसर है.
(इस लेख में उल्लिखित शैक्षणिक/अनुसंधान संस्थानों की सूची सांकेतिक है. ऐसे और भी कई संस्थान हैं जो पर्यावरण प्रबंधन/विज्ञान/प्रौद्योगिकी में पाठ्यक्रम संचालित करते हैं.)
(लेखक कॅरिअर कांउसलर हैं. ईमेल: vj2j25@yahoo.in)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.
(चित्र: गूगल के सौजन्य से)