रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

नौकरी फोकस


Issue no 02,10-16 April 2021

पूर्वोत्तर में रोज़गार के अवसर

अंकिता शर्मा

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र  (एनईआर) में देश की कुल आबादी का लगभग 7.9 प्रतिशत और उसके संपूर्ण कार्यबल का 3.6 प्रतिशत सम्मिलित है. इस क्षेत्र में आठ राज्य अर्थात अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा शामिल हैं.

पूर्वोत्तर क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से अल्प विकसित रहा है. ऐसा समुचित बुनियादी ढांचे की कमी, खराब शासन, कम उत्पादकता और इसकी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण बाज़ार तक अपर्याप्त पहुंच की वजह से रहा है.

औद्योगीकरण और सामाजिक-आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार  का सामना करते पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत की विकास गाथा में उचित रूप से शामिल ही नहीं किया गया. कारोबारी गतिविधियों में कमी तथा स्थानीय क्षमता निर्माण और विकास एजेंसियों के बीच भागीदारी पर बहुत कम ध्यान देने के कारण इस अत्यंत लाभप्रद क्षेत्र की उपेक्षा होती रही.

हालांकि, हाल के दौर में, पूर्वोत्तर क्षेत्र की विकास क्षमता को उत्तरोत्तर रूप से पहचाना जा रहा है. प्राकृतिक संसाधनों की व्यापक विविधता से  संपन्न, विशाल कार्यबल की उपस्थिति, और भारत के पूर्व में स्थित देशों के साथ संपर्क, ये सभी कारक वृद्धि और विकास संबंधी कार्यनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की असाधारण संभावनाएं उपलब्ध कराते हैं.

भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को साकार करने के संकल्प की सिद्धि के लिए पूर्वोत्तर को अपनी विकास गाथा में अंतर्निविष्ट करने  की आवश्यकता है. सरकार ने इस संबंध में कई योजनाएं शुरू की हैं, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस क्षेत्र में रोज़गार के परिदृश्य में आमूल-चूल बदलाव लाएंगी.

पूर्वोत्तर क्षेत्र विशेष अवसंरचना विकास योजना (एनईएसआईडीएस)

भारत सरकार ने वर्ष 2017 में एनईएसआईडीएस को एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में मंजूरी दी थी. यह योजना पूर्वोत्तर क्षेत्र के आठ राज्यों की सरकारों को अवसंरचना विकास परियोजनाओं का संचालन करने के लिए 100 प्रतिशत केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

स्किल इंडिया मिशन

देशभर के लोगों के कौशल निर्माण  से संबंधित अवसर और पहल के लिए केंद्र और राज्य स्तरीय  नेताओं के बीच संस्थागत संपर्क आवश्यक है.

प्रधानमंत्री का स्किल इंडिया  मिशन, भारत के कार्यबल को कौशल संपन्न बनाने की प्रतिबद्धता का दृष्टांंत प्रस्तुत करता है, ताकि उसे समाज का सक्रिय और योगदान करने वाला सदस्य बनने में सहायता प्रदान की जा सके. इस पहल ने देश के युवाओं को अपने सार्म्थय को पहचानने का अवसर दिया है.

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (पीएमकेके), जन शिक्षण संस्थान, प्रशिक्षुता, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) और राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थान (एनएसटीआई) जैसी योजनाएं पूर्वोत्तर के राज्यों में रोज़गार की क्षमता का निर्माण करने के लिए महत्वपूर्ण हैं.

स्किल इंडिया मिशन ने 2019 से पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपार सफलता हासिल की है. वर्ष 2016 में प्रारंभ किए जाने के समय से ही इन योजनाओं ने 2.5 लाख से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण ग्रहण करने में सहायता की है, जिनमें से 1.82 लाख को प्रमाणित किया गया है. पारंपरिक कला और हस्तशिल्प से जुड़े 80 हजार से अधिक कारीगरों ने अपने कौशल को पीएमकेवीवाई के तहत प्रमाणित कराया है. क्षेत्र में 103 पीएम कौशल केंद्र आवंटित किए गए हैं, जो पूर्वोत्तर में युवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार लाने के लिए बहु-कौशल संस्थानों (मल्टी-स्किल इंस्टीट्यूशंस) के रूप में कार्य करते हैं. खुदरा, पर्यटन, संगीत, स्वास्थ्य सेवा, आदि जैसे उच्च कौशलयुक्त क्षेत्रों में इनकी मांग बहुत ज्यादा है.

महिलाओं को गैर-पारंपरिक भूमिकाएं निभाने का कौशल प्रदान करने और कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता में सुधार लाने के लिए  राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थान (एनएसटीआई) की स्थापना किए जाने के रूप में भी पूर्वोत्तर की महिलाओं ने विशेष तौर पर ध्यान आकृष्ट  किया है. ब्रू जनजाति की 250 से अधिक महिलाओं को पीएमकेवीवाई 2.0 के तहत प्रशिक्षित किया गया है, साथ ही उन्हें रोज़गार भी प्राप्त हुआ है. एमएसडीई ने देशभर में पहली पीढ़ी के उद्यमियों के असाधारण प्रयासों को प्रोत्साहन और उचित पहचान देने के साधन के रूप में वर्ष 2016 से 2021 तक राष्ट्रीय उद्यमिता पुरस्कार योजना की स्थापना भी की है. युवाओं को आवश्यक कौशल से संपन्न करने  के  उद्देश्य से कई पहलों के साथ क्षेत्र में उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया गया है. यह उपलब्धि इस बात से प्रमाणित हुई कि 2018 के राष्ट्रीय उद्यमिता पुरस्कार के लिए 214 से अधिक आवेदन पूर्वोत्तर से प्राप्त हुए. इन पुरस्कारों में 33 विजेता थे, जिनमें से पांच पूर्वोत्तर से थे, और इनमें से तीन महिलाएं थीं.

कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने इस क्षेत्र में राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना की है, जो एक कौशल नियामक निकाय है, जिसमें मौजूदा राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी तथा राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद को समाविष्ट किया गया है. यह कौशल के प्रयासों को आगे बढ़ाने में मदद करती है और इसके लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है.

वर्ष 2017 में लागू की गई पीएम-युवा पहल ने उच्च शिक्षा संस्थानों (आईएचएल) के माध्यम से देशभर में उद्यमिता शिक्षा और प्रशिक्षण में सहायता की है. इनमें से पूर्वोत्तर से संबद्ध छह आईएचएल इस योजना का एक हिस्सा थे, जिनके माध्यम से वर्ष 2017-18 में 684 से अधिक छात्रों ने औपचारिक उद्यमिता प्रशिक्षण प्राप्त किया.

2019 में, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड राज्यों के नेताओं ने कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात की. इस दौरान क्षेत्र के आठों राज्यों में कार्यान्वित योजनाओं का विश्लेषण किया गया और उनके कार्यान्वयन के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई. प्रधानमंत्री की परिकल्पना के अनुरूप  2.5 लाख युवाओं तक पहुंच बनाने का लक्ष्य सफल रहा तथा अवसंरचना और  संरचनाओं व प्रक्रियाओं  के प्रबंधन को व्यापक बनाने के लक्ष्यों की पहचान की गई.

पूर्वोत्तर क्षेत्र में आईटीआई और एनएसटीआई के नेटवर्क का विश्लेषण करने और उसे मजबूती प्रदान करने के प्रयास के दौरान यह पाया गया कि 17,000 की क्षमता वाले 73 आईटीआई थे. इनमें से 13,000 इंजीनियरिंग या तकनीकी क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रीशियन, ऑटो-मैकेनिक और अन्य को समर्पित थे, जिनमें प्रशिक्षकों के साथ-साथ पर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाओं की भी कमी थी. कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने घोषणा की कि क्षेत्र में एक एनएसटीआई की स्थापना की जाएगी और मणिपुर में प्रशिक्षण उपकरणों को उन्नत बनाने के लिए 60 लाख रुपये की राशि जारी की जाएगी.

क्षेत्र में रोज़गार के पर्याप्त अवसर का अभाव और रोज़गार के बेहतर अवसर की तलाश के कारण पूर्वोत्तर राज्यों से बड़े पैमाने पर होने वाले श्रमिकों के पलायन के मुद्दे से निपटने के लिए, यह भी तय किया गया कि स्थानीय व्यापार संचालन के क्षेत्र में अल्पकालिक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए एक नवीकृत नीति तैयार की जाएगी.

पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों में मौजूद क्षमताओं और उत्साह का उपयोग और विकास किया जाना महत्वपूर्ण है, ताकि क्षेत्र में सही मायनों में विकास हो सके. इसलिए इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए स्किल इंडिया मिशन को बढ़ावा देने में केंद्र और राज्य सरकारों की संलग्ता आवश्यक है.  

राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी

केंद्र सरकार की विभिन्न भर्तियों के लिए एक सामान्य प्रारंभिक परीक्षा कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की स्थापना की गई थी.

पत्र सूचना कार्यालय द्वारा आयोजित एक वेबिनार के तहत, पूर्वोत्तर क्षेत्र के युवाओं को सरकारी नौकरियां हासिल करने के लिए एनआरए द्वारा प्रदान किए जाने वाले अवसरों के बारे में जागरूक रहने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

पूर्वोत्तर भारत के पिछड़े क्षेत्रों में भी एनआरए द्वारा  भर्ती केंद्र स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.  इससे उन युवाओं को अपार सहायता मिलेगी, जो दूरदराज के भर्ती केंद्रों की यात्रा करने में होने वाली कठिनाइयों के कारण रोज़गार पाने में असमर्थ थे. अनेक परीक्षाओं के स्थान पर एक सामान्य पात्रता परीक्षा होगी.

ऐतिहासिक रूप से उपेक्षा का शिकार रहे इन दूरस्थ क्षेत्रों तक परीक्षा केंद्रों को लाना, इस क्षेत्र के छात्रों को खराब कनेक्टिविटी और पहुंच की परेशानी का सामना किए बिना उन नौकरियों को  दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा, जिन्हें वे अपनी उपलब्धियों के कारण पाने के हकदार थे.

पूर्वोत्तर बीपीओ प्रोत्साहन योजना (एनईबीपीएस)

भारत के आईटी-बीपीएम उद्योग में निहित विशाल क्षमता को पहचानते हुए, इसकी मजबूत नींव और लगातार वृद्धि के लिए, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डिजिटल इंडिया पहल के तहत एनईबीपीएस का शुभारंभ किया.

आईटी-बीपीएम उद्योग के अधिकांश राजस्व का सृजन टीयर -1 महानगरीय केंद्रों यथा हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली एनसीआर, चेन्नै, मुंबई, पुणे और कोलकाता और उनके आसपास होता है तथा देश के अन्य क्षेत्र, विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रतिभाशाली युवाओं का एक बड़ा समूह पीछे छूट जाता है. इस योजना का उद्देश्य औपचारिक रोज़गार के अवसरों की कमी वाले देश के छोटे शहरों में स्थानीय युवाओं के लिए 1.5 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार, और बड़ी संख्या में रोज़गार के परोक्ष अवसरों का सृजन करना था. इसका उद्देश्य यहां के  समग्र विकास में सहायता के लिए इन क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करना भी था. सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया इस योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी है.

एनईबीपीएस, आईटी-बीपीओ संचालन के लिए, विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में 5,000 सीटों की स्थापना को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है, जिसका उद्देश्य तीन शिफ्ट संचालन पर विचार करते हुए 15,000 प्रत्यक्ष रोज़गारों के साथ ही साथ बड़ी संख्या में परोक्ष नौकरियों का सृजन भी करना है. मार्च 2021 को आवंटित सीटों की संख्या 3,511 थी.

पूर्वोत्तर में आईटी और बीपीओ के अवसरों को लाकर परिचालन की लागत कम करने, रोज़गार सृजन, कौशल विकास को बढ़ावा देने, कार्यबल में महिलाओं को शामिल करने और स्थानीय एसएमई क्षेत्र को बढ़ाने में एनईबीपीएस का प्रभाव पड़ रहा है. महिलाओं और दिव्यांगजनों को रोज़गार देने वाले बीपीओ को विशेष प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता की पेशकश की जाती है. यह प्रावधान स्थानीय उद्यमियों के साथ संघ के रूप में बीपीओ संचालन स्थापित करने वाली इकाइयों के लिए भी किया जाता है.

पूर्वोत्तर विकास वित्त निगम (एनईडीएफआई)

 एनईडीएफआई क्षेत्र के नवोदित उद्यमियों की मदद करने, क्षेत्र में उद्यमशीलता और उद्यमों को सहायता देने, प्रोत्साहन, वित्तीय सहायता और बढ़ावा देकर पूर्वोत्तर क्षेत्र  के पारिस्थितिकी तंत्र की सहायता करने में अभिन्न भूमिका निभाता है.

एनईडीएफआई सूक्ष्म, लघु, मध्यम और बड़े उद्यमों को पूर्वोत्तर में अपनी  औद्योगिक अवसंरचना और कृषि से संबद्ध परियोजनाएं  स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है. यह परामर्श और सलाहकार सेवाएं भी प्रदान करता है, तकनीकी-आर्थिक विकास कोष  के तहत राज्य विशिष्ट अध्ययन कराता है और प्रोत्साहन देने वाली गतिविधियों का संचालन करता है.

पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा एनईडीएफआई के सहयोग से स्थापित पूर्वोत्तर उद्यम कोष, पूर्वोत्तर  के लिए पहला, और एकमात्र उद्यम कोष है, जिसमें 100 करोड़  रुपये का प्रारंभिक कोष है. यह विशेषकर खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन, सेवाओं के पृथक्करण, आईटी, आदि क्षेत्रों के स्टार्टअप्स और अनूठे व्यावसायिक अवसरों को लक्षित करता है. एनईवीएफ की स्थापना पूर्वोत्तर में अप्रयुक्त संभावनाओं के विभिन्न क्षेत्रों का पता लगाने के इच्छुक  पूर्वोत्तर क्षेत्र के युवाओं के लिए आजीविका के अवसर में सुधार लाने और नए अवसर का सृजन करने के मिशन के साथ की गई थी.

उद्यम कोष योजना के साथ निवेश का आकार पांच से दस साल की दीर्घावधि सहित 2.5 लाख रुपये  और 10 करोड़ रुपये की रेंज के बीच है.

बांस उद्योग

भारत के राज्यों की संस्कृति और परंपराओं का वैविध्य ऐतिहासिक रूप से उस व्यापार की विविधता में परिलक्षित होता है, जिनमें प्रत्येक राज्य के व्यक्ति संलग्न हैं. जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता देश में विभिन्न संसाधनों के अस्तित्व को बढ़ावा देती है. मुख्य रूप से भारत के पूर्वोत्तर  क्षेत्र में पाया जाने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण, आर्थिक और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य, मूल्यवान संसाधन है बांस. बांस की खेती वाला लगभग 35 प्रतिशत क्षेत्र पूर्वोत्तर में है.

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बांस की खेती वाला विशालतम क्षेत्र भारत में है और बांस की लगभग 136 किस्मों के  साथ घरेलू और साथ ही वैश्विक मांग की पूर्ति करने के लिए संसाधन विकसित करने की अपार संभावनाएं यहां मौजूद हैं. बांस सबसे बहुउपयोगी फसलों में से एक है, जिसका उपयोग फर्नीचर बनाने, मकान के निर्माण, सामान और हस्तशिल्प और तो और  अत्यधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों में किया जा सकता है.

बांस आधारित उद्योगों के लिए इस तरह की अपार संभावनाओं की मौजूदगी पूर्वोत्तर के लोगों के लिए रोज़गार के हजारों नए अवसर सृजित करने की क्षमता की ओर भी इंगित करती है.

राष्ट्रीय बांस मिशन

बांस की बहु उपयोगी प्रकृति, भारतीय जलवायु में उसकी खेती की सुगमता, साथ ही साथ अनेक ग्रामीण आजीविकाओं को प्रभावित करने की उसकी क्षमता ने इसे ऐसा संसाधन बना दिया है जिस पर ध्यान देना और उसको प्रोत्साहन देना अत्यंत महत्वपूर्ण है. राष्ट्रीय बांस मिशन को एकीकृत बागवानी विकास मिशन के एक उप-मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया था.

बांस उद्योग के समग्र विकास के उद्देश्य  के साथ, राष्ट्रीय बांस मिशन का लक्ष्य उद्योग और उत्पादकों के बीच संपर्क सूत्र बनना है. बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए अपनायी जाने वाली रणनीति में क्षेत्र-आधारित क्षेत्रीय विभेदन को अपनाया जाना शामिल है. इससे न केवल बांस की खेती के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रफल में वृद्धि होगी, बल्कि फसल और इससे निर्मित होने वाले उत्पादों की गुणवत्ता और मज़बूती भी बढ़ेगी.

जैसा कि किसी भी ऐसी योजना में होता है, इस योजना का मुख्य फोकस जनता को लाभ पहुंचाना ही है. बांस की खेती को बढ़ावा देने से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से किसानों, स्थानीय कारीगरों के साथ ही साथ बांस क्षेत्र और उससे संबद्ध उद्योगों से जुड़े अन्य लोग लाभान्वित होंगे. 'मेक इन इंडियाÓ के आदर्शों का अनुसरण भारत में बांस की खेती को प्रोत्साहन दे रहा है, इनसे बांस उत्पादों के आयात की आवश्यकता में कमी लाने में भी मदद मिलेगी और स्वदेशी उत्पादकों की सहायता होगी.

भारतीय वन अधिनियम, 1927 में सुधार

भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत बांस की ढुलाई और आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के कारण पूर्वोत्तर में बांस की खेती की संभावनाओं का समुचित रूप से उपयोग नहीं हो पा रहा था. सरकार ने वर्ष 2017 में, बांस को अधिनियम के वर्गीकृत वृक्षों की श्रेणी से हटाकर घास के रूप में पुन: वर्गीकृत कर दिया.

इस निर्णय ने पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अत्यंत लाभप्रद बांस क्षेत्र के विकास के लिए स्थितियां पूरी तरह बदल डाली. इसी कारण अब किसी के लिए भी बांस की खेती करना, साथ ही साथ कटाई और ढुलाई की अनुमति के बगैर उसके उत्पादन और बिक्री का कारोबार करना संभव है.

बांस पर आयात शुल्क

वर्ष 2020 में, सरकार ने बांस पर आयात शुल्क में वृद्धि करके स्वदेशी अगरबत्ती उद्योग और बांस आधारित उद्योगों को बड़ा प्रोत्साहन दिया. प्राय: चीन और वियतनाम से आयात किए जाने वाले बांस पर आयात शुल्क १० प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया.

खादी ग्रामोद्योग (केवीआईसी) के अध्यक्ष वी. के. सक्सेना ने कहा कि इस वृद्धि से चीन से होने वाले भारी मात्रा में आयात पर रोक लगेगी तथा  स्थानीय उत्पादन को इससे प्रोत्साहन मिलेगा. उन्होंने कहा कि उन्हें अपेक्षा है कि इससे भारत को अगरबत्ती  उत्पादन में 'आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी और साथ ही इससे हजारों नयी नौकरियों का सृजन होगा.

बांस समूह

बांस के उत्पादों के निर्यात और उत्पादन को बढ़ाने के लिए, केंद्र सरकार ने देश भर के नौ राज्यों में 22 बांस समूह प्रारंभ किए हैं. इनमें से पूर्वोत्तर से असम, नगालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं.

पांच समूह त्रिपुरा में, दो नगालैंड में और एक असम में स्थित हैं. इन समूहों का उद्देश्य बांस के उत्पादों के उत्पादन के साथ-साथ हरित रोज़गार का सृजन करना है. यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और समुदायों को बनाए रखने और इन क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि लाने में मदद करता है क्योंकि वे अपने राज्यों में आसानी से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हैं.

पर्यटन और आतिथ्य

2019 में, भारत के यात्रा और पर्यटन क्षेत्र ने देश के सकल घरेलू उत्पाद- जीडीपी में लगभग 194.3 अरब डॉलर का योगदान दिया. कोविड -19 के संक्रमण से पहले इस क्षेत्र ने नौकरियों में लगभग 8.1 प्रतिशत योगदान दिया, जिससे लगभग 4.2 करोड़ लोगों को रोज़गार मिला. यह  देश के जीडीपी के लगभग 6.8 प्रतिशत है. और कुल निवेश का 5.9 प्रतिशत इस क्षेत्र में आया हैं. कुछ अनुमानों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में '9-10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हो सकती है और हर साल लाखों उच्च-गुणवत्ता की नौकरियां जुड़ सकती हैंÓ.

पर्यटन और यात्रा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह रोज़गार के अवसरों के प्रमुख सृजनकर्ता हैं और कुछ अनुमानों से पता चलता है कि 2018 में 4.3 करोड़ नौकरियों से बढ़कर 2029 तक यह लगभग 5.3 करोड़ नौकरियों का सृजन करेगा, जो देश में कुल रोज़गार के 8 प्रतिशत से अधिक है. पूर्वोत्तर पर्यटन विकास परिषद की स्थापना 2017 में शिलांग में की गई थी, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देना था.

पर्यटन के क्षेत्र में रोज़गार के कुछ अवसर इस प्रकार हैं

टूरिस्ट गाइड्स: पूर्वोत्तर के विभिन्न स्थलों के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व के बारे में सहायता और जानकारी प्रदान करना एक अत्यधिक उपयोगी काम है.

पर्यटन विभाग: राज्य और केंद्र सरकारों के पर्यटन विभागों में अधिकारियों और कर्मचारियों को लोक सेवा और अन्य चयन प्रक्रियाओं के माध्यम से स्थायी नौकरियां मिलती हैं. इसके लिए यात्रा और पर्यटन में डिग्री की आवश्यकता होती है.

एयरलाइंस: यात्रा और पर्यटन या होटल प्रबंधन में डिग्री, ट्रैफिक असिस्टेंस, आरक्षण और काउंटर स्टाफ, बिक्री और विपणन कर्मचारी, आदि के रूप में रोज़गार प्राप्त करने में मददगार हो सकती है.

ट्रैवल एजेंसियां: पूर्वोत्तर में पर्यटक  स्थलों की व्यापक विविधता है, इसलिए ट्रैवल एजेंसियां पर्यटकों के लिए सर्वोत्तम यात्रा और ठहरने के विकल्पों का मार्गदर्शन और प्रबंधन करने में मदद करती हैं.

इन क्षेत्रों में कॅरिअर के लिए अक्सर कर्मचारी को संबंधित क्षेत्रों में डिग्री प्राप्त करने की आवश्यकता होती है. एडवांस्ड  डिप्लोमा इन ट्रैवल एंड टूरिज्म  मैनेजमेंट, एमबीए ट्रैवल एंड टूरिज्म, पीजी डिप्लोमा इन ट्रैवल एंड टूरिज्म  मैनेजमेंट, बैचलर ऑफ टूरिज्म स्टडीज़ आदि पर्यटन से संबंधित कुछ पाठ्यक्रम हैं. ये पाठ्यक्रम अनेक संस्थानों में उपलब्ध हैं, जैसे भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान, जो पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त निकाय है. आईआईटीटीएम, पर्यटन, यात्रा और संबद्ध क्षेत्रों के सतत् प्रबंधन में शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान और परामर्श प्रदान करता है.

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट ने केंद्र द्वारा प्रायोजित एक नई योजना की शुरुआत की, जिससे पर्यटन उद्योग के विकास में मदद मिलने की संभावना है. डेवलपमेंट ऑफ आइकोनिक टूरिस्ट डेस्टिनेशंस के नाम से चर्चित इस योजना ने समग्र रूप से विकसित होने में मदद करने के लिए देश के 19 प्रतिष्ठित स्थलों की पहचान की है. इन 19 स्थलों में से एक असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान है. इसका आशय है कि उचित बुनियादी ढांचे के निर्माण, प्रौद्योगिकी के उपयोग और ब्रांडिंग और मार्केटिंग को बढ़ाकर निजी निवेश को आकर्षित करने पर ध्यान दिया जाएगा. इस प्रकार इस पर्यटन स्थल पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस क्षेत्र में अधिक नौकरियों के सृजन में सहायता मिलेगी.

हाल के वर्षों में, पूर्वोत्तर भारत पर फोकस बढ़ा है और उसके सौंदर्य व अवसरों पर वस्तुत: नई दृष्टि से विचार किया गया है. इस तरह ध्यानाकर्षण बढ़ने के साथ- साथ, इस क्षेत्र में नौकरियों के अवसरों का विकास हुआ है. भारत का पूर्वोत्तर भाग, लाखों लोगों को सार्थक और रोमांचक रोज़गार प्रदान करने वाली भारत की विकास गाथा का प्रमुख वाहक बनने को तैयार है.

(लेखक स्ट्रेटेजिक इन्वेस्टमेंट रिसर्च यूनिट, इन्वेस्ट इंडिया में वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता हैं,

ई-मेल: ankita.sharma@investindia. org.in)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.