पर्यावरण प्रभाव निर्धारण में कॅरिअर
डॉ. पवन कुमार भारती
पर्यावरण प्रभाव निर्धारण अथवा ई.आई.ए. को, पर्यावरण पर किसी प्रस्तावित कार्य/परियोजना के प्रभाव की भविष्यवाणी अथवा अनुमान के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. निर्णय लेने के एक साधन - पर्यावरण प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.) में किसी परियोजना के लिए विभिन्न विकल्प शामिल होते हैं और इससे यह पता लगाने के प्रयास किए जाते हैं कि इनमें से कौन सा विकल्प आर्थिक तथा पर्यावरणीय लागत एवं लाभ का श्रेष्ठ युग्मक हो सकता है.
पर्यावरणीय निर्धारण (ई.ए.) शब्द का प्रयोग, किसी प्रस्तावित कार्य को प्रारंभ करने का निर्णय लेने से पहले किसी योजना, नीति, कार्यक्रम या परियोजना के पर्यावरणीय परिणामों (सकारात्मक अथवा नकारात्मक) का निर्धारण करने के लिए किया जाता है. इस संदर्भ में, पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.) शब्द का उपयोग सामान्यत: तब किया जाता है जब इसे किसी ठोस परियोजना पर लागू किया जाता है और ‘नीतिगत पर्यावरणीय निर्धारण’ शब्द नीतियों, योजनाओं तथा कार्यक्रमों पर लागू होता है.
पर्यावरणीय निर्धारण सार्वजनिक सहभागिता एवं निर्णय लेने के प्रलेखन के संबंध में प्रशासनिक पद्धतियों के नियमों द्वारा शासित हो सकते हैं, और ये न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं.
निर्धारण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि निर्णयकर्ताओं द्वारा किसी परियोजना को प्रारंभ करने अथवा प्रारंभ नहीं करने का निर्णय लेते समय पर्यावरणीय प्रभाव का ध्यान रखें. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव निर्धारण संघ (आई.ए.आई.ए.) पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण को, कोई भी बड़ा निर्णय लेने और प्रतिबद्ध होने से पहले विकास प्रस्तावों के जैव भौतिकीय, सामाजिक तथा अन्य संबंधित प्रभावों का पता लगाने, भविष्यवाणी करने, मूल्यांकन करने और उन्हें कम करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करता है. पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.) इस रूप में अद्वितीय है कि उन्हें किसी पूर्वनिर्धारित पर्यावरणीय परिणामों का पालन करना अपेक्षित नहीं होता है, बल्कि उन्हें यह अपेक्षित होता है कि निर्णयकर्ता अपने निर्णय में पर्यावरणीय मूल्यों का ध्यान रखें और उन निर्णयों को संभावित पर्यावरणीय प्रभावों पर व्यापक पर्यावरणीय अध्ययन तथा सार्वजनिक प्रतिबद्धता के आलोक में न्यायोचित रखें.
धारणीय विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने में पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.) एक महत्वपूर्ण प्रबंधन साधन है. इस दिशा में हमारे देश में १९७८-७९ में नदी घाटी परियोजनाओं के प्रभाव-निर्धारण की एक शुरूआत की गई थी और बाद में इसका कार्य-क्षेत्र उद्योगों, तापविद्युत परियोजनाओं, खनन योजनाओं आदि जैसे अन्य विकास क्षेत्रों में बढ़ा दिया गया. पर्यावरणीय सूचना एकत्र करने और प्रबंधन योजनाएं तैयार करने के कार्य को सुसाध्य बनाने के लिए दिशा-निदेश विकसित किए गए हैं और संबंधित केन्द्रीय तथा राज्य सरकारी विभागों को परिचालित किए गए हैं. ५० करोड़ रु. एवं इससे राशि के निवेश वाले विकास कार्यों की २९ श्रेणियों के लिए पर्यावरण (परिरक्षण) अधिनियम १९८६ के अंतर्गत पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण अब अनिवार्य बना दिया गया है.
विकास परियोजनाओं के पर्यावरणीय मूल्यांकन के लिए अपेक्षित बहु-विषयक इनपुट सुनिश्चित करने के तथ्य को देखते हुए निम्नलिखित क्षेत्रों के लिए विशेषज्ञ-समितियां गठित की गई हैं:
*खनन परियोजनाएं
*औद्योगिक परियोजनाएं
*ताप विद्युत परियोजनाएं
*नदी घाटी, बहुउद्देश्यीय, सिंचाई एवं एच.ई. परियोजनाएं
*आधारिक संरचना विकास एवं विविध परियोजनाएं
*नाभिकीय विद्युत परियोजनाएं
कार्य-प्रक्रिया
किसी परियोजना प्राधिकरण द्वारा, पर्यावरणीय प्रभावन निर्धारण अधिसूचना में निर्दिष्ट अपेक्षित सभी प्रलेखों के साथ आवेदन पत्र प्रस्तुत करने पर, मंत्रालय का तकनीकी स्टाफ इस आवेदन को पर्यावरणीय मूल्यांकन समितियों के समक्ष रखने से पहले उसकी जांच करता है. मूल्यांकन समितियां परियोजना प्राधिकारियों द्वारा दी गई सूचना के आधार पर परियोजना के प्रभाव का मूल्यांकन करती हैं और यदि आवश्यक हुआ तो स्थल का दौरा करती हैं तथा विभिन्न पर्यावरणीय पहलुओं का स्थल पर मूल्यांकन भी करती हैं. ऐसी जांच के आधार पर समितियां परियोजना के अनुमोदन या रद्द करने की सिफारिश करती है, इसके बाद इन पर मंत्रालय, इन्हें अनुमोदित या रद्द करने की कार्रवाई करता है.
खनन नदी घाटी, पत्तनों और बंदरगाहों जैसी स्थल विशिष्ट परियोजनाओं के मामले में, एक-दो चरण की निपटान पद्धति अंगीकार की गई है, जिसके द्वारा परियोजनाओं प्राधिकरणों को अपनी परियोजनाएं पर्यावरणीय अनापत्ति के लिए आवेदन करने से पहले स्थल अनापत्ति लेनी होती है. इससे उन क्षेत्रों से बचना सुनिश्चित किया जाता है जो क्षेत्र पारिस्थितिक दृष्टि से कमजोर और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं. जिन परियोजनाओं के मामलों में परियोजना प्रस्तावकों द्वारा पूर्ण सूचना प्रस्तुत की जाती है, उन पर ९० दिनों के अंदर निर्णय ले लिया जाता है.
पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.), प्रस्तावित संयंत्र से प्रदूषक तत्वों के योगदान की तुलना में मौजूदा पृष्ठभूमि प्रदूषण स्तर के आधार पर तैयार की जानी चाहिए. आकार/क्षमता या महत्व अर्थात श्रेणी-क एवं श्रेणी-ख के अनुसार परियोजना दो वर्गों की होती हैं. पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.) में नीचे सूचीबद्ध कुछ बुनियादी तथ्यों का पता लगाया जाना चाहिए:
१० कि.मी. के घेरे में और स्थानों के बीच १२० डिग्री कोण के साथ मध्य में तथा ३ अन्य स्थानों पर मौसम विज्ञान एवं वायु गुणवत्ता (सल्फर डायऑक्साइड, नाइट्रोजन की ऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर्स जैसे प्रदूषक तत्वों के परिवेश स्तर का निर्धारण किया जाना चाहिए, क्षेत्र में विद्यमान विभिन्न मौसम विज्ञानीय स्थितियों के अंतर्गत प्रस्तावित संयंत्र की चिमनियों से प्रदूषक तत्वों के उत्सर्जन दरों को ध्यान में रखने के बाद स्थानों पर प्रदूषक तत्वों के अतिरिक्त योगदान का भी अनुमान लगाया जाना चाहिए).
*जल विज्ञान एवं जल गुणवत्ता
*स्थल तथा उसके आस-पास का क्षेत्र
*व्यावसायिक सुरक्षा तथा स्वास्थ्य
*नि:स्सारी (द्रव, वायु एवं ठोस) के शोधन तथा निपटान तथा वैकल्पिक उपयोगों के विवरण.
*कच्चे माल की ढुलाई तथा सामग्री हस्तन के विवरण.
*अपनाए जाने वाले प्रस्तावित नियंत्रण उपकरण और उपाय.
पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण एवं अवसर
एक व्यवसाय के रूप में, एफ.ए.ई./पी.सी. पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि व्यक्ति पर्यावरण विज्ञान से जुड़े मुख्य विषय(यों) के बारे में चिंतित हैं.
पारम्परिक रूप में, पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों में शैक्षिक जगत, सरकारी, पर्यावरण परामर्श क्षेत्र के पद शामिल हैं. इनमें से कई परामर्श संस्थाओं में पुराना या जरण कार्य बल है और ये संस्थाएं सेवानिवृत्त होने वाले कार्यबल के बदले दीर्घकालीन सेवा में रखने की प्रवृत्ति की ओर अभिमुख हैं. सही शैक्षिक तैयारी वाले व्यक्तियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण (ई.आई.ए.) क्षेत्र में रोज़गार के शानदार अवसर हैं. ई.आई.ए. विशेषज्ञ परियोजना क्षेत्र, उसकी प्रक्रियाओं का पता लगाते हैं, किसी प्रस्तावित कार्य, संंयंत्र या परियोजना के नकारात्मक प्रभावों एवं उपचारी उपायों का अनुमान लगाते हैं और उनका सुझाव देते हैं.
ई.आई.ए. एक विशिष्ट क्षेत्र है, और इसमें कॅरिअर टै्रक्स का निर्धारण सामान्यत: विशेषज्ञता तथा प्राप्त शिक्षा-स्तर द्वारा किया जाता है. ई.आई.ए. विशेषज्ञ वायु प्रदूषण, वायु मॉडलिंग, जल प्रदूषण एवं नियंत्रण, जलविज्ञान, मृदाविज्ञान, मौसम विज्ञान, भूविज्ञान, खतरनाक कूड़ा प्रबंधन, शोर एवं कम्पन, बरसाती जल-संग्रहण, पारिस्थितिकी तथा जैववैविध्य, सामाजिक-आर्थिक अध्ययन, जोखिम निर्धारण आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञता रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं.
उच्च अध्ययन/अनुसंधान कार्य हिमालयी अध्ययन, दक्षिण महासागर ड्रिलिंग कार्यक्रम, आर्कटिक मिशन, अंटार्कटिक मिशन आदि जैसे विभिन्न राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में वैश्विक अवसर देते हैं.
बुनियादी पात्रता :
ई.आई.ए. एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें बहुविषयीय वैज्ञानिक शाखाओं के उम्मीदवारों की आवश्यकता होती है. विज्ञान, यहां तक कि सामाजिक विज्ञान के स्नातक भी अपनी रुचि के कॅरिअर बना सकते हैं. भारत तथा विदेश में विभिन्न विश्वविद्यालय/संस्थाएं विविध डिग्रियां/डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाती हैं. कोई भी व्यक्ति विज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रम/डिग्री प्राप्त कर सकता है.
कुछ मुख्य पात्रता-मानदण्ड इस प्रकार हैं:-
*बी.एससी. - सामान्य, रसायन विज्ञान, जैविकीय विज्ञान, प्रकृति विज्ञान में.
*एम.एससी. - पर्यावरण, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान या समकक्ष में.
*एम.टेक. - पर्यावरण इंजीनियरी, रिमोट सेंसिंग एवं जी.आई.एस., भूसूचना विज्ञान में.
*पी.जी. डिप्लोमा - भूसूचना विज्ञान, प्रदूषण नियंत्रण, रिमोट सेंसिंग एवं जी.आई.एस. में.
*पीएच.डी. - पर्यावरण विज्ञान, पर्यावरण इंजीनियरी, रसायन विज्ञान या समकक्ष में.
संस्था/एन.जी.ओ./परामर्श-संस्था
ऐसी कई संस्थाएं/परामर्श-संस्थाएं हैं जहां कोई भी व्यक्ति अपना कॅरिअर बना सकता है और/या अध्ययन/अनुसंधान-कार्य भी जारी रख सकता है. सरकारी संगठन में स्थापित अध्ययन केन्द्रों के अतिरिक्त, ऐसी अनेक निजी परामर्श-संस्थाएं, बहुराष्ट्रीय कंपनियां और गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) हैं, जो पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण के क्षेत्र में कार्यरत हैं. इनमें से अधिकांश के बारे में जानकारी उनकी संबंधित वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं. मान्यताप्राप्त (प्रत्यायित) संगठनों की जानकारी क्यू.सी.आई., एन.ए.बी.ई.टी. की आधिकारिक वेबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं.
क्यू.सी.आई. - एन.ए.बी.ई.टी. :
क्यू.सी.आई.-एन.ए.बी.ई.टी. के अनुसार, हमारे देश में अत्यधिक विकासात्मक एवं औद्योगिक कार्यों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण एक संवैधानिक अपेक्षा है. किसी दी गई परियोजना में निवेश की मजबूती का निर्धारण करने के लिए वित्तीय संस्थाएं भी इसका उत्तरोत्तर प्रयोग कर रही हैं.
राष्ट्रीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रत्यायन बोर्ड (एन.ए.बी.ई.टी.) - जो क्यू.सी.आई. का एक संघटक बोर्ड है, ने इस क्षेत्र के विशेषज्ञों, विनियामक एजेंसियों, सलाहकारों आदि सहित विभिन्न स्टेकहोल्डर्स से इनपुट्स लेकर एक स्वयंसेवी प्रत्यायन योजना का विकास किया है, और यह योजना अगस्त, २००७ में प्रारंभ की गई है. इस क्षेत्र के कुछ अग्रणी सलाहकारों ने इस योजना के अंतर्गत प्रत्यायन (मान्यता) प्राप्त किया है. पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एम.ओ.ई.एफ.) ने २००९ में इस योजना की समीक्षा की और यह इच्छा व्यक्त की कि योजना के प्रारंभ होने के समय के अध्ययन को शामिल करते हुए इस योजना को अद्यतन किया जाए. योजना को अनिवार्य बनाया गया.
एन.ए.बी.ई.टी. योजना के अनुसार, किसी भी पर्यावरणीय प्रभाव निर्धारण फर्म में कार्य-शीर्षक निम्नलिखित हो सकते हैं:-
*ई.आई.ए. कोऑर्डिनेटर (ई.सी.)
*श्रेणी के लिए एसोसिएट ई.आई.ए. कोऑर्डिनेटर (ए.ई.सी.)
*फंक्शनल एरिया एक्सपर्ट (एफ.ए.ई.)
*फंक्शनल एरिया एसोसिएट (एफ.ए.ए.)
*टीम मेम्बर (टी.एम.)
*मेंटॉर
संभावना एवं कॅरिअर
किसी अनुमोदित विश्वविद्यालय या समतुल्य संस्था से विज्ञान में कोई उपयुक्त डिग्री या डिप्लोमा या स्नातकोत्तर योग्यता पूरी करने के बाद, उम्मीदवार अपनी योग्यता, रुचि तथा सामथ्र्य के अनुसार दिया गया कोई भी विकल्प चुन सकता है. कोई भी व्यक्ति ई.आई.ए. के क्षेत्र में पूर्णकालिक या अंशकालिक रोज़गार चुन सकता है. वह विभागीय विशेषज्ञ या पैनल में शामिल (नामिकागत) विशेषज्ञ हो सकता है.
ई.आई.ए. में अंशकालिक कॅरिअर के लिए अत्यधिक प्रचलित व्यवसाय नीचे दिए गए हैं :-
*पर्यावरणीय प्रबंधक - परामर्शी संस्थाओं में ई.आई.ए. अध्ययन के लिए.
*वैज्ञानिक/विश्लेषक - सरकारी या निजी अनुसंधान संस्थान/संगठन/परीक्षण प्रयोगशाला में.
*वैज्ञानिक अधिकारी - वैज्ञानिक सरकारी संगठनों या गैर-सरकारी संगठनों में.
*लेक्चरर/प्रोफेसर - विश्वविद्यालय अथवा शैक्षिक संस्था में.
*प्रयोगशाला प्रभारी - परीक्षण प्रयोगशालाओं में.
*सहायक प्रबंधक - कार्पोरेट विभिन्न समूहों में.
*सलाहकार - किसी सलाहकारी संस्था, गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) या समतुल्य फर्मों में.
इनके अतिरिक्त, उम्मीदवार कई अन्य विभिन्न रोजग़ारों/पदों पर भी अपना कॅरिअर बना सकते हैं. उम्मीदवार ई.आई.ए. के क्षेत्र में अपना कॅरिअर प्रारंभ कर सकते हैं और अपनी निजी परामर्शी-फर्म चला सकते हैं. ई.आई.ए. एक तीव्रगति से उभर रहा विषय है और उत्साही उम्मीदवारों के लिए इसमें शानदार पूर्णकालिक या अतिरिक्त अवसर हैं.
(लेखक एक प्रख्यात पर्यावरणविद् तथा फ्रीलांस लेखक हैं. वह २०१०-११ के दौरान तीसवें भारतीय वैज्ञानिक अंटार्कटिक अभियान के सदस्य थे. ई-मेल : gurupawanbharti@rediffmail.com)
चित्र: गूगल के सौजन्य से