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Career volume-35

सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षा-2016
सामान्य अध्ययन (जी.एस.) प्रश्न-पत्र-II एवं III की जानकारी

एस. बी. सिंह

सामान्य अध्ययन (जी.एस.) पाठ्यक्रम के वैविध्य की प्रकृति सामान्य अध्ययन II एवं III प्रश्न-पत्रों में झलकती है। इन दोनों प्रश्न-पत्रों में जी.एस.-II एवं जी III प्रश्न-पत्रों की तुलना में विषय अधिक संख्या में शामिल होते हैं।

जी.एस.- II प्रश्न-पत्र में शामिल विषय हैं: राजतंत्र, अभिशासन, संस्था, नीतियां, कार्यक्रम, सरकारी योजनाएं, समाज कल्याण योजनाएं, सिविल सोसायटियां एवं एन.जी.ओ. और अंत में अंतर्राष्ट्रीय संबंध। इसी तरह जी.एस.-III में आर्थिक विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, आपदा प्रबंधन, परिस्थितिकी तथा पर्यावरण और अंत में आंतरिक सुरक्षा पर बल होता है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि जी.एस. के इन दोनों प्रश्न-पत्रों की तैयारी में वास्तविक चुनौतियां होती हैं। किसी के लिए भी यह समझना कठिन होता है कि किस तरह के प्रश्न पूछे जाएंगे और किस उपलब्ध स्रोत से उनकी तैयारी की जाए। इन दोनों प्रश्न-पत्रों में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न अत्यधिक वर्तमान तथा समसामायिक तथा समाचार-पत्रों में दी गई दैनिक घटनाओं के व्यापक तथा ध्यानपूर्वक पठन से रहित प्रकृति के होते हैं। इसलिए पाठ्यक्रम को समझना असंभव सा होता है। किंतु यह उतना आसान भी नहीं है। समसामयिक मामलों को समझने के लिए, इन मामलों से जुड़ी मुख्य संकल्पनाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके लिए संविधान, अर्थशास्त्र आदि का पाठ्याश्रित तथा संदर्भाश्रित ज्ञान भी होना जरूरी है। दूसरे शब्दों में, दोनों जी.एस. II तथा III प्रश्न-पत्रों में पिछला तथा आगे का संबंध होता है। यद्यपि इन प्रश्न-पत्रों में अच्छे अंक प्राप्त करने की व्यापक संभावना होती है, किंतु इन दोनों प्रश्न-पत्रों में कम अंक आने का मुख्य कारण यह है कि पाठ्यक्रम की वास्तविक मांगों को ठीक से नहीं समझा जाता है। चूंकि अधिकांश पाठ्य-पुस्तकें एवं पठन सामग्री, अधिकांशत: कोचिंग सामग्रियां, अभी भी पुरानी परीक्षा-पद्धति को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं सूचना सीधे प्रश्नों पर आधारित होती थी, इसलिए वर्तमान स्रोत सामग्रियों पर विश्वसनीयता कम हो गई है। इस तथ्य को स्पष्ट करने के लिए हम राजतंत्र विषय का उदाहरण लेते हैं, जो प्रश्न-पत्र-II का भाग है। राजतंत्र की अधिकांश प्रचलित पुस्तकों में हमारे संविधान के विवरणात्मक पहलू होते हैं, जबकि राजतंत्र पर प्रश्न संवैधानिक प्रावधानों से कहीं परे पूछे जाते हैं और इनमें ऐसे प्रसंग शामिल होते हैं जो अत्यधिक वर्तमान एवं समसामयिक होते हैं। मान लीजिए कि एक प्रश्न उत्तराखंड एवं अरुणाचल प्रदेश में हाल ही के संवैधानिक संकट में राज्यपाल की भूमिका पर पूछा गया है या उस मामले के लिए, एक प्रश्न, जैसे कि हाल ही में इन दोनों राज्यों में देखा गया है, एंटी डिफेक्शन लॉ के अंतर्गत, अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में स्पीकर की भूमिका पर पूछा जाता है, तो इन प्रश्नों पर, राजतंत्र पर उपलब्ध पुस्तकें कोई सार्थक पूर्ण जानकारी देने में अप्रासंगिक होती हैं। इसलिए, ऐसे प्रसंगों की तैयारी के लिए राजतंत्र की कुछ गिनी-चुनी पाठ्य-पुस्तकों पर आश्रित रहने के कारण परीक्षा से संबंधित विषयों की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं होती और परीक्षा में कम अंक प्राप्त होते हैं। अत:, इसका समाधान यही है कि सीमित पाठ्य-पुस्तकों और कोचिंग सामग्रियों पर आश्रित न रहकर व्यापक अध्ययन किया जाए। इसके लिए, समाचार पत्र, मानक दैनिक तथा पत्रिकाएं पढऩा उपयोगी रहेगा।

सामान्य अध्ययन (जी.एस.) प्रश्न-पत्र-II की तैयारी:

क. पाठ्यक्रम को समझना: जी.एस. प्रश्न-पत्र-II में अधिकांश प्रश्न राजतंत्र से जुड़े होते हैं। राजतंत्र में कार्यपालक, विधायी तथा न्यायिक शाखाओं से जुड़े मुख्य प्रावधान निहित होते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि इन शाखाओं से जुड़े महत्वपूर्ण मामले परीक्षा में आते ही हैं। राजतंत्र की योजनाबद्ध तैयारी करने के लिए संविधान की मूल आत्मा, इसकी औपनिवेशिक पृष्ठभूमि, विभिन्न संशोधनों तथा न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से स्वतंत्रता के बाद इसके विकास, इसके मूल्यों, नीतियों, उद्देश्यों तथा आदर्श (स्वरूप) को समझा जाना चाहिए। उसके बाद उम्मीदवार को संविधान की संरचना भाग तथा संघीय योजनाओं को समझना चाहिए। अनुच्छेद 356, राज्यपाल की भूमिका, न्यायिक अतिसार पर कार्यपालक एवं न्यायपालिका में परस्पर विरोध, न्यायिक नियुक्तियां आदि मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

आई.ए.एस.-2016 के लिए संभावित विषय:

1.संसद की कार्य-संचालन पद्धति: राज्यसभा की भूमिका, संसद-भंग, आधार बिल मामले में धनराशि दुरूपयोग विधेयक प्रावधान।

2.राज्यपाल: पद से घिरे विवाद, अरुणाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के विशेष संदर्भ में उपचारी उपाय, अनुच्छेद 356 का दुरूपयोग।

3. एंटी डिफेक्शन लॉ में स्पीकर की भूमिका: मामले एवं निवारक उपाय।

4.न्यायिक सुधार: न्यायिक नियुक्तियों में विलंब, एम।ओ।पी। पर कार्यपालक एवं न्यायपालिका, लंबित मामले, राष्ट्रीय अपील न्यायालय, उच्चतम न्यायालय की अभिशून्यन पीठें, अखिल भारतीय न्यायिक सेवा।

5.संघवाद: सहकारी एवं प्रतिस्पर्धी संघवाद।

6.चुनाव: एक कालिक चुनाव, चुनाव आयोग का सुदृढ़ीकरण, निर्वाचकीय सुधार।

7.बजट: बजट सत्र पहले बुलाना, रेल-बजट एवं आम बजट को आपस में जोडऩा

8.नागरिकता: पाकिस्तान, बंगलादेश तथा अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों से संबंधित नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016

9.लाभ मामलात कार्यालय

10.दिल्ली का संवैधानिक दर्जा

11.सिविल सेवा: लैटरल एंट्री एवं उसकी वैधता

12.यूनिफार्म सिविल कोड

13.एम.एच.आर.पी.: मानव अधिकार निगरानी सुदृढ़ीकरण।

14.भारत में राजवंशीय (डायनास्टिक) राजनीति

15.राजद्रोह, मान-हानि विधियां

16.एन.जी.टी. की भूमिका, इसके साथ ही के सक्रियतावाद

17.अंतर-राज्य नदी जल विवाद तथा उच्चतम न्यायालय की भूमिका

18.आर.टी.आई.एवं राजनीतिक दल, आर.टी.आई.एवं न्यायापालिका

19.पी..आई. चुनाव के लिए शैक्षिक योग्यताएं

20.संविधान की अनुसूची-ङ्क तथा ङ्कढ्ढ की कार्य पद्धति

21.लिंग समानता एवं यूनिफार्म सिविल कोड, महिला अधिकार एवं धार्मिक स्वतंत्रता

अभिशासन एवं संस्था से जुड़े मामले

1.सी.बी.एफ.सी. फिल्म प्रमाणन

2.लोढ़ा समिति की रिपोर्ट

3.मानसिक स्वास्थ्य विधेयक तथा आत्महत्या के मामले

4.राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक, 2016

5.किशोर न्याय संशोधन अधिनियम, 2016

6.मनरेगा के 10 वर्ष

7.एन.जी.. की भूमिका, विकास प्रक्रियाधीन स्व-सहायता समूह

अनुशंसित पुस्तकें:

1.पी.एम. बक्षी: कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया

2.बी.के शर्मा: द कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया

3.ग्रेनविले ऑस्टिन: द कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया

4.एम.पी. सिंह: इंडियन फैडरिलिज्म

5.एम.पी. सिंह एंड सक्सैना: इंडियन पॉलिटिक्स

6.देवेश कपूर एंड प्रताप भानू मेहता: पब्लिक इंस्टीट्यूशन्स इन इंडिया

7.सुभाष कश्यप: आवर पॉलिटिकल सिस्टम, आवर पार्लियामेंट, आवर कॉन्स्टीट्यूशन

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

संक्षेप में कहें तो अंतर्राष्ट्रीय संबंध में पाठ्यक्रम को, हमारे पड़ोसी, विस्तृत पड़ोसी, बड़ी शक्तियों जैसे अमेरिका, रूस, चीन तथा भारत की अर्थ-व्यवस्था एवं सुरक्षा, बाहरी विश्व से एंगेजमेंट के संदर्भ भारत से जुड़े विकास के रूप में उल्लेख कर सकते हैं। उम्मीदवार को हमारी विदेशी नीति के व्यापक रूपरेखा का ज्ञान होना चाहिए, जो भारत की विदेश नीति पर समसामयिक विकास की जानकारी के लिए उपयोगी हैं। इसके अधिकांश भाग की तैयारी ट्रीटीज़, आर्थिक समझौतों, बहुपक्षीय फोरम के संबंध में भारत विशिष्ट विकास की दैनिक जानकारी द्वारा आसानी से की जा सकती है। तथापि, किसी एक समाचार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। पाठ्यक्रम के इस भाग की तैयारी के लिए कम से कम 2-3 राष्ट्रीय समाचार पत्र प्रतिदिन ध्यान से पढऩे चाहिए।

1.भारत-रूस संबंध

2.बिक्सटेक बनाम सार्क

3.एस.सी.. की भारत की सदस्यता: बाधाएं

4.ब्रिक्स सम्मेलन

5.भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी एवं म्यांमार

6.भारत की थिंक वेस्ट पॉलिसी

7.एन..एम.की प्रासंगिकता

8.एम.टी.सी.आर., एन.एस.जी. में भारत की सदस्यता

9.इंडस वाटर ट्रीटी मामला

10.भारत एवं एपीईसी

11.भारत-जापान एवं भारत-अमेरिकी संबंध

अनुशंसित पुस्तकें:-

1.राजीव सीकरी: चैलेंज एंड स्ट्रेटेजी

2.मुच्कुंद दुबे: इंडियाज़ फोरेन पॉलिसी

3.विदेश नीति मामलों पर दैनिक टिप्पणियों के लिए राजा मोहन की वेबसाइट

सामान्य अध्ययन (जी.एस.) प्रश्न-पत्र-III: एक विहंगम दृष्टि:

जी.एस. प्रश्न-पत्र-II की ही तरह यह प्रश्न-पत्र भी वर्तमान घटना उन्मुखी है। कोई भी बुद्धिमान छात्र बिना किसी विशेषज्ञतापूर्ण अध्ययन के, इस प्रश्न-पत्र की तैयारी कर सकता है। अधिकाशि प्रश्न अर्थशास्त्र, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तथा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में हुए वर्तमान विकास से संबद्ध अत्यधिक सामान्य प्रकृति के होते हैं। अर्थशास्त्र के लिए अत्यधिक ध्यान भारत के आर्थिक विकास, भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सरकार द्वारा किए गए नीतिगत उपायों तथा इन उपायों के मूल्यांकन के विषयों पर दिया जाना चाहिए।

सामान्य मार्गदर्शन के लिए बिजनेस स्टैण्डर्ड या इकोनॉमिक टाइम्स जैसे अच्छे आर्थिक समाचारपत्रों के अतिरिक्त इकोनामिक सर्वे (आर्थिक सर्वेक्षण) भी अच्छी तरह पढऩा चाहिए।

अनुशंसित पुस्तकें:

1.उमा कपिला, इंडियन इकोनॉमी सिंस इंडिपेंडेंस

2.इकोनॉमिक सर्वे: 2015-16

3.योजना

4.समाचार पत्र: बिजनेस स्टैण्डर्ड और इकोनॉमिक टाइम्स।

आई.ए.एस.2016 के लिए अर्थशास्त्र के संभावित विषय:

1.उदारीकरण के 25 वर्ष, प्रभाव, कमियां तथा भविष्य

2.एन.पी.. एवं पी.एस.बी.

3.इन्फ्लेशन टार्गेटिंग: एम.पी.सी. की भूमिका, सी.पी.एल.आधार पर इन्फ्लेशन मीजरमेंट

4.आर.बी.आई. की स्वायत्तता

5.एक स्वतंत्र वित्त परिषद की आवश्यकता

6.आर्थिक नीति संचरण मामले

7.भारत पर टी.पी.पी./आर.सी..पी.का प्रभाव बहुपक्षवाद बनाम क्षेत्रवाद

8.डब्ल्यू.टी..: नैरोबी निष्कर्ष एवं भारत के लिए इसके परिणाम।

9.पी.पी.पी. मामले, केलकर समिति की सिफारिशें

10.जे..एम. त्रिनीति मामले

11.व्यवसाय सुधार, दिवालियापन, विधि, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, आई.पी.आर. नीति, श्रमिक सुधार, मुद्रा योजना, जी.एस.) टी. सुविधा

12.कैपिटल गुड्स नीति एवं इसकी चुनौतियां

13.प्लांटेशन उद्योग

14.जी.एस.) टी. और इसकी चुनौतियां

15.नागर विमानन नीति

16.सबसिडी

17.कृषि: बैकवर्ड एवं फोरवर्ड लिंकेज, सिंचाई, ई-नैम, पी.एम.एफ.बी.वाई

18.खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, बागवानी

19.मात्स्यिकी विकाय योजना

20.तटवर्ती आर्थिक जोन

21.भू-सम्पदा विधेयक

22.काला धन एवं धन धोखाधड़ी

23.वित्तीय समावेशन

24.काम्पा बिल

25.क्रॉपिंग पैटर्न

26.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम एवं पी।डी।एस। पर्यावरण मामले, पेरिस जलवायु समझौता, किगाली निष्कर्ष, जंगली आग

27.आपदा प्रबंधन, अर्बन फ्लडिंग, हीट वेव्ज, भूकम्प आंतरिक सुरक्षा

1.सीमा प्रबंधन

2.एन.सी.टी.सी. रिवाइवल

3.तटीय सुरक्षा

4.साइबर सुरक्षा

5.भारत में सुरक्षा एजोंसियों का मेनडेट

विज्ञान/प्रौद्योगिकी पर संभावित विषय:

1.कृत्रिम आसूचना

2.वर्चुअल, ऑगमेंटेड एवं मिक्स्ड रियलिटी

3.नाविक (एन.ए.बी.आई.सी.)

4. एवं ड्रान्स

5.सुपर बग्स

6.लिगो एक्सपेरिमेंट

7.क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डाटा और इंटरनेट ऑफ थिंग्स

8.इसरो की उपलब्धियां

9.डोपिंग ड्रग्स

10.3डी एवं 4डी प्रिंटिंग

11.इंटरनेट गवर्नेंस: नेट न्यूट्रलिटी (फ्री बेसिक्स एवं इंटरनेट ऑर्ग।

आपदा प्रबंधन, पारिस्थितिकी तथा पर्यावरण एवं आंतरिक सुरक्षा से संबंधित विषयों के लिए, श्रेष्ठ नीति यह होगी कि संबंधित वेबसाइट देखी जाएं - जैसे आपदा प्रबंधन के लिए एन।डी।एम।ए। की साइट, पर्यावरण से जुड़े मामलों के लिए एनविस।इन साइट, आंतरिक सुरक्षा  मामलों के लिए गृह मंत्रालय की साइट। जी.एस.) -III प्रश्न-पत्र के पाठ्यक्रम के इन पहलुओं के लिए समाचार-पत्र निश्चित रूप से महत्वपूर्ण स्रोत सामग्री का कार्य करेंगे।

उत्तर लेखन कौशल: चाहे आपने कितना भी पढ़ा हो या आप कितना ज्ञान रखते हैं, लेखन कौशल के बिना आपकी तैयारी अधूरी होती है। इसलिए लेखन कौशल पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। चूंकि सामान्य अध्ययन के सभी प्रश्नों का उत्तर 150 से कम शब्दों में ही देना होता है, इसलिए सुस्पष्ट लेखन शैली ही अपनानी चाहिए। 3 घंटों में अनेक प्रश्नों का उत्तर देना होता है, इसलिए सभी उत्तर लिखने के लिए तीव्र लेखन गति होना अनिवार्य है, अन्यथा वही होगा जो अन्यों के साथ होता है, सभी प्रश्नों के पूरे उत्तर लिखने के लिए आपके पास समय नहीं बचेगा। उत्तर लेखन कौशल के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण संकेत नीचे दिए गए हैं:-

1.प्रश्न में मामले की किसी विस्तृत पृष्ठभूमि के साथ प्रारंभ न करें। इस पर केवल एक या दो वाक्य ही लिखें और उसके बाद सीधे विषय पर आएं।

2.ऐसी सूचना न दें जो प्रश्न में वांछित नहीं है। केवल वही सूचना दें जो प्रश्न के दायरे में आती है।

3.अपने उत्तर में किसी पाठ्य-पुस्तक की शैली अथवा समाचार-पत्र की भाषा का प्रयोग नहीं करें और केवल अपनी निजी लेखन शैली का प्रयोग करें। आपकी अपनी निजी लेखन शैली पाठ्य-पुस्तक प्रकृति की भाषा से अधिक सहज लगेगी।

4.जहां तक संभव हो, डायग्राम, चार्ट तथा ग्राफ के माध्यम से अभिव्यक्ति से बचें। एक सामान्य निबंध प्रकृति का लेखन अधिक उपयोगी होगा। किंतु यदि वास्तव में आवश्यकता हो तो डायग्राम आदि का प्रयोग करें।

5.अपने उत्तर को रेखांकित न करें। ऐसा करने से परीक्षक को आपका उत्तर दक्षतारहित लगेगा।

6.पूरे प्रश्न का उत्तर कभी भी प्वाइंट वार प्रारूप में नहीं लिखें। यह मिश्रित शैली में होना चाहिए। उत्तर में निबंध प्रकृति के लेखन का और प्वाइंटवार लेखन का प्रयोग करें।

7.अपने उत्तर को तथ्यों और सांख्यिकी के आधिक्य से बचाएं। प्रश्न में निहित केवल दो या तीन मुख्य मामलों को उठाएं और उन मामलों पर प्रकाश डालें।

8.प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 150-170 शब्दों तक रखने का लक्ष्य रखें।

9.अपने उत्तर में अनुकूल शब्दावली एवं परिभाषाएं प्रयोग में लाएं।

 

(एस.बी. सिंह एक प्रख्यात शिक्षाविद् तथा आई..एस. मेंटोर हैं। उनसे उनकी ई-मेल: sb_singh2003@yahoo. com पर सम्पर्क किया जा सकता है)।