उभरते हुए अनुसंधान क्षेत्र के रूप में ध्रुवीय विज्ञान में रोजगार के अवसर
डॉ.पवन कुमार भारती
ध्रुवीय विज्ञान में मानवता को लाभ पहुंचाने, संसाधनों के स्थाई इस्तेमाल में मदद करने और पृथ्वी की संरक्षा
तथा आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव पैदा करने की क्षमता है। ध्रुवीय क्षेत्रों में अनुसंधान महत्वपूर्ण है और वर्तमान जरूरतों के लिए प्रासंगिक है। ध्रुवीय क्षेत्र धरती के छोर हो सकते हैं, लेकिन वहां जो कुछ होता है, उनका हम पर असर पड़ता है। धरती कैसे काम करती है, और विशेषकर यह सतत वृद्धिशील मानव दबाव को कैसे झेलती है, इसे समझना विज्ञान की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम (आईएपी)
विश्व के ध्रुवीय क्षेत्र और उनके निरंतर सागर आज पहले से कहीं अधिक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। कभी बंजर, दुर्गम स्थान समझे जाने वाले ऐसे क्षेत्र जहां सिर्फ अन्वेषक जाते हैं, उत्तर और दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र, आज वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थलों में परिवर्तित हो चुके हैं। मामला चाहे वैश्विक जलवायु में बदलाव लाने में ध्रुवीय क्षेत्रों की भूमिका का हो, अथवा पारिस्थितिकी प्रणाली की अनुकूलनशीलता के अध्ययन और अत्यंत विषय स्थितियों के अधीन अस्तित्व बनाए रखने की बात हो, ध्रुवीय क्षेत्र के विज्ञान में पिछले करीब दो दशकों से मानव की रुचि बढ़ती जा रही है। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक मंच के रूप में अंटार्कटिका का महत्व समझते हुए, भारत ने काफी पहले 1981 में अपना प्रथम वार्षिक वैज्ञानिक अभियान दल अंटार्कटिक भेजा था। इसके बाद 2004 में दक्षिण सागर अनुसंधान के क्षेत्र में राष्ट्र को सफलतापूर्वक प्रवेश मिला और इसके 3 वर्ष बाद आर्कटिक क्षेत्र में अनुसंधान में भारत का प्रवेश हुआ। दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों में भारतीय वैज्ञानिकों की जरूरतें पूरी करने के लिए, ‘‘मैत्री’’ और ‘‘हिमाद्री’’ नाम के दो अनुसंधान केंद्र स्थापित किए गए हैं, ताकि अंटार्कटिक और आर्कटिक क्षेत्र में क्रमश: रहने और अनुसंधान के लिए आधार प्रदान कर सकें। अंटार्कटिक में भारत का अन्य स्थायी अनुसंधान केंद्र ‘‘भारती’’ है, जो 2011-12 के ग्रीष्मकाल में शुरू किया गया था।
आर्कटिक और अंटार्कटिक में वैज्ञानिक अध्ययन सन्केंद्रित क्षेत्रों में अधिकतर पृथ्वी, वायुमंडल और जैविक विज्ञान तक सीमित रहा है। जहां तक क्रायोस्फियर के अध्ययन का प्रश्न है, भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अंटार्कटिक क्षेत्र में शुरू किए गए अनुसंधान प्रयासों में ड्रॉनिंग मोडलैंड में हिमनदों की जांच, हिम गतिशीलता और ऊर्जा संतुलन तथा बर्फ क्रोड विश्लेषण से जलवायु संबंधी पुनर्निर्माण का अध्ययन किया जाता है। आर्कटिक के क्रायोस्फियरिक क्षेत्र का व्यवस्थित अध्ययन अभी शुरू किया जाना है। ध्रुवीय हिम आच्छादन और मोड्यूलेटिंग में ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्री बर्फ के महत्व पर विचार करते हुए, भले ही वैश्विक जलवायु के संचालक के रूप में न सही, यह प्रस्तावित किया जाता है कि दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों तथा हिमालयी क्षेत्र का प्रमुख राष्ट्रीय क्रायोस्फियरिक अध्ययन शुरू किया जाए।
ध्रुवीय वैज्ञानिक पर्यवेक्षण करते हैं और आर्कटिक (उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र) और अंटार्कटिक (दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र) के बारे में प्रश्नों के उत्तर देने के लिए आंकड़े एकत्र करते हैं। ये क्षेत्र बेजोड़ हैं और अलग-थलग पड़े हैं। परंतु पृथ्वी एक वैश्विक प्रणाली है, अत: सभी क्षेत्र परस्पर सम्बद्ध हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों का अध्ययन करते समय हम भौतिक विज्ञान, लाइफ साइंस और पृथ्वी/अंतरिक्ष विज्ञान से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
वैज्ञानिक प्रकृति में प्रवृत्तियों का अध्ययन करते हैं। वे इन पर्यवेक्षणों का इस्तेमाल नमूने तैयार करने के लिए करते हैं। ये नमूने हमें जटिल, परिवर्तित पर्यावरण को समझने, स्पष्ट करने और उसके बारे में पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं।
आर्कटिक (उत्तर ध्रुव)
आर्कटिक वह ध्रुवीय क्षेत्र है जो पृथ्वी के सुदूरतम उत्तरी दिशा में स्थित है। आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक सागर, आसपास के समुद्र और अलास्का (अमरीका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नार्वे, रूस और स्वीडन के हिस्से शामिल हैं। आर्कटिक क्षेत्र में भूमि मौसम के अनुसार बर्फ और हिम से आच्छादित रहती है, जहां वृक्षहीन स्थायी रूप से बर्फ से ढके टुंड्रा प्रदेश हैं। आर्कटिक सागर में अनेक स्थानों पर मौसमी समुद्री बर्फ जमी रहती है।
2005 के ग्रीष्मकाल में वैज्ञानिकों ने आर्कटिक सागर के सबसे गहरे हिस्से में स्थित, कनाडा बेसिन की हिमाच्छादित गहराई का पता लगाने के लिए एक संयुक्त अभियान में हिस्सा लिया। इस अभियान को ‘‘द हिडन ओशन’’ अर्थात् छिपे समुद्र का नाम दिया गया, चूंकि आर्कटिक सागर का यह हिस्सा वर्ष के दौरान अधिकतर समय समुद्री बर्फ से आच्छादित रहता है और इस तरह उसे खोजना कठिन होता है।
अंटार्कटिक (दक्षिणी ध्रुव):
अंटार्कटिक धरती का सुदूरतम दक्षिणी महाद्वीप है। इसमें भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव शामिल है और यह दक्षिणी गोलाद्र्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र में स्थित है, जो अंटार्कटिक सर्कल के दक्षिण में है तथा दक्षिण सागर से घिरा हुआ है। 1,40,00,000 वर्ग किलोमीटर (54,00,000 वर्ग मील) में फैला यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। तुलना की दृष्टि से अंटार्कटिक आस्ट्रेलिया के आकार का लगभग दुगुना है। अंटार्कटिक का 98 प्रतिशत हिस्सा बर्फ से ढका रहता है, जिसकी परत औसतन 1।9 किलोमीटर (1।2 मील; 6200 फुट) मोटी है, जो अंटार्कटिक प्राय:द्वीप के सुदूरतम उत्तरी शिखरों को छोड़ कर समूचे महाद्वीप में फैली है।
अंटार्कटिक औसतन सबसे ठंडा, सबसे खुश्क और सर्वाधिक हवाएं चलने वाला महाद्वीप है और जिसकी औसत ऊंचाई सभी महाद्वीपों से अधिक है। अंटार्कटिक एक रेगिस्तान है, जहां तटीय और निकटवर्ती प्रदेशों में मात्र 200 मिलीमीटर (8 इंच) वर्षा होती है। अंटार्कटिक का तापमान शून्य से -89।2 डिग्री सेंटीग्रेड (-128।6 डिग्री फारेनहाइट) तक नीचे चला जाता है, हालांकि तीसरी तिमाही (वर्ष का सबसे ठंडा हिस्सा) का औसत तापमान शून्य से -63 डिग्री सेंटीग्रेड (-81 डिग्री फारेनहाइट) नीचे होता है। 2016 में वहां करीब 135 स्थायी निवासी थे। परंतु समूचे महाद्वीप में अनुसंधान केंद्र बिखरे होने को देखते हुए वर्ष के दौरान किसी भी समय 1,000 से 5,000 तक व्यक्ति वहां रहते हैं। अंटार्कटिक से सम्बद्ध जीव समूहों में अनेक प्रकार के शैवाल, बैक्टीरिया, फफूंद, पादप, प्रोटिस्टा, और विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु जैसे घुन, सूत्रकृमि, पेंगुइन्स, सील और टार्डिग्रेड्स शामिल हैं। टुंड्रा प्रदेशों में यदाकदा वनस्पति भी पाई जाती है।
दक्षिणी सागर अंटार्कटिका को घेरे हुए है और अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागरों के बीच यह संपर्क के रूप में काम करता है। विषम जलवायु के कारण इस सागर बेसिन का अधिकांश हिस्सा ऐसा है जहां कोई खोज नहीं की जा सकी है। अनुसंधानकर्ता गतिशील हिम परतों से उत्पन्न ध्वनियों, बड़े आकार की बैलीन व्हेल मछलियों और समुद्र के अंदर आने वाले भूकंपों और ज्वालामुखियों के अन्वेषणों के द्वारा दक्षिण सागर के बारे में सीख रहे हैं।
हिमालय (तृतीय ध्रुव) :
हिमालय क्षेत्र एशिया में एक पर्वतमाला है, जो भारतीय उप-महाद्वीप के मैदानी भागों को तिब्बत के पठार से अलग करती है। हिमालय पर्वतमाला में पृथ्वी के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर समाहित हैं, जिनमें सबसे ऊंची माउंट ऐवरेस्ट भी शामिल है। हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत 100 से अधिक पर्वतमालाएं शामिल हैं, जो ऊंचाई की ओर 7,200 मीटर (23,600 फुट) तक फैली हैं। इसके विपरीत एशिया के बाहर सबसे ऊंची चोटी एंडीज पर्वतमाला के अंतर्गत अकोंगकागुआ है, जिसकी ऊंचाई 6961 मीटर (22,838 फुट) है। हिमालय पर्वतमाला 5 देशों, भूटान, भारत, नेपाल, चीन गणराज्य और पाकिस्तान में फैली है। इनमें अधिकतर हिस्सा भूटान, भारत और नेपाल के संप्रभुता क्षेत्र में आता है। हिमालयी पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम में कराकोरम और हिंदुकुश श्रेणियों, उत्तर में तिब्बत के पठार, और दक्षिण में भारत के गंगा के मैदानी भाग से घिरी हुई है। विश्व की कुछ बड़ी नदियां जैसे सिंधु, गंगा और सांग्पो-ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलती हैं और उनके संयुक्त नदी थाला क्षेत्र में करीब 60 करोड़ लोग रहते हैं।
यूरेशियन प्लेट के अंतर्गत इंडियन टेक्टोनिक प्लेट के आच्छादन से निर्मित हिमालयी पर्वतमाला, पश्चिम-उत्तर-पश्चिम से पूर्व-दक्षिण-पूर्व, की दिशा में 2400 किलोमीटर (1500 मील) क्षेत्र में फैली है। इसका पश्चिमी किनारा, नंगा पर्वत, सिंधु नदी के सुदूरतम उत्तरी मोड़ के दक्षिण में स्थित है; इसका पूर्वी किनारा, नामचा बार्वा सांग्पो नदी के बृहत्त मोड़ के पश्चिम में स्थित है। पर्वतमाला की चौड़ाई पश्चिम में 400 किलोमीटर (250 मील) से पूर्व में 150 किलोमीटर (93 मील) तक है। हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा अत्याधुनिक अनुसंधान कार्यों के लिए हिमालय क्षेत्र में हिमांश नाम की एक प्रयोगशाला स्थापित की गई। इन दिनों तीनों धु्रव क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं और अनुसंधान कार्य से संबंधित पृथ्वी विज्ञान के लिए संदर्भित कार्यस्थल के रूप में काम कर रहे हैं।
रोजगार के अवसर
धु्रवीय विज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि लोग पृथ्वी पारिस्थितिकी प्रणाली और प्रक्रियाओं से संबंधित बुनियादी विषयों के बारे में जानने के इच्छुक हैं।
परंपरागत दृष्टि से ध्रुवीय विज्ञान में रोजगार के अवसरों के अंतर्गत शैक्षिक जगत, सरकार, पर्यावरण विषयक परामर्श जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इनमें से अधिकतर उद्योगों में बड़ी आयु के कार्मिक कार्यरत हैं और ये उद्योग सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्तियों के स्थान पर दीर्घावधि के लिए लोगों की भर्ती में संलग्न है। उचित शैक्षिक योग्यता रखने वाले व्यक्तियों के लिए ध्रुवीय विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। ध्रुवीय वैज्ञानिक धरती के ध्रुवों और उसकी प्रक्रियाओं/धारणाओं के बारे में अनुसंधान करते हैं।
पृथ्वी विज्ञान एक व्यापक क्षेत्र है, और इसमें रोजगार के अवसर आमतौर पर विशेषज्ञता, प्राप्त शिक्षा के स्तर पर निर्भर करते हैं। पृथ्वी वैज्ञानिक जल विज्ञान, मृदा विज्ञान, मौसम विज्ञान, तेल और गैस निष्कर्षण या भू विज्ञान जैसे क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। नियोक्ताओं में सरकारी एजेंसियां, कंसल्टिंग फर्म, पर्यावरण प्रबंधन सेवाएं और तेल एवं गैस उद्योग शामिल हैं। ध्रुवीय विज्ञान से संबंधित पदों में नमूने के तौर पर भू-वैज्ञानिक, भू-सर्वेक्षक, मौसम वैज्ञानिक, भू-भौतिकविद्, भू-जल वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् आदि शामिल हैं। उच्चतर अध्ययन/अनुसंधान कार्य से विभिन्न राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय मिशनों में भी अवसर हासिल किए जा सकते हैं। इनमें हिमालयी अध्ययन, दक्षिण सागर खुदाई कार्यक्रम, आर्कटिक मिशन, अंटार्कटिक मिशन आदि शामिल हैं।
अनुसंधान के क्षेत्र
अनुसंधान के क्षेत्रों में निम्नांकित प्रमुख हैं :-
भू-विज्ञान, मौसम विज्ञान, हिम अध्ययन, भू-चुम्बकत्व, पर्यावरणीय विज्ञान, वन्यजीव, जीव विज्ञान, समुद्र विज्ञान, ओजोन ह्रास, जलवायु परिवर्तन आदि।
नियामक प्राधिकरण :
अंतर्राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरणों में एटीएस, सीओएमएनएपी, आईएएटीओ और भारत में केवल एनसीएओआर (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय) एक नियामक प्राधिकरण है, जो सभी सम्बद्ध पक्षों को सुविधाएं पहुंचाता है।
बुनियादी पात्रता :
ध्रुवीय विज्ञान एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें विभिन्न अंतर-विषयी विज्ञान शाखाओं से उम्मीदवारों की आवश्यकता पड़ती है। यहां तक कि समाज विज्ञान विषयों से सम्बद्ध व्यक्तियों की भी इस विज्ञान में आवश्यकता पड़ती है, जो अपनी रुचि के क्षेत्रों में रोजगार के अवसर तलाश कर सकते हैं। भारत और विदेश में विभिन्न विश्वविद्यालयों/संस्थानों द्वारा विभिन्न प्रकार के डिग्री/डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। आप विज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम/डिग्री पाठ्यक्रम उत्तीर्ण कर सकते हैं। पात्रता मानदंड इस प्रकार हैं:
*सामान्य विज्ञान में बी.एससी अथवा बायोलोजीकल साइंसेज या प्राकृतिक विज्ञान में बी.एससी.
*पर्यावरण, रसायन विज्ञान, भू विज्ञान में एम.एससी या समकक्ष।
*दूर संवेदन और जीआईएस, भू सूचना विज्ञान, पर्यावरणीय इंजीनियरी में एम.टेक.
*दूरसंवेदन और जीआईएस, भू सूचना विज्ञान, प्रदूषण नियंत्रण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
*पर्यावरण विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान में पी.एचडी या समकक्ष।
प्रतिभागी :
1.सरकारी संस्थान/विश्वविद्यालय : अनेक सरकारी संस्थान अंटार्कटिक और आर्कटिक से संबंधित भारतीय अभियानों में नियमित रूप से हिस्सा लेते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं: जैसे जीएसआई, आईएमडी, एनआईओ, एसओआई, डीआरडीओ, बीआरओ, इसरो, एनबीपीजीआर, सीसीएमबी, आईएनसीओआईएस, एनसीएओआर, दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस विश्वविद्यालय, आरएमएलयू, आदि।
2.प्राइवेट संस्थान/विश्वविद्यालय : सरकारी संगठनों के अलावा कुछ चुने हुए प्राइवेट संगठन भी भारतीय ध्रुवीय विज्ञानों में रुचि लेते हैं और सक्रिय भागीदारी अदा करते हैं। इनके प्रमुख उदाहरणों में श्रीराम इंस्टिट्यूट, दिल्ली और एमिटी यूनिर्सिटी, नोएडा शामिल हैं।
3.विद्यार्थी भी भारतीय ध्रुवीय विज्ञान कार्यक्रम में हिस्सा ले सकते हैं और एक वैध सक्षम गाइड के साथ अंटार्कटिक की यात्रा कर सकते हैं। एनसीएसीआर हमेशा विद्यार्थियों को इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करता है।
क्षेत्र और रोजगार के अवसर
अनेक ऐसे संस्थान/परामर्श संस्थाएं हैं जहां आप अपना व्यावसायिक विकास कर सकते हैं और/या अध्ययन/अनुसंधान कार्य भी जारी रख सकते हैं।
किसी मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय या समकक्ष संस्थान से उपयुक्त डिग्री या डिप्लोमा या स्नातकोत्तर डिप्लोमा उत्तीर्ण करने के बाद उम्मीदवार निर्दिष्ट विकल्पों में से अपनी योग्यता, रुचि और क्षमता के अनुसार विकल्पों का चयन कर सकते हैं। व्यावसायिक कॅरियर के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय व्यवसायों में निम्नांकित शामिल हैं:-
*वैज्ञानिक/विश्लेषक - सरकारी या प्राइवेट अनुसंधान संस्थान/संगठन/परीक्षण प्रयोगशालाएं।
*लेक्चरर/प्रोफेसर - विश्वविद्यालय या शैक्षिक संस्थान।
*वैज्ञानिक अधिकारी - सरकारी वैज्ञानिक संगठन या स्वयंसेवी संगठन।
*भू वैज्ञानिक
*ईसी या एफएई - परामर्श संगठनों में ईआईए यानी पर्यावरण मूल्यांकन अध्ययन।
*सहायक प्रबंधक - विभिन्न कॉरपोरेट समूहों में।
*परामर्शदाता - कंसल्टेंसी एजेंसियां, स्वैच्छिक संगठन या ऐसे ही अन्य प्रतिष्ठान।
*लेखक/संकलनकर्ता - विभिन्न प्रकाशन संस्थान या स्वतंत्र रूप से।
*लीडर या स्टेशन कमांडर - विशेष अभियानों के लिए।
उपरोक्त के अलावा उम्मीदवार रोजमर्रा घोषित कार्यों/पदों में भी रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। उम्मीदवार ध्रुवीय विज्ञान के क्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं और अंटार्कटिक, आर्कटिक या हिमालयी अभियानों में शामिल हो सकते हैं।
(लेखक पर्यावरणविद् और स्वतंत्र लेखक हैं। ईमेल: sudarshan54@gmail.com)